Paddy cultivation in low cost by zero tillage (Direct sowing) technique is beneficial for farmers .
धान भारत की एक प्रमुख फसल है। हमारे देश में लगभग 42 मि. हे. क्षेत्र में धान की खेती की जाती है जिसमें से 20.7 मिलीयन हे. क्षेत्र वर्षा आधारित है। पूर्वी भारत में 162 लाख हेक्टेयर में धान की खेती वर्षा आधारित है। जिसमें 6.3 मि.हे. ऊपरी जमीन एवं 7.3 मि.हे. निचली भूमि सूखे से हमेशा प्रभावित रहती है।
बिहार राज्य में धान की खेती करीब 38 लाख हेक्टेयर में की जाती है। इसमें मात्र एक तिहाई जमीन ही सिंचित है जबकी दो - तिहाई क्षेत्र में धान की खेती नहर के पानी एवं वर्षा जल पर आधारित है।
असिंचित क्षेत्रों में समय पर वर्षा का पानी न मिलने से किसान लोग समय से कादो नहीं कर पाते हैं जिससे धान की रोपनी में विलम्ब हो जाती है। इसके साथ-साथ सिंचित नहरी क्षेत्रों में भी नहर का पानी समय पर नहीं आने से धान की रोपाई विलम्ब से होती है। इससे पैदावर में कमी के साथ-साथ रबी फसल जैसे गेहूँ की बुवाई में देरी हो जाती है। फलतः रबी फसल की उपज भी घट जाती है। इस समस्या का धान की सीधी बुवाई ही एक सही विकल्प है।
सीधे बुआई (जीरो टिलेज) का मतलब फसल को बिना तैयार की हुई जमीन में लगाना है। इसको जीरो टिल, नो टिल या सीधी बुआई का नाम दिया जाता है। लेकिन आधुनिक समय में जीरो टिलेज का मतलब पूर्व फसल के अवशेष युक्त भूमि को बिना जोते यात्रिंक बुआई को जीरो टिलेज कहते हैं। इस तकनीकी को सबसे ज़्यादा हरियाणा (46 प्रतिशत), पंजाब (26 प्रतिशत) और उत्तर प्रदेश (21 प्रतिशत) में अपनाया गया जबकि बिहार (10 प्रतिशत) और पश्चिम बंगाल में सीधी बुनाई का कम महत्व दिया गया है।
बिहार में विगत साल में सीधी बुआई का क्षेत्र बढ़ा है। आज के परिवेश में चावल में संसाधन संरक्षण तकनीकी पर आधारित सीधी जुताई (जीरो टिलेज) गंगा के मैदानी क्षेत्र जोकि पंजाब से लेकर कोलकत्ता तक फैला हुआ है, में वृहत पैमाने पर अपनाई जा रही है।
धान में सीधी बुआई (जीरो टिलेज) से कई महत्वपूर्ण फायदे क्षेत्र स्तर पर होते हैं जैसे समय पर धान की बुवाई हो जाती एंव लागत कम हो जाती है। पराम्परागत तरीके से नर्सरी उगाने, कादो करना तथा रोपनी करने पर धान की खेती में लागत बढ़ जाती है। घनहर क्षेत्रों में हमेशा कादो करने से वहाँ की मिट्टी की भैतिक दशा खराब हो जाती है जिससे रबी फसलों की पैदावार में कमी आती है।
समय से धान की बोआई से 6-10 प्रतिशत तक उत्पादन में वृद्धि होती है और 15-20 प्रतिशत उत्पादन लागत में में बचत होती है। साथ ही इस तकनीक का प्रयोग करने से समय, श्रम संसाधन एवं लागत की बचत होती है। इन्हीं फायदे के मद्दे नजर किसानों का ज्यादा से ज्यादा रूझान सीधी बुआई की तरफ बढ़ रहा है।
धान में सीधी बुवाई की जरूरत क्यों है?
