आलू फसल में पोषक तत्वों की उपयोगिता एवं महत्व
एक ही खेत में सघन फसल चक्र अपनाने एवं उर्वरकों की संतुलित एवं समुचित मात्रा में प्रयोग न करने तथा केवल नाइट्रोजन फास्फोरस एवं पोटाश युक्त उर्वरकों का इस्तेमाल करने से मिट्टी से प्राप्त होने वाले पोषक तत्वों की कमी प्रायः देखने में आती है। लगातार अच्छी उपज लेने के लिए आवश्यक है कि फसल को सभी पोषक तत्व समुचित मात्रा में मिलते रहें।
सामान्यताः सभी पोषक तत्वों की कमी से पौधों में कुछ न कुछ कमी के लक्षण प्रकट हो जाते हैं तथा इन तत्वों की कमी से प्रायः पौधों की बढ़वार घट जाती है और रंग बदल जाता है यदि हम आलू के संदर्भ में विचार करें तो किसान अपने आलू के पौधों में पोषक तत्वों की कमी के लक्षणों को देखकर उन कमियों का पता लगा सकते हैं तथा कमियों को दूर करके अपनी फसल स्वस्थ बना सकते हैं।
आलू के पौधों में विभिन्न पोषक तत्वों के अभाव से जो प्रभाव पड़ते हैं तथा जो लक्षण उत्पन्न होते हैं वह निम्नलिखित प्रकार से वर्णित किए जा सकते हैं।
पोषक तत्वों की कमी से उत्पन्न लक्षणः
संपूर्ण पौधों पर पड़ने वाले प्रभाव या पुरानी तथा निचली पत्तियों तक सीमित प्रभाव
अ. सामान्यतः भूमि में नाइट्रोजन और फास्फोरस की कमी होने पर पौधा पीला पड़कर सूखता है या निचली पत्तियों का रंग लाल से लेकर बैंगनी तक हो जाता है।
1.नाइट्रोजन
नाइट्रोजन की कमी से पत्तियों के सिरों और किनारों से रंग हल्का होने लगता है और सभी पत्तियों का हरा रंग हल्का पड़ जाता है। नाइट्रोजन की अत्यधिक कमी होने पर हरा रंग समाप्त हो जाता है तथा पत्तियां मुड़कर झुलस जाती हैं। बढ़वार रुक जाती है और पत्तियां गिरने लगती हैं। नाइट्रोजन की कमी के लक्षण पुरानी पत्तियों में सर्वप्रथम लक्षित होते हैं।
उपचार: नाइट्रोजन की कमी में नाइट्रोजन वाले उर्वरक जैसे यूरिया अमोनियम सल्फेट आदि का उचित मात्रा में प्रयोग करना चाहिए।
2. फास्फोरस
फास्फोरस की कमी से पत्तियां झुर्रीदार एवं गहरी हरी हो जाती हैं। पौधा सीधा और कड़ा रहता है। पत्तियों के डंठल, पत्तियां और पत्तियों के सिर ऊपर की ओर खड़े हो जाते हैं। पत्तियां मुड़ कर प्याले की तरह हो जाती हैं। सामान्यतः पत्तियां पूरी नहीं फैलती हैं। जब कमी अत्यधिक होती है तो बढ़वार बिल्कुल रुक जाती है तथा कंदो (आलू) के भीतर भूरे भाग बन जाते हैं।
उपचार: फास्फोरस की कमी को दूर करने के लिए फास्फोरस वाले उर्वरक जैसे सिंगल सुपर फास्फेट, डाई अमोनियम फास्फेट आदि का प्रयोग करना चाहिए।
आ. मैग्नीशियम, पोटेशियम और जिंक की कमी से निचली पत्तियों पर धब्बों या बिना धब्बों के रूप में चितकबरापन उत्पन्न हो जाता है तथा निचली पत्तियां मुरझाती नहीं है।
3. मैग्नीशियम
मैग्नीशियम की कमी से सामान्य पत्तियों की की अपेक्षा निचली पत्तियों का हरा रंग हल्का पड़ जाता है। सबसे निचली पत्तियों के किनारों और सिरों से हरा रंग नष्ट होना शुरू होता है। पत्तियों के बीच की और शिराओ के बीच में भी हरा रंग नष्ट होने लगता है। शिराओ के बीच के भाग भूरे होकर सूख जाते हैं। शिराओ के बीच पत्तियों में कुछ निश्चित मात्रा में उभार बन जाता है तथा पत्तियां मोटी हो जाती हैं व प्रभावित पत्तियां जल्दी टूटने लगती हैं।
उपचार: मैग्नीशियम की कमी में मैग्नीशियम सल्फेट की समुचित मात्रा का प्रयोग करना चाहिए। यह उर्वरक बोने से पहले मिट्टी में मिलाना चाहिए अथवा खड़ी फसल में छिड़काव करना चाहिए।
4. पोट्रेशियम
