Improved method of Lentil cultivation

बिहार में रबी की दलहनी फसलों में मसूर का प्रमुख स्थान है। यह यहाँ की एक बहुप्रचलित एवं लोकप्रिय दलहनी फसल है जिसकी खेती प्रायः सभी जिलों में की जाती है। बिहार राज्य में मसूर की खेती 1.73 लाख हेक्टेयर तथा इसकी औसल उत्पादकता 935 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर है।

मसूर की खेती प्रायः असिंचित क्षेत्रों मंे धान के फसल के बाद की जाती है। बिहार राज्य में उतेरा विधि से धान की खड़ी फसल में बीज को छिड़कर भी बोया जाता है।

रबी मौसम में सरसों एवं गन्ने के साथ अंततः फसल के रूप में लगाया जाता है। मिट्टी की उर्वरा शक्ति को बनाये रखने में भी मसूर की खेती बहुत सहायक होती है। उन्नतशील उत्पादन तकनीको का प्रयोग करके मसूर की उपज में बढ़ोतरी की जा सकती है।

मसूर की खेती का चुनाव एवं तैयारीः-

ऐस मसूर की खेती सभी प्रकार की मिट्टी में की जा सकती है लेकिन दोमट मिट्टी इसके लिए सबसे उत्तम मानी जाती है। खेत को 2-3 बार देशी हल अथवा कल्टीवेटर से जुताईकर मिट्टी को भूरभूरी बना देते है।

मसूर की खेती के लिए अनुसंसित उन्नत प्रजातियाँ:-

मसूर की छोटे दाने की प्रजातियाँ:-

  • पंत के 639:- यह प्रजाति 135-140 दिन में तैयार हो जाती है। यह जड़ सड़न एवं उकठा रोग के लिए प्रतिरोधी मानी जाजी है।
  • पी0एल0 406:- यह प्रभेद 140-145 दिन में तैयार होती है। इसमें रस्ट, बिल्ट एवं अट रोग से लड़ने की क्षमता होती है।
  • एच0यू0एल0 57:- यह प्रजाति 120-125 दिन में परिपक्व हो जाती है तथा इसमंे भी जड़ सड़न एवं उकठा रोग से लड़ने की क्षमता है।
  • के0एल0एस0 218:- यह प्रजाति 120-125 दिन में तैयार हो जाती है।

मसूर की बडे़ दाने वाली प्रजातियाँ:

  • पी0एल077-12 (अरूण):- यह प्रभेद 115-120 दिन में परिपक्व हो जाती है रस्ट एवं इकठा रोग से लड़ने की क्षमता होती है।
  • के0 75 (मल्लिका):- यह 130-135 दिन में तैयार होता है। उकठा रोग के लिए यह प्रतिरोधी मानी जाती है।

मसूर की बुवाई का उचित समयः-

मसूर की उन्नत प्रजातियां को 15 अक्टूबर से 25 नवम्बर के बीज बुवाई कर देनी चाहिए।

मसूर केे बीज की मात्रा एवं बोने की बिधिः-

छोट दानो वाले प्रभेदो के लिए एक हेक्टेयर क्षेत्रफल में बुबाई के लिए 35-40 किलोग्राम बीच की जरूरत पड़ती है। जबकी बड़ेे दानों वालेे किस्मों के लिए 50-55 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है। बुबाई के समय किस्मों के आधार पर कतार से कतार एवं पौधे से पौधे की दूरी क्रमशः 25 से0मी0 ग् 10 से0मी रखनी चाहिए।

मसूर का बीजोपचारः-

प्रारम्भिक अवस्था के रोगों से बचाने के लिए बुवाई से पहले मसूर के बीजों को सही उपचार करना जरूरी होता है। इसके लिए ट्राइकोडर्मा विरीडी 5 ग्राम प्रति किलों बीज या कार्बेन्डाजिन 2.0 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करना चाहिए।

बीजोपचार में सबसे पहले कवकनाशी तत्पश्चात् कीटनाशी एवं सबसे बाद में राजोबियम कल्चर से उपचारित करने का क्रम अनिवार्य होता है।

