सरसो में खरपतवार प्रबंधन 

तिलहनी फसलों में राई-सरसों का मूंगफली के बाद दूसरा स्थान है। देश में राई-सरसों की खेती मुख्यत: उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्यप्रदेश, हरियाणा, पंजाब, बिहार, उड़ीसा, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, असम, गुजरात, जम्मू कश्मीर आदि राज्यों में की जाती है I

इस समय कुल खाद्य तेल उत्पादन का लगभग एक तिहाई तेल राई-सरसों द्वारा प्राप्त होता है इसकी खेती हमारे देश में लगभग 62.3 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल में की जाती है जिससे लगभग 59 लाख टन उत्पादन होता है।

 खरपतवार फसल के साथ पोषक तत्व, नमी, स्थान एवं प्रकाश के लिए प्रतिस्पर्धा करके राई-सरसों की पैदावार एवं तेल प्रतिशत में कमी कर देते है। राई-सरसों की पैदावार में खरपतवारों की संख्या एवं प्रजाति के अनुसार 20-70 प्रतिशत तक कमी होती है I

खरपतवार नियंत्रण का उपयुक्त समय

खरपतवार नियंत्रण कार्यक्रम में समय का सर्वाधिक महत्व है। यदि खरपतवारों की रोकथाम खरपतवार प्रतिस्पर्धा की क्रांतिक अवस्था में न की गई तो उससे भरपूर लाभ नहीं मिल पाता है। राई-सरसों में यह अवस्था बुवाई के बाद 10 दिन से 40 दिन तक रहती है। इसलिए यह आवश्यक है कि यदि हम शाकनाशी रसायनों का उपयोग कर रहे है तो उनका असर भूमि में कम से कम बुवाई के बाद 40 दिन तक रहना चाहिए।

खरपतवारों के रोकथाम की विधियाँ

सरसों में खरपतवार एक समस्या है यह पौधें मूल फसल की खुराक खा जाते है उनकी बढ़ोतरी पर प्रभाव डालते है। इनके नियंत्रण के लिए विभिन्न रूपों से कुछ विधियाँ हैं

निवारक विधि

इस विधि में वें सभी क्रियाएं शामिल है जिसके द्वारा खरपतवारों के प्रवेश को रोका जा सकता है। जैसे प्रमाणित बीजों का प्रयोग, अच्छी सड़ी गोबर या कम्पोस्ट की खाद का प्रयोग, सिंचाई की नालियों की सफाई, खेत की तैयारी और बुवाई के प्रयोग किए जाने वाले यंत्रों का प्रयोग से पूर्व अच्छी तरह से सफाई आदि।

यांत्रिक विधि

इस विधि द्वारा खरपतवारों का प्रभावी नियंत्रण किया जा सकता है। फसल की प्रारंभिक अवस्था में बुवाई के 10 से 40 दिन के बीच का समय खरपतवारों की प्रतियोगित की दृष्टि से क्रांतिक समय है। अत: इसी बीच खुरपी या हैरो से दो बार निराई गुणाई, पहली बुवाई के 20 दिन बाद तथा दुसरी 40 दिन बाद करने से खरपतवारों का प्रभावी नियंत्रण किया जा सकता है। इसके बाद उगने वाले खरपतवार फसल के नीचे दबकर रह जाते है तथा फसल से प्रतियोगिता नहीं कर पाते।

रासायनिक विधि

शाकनाशी रासायनों के प्रयोग से जहां एक ओर खरपतवारों का प्रभावी नियंत्रण किया जा सकता है वहीं दूसरी ओर लागत कम आती है तथा समय की बचत होती है।

Table: राई-सरसों में उगने वाले प्रमुख खरपतवार

खरपतवार का प्रकार

नाम

चौड़ी पत्ती वाले

चेनोपोडियम एल्बम (बथुआ), लेथाइरस अफाका (जंगली मटर), मेडिकागो हिस्पिडा (मरवारी), चिकोरियम इन्टाइब्स (चिकोरी, कासनी), एस्फोडिलस टेन्यूफोलियस (प्याजी), कानवालवुलस आरवेन्सिस(हिरनखुरी), मेलीलोटस एल्बा (सेजी), आरजेमोन मेक्सिकाना (सत्यानाशी) एवं एनागेलिस आरबेन्सिस

शाकनाशी रासायन का नाम

मात्रा (ग्राम सक्रिय तत्व है)

उपयोग का समय

विधि

आक्साडायजान

(रोंस्टार)

750

बोने के बाद परन्तु उगने के पूर्व

खरपतवार नाशी की आवश्यक मात्रा को 600 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति हेक्टेयर की दर से समान रूप से छिड़काव करना चाहिए।

 

 

आइसोप्रोटुरान

(एरीलान)

1000

बोने के बाद परन्तु उगने के पूर्व

पेंडीमेथालिन

(स्टाम्प)

1000

बोने के बाद परन्तु उगने के पूर्व

 


Authors:

रामेश्वर मंडीवाल1, हंसराज शिवरान2, प्रवीण निठारवाल3 एवं रमेश चौधरी4

3स्नातकोत्तर शोधार्थी, कृषि महाविद्यायल, बीकानेर

4वरिष्ट अनुशंधान अधियता, कृषि अनुशंधान केंद्र, बीकानेर

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