पोटेशियम की कमी में सामान्य पत्तियों की अपेक्षा पोटेशियम की कमी से ग्रसित पत्तियां गहरे हरे रंग की हो जाती हैं। पत्तियां झुर्रीदार हो जाती हैं और उनकी शिराएं दब जाती हैं। पौधा मुड़ जाता है तथा बाद में निचली पत्तियां अत्यंत हल्की पीली हो जाती हैं। तत्पश्चात पत्तियों के किनारों तथा सिरों से प्रारंभ होकर धीरे-धीरे पौधों में कॉसे की तरह रंग फैल जाता है। आलू के कंद छोटे एवं असामान्य आकार के बनते हैं।
उपचार: पोटेशियम की कमी को दूर करने के लिए बोने से पहले मिट्टी में पोटेशियम वाले उर्वरक जैसे म्यूरेट आफ पोटाश आदि का समुचित मात्रा में प्रयोग करना चाहिए।
5. जिंक
जिंक की कमी से निचली पत्तियों का हरा रंग नष्ट हो जाता ह। अन्य पत्तियां धूसर भूरी से लेकर अनियमित धब्बेदार कॉसे के रंग की हो जाती हैं। पहला प्रभाव पौधे के बीच से प्रारंभ होता है और बाद में कमी पड़ने पर पौधे की सभी पत्तियां प्रभावित हो जाती हैं।
धब्बे दबे हुए मालूम पड़ते हैं तथा धब्बे वाले भाग सूख जाते हैं। अत्यधिक कमी की अवस्था में पत्तियां छोटी और मोटी हो जाती हैं। धब्बे पत्तियों के डंठलो और तने पर भी पड़ जाते हैं। ऊपर की पत्तियां कुछ खड़ी दिखाई पड़ती हैं तथा पत्तियों के भीतरी सिरे ऊपर की ओर मुड़ जाते हैं।
उपचार: जिंक की कमी को दूर करने के लिए जिंक सल्फेट 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर के हिसाब से बोने से पहले भूमि में प्रयोग करना चाहिए या 5 किलोग्राम जिंक सल्फेट और 2.5 किलोग्राम चूने के 1000 लीटर पानी में बने घोल का प्रति हेक्टेयर की दर से खड़ी फसल में छिड़काव करना चाहिए।
नई पत्तियों पर पड़ने वाले प्रभाव:
बोरान और कैल्शियम की कमी से पत्ती व तने के बीच की कलियां नष्ट हो जाती हैं बाद में नई पत्तियों के आधार और सिरों पर विकृतियां उत्पन्न हो जाती हैं।
1.बोरान की कमी
बोरान की कमी से तने के सिरे की नई पत्तियां सामान्य की अपेक्षा हल्की हरी होती हैं। आधार के पास पत्तियों का हरापन अधिक हल्का होता जाता है। तने के सिरे नष्ट हो जाते हैं या उनकी बढ़वार रुक जाती है। पोरिया छोटी रहती हैं, जिससे पौधा झाड़ी की तरह लगता है।
पत्तियां मोटी हो जाती हैं और ऊपर की ओर मुड़ जाती हैं तथा डंठल टूटने लगते हैं। विशेष तथा निचली पत्तियों के किनारे एवं सिरे नष्ट हो जाते हैं। आलू छोटे बनते हैं और उनमें दरारें पड़ जाती हैं।
उपचार: बोरान की कमी में 15 से 20 किलोग्राम बोरेक्स प्रति हेक्टेयर की दर से बोने के पहले खेत में डालना चाहिए अथवा 2 किलोग्राम बोरेक्स 1000 लीटर पानी में घोलकर पत्तियों पर छिड़काव करना चाहिए।
2.कैल्शियम की कमी
कैल्शियम की कमी से ग्रस्त पौधों की नई पत्तियों के किनारों पर प्रारंभ में हल्के हरे रंग की पट्टियां या धारियों के भाग नष्ट हो जाते हैं तथा पत्तियां चूड़ीदार हो जाती हैं। कुछ नई स्थितियों में नई पत्तियां सिरों पर मुड़ जाती हैं और सिरे सूख जाते हैं। पत्ती का सिरा प्रायः ऊपर की ओर लिपटा रहता है। आलू के गूदे में धब्बे पड़ जाते हैं।
उपचार: अम्लीय भूमि में चूना डालकर कैल्शियम की कमी को दूर किया जा सकता है। सामान्य स्थिति में सुपर फास्फेट के प्रयोग से कैल्शियम की कमी दूर की जा सकती है।
आ. तांबा, लोहा, मैग्नीज एवं गंधक की कमी में तने के सिरे की बढ़ने वाली कली नष्ट नहीं होती लेकिन नई पत्तियों पर धब्बों के रूप में या सामान्य रूप से हरा रंग नष्ट हो जाता है। शिराएं हल्की या गहरी हरी रहती हैं।
3. तांबा की कमी
तांबे की कमी से नई पत्तियों में स्फीति हीनता उत्पन्न हो जाती है तथा वह स्थाई रूप से मुरझा जाती हैं। तने के सिरे की कली उस समय गिरने लगती है जब फूल बन रहे हो। अधिक कमी होने पर पत्तियों के सिरे सूख जाते हैं। इनका हरा रंग बहुत अधिक नष्ट नहीं होता है।