जिन क्षेत्रों में कटुआ यानी कजरा पिल्लू का प्रकोप मसूर के खेत में बढ़ जाता है यहाॅ बीज को क्लोरोपाइरीफास 20 ई0सी0 से (6-8 मि0ली0 प्रति किलोग्राम बीज) उपचार करना चाहिए।

मसूर की खेती में उर्वरकों का प्रयोगः-

मिट्टी परीक्षण के आधार पर ही उर्वरकों का प्रयोग आवश्यतानुसार करना चाहिए। सामान्य परिस्थिति में 20 किलो नेत्रजन, 40 किलोग्राम स्फूर एवं 20 किलोग्राम गंधक प्रति हेक्टेयर उपयोग करना चाहिए।

प्रायः असिंचित क्षेत्रों में स्फूर की उपलब्धता घट जाती है। इसके लिए पी एस बी का भी प्रयोग कर सकते है। 4 किलो पी एस बी (जैविक उर्वरक) को 50 किलोग्राम कम्पोस्ट में मिलाकर खेतों मंे बुवाई पूर्व व्यवहार करें।

जिन क्षेत्रों में जिंक एवं बोरान की कमी पाई जाती है उन खेतों में 25-30 किलोग्राम जिंक सल्फेट एवं 10 किलोग्राम बोरेक्स पाउडर प्रति हेक्टेयर की दर से बुवाई के समय प्रयोग करना चाहिए।

सिंचाईः-

जिन खेतों के नमी कमी पाई जाती है वहा एक सिंचाई (बुबाई के 45 दिन बाद) अधिक लाभकारी होती है। खेतों में पानी का जमाव नहीं होना चाहिए। इससे फसल प्रभावित हो जाती है। प्रायः टाल क्षेत्रों में सिंचाई की आवश्यकता नही पड़ती है।

मसूर की खेती में खरपतवार नियत्रणः-

मसूर के खेत में प्रायः मोथा, दूब, बथुआ, मिसिया, आक्टा वनप्याजी, बनगाजर आदि खरपतवार का प्रकोप ज्यादा होता है। इसके नियत्रण के लिए 2 लीटर फ्लूक्लोरिन को 600-700 लीटर पानी में मिलाकर प्रति हेक्टेयर की दर से अंतिम जूताई के बाद छिटकर मिला दे अथवा पेण्डीमेथीलीन एक किलोग्राम को 1000 लीटर पानी में घोलकर बुवाई के 48 घंटे के अन्दर छिड़काव करना चाहिए।

फसल सुरक्षा प्रबंधनः-

रोग प्रबंधनः- बिहार में मसूर के प्रमुख रोग उकठा, ब्लाइट, बिल्ट एवं ग्रे मोल्ड है। इससे बचाने के लिए फसलों में मेंकोजेब 2 ग्राम लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करना चाहिए।

कीट प्रबंधनः- मसूर के पौधे के उगने के बाद फसल को हमेशा निगरानी रखनी चाहिए जिससे कीड़े का आक्रमण होने पर उचित प्रबंध तकनीक अपनाकर फसल को नुकसान से बचाया जा सके। कजरा पिल्लू, कटवर्म, सूड़ी तथा एफिड कीड़ों को प्रकोप मसूर के पौधे पर ज्यादा होता है। इन कीटो को आर्थिक क्षतिस्तर से नीचे रखने के लिए बुवाई के 25-30 दिन बाद एजैडिरैक्टीन (नीम तेल) 0.03 प्रतिशत 2.5-3.0 मि0ली0 प्रति लीटर पानी की दर से छिड़काव करना चाहिए।

मसूर की कटाई एंव भण्डारणः-

जब 80 प्रतिशत फलिया पक जाऐ तो कटाई करके झड़ाई कर लेना चाहिए। भण्डारण से पूर्ण दानों को अच्छी तरह से सुखा लेना याहिए। अगर किसान लोग उन्नत विधि से मसूर की खेती करेे तो लगभग 18-20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज प्राप्त कर सकते है।


Authors

संतोष कुमार, शरद कुमार द्विवेदी, अनिल कुमार सिंह,प्रेम कुमार सुन्दरम् एवं सुरोजीत मंडल

पूर्वी क्षेत्र के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद का शोध परिसर पटना-14

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