ग्रामीण क्षेत्रों में पशु चारा भंडारण संरचनाऐं  

साइलेज और 'हे' बनाने  के अलावा कृषि प्रणालियों में भूसा या पुआल और कड़वी शुष्क पदार्थ का एक प्रमुख स्रोत हैं। ऐसी सामग्री का उचित भंडारण आवश्यक है। इसके  भंडारण  हेतु स्थायी और अस्थायी प्रकारों सहित विभिन्न संरचनाओं का उपयोग किया जाता है।

धान के भूसे, गेहूं के भूसा को स्टोर करने के लिए विभिन्न तरीके अपनाये जाते है। धान के भूसे का भंडारण आमतौर पर ढेर के रूप में ऊपरी भूमि पर किया जाता है। ढेर के ऊपरी हिस्से को शंक्वाकार आकार दिया जाता है जो पानी को ढेर में प्रवेश करने से रोकता है । गेहूँ का भूसा उत्तरी भारत में पशुओं के चारे के लिए मुख्य फसल अवशेष है ।

भूसा संग्रहण संरचना

सामान्यतौर पर ग्रामीण क्षेत्रों में फसल के भूसे को संरक्षित व संग्रहित करने के लिए अरहर या अन्य पोधो की पतली हल्की लकड़ियों से घेरा या गुम्बद या शंकुवाकर संरचना का निर्माण किया जाता है। शंकु की गोलाई दस या बारह या चौदह फ़ीट व ऊंचाई दस से पंद्रह फ़ीट व भूमि सतह से ऊंचाई एक से डेढ फ़ीट व घेरा की चौड़ाई छह से दस फ़ीट रखी जाती है ।

शंकुवाकर बनावट में संरचना को ऊपर से खुला छोड़ देते है एवं गुम्बदाकार बनावट में संरचना को ऊपर से खुला नहीं छोड़ते है। ऊपर से खुला छोड़ दी गयी जगह को धान की लंबी भूसी, सैकरम की मोटी घास या गन्ने के सूखे पत्तों का उपयोग से इस तरह से कवर के लिए किया जाता है कि बारिश का पानी ढेर में प्रवेश न कर सके ।

संरचना को तोड़े बिना दैनिक आवश्यकता के अनुसार  एक तरफ से चारा निकाल लिया जाता है। सामान्य तौर पर ऐसी संरचना से चारा मानसून के बाद ही निकालना शुरू करते है। सम्पूर्ण शंकुवाकर संरचना को भी धान की लंबी भूसी, सैकरम की मोटी घास या गन्ने के सूखे पत्तों का उपयोग से कवर कर दिया जाता है।

कड़वी संग्रहण संरचना

ज्वार बाजरा मक्का आदि चारा फसल जिनको सुखी पत्तियों और तने समेत सम्पूर्ण पादप को सुखाकर इस प्रकार की संरचना में संग्रहित किया जाता है।   

कृत्रिम पॉलीथिन संरचना

बाजार में चारा के संरक्षण व संग्रहण के लिए कृत्रिम पॉलीथिन संरचना भी उपलब्ध है। ये जल प्रतिरोधी होती है जिससे इसमें से होकर जल का प्रवेश नहीं हो पाता है जिसके कारण भूसा सुरक्षित रहता है।    


Authors:

पवन कुमार माहोर

भा.कृ.अनु.प.-केन्द्रीय भेड़ एवं ऊन अनुसंधान संस्थान, अविकानगर

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