हाईब्रिड नेपियर घास से वर्षभर हरा चारा उत्पादन 

नेपियर घास  का जन्म स्थान अफ्रीका का जिम्बाबे देश बताया जाता है | यह  बहुत ही तेज बढ़ने वाली पौष्टिक चारा घास है इसलिए इसे हाथी घास भी कहा जाता है | इसका  नेपियर नाम, कर्नल नेपियर (रोडेसियन कृषि विभाग, रोडेसिया) के नाम पर पड़ा |

सबसे पहली नेपियर हाईब्रिड घास अफ्रीका में बनाई  गयी |  इसे चारे के  रूप में बहुत तेजी से अपनाया जा रहा है|  भारत में यह घास 1912 में आई | भारत में प्रथम बाजरा-नेपियर हाईब्रिड  घास कोइम्बतुर, तमिलनाडू (1953) में और फिर नयी दिल्ली में 1962 में बनाई गयी| कोइम्बतुर के हाईब्रिड  का नाम कोम्बू नेपियर और नयी  दिल्ली में बनाये गए पहले हाईब्रिड का नाम पूसा जियंत नेपियर रखा गया  |

इससे पुरे वर्ष 6-8 कटाईयो द्वारा हरा चारा प्राप्त किया जा सकता है | एक बार लगाने के बाद यह घास 3-4 वर्षो तक हरा चारा देती रहती है एवं कम उत्पादन की स्थिति में , इसे पुनः खोद कर लगा दिया जाता है

पोषक तत्व:  

संकर नेपियर घास में क्रुड प्रोटीन 8-10 प्रतिशत, क्रूड रेशा 30 प्रतिशत और  कैल्सियम 0.5 प्रतिशत, शुष्क पदार्थ 16-20 प्रतिशत, पाचक क्षमता 60 प्रतिशत और औक्सालेट 2.5 - 3 प्रतिशत तक होता है | इसके चारे को दलहनी चारे के साथ मिला कर पशुओ को खिलाना चाहिए|

जलवायु:   

हाईब्रिड नेपियर घास गर्म मौसम की फसल है और इसकी तेजी से बढवार के लिए  उपयुक्त तापमान 31 डिग्री सेंटीग्रेड होना चाहिए और 15 डिग्री सेंटीग्रेड से कम तापमान होने पर इसकी बढवार कम हो जाती है| बढवार के लिए हलकी वर्षा फिर चमकीली धुप अच्छी रहती है | इसे  5-8 तक पी एच तक की मिट्टियो में  उगाया जा सकता है|

भूमि और भूमि की तैयारी: 

संकर नेपियर घास का उत्पादन सभी तरह की मिट्टियो में हो सकता है किन्तु अधिक उत्पादन के लिए, उ़चित जल निकास वाली दोमट  भूमि उपयुक्त होती है | यदि खेत में अधिक खरपतवार हो तो, खेत की तैयारी के लिए, एक क्रोस जुताई, हार्रो से करने के पश्चात एक क्रोस जुताई कल्टीवेटर से करना उचित रहता है | फसल को कुंड और मेड विधि से लगाने के लिए उचित दूरी पर मेड बनाना चाहिए |

पौधों का विकास :

इस फसल को तने की कटिंग और जड़ों द्वारा लगा सकते है |  फसल के बढने पर बाली तो आती है किन्तु उसमे बीज नहीं बनता है क्योकि नेपियर में फूल निष्क्रिय होते है | तने द्वारा फसल को लगाने के लिए डो गांठ वाले तने या जड़ों की आवश्यकता होती है |

जड़ों का जमाव अधिक आसान होता होता है और इस लिए जड़ों को किसी भी मौसम में लगा सकते है पर तने के टुकडो को लगाने के लिए खेत में 20-25  दिन तक हलकी सिंचाई करते रहना पड़ता है अतः इन्हें वर्षाकाल में लगाना आसान होता है |

बुवाई का समय :

सिंचाई की सुविधा होने पर जड़ों या तानो को वर्ष में किसी भी समय लगा सकते है | किन्तु वर्षा का मौसम, संकर नेपियर की जड़ों या तनो के लगाने के लिए सबसे उपयुक्त होता है क्योकि इस मौसम में बढवार बहुत तेजी से होती है और पानी उपलब्धता के कारण सिंचाई की भी कम आवश्यकता पड़ती है

 उन्नतशील प्रजातिया: 

DHN6, IGFRI-6, IGFRI-10, पूसा जियंत नेपियर, Co - 3, Co - 4, Co – 5, यशवंत, APBN1   इत्यादि प्रजातियाँ अधिक उत्पादन के लिए संतुत है |

बुबाई की विधि ओर दूरी

तने की कटिंग  को कम से कम 3 महीने पुराना होना चाहिए| दो गांठ की कटिंग उचित रहती है उसे 2/3 जमीं में गाढ़ देना चाहिए | जमींन के भीतर वाली गाँठ से जड़ और तने निकलते है और जमींन के ऊपर वाली जड़ से तने निकलते है |

अधिक चारा उत्पादन के लिए, लाइन से लाइन की दूरी 60 से मी और पौधे से पौधे की दूरी 50 से मी रखनी चाहिए| अन्य फसलों को  बीच में बोने के लिए लाइन से लाइन की दूरी बढ़ा सकते है जैसे 100 से मी. 200 से मी और 250 से मी. |