परम्परागत तरीके से धान की खेती करने के लिए समय पर नर्सरी तैयार करना, खेत में पानी की उचित व्यवस्था करके कादो करना एवं अंत में मजदूरों से रोपाई करने की आवश्यकता होती है। इससे धान की खेती की कुल लागत में बढ़ोतरी हो जाती है। समय पर वर्षा का पानी न मिलने से कादों एवं रोपनी करने में विलम्ब हो जाती है।
वर्षा आधारित एवं नहर आश्रित धनहर क्षेत्रों में यह एक प्रमुख समस्या है। लगातार कादो करने से मिट्टी की भौतिक दशा भी प्रभावित होती है जो कि रबी फसलो के लिए योग्य नहीं रह पाती एवं उनके उत्पादकता में कमी हो जाती है। सीधी बुवाई तकनीक अपनाकर उपरोक्त समस्याओं को कम किया जा सकता है एवं उच्च उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है।
धान की सीधी बुवाई के लिए कौन सी मशीन उपयुक्त है?
धान की सीधी बुवाई के लिए जीरो टिल ड्रिल अथवा मल्टीक्राप प्रयोग में लाया जाता है। जिन खेतों में फसलों के अवशेष हो और जमीन आच्छादित हो वहाॅ पर टरबो हैपी सीडर या रोटरी डिस्क ड्रिल जैसी मशीनों से धान की बुवाई करनी चाहिए।
जीरो टिल ड्रिल अथवा मल्टीक्राॅप जीरो टील ड्रील 35-45 हार्स पावर टैªक्टर से चलती है। इस मशीन में मिट्टी चीरने वाले 9 या 11 भालानुमा फार 22 से.मी. की दूरी पर लगे होते है और इसे ट्रैक्टर के पीछे बाॅधकर चलाया जाता है।
नौ कतार वाली जीरो टिल ड्रिल से करीब प्रति घण्टा एक एकड़ में धान की सीधी बुवाई हो जाती है। ध्यान देने की योग्य बात है कि बुआई के समय खेत में पर्याप्त नमी होनी चाहिए।
बिना जुताई किए हुए खेतों में राईस ट्रान्सप्लान्टर द्वारा भी 15 दिन पुराने बिचड़ों की रोपाई की जा सकती है, वशर्तें की भूमि समतल एवं सपाट हो।
धान की सीधी बुवाई के लिए प्रजातियों का चयन:
किसान सही प्रजातियों का समयानुसार और क्षेत्रानुसार चयन करके अच्छी उत्पादन ले सकते हैं। धान की खेती सीधी बुवाई करने हेतू प्रजातियाँ निम्न प्रकार की हैं।
परिस्थिति |
उचित प्रजातियाँ |
प्रजातियों की अवधि |
ऊपरी जमीन |
प्रभात, सहभागी धान, शुष्क सम्राट, बंदना, अंजली, सी.आर.धान40, एन.डी.आर 97 |
95-115 |
मध्यम जमीन |
हजारी धान, अभिषेक, सीता, ललाट, सहभागी धान, सरोज |
115-135 |
निचली जमीन |
एम.टी.यू.7029 (स्वर्णा), स्वर्णा सब 1, |
135-155 |
सुगंधित |
बी.पी.टी. 5204, सरजू 52, एन.डी.आर.359, सत्यम, राजेन्द्र स्वेता, राजेन्द्र मंसूरी 1, राजश्री |
130-140 |
संकर धान (हाइब्रिड) |
सुगन्धा, राजेन्द्र सुवासिनी, राजेन्द्र कस्तुरी |
120-145 |
धान की सीधी बुवाई का उचित समय:
सामान्यः धान की सीधी बुवाई मानसून आने के करीब एक से दो सप्ताह पूर्व करना अच्छा होता है। देश के मध्य पूर्वोत्तर इलाके में मानसून का आगमन 10-15 जून तक होता है अतः धान की सीधी बुवाई 31 मई तक हो जानी चाहिए। ऊपरी जमीन पर जहा पानी का भराव नहीं होता और अगात प्रजातिया लगाना है वहा पर धान की सीधी बुवाई 15 जुलाई तक कर सकते हैं। धान को सीधी बुवाई का समय इस प्रकार है:
खरीफ धानः
पिछात प्रजातिया: 140-155 दिन, 25 मई से 10 जून
मध्यम प्रजातिया: 130-140 दिन, 10 जून से 25 जून
अगहनी एवं अगेत प्रजातिया: 100-140 दिन, 25 जून से 15 जुलाई
गर्मी धानः 01 से 15 मार्च
धान की सीधी बुवाई के लिए बीज की मात्रा एवं बीजोपचार:
