परवल की वैज्ञानिक विधि से खेती
परवल को ट्राइकोसेन्थेस डियोका ( Trichosanthes dioica) या पाॅइंटिड गोड (Pointed gourd) के नाम से भी जाना जाता है। यह एक बेल वाली सब्जी फसल है। परवल का सब्जियों में विशिष्ट स्थान है, इसके के फल सुपाच्य होते है तथा शरीर के परिसंचरण तंत्र को बल प्रदान करते है इससे मिठाइयां भी बनाई जाती है |
भारत में इसकी खेती पश्चिम बंगाल, असाम, झारखंड, बिहार, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़ तथा मध्य प्रदेश में बहुतायत सेे की जाती है | उत्तर प्रदेश में परवल की खेती मुख्यतया बलरामपुर, बस्ती, गोरखपुर, गोंडा, बस्ती, बलिया. गाजीपुर, वाराणसी, सुलतानपुर एवं अन्य तराई क्षेत्रो में की जाती है |
परवल की किस्में : परवल की प्रमुख उन्नतशील किस्मे निम्नवत है
किस्मे |
विशेषता |
एफ. पी- 1 |
इसके फल गोल एवं हरे रंग के होते है, तथा यह मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश एवं बिहार में उगाई जाती है | |
एफ. पी- 3 |
इस प्रजाति के फल पर्वल्याकार होते है तथा इनपर हरे रंग की धारियां होती है | तथा ये पूर्वी एवं पश्चिमी उत्तर प्रदेश के लिए उपयुक्त प्रजाती है | |
एफ. पी- 4 |
इस प्रजाती के फल हलके हरे रंग के एवं पर्वल्याकार होते है, तथा उसर भूमी के लिए उपयुक्त किस्म है, प्रति हेक्टेयर 100-110 कुंतल उपज प्रदान करती है | |
राजेन्द्र परवल-1 |
यह किस्म मुख्या रूप से बिहार के दियारा क्षेत्र में उगाई जाती है | |
राजेंद्र परवल-2 |
ये किस्म यू.पी. एवं बिहार के लिए उपयुक्त है | |
स्वर्ण अलौकिक |
इस प्रजाति की फल 5-8 से.मी लम्बे;सब्जी तथा मिठाई बनाने हेतु उपयुक्त है | |
स्वर्ण रेखा |
फलो की लम्बाई 8-10 से.मी.; सब्जी तथा मिठाई बनाने हेतु उपयुक्त है | |
परवल उगाने के लिए जलवायु:
परवल गर्म एवं नम जलवायु में अच्छी तरह उगता है | उत्तरी भारत के मैदानों में इसे वर्षा ऋतु की फसल के रूप में उगाया जाता है | यदि पोंधों को वर्षनुवर्शी फसल के रूप में उगाया जाय तो, शीतकाल में लता के उपर का भाग या तो सुसुप्तावस्था में चला जाता है या मर जाता है, परन्तु इस सम्पूर्ण अवधि में जड़े सुसुप्तावस्था में रहती हैं | बसंत ऋतु में तापमान बढने पर लता में कल्ले फुट जाते हैं |
परवल की खेती के लिए भूमि का चुनाव:
जीवांश युक्त बलुई दोमट भूमि सर्वोत्तम रहती है | उत्तर प्रदेश, बिहार एवं पश्चिम बंगाल में नदियों के किनारे की भूमि के अतिरिक्त खेतों में भी इसे उगाया जाता है |भूमि की 4-5 जुताइयाँ करे और उसे भुरभुरा करने के लिए पाटा चला दे | अंतिम जुताई से लगभग तीन सप्ताह पूर्व 100-120 कुंतल कम्पोस्ट या गोबर की खाद मिला देते है |
परवल की बुआई व रोपाई:
इसे बीज एवं तना कलम के द्वारा प्रसारित कर सकते है | बीजू पौधे कमजोर होते है तथा उनमे लगभग 50 प्रतिशत नर एवं इतनी ही मादा लताये होती है | व्यापारिक फसल के लिए तने के टुकडो का प्रयोग करते हैं | अधिकांश कलम मादा लताओ से लेते हैं |
