Important domestic fodder treatment methods to increase feed nutrition

Important domestic fodder treatment methods to increase feed nutrition

चारे की पौष्टिकता बढाने हेतु महत्वपूर्ण घरेलु चारा उपचार विधियां

पशुओं से अधिकतम दुग्ध उत्पादन प्राप्त करने के लिए उन्हें प्रर्याप्त मात्रा में पौष्टिक चारे की आवश्यकता होती है। इन चारों को पशुपालक या तो स्वयं उगाता हैं या फिर कहीं और से खरीद कर लाता है। गायो को केवल सुखा चारा विशेषतौर से गेहू का सुखा चारा खिलाकर स्वस्थ नहीं रखा जा सकता है।

सूखे चारे में पोष्टिक तत्वों का अभाव रहता है । स्वामी केशवानंद राजस्थान कृषि विश्वविद्यालय, बीकानेर से सम्बद्ध कृषि विज्ञान केन्द्र, पोकरण के डॉ रामनिवास ढाका,विषय विशेषज्ञ (पशुपालन) ने बताया की ऐसा चारा खिलाने से पशुओ में उर्जा व अन्य पोषक तत्वों की कमी आने लगती है और दूध उत्पादन कम हो जाता है

कभी कभी तो पशु कुपोषण का शिकार होकर असमय काल का ग्रास बन जाता है। चारा उपचारण के द्वारा चारे की पोष्टिकता कई गुणा बढ़ जाती है और पशु केवल उपचारित चारे पर भी स्वस्थ रखा जा सकता है। चारे की उपचारण विधियाँ अत्यंत सरल, सस्ती, आसानी से अपनाने योग्य है । 

पशुओ को हे बनाकर खिलाना:

हे बनाने के लिए हरे चारे या घास को इतना सुखाया जाता है जिससे की उसमें नमी की मात्रा 15-20 प्रतिशत तक ही रह जाए। इससे पादप कोशिकाओं तथा जीवाणुओं की एन्जाइम क्रिया रुक जाती है लेकिन इससे चारे की पौष्टिकता में कमी नहीं आती

हे बनाने के लिए लोबिया, बरसीम, रिजका, लेग्यूम्स तथा ज्वार, नेपियर, जवी, बाजरा, ज्वार, मक्की, गिन्नी अंजन आदि घासों का प्रयोग किया जाता है लेग्यूम्स घासों में सुपाच्य तत्व अधिक होते हैं तथा इसमें प्रोटीन व विटामिन ए डी व ई भी पर्याप्त मात्रा में पाए जाते है। दुग्ध उत्पादन के लिए ये फसलें बहुत उपयुक्त होती हैं।

पशुओ को साइलेज बनाकर खिलानाः

हरा चारा जिसमें नमी की पर्याप्त मात्रा होती है को हवा की अनुपस्थिति में जब किसी गड्ढे में दबाया जाता है तो किण्वन की क्रिया से वह चारा कुछ समय बाद एक अचार की तरह बन जाता है जिसे साइलेज कहते हैं। हरे चारे की कमी होने पर साइलेज का प्रयोग पशुओं को खिलाने के लिए किया जाता है।

वर्षा ऋतु में हरा चारा ज्यादा होने पर इसका पूरा उपयोग नहीं हो पाता है इसमें से अधिकांश चारा सुखकर नष्ट हो जाता है जिसका कोई उपयोग नहीं हो पाता है। फसल की कटाई प्रातः 10 बजे करनी चाहिये ताकि उस पर ओस बूंदे नहीं रहे।

फसल की कटाई फुल आने की अवस्था में अर्थात फसल ना ही ज्यादा पकी हुई हो और ना ही ज्यादा कच्ची हो। फसल को काटने के उपरान्त एक से डेढ़ घंटे तक खेत में ही पड़े रहने दे और ये सुनिश्चित कर ले ताकि चारे में 80 प्रतिशत से ज्यादा नमी नहीं रहे। इसके बाद इस चारे का एक से डेढ़ इंच के टुकड़ो में कुटी कर लेते है।

बाइपास प्रोटीन बनाने की विधिः

पशुपालको के लिए प्रोटीन पशु आहार में पाया जाने वाला सबसे महत्वपूर्ण और महंगा तत्व होता है  अतः बाइपास प्रोटीन की सहायत्ता से दाने पर आने वाले खर्चे को कम किया जा सकता है।  प्रोटीन की आपूर्ति हेतु पशु को खल , दाल चुरा इत्यादि खिलाते है।

