सोयाबीन की सटीक खेती 

सोयाबीन को बोनलेस मीट भी कहते है, जो कि लैग्यूम परिवार से है। इसका मूल उत्पति स्थान चीन माना जाता है। यह प्रोटीन के साथ साथ रेशे का भी उच्च स्त्रोत है। सोयाबीन से निकाले हुए तेल में कम मात्रा में शुद्ध वसा होती है।

जलवायु :-

सोयाबीन गर्म एवं नम जलवायु की फसल है। बीजों के अच्छे अंकुरण के लिए 25° से. तथा फसल की बढोत्तरी के लिएलगभग25-30°से. तापमानकी आवश्यकताहोती है। सोयाबीन की अच्छीफसल के लिए वार्षिक वर्षा 60-70 सें.मी. होनी चाहिए।

 

उन्नतशील किस्में:-

एस एल 525, एस एल 744, एस एल 958, अलंकार,अंकुर, ली , पी के  262, पी के   308, पी के   327, पी के   416, पी के   472, पी के   564, पन्त सोयाबीन 1024, पूसा 16 , शिलाजीत, वी एल सोया  47.

भूमि:-

सोयाबीन केअच्छे उत्पादन के लिएदोमट मिट्टी सर्वोत्तममानी जाती है। जिसकाpH 6 से 7.5 हो।

खेत की तैयारी:-

खेत की तैयारी के समय, दो-तीन बार कल्टीवेटर और देशी हल से जुताई करें|

बुवाईका समय:-

इसकी बुवाई जून के दुसरे सप्ताह से जुलाई के प्रथम सप्ताहमें की जाती है।

बीज दर:-

एक हेक्टेयर खेत में 70-80 किलोग्राम बीजों की आवश्यकता होती है।

दुरी:-

बुवाई के समय पंक्ति से पंक्ति व पौधे से पौधे कि दुरी क्रमशः 45 सैं.मी., 8-10 सैं.मी. रखी जाती है।

बीज की गहराई:-

बीज की गहराई3-5 सैं.मी. रखनी चाहिये।

बीज उपचार :-

बीजों को मिट्टी से होने वाली बीमारियों से बचाव के लिए थायरम या केप्टान 3 ग्राम से प्रति किलो बीजों का उपचार करें।

सिंचाई :-

सोयाबीन की फसल में तीन से चार सिंचाई की जरूरत होती है। फली बनने के समय सिंचाई जल देना अति आवश्यक माना जाता है क्योकि यह फसल की मुख्य क्रांतिक अवस्था है। अगर इस समय पानी की कमी होती है, तो पैदावार में काफी गिरावट आती है।

रासायनिक उर्वरक एवं खाद :-

खेत तैयार करते समय 10-12 टनसड़ी हुई गोबर की खाद प्रति हेक्टेयरकी दर से मिट्टी में डालकरअच्छी तरह से मिला देना चाहिए। रासायनिक उर्वरक, नाइट्रोजन 20-25 किग्रा एवम् फॉस्फोरस 50-60 किग्रा/ हेक्टेयर की दर से काम लेना चाहिये।

खरपतवार नियंत्रण :-

खेत को खरपतवार मुक्त करने के लिए, दो बार गुड़ाई  की आवश्यकता होती है, पहली गुड़ाई बिजाई के 20 दिन बाद और दूसरी गुड़ाई बिजाई के 40 दिन बाद करें।

रासायनिक तरीके से खरपतवारो को रोकने के लिए, बुवाई के तुरन्त बाद,  पैंडीमैथालीन का स्प्रे करें।

हानिकारक कीट और रोकथाम

सफेद मक्खी:

इसकी रोकथाम के लिएट्राइज़ोफोस 600 मि.ली काछिडकाव प्रति हेक्टेयर में करें। यदि जरूरत पड़े तो पहलेछिडकाव के 10 दिनों के बाद दूसरा छिडकाव करें।

बालों वाली सुंडी:

इस सुंडी का प्रकोप कम मात्रा में होंतो, इसे हाथों से उठाकर या केरोसीन में डालकर खत्म कर देंवे । अगर इसका हमला अधिक हो तो,डाइक्लोरवास 400 मि.ली की प्रति हेक्टेयरके हिसाब से छिडकाव करें।

काली भुंडी:

यह कीट फूल अवस्था में हमला करते हैं। ये फूल को खाते हैं, और फलियों में दाने बनने से रोकते हैं। अगर इसका हमला दिखाई दे तो, एसीफेट 75 एस सी,1600 ग्राम का  प्रति हेक्टेयर के हिसाब से छिडकाव करें। यदि आवश्यकता पड़े तो पहली स्प्रे के बाद 10 दिनों के अंतराल पर दूसरी स्प्रे करें।स्प्रे शाम के समय करन उतम माना जाता है।

बीमारियां और रोकथाम

पीला चितकबरा रोग:

यह रोग सफेद मक्खी के द्वारा फैलता है। इसका रोग कारक येलो मोजेक वायरस है, इससे अनियमित पीले, हरे धब्बे पत्तों पर बन जाते हैं। रोग ग्रसित पौधों पर फलियां नहीं बनती है।इसकी रोकथाम के लिए रोग प्रतिरोधी किस्मों का चुनाव करें। सफेद मक्खी के  रोकथाम के लिएट्राइज़ोफोस 800 मि.ली प्रति हेक्टेयर की दर से छिडकाव करें।

फसल की कटाई

जब फलियां सूख जाएं और पत्तों का रंग बदल कर पीला हो जाए एवम् पत्ते गिर जाएं, तब फसल कटाई के लिए तैयार हो जाती है। कटाई हाथों से या दराती से करें। कटाई के बाद, पौधों में से बीजों को अलग कर लें।

उत्पादन :-

सोयाबीन की उपज 25-30 क्विटंल प्रति हैक्टेयर होती हैं।


Authors

1राकेश कुमार धाकड़, 2राजू लाल धाकड़ एवं 3तुलसी राम धाकड़

1सस्य विज्ञान स्नातकोतर, 2सहायक प्राध्यापक, सस्य विज्ञान विभाग

3सहायक प्राध्यापक, आनुवांशिकी एवं पादप प्रजनन विभाग

पंडित दीनदयाल उपाध्याय कृषि महाविद्यालय देवली टोंक (राजस्थान)

Email: This email address is being protected from spambots. You need JavaScript enabled to view it.

New articles