5-10 प्रतिशत कलम नर लता से लेते है ताकि परागण अच्छा हो सके| सितम्बर – अक्टूबर में बलों के टुकड़े नर्सरी मं लगाते हैं | उनके द्वारा जड़ पकड़ लेने पर उन्हें फरवरी-मार्च में खेतों में लगा देते हैं| कुछ उत्पादक लताओ की कटिंग को अक्टूबर में सीधे ही खेत लगा देते हैं | कलम दो प्रकार से लगाई जाती है |
1. सीधी लता वाली विधि-
इसमें 30 से.मी.गहरी नाली खोद कर उसे कम्पोस्ट एवं मिटटी के मिश्रण से भर देते हैं| इसमें 50 से.मी.लम्बी कलम को छोर से दो मीटर के अंतर पर 10 से.मी.की गहराई पर रख देते हैं|
2. छल्ला विधि -
इसमें 8-10 पर्व वाली 1.0 से 1.5 मीटर लम्बी कलम का अंग्रेजी के आठ के आकार का छल्ला सा बनाते हैं तथा उसे दो मीटर के अंतर पर लगाते हैं| एक बार लगाई हुई लताएँ 4-5 वर्ष तक अच्छी फसल देती हैं| अत: प्रति वर्ष नई लता नहीं रोपते हैं |
कलम इस प्रकार लगते हैं कि 8-10 मादा लताओ की कलम के बाद एक नर लता की कलम देते है | एक हैक्टर के लिये 6000 से 7500 कलम की आवश्यकता होती है|
खाद एवं उर्वरक:
वर्षानुवर्शी लता होने के कारण यह खेत से काफी मात्रा में तत्व खींचते है| पशिचम बंगाल,बिहार तथा उत्तर प्रदेश में नदियों के किनारे के खेतों में जहाँ नदियों द्वारा लायी हुई मिट्टी जमा होती है, 200-250 किन्तल गोबर की खाद के अतिरिक्त 50 कि.ग्रा.नाइट्रोजन,40 कि.ग्रा.फास्फोरस ,40 कि.ग्रा.पोटाश प्रति हैक्टर देते है|
कलम लगाने के प्रथम वर्ष में कम्पोस्ट 100-150 कुंतल, सुपर फास्फेट 300 कि.ग्रा. , म्यूरेट आफ पोटाश 100 कि.ग्रा. एवं केल्सियम अमोनियम नाइट्रेट 100 कि.ग्रा. को जड़ युक्त कलम लगाने से पूर्व देते है | लगभग 1-1.5 माह बाद 50 कि.ग्रा. यूरिया की टाप ड्रेसिंग करते हैं|
सिंचाई एवं अन्य क्रियायें
लता की वृद्धि एवं फलत गर्म मौसम में होती है अत: थोड़े-थोड़े समय के अंतराल पर सिचाईं करते रहते है| फरवरी से जून के बीच में अनुमानतः 15-20 सिचाई देते हैं|
लताओ की काट-छाँट:
फलत पूरी होने पर अक्टूबर-नवम्बर में लताओ की कांट-छांट करते है जिसमे लगभग 25-30 से.मी.लम्बे तने का भाग छोड़ देते हैं| चौरस खेतों में लताओ को ऐसे ही फैलने देते हैं परन्तु उन्हें 1 मीटर या 1.2 मीटर ऊचें पंडाल पर फैलाना अच्छा रहता है|
फलों की तोड़ाई एवं उपज –
यद्यपि फलों की तोड़ाई अप्रैल से सितम्बर तक होती रहती है परन्तु उत्तरी भारत में जुलाई-अगस्त में अधिक फल उपलब्ध होते हैं| फलों को कच्ची अवस्था में तोड़ते हैं|
प्रथम वर्ष में 60-90 कुंतल फल मिलते हैं परन्तु बाद के वर्षों में (4 वर्षों बाद) यह उपज प्रति वर्ष 150-200 कुंतल प्रति हैक्टर तक होती है| कुछ संकर किस्मों से 300-400 कुंतल प्रति हैक्टर उपज प्राप्त होती है|
Authors:
मेनिशा रानी1 और दीपक मौर्य2
1सब्जी विज्ञान विभाग, पंजाब कृषि विश्वविद्यालय, लुधियाना, पंजाब
2उद्यान विज्ञान विभाग (सब्जी और पुष्प), बिहार कृषि विश्वविद्यालय, साबौर, भागलपुर (बिहार)
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