खल (केक्स) को पहले ग्राइंडर के सहायता से पिसा जाता है और बाद में इसको 4 प्रतिशत फोर्मिलीन के साथ उपचारित करना है अर्थात 100 किलो खल  में  4 किलो  फोर्मिलीन को अच्छे से मिलाया जाता है इसके बाद इसको तीन दिनों तक कट्टे  में डालकर ऊपर पॉलीथिन लगाकर बन्द कर देते है ताकि इसमें हवा का प्रवेश नहीं हो (बिना ऑक्सीजिन के) सके है। इससे यह रसायन खल पर सही से काम कर पायेगा।

पशुओ के लिए कैसे करे यूरिया से चारे को उपचारितः

सूखे चारे की पौश्टिकता बढ़ाने हेतु घास, भूसा और अन्य सूखा चारा को यूरिया से उपचारित किया जाता है साधारणतया निमन कोटि के भूसा को उपचारित किया जाता है  यूरिया से उपचारित करने से यूरिया में उपस्तिथ नाइट्रोजन को पशुओ के पेट में पाए जाने वाले जीवाणु प्रोटीन में बदल देते है।

यूरिया उपचारित भूसा की पाचनशीलता और पोस्टिकता दोनों बढ़ जाते है।

सबसे पहले एक बड़े पात्र में 4 किलो  यूरिया को 60 लीटर पानी में घोल लेते है इसके बाद में 100  किलो घास, भूसा और अन्य सूखा चारा को तह के रूप में जमीन पर बिछा देते है और यूरिया घोल का इस पर छिड़काव करते है ठीक इसी तरह 6 -7 तह भूसा की लगाते है और यूरिया घोल का छिड़काव करते रहते है। लेकिन ये ध्यान रखा जाता है की यह यूरिया का घोल बराबर मात्रा में 100 किलोग्राम भूसा पर छिड़काव हो जाय।

अब इसको 45 से 50 दिनों तक इसके  ऊपर पॉलीथिन लगाकर इस प्रकार ढक देते है कि इसमें हवा का प्रवेश नहीं हो (बिना ऑक्सीजिन के) सके। इससे यह यूरिया  भूसे पर सही से काम कर पायेगा। अब इसको 45 से 50 दिनों तक इसके  ऊपर पॉलीथिन लगाकर इस प्रकार ढक देते है कि इसमें हवा का प्रवेश नहीं हो (बिना ऑक्सीजिन के) सके।

इससे यह यूरिया  भूसे पर सही से काम कर पायेगा। भूसा पर से 45 से 50 दिनों बाद यह पॉलीथिन हटा देते है इसके बाद में 20-30 मिनट तक खुले में रखा जाता है ताकि अमोनिया गैस की दुर्गन्ध कम हो जाए।

पशुपालक क्या रखे सावधानिया-

१. छः माह से कम उम्र के पशुओ को यूरिया उपचारित चारा नहीं देना चाहिए।

2. एक बार में कम से कम 1000 किलोग्राम चारे का उपचार करना चाहिए

3. जिन पशुओ की दुध उत्पादन क्षमता 3 -4 लीटर है प्रतिदिन है उन पशुओ को अतिरिक्त दाना देने की कोई आवश्यकता नहीं होती है।

4. यदि पशुपालक 60 किलो दाना खरीदने के स्थान पर 100 किलो चारा यूरिया से उपचारित कर लिया जाय तो कुल पाच्य प्रोटीन 3 गुना पशु को अधिक मिलेगी।


Authors:

डॉ राम निवास1, डॉ चारू शर्मा2

विषय विशेषज्ञ1 (पशुपालन), विषय विशेषज्ञ2 (गृह विज्ञानं प्रसार शिक्षा),  

कृषि विज्ञान केन्द्र , स्वामी केशवानंद राजस्थान कृषि विश्वविद्यालय

बीकानेर , पोकरण – 345021 (जैसलमेर)

Email:- ramniwasbhu@gmail.com

Related Posts

………………………………………

Related Posts

rjwhiteclubs@gmail.com
rjwhiteclubs@gmail.com