बानयार्ड मिल्लेट - पोषण सुरक्षा की भविष्य
खाद्य सुरक्षा की परिभाषा सन 1970 के हरित क्रांति से ही विकसित होती आई है। खाद्य सुरक्षा का अर्थ शुरुवात मे हर व्यक्ति को अन्न पर्याप्त मात्र और वहनयोग मे मिलना था। परिस्थिति बदली है की खाद्य सुरक्षा अन्न पर्याप्त मात्रा के साथ साथ अच्छे गुणवत्ता से मिलना भी है। ऐसे अन्न देश के हर नागरिक पूरे गरिमा के साथ पाने का तरीका ढूंढ निकालना भी ज़रूरी है।
भारतीय सरकार लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली (TPDS) के माध्यम से पौषिक खाद्यन्नों को रियायती मूल्य मे व्यापक जनसंख्या को प्रदान करती आई है। इतने महतपूर्ण कदमो के बाद भी देश में थोड़े बहुत जनसंख्या कुपोषण और मोटापा (Obesity) से पीड़ित है।
भारत मे एक तिहाई बच्चों की आबादी कुपोषण और एक तिहाई महिला अनीमिया से ग्रस्त हैं। इसके उपरांत देश के 14% महिला और 18% पुरुषों की आबादी मोटापा के वश में है। इसी के साथ साथ लोगों में डायबिटीज़ की रोग भी तीव्र गति मे बढ़ रहा है। इस बढ़ाई का वजह आज कल के भोजन की आदत में आई परिवर्तन ही हो सकता है।
इन समस्याओ का समाधान बानयार्ड मिल्लेट याने कि सानवा से किया जा सकता है। सानवा दक्षिण भारत के प्रसिद्ध फसल है जो पोषक तत्वों से भरपूर्ण है।
बानयार्ड मिल्लेट - सानवा (Echinochola frumentacea) की फसल , अनाज एवं चारा दोनो के लिए खेती की जाती है। यह फसल जापान में उतपन्न हुआ जो कि चीन में पालतू बनाया गया था। अब इस फसल विश्व की, उष्णकटि प्रदेशों में , पूरे कामयाबी से खेती की जा रही है।
भारत में सानवा की उत्पादकता 1034 kg/ha, 2018 मे मिला था। सानवा की अनाज में कार्बोहैड्रेट, फाइबर के साथ साथ आयरन और ज़िंक भी समृध है। इसके अलावा अन्य अनाजों से बढ़कर सानवा में 11.2% से 12.7% तक की प्रोटीन भी है। ग्लैसिमिक इंडेक्स जो डायबिटीज़ की मापन है, सानवा की अनाजों में बहुत कम है। इस अन्न को रोज़ नियमित रूप मे खाने से टाइप 2 डायबिटीज़ की इलाज की जा सकती है। इस प्रकार सानवा को आहार में लेने पर कुपोषण और डायबिटीज़ दोनो ही दूर किया जा सकता है।
बानयार्ड मिल्लेट - सानवा
सानवा की खेती
सानवा की फसल, कठिन परिस्थितियों को सहन कर अत्यधिक उपज देने लायक है। यह फसल C4 होने के कारण इसका दाना और चारा की उपज अन्य अनाजों से बढ़कर है। सानवा फसल का समयावधि 75 से 100 दिनों का है और औसत उपज 2200 kg/ha तक का है।
यह फसल सिंचित और वर्षा आधारित प्रदेशों में बिना किसी बाधा से उगने लायक है। सानवा कोई महामारी, कींटा एवं रोग से पीड़ित नहीं होता है। इस प्रकार यह फसल किसानो को सुरक्षित आमदनी देकर लाभदायक बनाने में समर्थ है।
ऐसे फसल के पोषक और उपज गति को पहचान कर देश के कई फसल शोधक अनेक अनुसन्धान कार्यक्रम खुला रखा है। इसके फलस्वरूप से देश में अनेक सानवा किस्मो का रिहाई हुई है।
K1 सानवा सबसे पहला किस्म है जो की 1970 में निर्गमन हुआ था। इसका उपज 1000 kg/ha था। सन 1993 में चंद्रशेकर आज़ाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, कानपूर से कांचना नाम का सानवा किस्म विकसित किया गया था।
इसी सिलसिला में अन्य सानवा की किस्म जैसी कि VL मदिरा 181, PRJ1, CO (KV) 2 और DHBM 93-3 देश के विभिन्न अनुसन्धान क्षेत्रों से विस्कासित कर किसानो को खेती के लिए विस्तरन किया जा रहा है।
हाल ही हाल मे, 2018 को MDU 1 सानवा किस्म कृषि महाविद्यालय और अनुसन्धान संसथान, मदुरै, तमिलनाडु से विकसित हो कर किसानो के मध्य बहुत प्रसिद्धि पाई है। यह किस्म 2500 kg/ha उपज देने लायक और 16mg/100g आयरन पोषक से भरपूर है।
इस समझ मे भारतीय कदन्नो की शोधक बढ़ाने अत्यधिक किस्म विकसित करने को प्रोत्साहित है। भारतीय सरकार के सिफ़ारिश से संयुक्त राष्ट्र (युनिटेड नेशन) 2023 साल को "कदन्न की अंतराष्ट्रीय वर्ष" घोषित किया है।
इसके ज़रिये कदन्नो का महत्व उनमे भरी पोषण और उनके खेती की सफलता पर प्रचार करने का उद्धेश्य है। संयुक्त राष्ट्र सांगठन ने कदन्नो को मौसम उछालधार समस्या का हल माना है जो साथ ही किसानो के आजीविका को बढ़ावा देने में समर्थ है।
अब की भारत देश खाद्य सुरक्षित है और अनेक दाने निर्यात करने में भी सफल रहा है। इस परिस्थिति मे हमारा ध्यान अन्न की मात्रा से अन्न की पौषिक गुणों की ओर परिवर्तित हो गया है। यही एक सही मौका है कि हम कदन्नो, विशेषकर सानवा (बानयार्ड मिल्लेट) की मूल्य को महसूस करें जिसकी अन्वेषण से देश की खाद्य और पौषिक सुरक्षा बानी रह सकती है।
Author Details:
डॉ. रा. संगीता विष्णुप्रभा
सहायक प्राध्यापक, फसल सुधार विभाग
वाणवरायर कृषि संस्थान, पोल्लाची, कोइम्बटोर – 642 103, तमिलनाडु
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