सीधी बुवाई विधि में जीरो टिल ड्रिल मशीन के द्वारा मोटे आकार के दानो वाले धान की किस्मों के लिए बी की मात्रा 30-35 किलोग्राम, मध्यम धान की 25 से 30 किलोग्राम तथा छोटे महीन दाने वाले धान की 20 से 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर पर्याप्त होती है।
बुवाई से पूर्व धान के बीजों का उपचार अति आवश्यक है। सबसे पहले बीज को 8-10 घंटे पानी में भींगोकर उसमें से खराब बीज को निकाल देते हैं। इसके बाद एक किलोग्राम बीज की मात्रा के लिए 0.2 ग्राम सटेप्टोसाईकलीन के साथ 2 ग्राम कार्बेन्डाजिम मिलाकर बीज को दो घंटे छाया में सुखाकर मशीन के द्वारा सीधी बुवाई करनी चाहिए।
धान की बुवाई की तैयारी:
बुवाई से पूर्व धान के खेत को यथासंभव समतल कर लेना चाहिए। यदि आर्थिक रूप से संभव हो तो भूमि को लेजर लेवलर मशीन से समतल कर लें। बुवाई के समय खेत में पर्याप्त नमी की मात्रा उपलब्ध होनी चाहिए। जिस खेत में नमी की कमी हो अथवा बहुत ही कम होे वहाॅ पहले खरपतवारनाशी का प्रयोग करना चाहिए
इसके एक सप्ताह बाद हल्की सिंचाई कर दें एवं खेत में उचित नमी आने पर मशीन द्वारा बुवाई करना हितकर है। बुवाई करने से पूर्व जीरो टिल ड्रिल मशीन का अंशशोधन कर लेना चाहिए जिससे बीज एवं खाद निर्धारित मात्रा एक कप से एवं गइराई में पड़े।
धान की सीधी बुवाई करते समय बीज को 3-5 से.मी. गहराई पर ही बोना चाहिए। इससे ज्यादा गहरा करने पर अंकुरण कुप्रभावित होता है जिससे धान की पैदावार में कमी आती है। मशीन द्वारा सीधी बुवाई में कतार से कतार की दूरी 20 से.मी. तथा पौधे की दूरी 5-10 से.मी. होती है।
धान में उर्वरक प्रबंधन:
मिट्टी परीक्षण के आधार पर संतुलित उर्वरको, हरी खाद एवं जैविक खाद का समयानुसार एवं संस्तृत अवस्था में प्रयोग करना चाहिए। सामान्यतः सीधी बुवाई वाली धान में प्रति हेक्टेयर 80-100 कि.ग्रा. नेत्रजन (75-217 कि.ग्रा. यूरिया), 40 किलो फास्फोरस (250 कि.ग्रा. एस.एस.पी) और 20 किलो पोटास (33 किलो म्यूरेट आफ पोटाश) की जरूरत होती है।
नेत्रजन की एक तिहाई और फास्फोरस तथा पोटाश की पूरी मात्रा बुवाई के समय प्रयोग करना चाहिए। नेत्रजन की बाकी मात्रा (शेष मात्रा दो बराबर हिस्सों में कल्ले फूटते समय तथा बाली निकलने के समय प्रयो करें। अगर मिट्टी में गंधक की कमी पाई जाती है तो बुवाई के समय ही 30 कि.ग्रा. गंधक प्रति हेक्टेयर की दर से उपयोग करना चाहिए एवं धान-गेहूँ फसल चक्र वाले क्षेत्रों में हर दो साल पर 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर जिंक सल्फेट का प्रयोग बुवाई के समय करना चाहिए।
धान में सिंचाई प्रबंधन
शोध में यह पाया गया है कि धान की बुवाई सीधी विधि द्वारा करने पर 40 से 60 प्रतिशत पानी की बचत पारंपरिक तरीके द्वारा धान की खेती की अपेक्षा होती है। धान के खेत में लगातार जल भराब की जरूरत नहीं होती ।
धान की सीधी बुवाई के समय खेत में उचित नमी होना जरूरी है और सूखे बीज का प्रयोग किया गया है तो बुवाई के 12 घंटे के अंदर हल्की सिंचाई देनी चाहिए। फसल के जमाव एवं 20-25 दिनों तक हल्की सिंचाई के द्वारा खेत में नमी बनाए रखना चाहिए।
फूल आने से पहले से फूल आने की अवस्था (लगभग 25-30 दिन तक खेत में पर्याप्त नमी बनाए रखे। दाना बनने की अवस्था (लगभग एक सप्ताह में पानी की कमी खेत में नहीं होनी चाहिए।