इससे दो लाइन के बीच में फसल को भी लगा सकते है|  विभिन्न प्रकार की दलहनी चारा फसले जैसे लोबिया, ग्वार, बरसीम, रिजका इत्यादि भी  इसके डो लाइन के बीच में उगा सकते है |

बीज या जड़ों और तनों की संख्या:  

जब लाइन से लाइन की दूरी 60 से.मी और पौधे की दूरी 50 से.मी रखते है तब 34000 जड़े या तने की कटिंग  पर्याप्त होती  है  और जब पौधे से पौधे की दूरी 50 से.मी और लाइन से लाइन की दूरी भी 50 से.मी रखते है तब 40000 जड़े प्रति हेक्टेयर  जरूरत पड़ती है |

खाद और उर्वरक:  

हाईब्रिड नेपियर  की फसल से अधिक चारा उत्पादन के लिए 100 – 150  कुन्तल गोबर की खाद और 50 किलो ग्राम नाईट्रोजन,  50 किलोग्राम फोस्फोरस और 40 किलो ग्राम पोटाश जड़ों की बुबाई के समय देना चाहिए | और 50 किलोग्राम  नाईट्रोजन प्रत्येक कटाई के बाद देना चाहिए| प्रत्येक कटाई के बाद 10 किलोग्राम फोस्फोरस भी देना चाहिए |

सिचाई:

संकर नेपियर एक सिंचित फसल है अतः इसकी  10-15 दिन के अंतर पर सिचाई करते रहना चाहिए | समय पर सिंचाई करने से इसमें बढवार तेज होती है |

खरपतवार नियंत्रण:

खरपतवार नियंत्रण, उत्पादन को बढ़ाने में अत्यंत महत्वपूर्ण होता है | खरपतवार नियंत्रण के लिए फावड़े या खुरपी से भी 3-4 सप्ताह बाद निराई गुडाई  करना आवश्यक होता है अन्यथा फसल की बढवार कम हो जाती है| निराई के लिए हैण्ड हो का प्रयोग क्ष्रम की काफी बचत करता है |

इक बार फसल के बड़े होने पर खरपतवार आसानी से नहीं आते है | रसायन द्वारा भी खरपतवार नियंत्रण किया जा सकता  है | चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारो के नियंत्रण के लिए 2-4 डी  की 1 किलो  सक्रिय तत्व,  प्रति हे. 500-600 लीटर पानी में मिला कर छिडकना चाहिए |

कीट व रोग नियंत्रण:

समय पर एवं उचित ऊँचाई पर फसल को काटने पर कीट और रोग का प्रभाव कम होता है| एक ही प्रक्षेत्र पर अधिक समय तक फसल लेने से पत्तियों पर बादामी दाग ( लीफ स्पॉट) से पड़ने लगते है इसकी रोकधाम के लिए मेन्कोजेब की 2 मिली मात्रा प्रति लीटर पानी में घोल कर छिड़काव करना चाहिए   

कटाई:

वर्षा के मौसम में फसल की बढवार तेजी से होती है  और फसल जल्दी से तैयार हो जाती है |  जब फसल  5 फीट ( 1.5 मीटर)  की हो जाये तब कटाई करने चाहिए | पहली कटाई 50-60 दिन में करनी चाहिए और उसके बाद प्रत्येक कटाई 40-45  दिन  पर करते रहना चाहिए |

फसल को  जमींन से 15 से मी ऊपर से काटना चाहीये, इससे बढवार तेज होती है | सर्दियों के बाद पहली कटाई  जमींन के पास से काटना चाहिए जिससे  खराब तने हट जाते है | एक बार लगाई गयी फसल को 3-4 वर्ष तक आसानी से काट सकते है|

इसके बाद चारा उत्पदन कम हो जाता है | तब इन पौधों को उखाड़  कर दोवारा रोपाई करनी चाहिए|

उत्पादन:

उत्तर भारत में हाईब्रिड नेपियर घास से एक वर्ष में 6-7 कटाई तक ली जा सकती है और दक्षिण भारत में 7-8 कटाई तक ली जा सकती है |  नेपियर की प्रत्येक कटाई से 200 - 250 कुंतल /हे तक हरा चारा प्राप्त हो जाता है | एक वर्ष में कुल 2500 कुन्तल से 3500 कुंतल तक हरा चारा प्राप्त किया जा सकता है |

   

चित्र 1: संकर नेपियर घास की तने की कटिंग और जड़ के बढने का तरीका

चित्र 2: घास के खेत में लगाने का तरीका

 

   

चित्र 3: संकर नेपियर घास (IGFRI 6) कटाई के लिए तैयार, हासानंद गौशाला, मथुरा

चित्र 4: संकर नेपियर घास (IGFRI 6) की कटाई

 


 Authors

विकास कुमार एवं महेंद्र सिंह

 वैज्ञानिक, भाकृअनुप- राष्ट्रीय कृषि आर्थिकी एवं निति अनुसन्धान संस्थान (NIAP),

डी. पी एस  मार्ग, पूसा, नई दिल्ली

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