उपचार: तांबे की कमी को दूर करने के लिए 30 से 50 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से कॉपर सल्फेट को बुवाई से पहले डालना चाहिए या एक किलोग्राम कॉपर सल्फेट एवं आधा किलोग्राम चूना 1000 लीटर पानी में घोलकर एक हेक्टेयर में खड़ी फसल पर छिड़काव करना चाहिए।
4. लोहा की कमी
लोहे की कमी से नई पत्तियों में एक समान तरीके से हरा रंग कम हो जाता है। पत्तियों के किनारों और सिरों पर हरापन लोहे की कमी की दशा में काफी समय तक बना रहता है। मुख्य शिराएं हरी बनी रहती हैं। अत्यधिक कमी होने पर पत्तियां सफेद पड़ जाती हैं। सूखे धब्बों का बनना प्रायः नहीं देखा जाता है।
उपचार: लोहे की कमी में 30 से 50 किलोग्राम फेरस सल्फेट प्रति हेक्टेयर की दर से बोने के पहले भूमि में डालना चाहिए अथवा 4 किलोग्राम फेरस सल्फेट एवं 2 किलोग्राम चूना 1000 लीटर पानी में घोलकर एक हेक्टेयर में छिड़काव करना चाहिए।
5. मैंगनीज की कमी
मैंगनीज की कमी से पत्तियां सामान्य की अपेक्षा हल्की हरी हो जाती हैं। पहले शिराओं के बीच तथा फिर तने के ऊपर हरा रंग हल्का पड़ता है। फिर यह भाग पीले से लेकर सफेद तक हो जाते हैं। पत्तियों पर छोटे भूरे धब्बे पड़ जाते हैं जो कभी अधिक होने पर फैल जाते हैं। मैंगनीज की कमी होने पर तने के ऊपरी भाग में ही हरा रंग नष्ट होता है और पौधे पर सूखे धब्बे नहीं बनते हैं।
उपचार: मैंगनीज की कमी को दूर करने के लिए 30 से 35 किलोग्राम मैंगनीज सल्फेट प्रति हेक्टेयर की दर से बोने से पहले डालना चाहिए अथवा 6 किलोग्राम मैंगनीज सल्फेट तथा 3 किलोग्राम चूना 1000 लीटर पानी में घोल कर एक हेक्टेयर में खड़ी फसल पर छिड़काव करना चाहिए।
6. गंधक की कमी
गंधक की कमी के लक्षण धीरे-धीरे उत्पन्न होते हैं जिस तरह से नाइट्रोजन की कमी से पत्तियां एवं शिराएं पीली पड़ जाती हैं उसी तरह गंधक की कमी में भी पत्तियां पीली पड़ जाती हैं लेकिन नाइट्रोजन की कमी में पत्तियां सूख जाती हैं पर गंधक की कमी से पत्तियां सूखती नहीं है।
पौधों की बढ़वार रुक जाती है। यदि गंधक की कमी अधिक समय तक रहती है या बहुत अधिक होती है तो पत्तियों पर कुछ धब्बे पड़ जाते हैं। गंधक की कमी के लक्षण नई पत्तियों में सर्वप्रथम लक्षित होते हैं।
उपचार: गंधक की कमी को अमोनियम सल्फेट के रूप में नाइट्रोजन डालने तथा फास्फोरस को सुपर फास्फेट के रूप में डालने से दूर किया जा सकता है। आवश्यकता पड़ने पर गंधक की धूल का भी प्रयोग किया जा सकता है।
उपरोक्त लक्षणों को पूर्ण रूप से समझने एवं सही निष्कर्ष तक पहुंचने के लिए मिट्टी के गुणों का ज्ञान अत्यंत आवश्यक है। मिट्टी में पोषक तत्वों की उपलब्धता उसके पीएच मान जीवांश एवं मटियार (क्ले) की मात्रा एवं प्रकार तथा अनेक अन्य कारणों द्वारा प्रभावित होती है।
एक से अधिक तत्व एक साथ कम होने अथवा जीवाणु, फफूंदी, निमेटोड तथा कीड़ों से फसल के ग्रस्त होने पर केवल लक्षणों के आधार पर पोषक तत्वों की कमी का अनुमान लगाना और भी कठिन हो जाता है। इसलिए पोषक तत्वों की कमी को दूर करने से पहले विशेषज्ञों से परामर्श करना अत्यंत अनिवार्य है। कुछ पोषक तत्वों के अनावश्यक प्रयोग से कभी-कभी लाभ के बदले नुकसान होने की संभावना रहती है।
Authors:
अनिल कुमार सक्सेना1 और सुनीता सिंह2
1सह प्राध्यापक (मृदा विज्ञान), 2सहायक प्राध्यापक (उद्यानिकी),
श्री गुरु राम राय स्कूल ऑफ एग्रीकल्चरल साइंसेज श्री गुरु राम राय विश्वविद्यालय, देहरादून-248 001 (उतराखंड)
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