मुख्यतः कल्ला फूटने के समय वाली, गाभा फूटतें समय और दाना बनने वाली अवस्थाओं में धान के खेत में पर्याप्त नमी की कमी नहीं होने देना चाहिए। बिना कादो किए सीधी बुवाई वाले धान के खेत में पानी सूखने पर बड़ी -बड़ी दरारे नहीं पड़ती हैं अतः इन खेतों में महीन दरार आने पर सिंचाई कर देनी चाहिए।
कटाई से 15-20 दिन पहले सिंचाई बंद कर देनी चाहिए जिससे फसल की कटाई आसानी से हो सके।
धान में खरपतवार प्रबंधनः
सीधी बिजाई वाले धान में खर-पतवार पर नियंत्रण एक जटिल एवं गम्भीर समस्या है। धान की बीजाई सूखे एवं नम मिट्टी में होने के कारण खर-पतवार की बढ़वार के लिए उचित वातावरण मिलता है।
अभी तक बाजार में ऐसा कोई भी रासायनिक खर-पतवारनाशी उपलब्ध नही है जिससे कि धान में पाये जाने वाले सभी प्रकार के खर-पतवार पर नियंत्रण पाया जा सके। खर-पतवार की समस्या के करण धान की उत्पादकता औसतन 20-40 प्रतिशत और कुछ परिस्थितियों में इससे भी ज्यादा कम हो जाती है।
अतः सीधी बिजाई वाले धान में खर-पतवार पर नियंत्रण अत्यावश्यक है। अगर खरपतवार की उचित समय पर रोकथाम न की जाए, तो फसल की पैदावर व उसकी गुणवत्ता में कमी आ जाती है।
इसलिए बुवाई से पूर्व, बीज के अंकुरण से पहले एवं बुवाई के बाद खरपतवारो के रोकथाम का समुचित प्रबंधन जरूरी हैं अन्यथा 50-80 प्रतिशत तक उपज में हानि हो सकती है।
धान की सीधी बुवाई (जीरो टिलेज ) तकनीक से लाभः
धान की रोपाई विधि से खेती करने मे जो समस्याए। आती हैं उनका एक ही विकल्प है धान की सीधी बुवाई तकनीक को अपनाना। धान की सीधी बुवाई तकनीक के प्रमुख लाभ निम्नलिखित हैः
- 20 से 25 प्रतिशत पानी की बचत होती है क्योंकि इस इस विधि से धान की बुवाई करने पर खेत में लगातार पानी रखने की आवश्यकता नही पड़ती है।
- मजदुरो एवं समय की बचत होती है क्योंकि इस विधि में रोपाई करने की जरूरत नहीं पड़ती है।
- धान की नर्सरी उगाने, खेत का कादो करने तथा रोपनी का खर्च बच जाता है।
- रोपाई वाली विधि के तुलना में इस तकनीक में उर्जा व इंधन की बचत होती है।
- समय से धान की खेती शरू हो जाती है इससे इसकी उपज अधिक मिलने की संभावना होती है।
- पानी, श्रम एवं इंधन की बचत के कारण सीधी बुवाई में लागत कम आती है
- लगातार धान की खेती रोपाई विधि से करने पर कादो करने की जरूरत पड़ती है जिससे भूमी को भौतिक दशा पर बुरा असर पड़ता है जबकि लेकिन सीधी बुवाई तकनीक मिट्टी की भौतिक गुणवत्ता को बनाई रखती है।
- इस विधि से किसान जीरो टिलेज मशीन में खाद व बीज डालकर आसानी से बुवाई कर सकता है एवं कादो तथा रोपाई से निजात पा लेता है।
- रोपाई विधि के अपेक्षा सीधी बुवाई सामयिक हो जाती है और अधिक पैदावर मिलती है।
- रोपाई विधि के तुलना मंे सीधी बुवाई विधि से धान की खेती करने में बीज की मात्रा कम लगती है। इस विधि से धान की बुवाई सीधे खेत में 50 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से की जाती हैं।
- समय, श्रम, संसाधन एवं लागत की बचत होती है।
Authors:
संतोष कुमार, सती शंकर सिंह, शरद कुमार द्विवेदी, प्रेम कुमार सुन्दरम एवं सुरोजीत मंडल
पूर्वी क्षेत्र के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद का शोध परिसर पटना-14
Email: