सोयाबीन की उन्नत खेती : किसानो के लिए वरदान

सोयाबीन की उन्नत खेती : किसानो के लिए वरदान

Improved cultivation of Soybean: Boon for Farmers

सोयाबीन खरीफ मौसम की एक प्रमुख फसल है। यह दलहन के बजाय तिलहन की फसल मानी जाती है। क्यूकि तेल के रूप से इसका आर्थिक उद्देश्य सबसे ज्यादा है | सोयाबीन मानव पोषण एवं स्वास्थ्य के लिए एक बहुउपयोगी खाद्य पदार्थ है।

सोयाबीन एक महत्वपूर्ण खाद्य स्रोत है। इसके मुख्य घटक प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट और वसा होते है। सोयाबीन में 44 प्रतिशत प्रोटीन, 22 प्रतिशत वसा, 21 प्रतिशत कार्बोहाइडेंट, 12 प्रतिशत नमी तथा 5 प्रतिशत भस्म होती है।

सोयाबीन की पौष्टिक गुडवत्ता

  प्रतिशत
प्रोटीन 44
वसा 22
कार्बोहाइडेंट 21
तेल 16-18
भस्म 5

छत्तीसगढ़ में मुख्य रूप से सोयाबीन राजनांदगांव, दुर्ग, महासमुंद, बेमेतरा, धमतरी, और कबीरधाम में उगाये जाते है.

इस क्षेत्र में फसल पद्धति के रूप में या मुख्य फसल के रूप में भी उगाये जाते है किसान इस उन्नत तकनीक का उपयोग कर अपनी फसल की उत्पादकता बढ़ा सकते है और अपनी वार्षिक आय में वृद्धि कर सकते है जिसका वर्णन नीचे दिया गया है  

 Soybean crop in field

Soybean crop in field

सोयाबीन की खेती के लि‍ए भूमि का चुनाव एवं तैयारी

सोयाबीन की खेती अधिक हल्‍की रेतीली व हल्‍की भूमि को छोड्कर सभी प्रकार की भूमि में सफलतापूर्वक की जा सकती है परन्‍तु पानी के निकास वाली चिकनी दोमट भूमि सोयाबीन के लिए अधिक उपयुक्‍त होती है। जहां भी खेत में पानी रूकता हो वहां सोयाबीन ना लें।

ग्रीष्‍म कालीन जुताई 3 वर्ष में कम से कम एक बार अवश्‍य करनी चाहिए। वर्षा प्रारम्‍भ होने पर 2 या 3 बार बखर तथा पाटा चलाकर खेत को तैयार कर लेना चाहिए। इससे हानि पहुचाने वाले कीटों की सभी अवस्‍थाएं नष्‍ट होगीं।

ढेला रहित और भूरभुरी मिटटी वाले खेत सोयाबीन के लिए उत्‍तम होते हैं। खेत में पानी भरने से सोयाबीन की फसल पर विपरीत प्रभाव पड़ता है अत: अधिक उत्‍पादन के लिए खेत में जल निकास की व्‍यवस्‍था करना आवश्‍यक होता है। जहां तक संभव हो आखरी बखरनी एवं पाटा समय से करें जिससे अंकुरित खरपतवार नष्‍ट हो सके। यथा संभव मेड और कूड बनाकर सोयाबीन बोएं।

Soybean fruitsसोयाबीन बुआई बीज दर  

सोयाबीन की फसल की बीज दर-

छोटे दाने वाली किस्‍में – 70 किलो ग्राम प्रति हेक्टेयर

मध्‍यम दोन वाली किस्‍में – 80 किलो ग्राम प्रति हेक्टेयर

बडे़ दाने वाली किस्‍में – 100 किलो ग्राम प्रति हेक्टेयर

सोयाबीन बोने का समय

जून के अन्तिम सप्‍ताह में और जुलाई के प्रथम सप्‍ताह तक का समय सबसे उपयुक्‍त है बोने के समय अच्‍छे अंकुरण हेतु भूमि में 10 सेमी गहराई तक उपयुक्‍त नमी होना चाहिए।

अगर बुवाई करने में विलंब हो रहा हो (जुलाई के प्रथम सप्‍ताह के पश्‍चात ) तो बोनी की बीज दर 5- 10 प्रतिशत बढ़ा देनी चाहिए। जिससे की खेत में पौध संख्या बनाये रखे जा सके.

पौध संख्‍या

4 – 5 लाख पौधे प्रति हेक्‍टेयर या 40 से 60 प्रति वर्ग मीटर  पौध संख्‍या उपयुक्‍त है। जे.एस. 75 – 46 जे. एस. 93 – 05 किस्‍मों में पौधों की संख्‍या 6 लाख प्रति हेक्‍टेयर उपयुक्‍त है।

असीमित बढ़ने वाली किस्‍मों के लिए 4 लाख एवं सीमित वृद्धि वाली किस्‍मों के लिए 6 लाख पौधे प्रति हेक्‍टेयर होना चाहिए।

छत्तीसगढ़ के लिए सोयाबीन कीी उन्नत किस्मे

जे. एस. 97-52   जे. एस. 95-60
जे. एस. 335 इंदिरा सोया – 9
जे. एस. 93-05 इंदिरा सोया – 1

सोयाबीन बोने की विधि

सोयाबीन की बोनी कतारों में करना चाहिए। कतारों की दूरी 30 सेमी. ‘’ बोनी किस्‍मों के लिए ‘’ तथा 45 से.मी. बड़ी किस्‍मों के लिए उपयुक्‍त है। 20 कतारों के बाद कूड़ जल निथार तथा नमी संरक्षण के लिए खाली छोड़ देना चाहिए। बीज 2.5 से 3 सेमी. गहराई त‍क बोयें।

बीज एवं खाद को अलग – अलग बोना चाहिए (खाद को पहले खेत में डाल कर हल्के मिटटी में मिला देना चाहिए फिर बीज को बोना चाहिए, खाद और बीज का सीधा संपर्क नही रहना चाहिए) जिससे अंकुरण क्षमता प्रभावित न हो।

सोयाबीन का बीजोपचार

सोयाबीन के अंकुरण को बीज तथा मृदा जनित रोग प्रभावित करते है। इसकी रोकथाम हेतु बीज को थीरम या केप्‍टान 2 ग्राम कार्बेन्‍डाजिम मिश्रण प्रति किलो ग्राम बीज की दर से उपचारित करना चाहिए अथवा ट्राइकोडरमा 4 ग्राम एवं कार्बेन्‍डाजिम 2 ग्राम प्रति किलो ग्राम बीज से उपचारित करके बोयें।

कल्‍चर का उपयोग

फफूँदनाशक दवाओं से बीजोपचार के पश्‍चात बीज को 5 ग्राम राइजोबियम एवं 5 ग्राम पी.एस.बी.कल्‍चर प्रति किलो ग्राम बीज की दर से उपचारित करें। उपचारित बीज को छाया में रखना चाहिए एवं शीघ्र बोनी करना चाहिए।

ध्‍यान रहें कि फफूँदनाशक दवा एवं कल्‍चर को एक साथ न मिलाऐं। पहले फफूँदनाशक को उसके बाद राइजोबियम से उपचारित करे.

समन्वित पोषण प्रबंधन

अच्‍छी सड़ी हुई गोबर की खाद 5 टन प्रति हेक्टेयर अंतिम बखरनी के समय खेत में अच्‍छी तरह मिला देवें तथा बोते समय 20 किलो नत्रजन 60 किलो स्‍फुर 20 किलो पोटाश एवं 20 किलो गंधक प्रति हेक्टेयर देवें। यह मात्रा मिटटी परीक्षण के आधार पर घटाई बढ़ाई जा सकती है तथा संभव नाडेप, फास्‍फो कम्‍पोस्‍ट के उपयोग को प्राथमिकता दें।

रासायनिक उर्वरकों को कूड़ों में लगभग 5 से 6 से.मी. की गहराई पर डालना चाहिए। गहरी काली मिटटी में जिंक सल्‍फेट 50 किलो ग्राम प्रति हेक्‍टर एवं उथली मिटिटयों में 25 किलो ग्राम प्रति हेक्‍टर की दर से 5 से 6 फसलें लेने के बाद उपयोग करना चाहिए।

खरपतवार प्रबंधन

फसल के प्रारम्भिक 30 से 40 दिनों तक खरपतवार नियंत्रण बहुत आवश्‍यक होता है। बतर आने पर डोरा या कुल्‍फा चलाकर खरपतवार नियंत्रण करें व दूसरी निंदाई अंकुरण होने के 30 और 45 दिन बाद करें।

15 से 20 दिन की खड़ी फसल में घांस कुल के खरपतवारो को नष्‍ट करने के लिए क्‍यूजेलेफोप इथाइल एक लीटर प्रति हेक्‍टर अथवा घांस कुल और कुछ चौड़ी पत्‍ती वाले खरपतवारों के लिए इमेजेथाफायर 750 मिली. ली. लीटर प्रति हेक्‍टर की दर से छिड़काव की अनुशंसा है।

नींदानाशक के प्रयोग में बोने के पूर्व फलुक्‍लोरेलीन 2 लीटर प्रति हेक्‍टर आखरी बखरनी के पूर्व खेतों में छिड़के| खरपतवार नाशियों के मिटटी में पर्याप्‍त पानी व भुरभुरापन होना चाहिए।

सिंचाई

खरीफ मौसम की फसल होने के कारण सामान्‍यत: सोयाबीन को सिंचाई की आवश्‍यकता नही होती है। फलियों में दाना भरते समय अर्थात सितंबर माह में यदि खेत में नमी पर्याप्‍त न हो तो आवश्‍यकतानुसार एक या दो हल्‍की सिंचाई करना सोयाबीन के अधिकतम उत्‍पादन लेने हेतु लाभदायक है।

पौध संरक्षण विधि

कीट नियंत्रण

सोयाबीन की फसल पर बीज एवं छोटे पौधे को नुकसान पहुंचाने वाला नीलाभृंग (ब्‍लूबीटल) पत्‍ते खाने वाली इल्लियां, तने को नुकसान पहुंचाने वाली तने की मक्‍खी एवं चक्रभृंग (गर्डल बीटल) आदि का प्रकोप होता है एवं कीटों के आक्रमण से 5 से 50 प्रतिशत तक पैदावार में कमी आ जाती है। इन कीटों के नियंत्रण के उपाय निम्‍नलिखित है:

कृषिगत नियंत्रण

खेत की ग्रीष्‍मकालीन गहरी जुताई करें। मानसून की वर्षा के पूर्व बोनी नहीं करे। मानसून आगमन के पश्‍चात बोनी शीघ्रता से पूरी करें। खेत नींदा रहित रखें। सोयाबीन के साथ ज्‍वार अथवा मक्‍का की अंतरवर्तीय खेती करें। खेतों को फसल अवशेषों से मुक्‍त रखें तथा मेढ़ों की सफाई रखें।

रासायनिक नियंत्रण

अंकुरण के प्रारम्‍भ होते ही नीला भृंग कीट नियंत्रण के लिए क्‍यूनालफॉस 1.5 प्रतिशत या मिथाइल पेराथियान (फालीडाल 2 प्रतिशत या धानुडाल 2 प्रतिशत) 25 किलो ग्राम प्रति हेक्‍टर की दर से भुरकाव करना चाहिए।

कई प्रकार की इल्लियां पत्‍ती छोटी फलियों और फलों को खाकर नष्‍ट कर देती है इन कीटों के नियंत्रण के लिए घुलनशील दवाओं की निम्‍नलिखित मात्रा 700 से 800 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए।

हरी इल्‍ली की एक प्रजाति जिसका सिर पतला एवं पिछला भाग चौड़ा होता है सोयाबीन के फूलों और फलियों को खा जाती है जिससे पौधे फली विहीन हो जाते हैं। फसल बांझ होने जैसी लगती है। चूकि फसल पर तना मक्‍खी, चक्रभृंग, माहो हरी इल्‍ली लगभग एक साथ आक्रमण करते हैं अत: प्रथम छिड़काव 25 से 30 दिन पर एवं दूसरा छिड़काव 40-45 दिन की फसल पर आवश्‍यक करना चाहिए।

जैविक नियंत्रण

कीटों के आरम्भिक अवस्‍था में जैविक कट नियंत्रण हेतु बी.टी एवं ब्‍यूवेरीया बैसियाना आधरित जैविक कीटनाशक 1 किलोग्राम या 1 लीटर प्रति हेक्‍टर की दर से बुवाई के 35-40 दिन तथा 50-55 दिन बाद छिड़काव करें। एन.पी.वी. का 250 एल.ई समतुल्‍य का 500 लीटर पानी में घोलकर बनाकर प्रति  छिड़काव करें। रासायनिक कीटनाशकों की जगह जैविक कीटनाशकों को अदला बदली कर डालना लाभदायक होता है।

  1. गर्डल बीटल प्रभावित क्षेत्र में जे.एस. 335, जे.एस. 80 – 21, जे.एस 90 – 41, लगावें
  2. निंदाई के समय प्रभावित टहनियां तोड़कर नष्‍ट कर दें
  3. कटाई के पश्‍चात बंडलों को सीधे गहाई स्‍थल पर ले जावें
  4. तने की मक्‍खी के प्रकोप के समय छिड़काव शीघ्र करें

सोयाबीन में रोग  नियंत्रण

  1. फसल बोने के बाद से ही फसल निगरानी करें। यदि संभव हो तो लाइट ट्रेप तथा फेरोमोन ट्रेप का उपयोग करें।
  2. बीजोपचार आवश्‍यक है। इसके बाद रोग नियंत्रण के लिए फफूँद के आक्रमण से बीज सड़न रोकने हेतु कार्बेन्‍डाजिम 1 ग्राम + 2 ग्राम थीरम के मिश्रण से प्रति किलो ग्राम बीज उपचारित करना चाहिए। थीरम के स्‍थान पर केप्‍टान एवं कार्बेन्‍डाजिम के स्‍थान पर थायोफेनेट मिथाइल का प्रयोग किया जा सकता है।
  3. पत्‍तों पर कई तरह के धब्‍बे वाले फफूंद जनित रोगों को नियंत्रित करने के लिए कार्बेन्‍डाजिम 50 डबलू पी या थायोफेनेट मिथाइल 70 डब्‍लू पी 0.05 से 0.1 प्रतिशत से 1 ग्राम दवा प्रति लीटर पानी का छिड़काव करना चाहिए। पहला छिड़काव 30 -35 दिन की अवस्‍था पर तथा दूसरा छिड़काव 40 – 45 दिन की अवस्‍था पर करना चाहिए।
  4. बैक्‍टीरियल पश्‍चयूल नामक रोग को नियंत्रित करने के लिए स्‍ट्रेप्‍टोसाइक्‍लीन की 200 पी.पी.एम. 200 मि.ग्रा; दवा प्रति लीटर पानी के घोल और कापर आक्‍सीक्‍लोराइड 0.2 (2 ग्राम प्रति लीटर) पानी के घोल के मिश्रण का छिड़काव करना चाहिए। इराके लिए 10 लीटर पानी में 1 ग्राम स्‍ट्रेप्‍टोसाइक्‍लीन एवं 20 ग्राम कापर अक्‍सीक्‍लोराइड दवा का घोल बनाकर उपयोग कर सकते हैं।
  5. विषाणु जनित पीला मोजेक वायरस रोग प्राय: एफ्रिडस सफेद मक्‍खी, थ्रिप्‍स आदि द्वारा फैलते हैं अत: केवल रोग रहित स्‍वस्‍थ बीज का उपयोग करना चाहिए। एवं रोग फैलाने वाले कीड़ों के लिए थायोमेथेक्‍जोन 70 डब्‍लू एव. से 3 ग्राम प्रति किलो ग्राम की दर से उपचारित कर एवं 30 दिनों के अंतराल पर दोहराते रहें। रोगी पौधों को खेत से निकाल देवें। इथोफेनप्राक्‍स 10 ई.सी. 1.0 लीटर प्रति हेक्‍टर थायोमिथेजेम 25 डब्‍लू जी, 1000 ग्राम प्रति हेक्‍टर।
  6. नीम की निम्‍बोली का अर्क डिफोलियेटर्स के नियंत्रण के लिए कारगर साबित हुआ है।

सोयाबीन फसल कटाई एवं गहाई

अधिकांश पत्तियों के सूख कर झड़ जाने पर और 10 प्रतिशत फलियों के सूख कर भूरी हो जाने पर फसल की कटाई कर लेना चाहिए। कटाई के बाद गटठो को 2 – 3 दिन तक सुखाना चाहिए | जब कटी फसल अच्‍छी तरह सूख जाये तो गहाई कर दोनों को अलग कर देना चाहिए। फसल गहाई थ्रेसर, ट्रेक्‍टर, बेलों तथा हाथ द्वारा लकड़ी से पीटकर करना चाहिए। जहां तक संभव हो बीज के लिए गहराई लकड़ी से पीट कर करना चाहिए, जिससे अंकुरण प्रभावित न हो।

सोयाबीन की उपज (क्विं./ हे.)

सोयाबीन की उपज 20-25 क्विं./ हे. होती है|


Authors:

इन्द्रपाल सिंह पैकरा, राजेंद्र लाकपाले, एवं लव कुमार,

इंदिरा गाँधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर (छ.ग.)

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