Green fodder production with guinea grass
बहुवर्षीय हरे चारे के लिए गिनी घास का महत्वपूर्ण योगदान है| गिनी घास (Panicum maximum Jacq.) का जन्म स्थान गिनी, अफ्रीका को बताया जाता है| ये बहुत ही तेजी से बढने वाली और पशुओ के लिए एक स्वादिस्ट घास है|
इससे वर्ष मैं 6-8 कटाई तक कर सकते है| भारत में यह घास 1793 में आई| इसमें 10-12 प्रतिशत क्रूड प्रोटीन, रेशा 28-36 प्रतिशत, NDF 74-75 प्रतिशत , पत्तो की पाचन क्षमता 55-58 %, लिगनिन 3.2-3.6 प्रतिशत होती है|
गिनी घास के लिए जलवायु
गिनी घास गर्म मौसम की फसल है घास के लिए उपयुक्त तापमान, 31 डिग्री सेंटीग्रेड चाहिए और 15 डिग्री सेंटीग्रेड के नीचे इसकी बढवार कम हो जाती है| यह 38 डिग्री सेंटीग्रेड तक बहुत अच्छी तरह से बढवार करती है|
यह घास छाया को बहुत हद तक सहन कर सकती है इसलिए पेडो के बीच में बहुत अच्छी तरह से हो जाती है यह 60 प्रतिशत तक छाया सहन कर सकती है |
जिन क्षेत्रो में नमी 70 प्रतिशत तक होती है, वो क्षेत्र गिनी के लिए अनुकूल होते है |
गिनी घास के लिए भूमि और भूमि की तैयारी
हलके विन्यास वाली भूमि इसके लिए उचित होती है, जैसे के बलुई दोमट भूमि| उ़चित जल निकास वाली उपजाऊ भूमि अधिक उत्पादन के लिए उपयुक्त होती है| यह एसिड और क्षारीय मिट्टियो को सहन नहीं कर पाती है |
भूमि की तैयारी: यदि खेत में खरपतवार है तो, खरपतवार हटाने के लिए, एक क्रोस जुताई हेर्रो से करने के पश्चात एक क्रोस जुताई कल्टीवेटर से करना उचित रहता है|
गिनी घास उगानें के लिए बीज की मात्रा
गिनीं को जड़ों द्वारा, बीज द्वारा और तने की कटिंग द्वार लगाया जा सकता है | सबसे सही तरीका जड़ों द्वारा होता है |
बीज द्वारा लगाने के लिए नर्सरी तैयार करनी पड़ती है | कुल 4 किलोग्राम बीज या खुली धुप में लगाने पर कुल जड़े 40000 हजार जड़े (50 X 50 सेमी पंक्ति से पंक्ति और पौधे से पौधे की दूरी ) और छाया में 50000 जड़े (जब दूरी 50 X 40 सेमी हो ) प्रति हेक्टेयर चाहिए |
गिनी घास की बुवाई का समय :
फसल वर्षा के आने के बाद घास को जून - जुलाई में बोना चाहिए| बीज के द्वारा बोने के लिए नर्सरी में एक माह पहले ही बीज बो देना चाहिए और वर्षा आने पर उसकी रोपाई करने चाहिए |
गिनी की बुबाई की विधि ओर दूरी
गिनी घास को पूरे वर्ष बोया जा सकता है सिर्फ सर्दियों को छोड़ कर जब तापमान 15 डिग्री से कम होता है | साधारणतयाः इसे मानसून के आने के बाद ही बोया जाता है| बीज को 1 - 1.5 सेमी तक गहरा बोना चाहिए |
तने की कटिंग को 3 महीने पुराना होना चाहिए| दो गांठ की कटिंग उचित रहती है उसे 2/3 जमीं में गाढ़ देना चाहिए | जमींन के भीतर वाली गाँठ से जड़ और तने निकलते है और जमींन के ऊपर वाली जड़ से तने निकलते है |
गिनी को कुंड बना कर बोना चाहिए| लाइन से लाइन की दूरी 50 से मी और पौधे से पौधे की दूरी 50 से मी रखनी चाहिए|
अन्य फसलों के बीच में बोने के लिए लाइन से लाइन की दूरी बढ़ा सकते है जैसे 100 से मी. 200 से मी और 250 से मी. | इससे दो लाइन के बीच में फसल को भी लगा सकते है| विभिन्न प्रकार की दलहनी फसले इसके बीच में उगा सकते है |
गिनी घास ( बी जी 2) भीमल पेडो के बीच में
गिनी में खाद और उर्वरक
गिनी से अधिक चारा उत्पादन के लिए 200-250 कुन्तल गोबर की खाद और 80 किलो ग्राम नाईट्रोजन, 40 किलोग्राम फोस्फोरस और 40 किलो ग्राम पोटाश जड़ों की बुबाई के समय देना चाहिए | और 40 किलोग्राम नाईट्रोजन प्रत्येक कटाई के बाद देना चाहिए| प्रत्येक कटाई के बाद 10 किलोग्राम फोस्फोरस भी देना चाहिए |
गिनी घास में सिचाई-
10-15 दिन के अंतर पर सिचाई देते रहना चाहिए |
गिनी में खरपतवार नियंत्रण
खरपतवार नियंत्रण उत्पादन को बढ़ाने में अत्यंत महत्वपूर्ण होता है खरपतवार नियंत्रण के लिए खुरपी से भी 3-4 सप्ताह बाद निराई गुडाई कर सकते है |
चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारो के नियंत्रण के लिए 2-4 डी की 1 किलो सक्रिय तत्व, प्रति हे . 500-600 लीटर पानी में छिड़क कर देना चाहिए |
गिनी घास की कटाई
पहली कटाई 50-60 दिन में करनी चाहिए और उसके बाद प्रत्येक कटाई 30-40 दिन पर करते रहना चाहिए जब फसल 5 फीट ( 1.5 मीटर) की हो जाये |
कटाई को जमींन से 15 से मी ऊपर से काटना चाहीये | सर्दियों के बाद पहली कटाई जमींन के पास से काटना चाहिए जिससे खराब तने हट जाते है |
उत्तर भारत में कुल 5-6 कटिंग/ वर्ष ली जा सकती है | जबकी दक्षिण भारत में कुल 7-8 कटिंग भी ली जा सकती है |
गिनी से हरे चारे का उत्पादन
गिनी की प्रत्येक कटाई से 200 कुंतल /हे तक हरा चारा प्राप्त हो जाता है | एक वर्ष में कुल 1200 कुन्तल से 1300 कुंतल तक हरा चारा प्राप्त किया जा सकता है |
गिनी घास की बाल और बीज गिनी घास रोपाई के लिए ताना गुच्छ
गिनी घास की प्रजातियाँ
बुन्देल गिनी- 1, बुन्देल गिनी- 2, बुन्देल गिनी- 4, गटन, हेमिल इत्यादि प्रजातियाँ पूरे देश के लिए संतुत है
बीज और जड़ों को प्राप्त करने के लिए भारतीय चरागाह एवं चारा अनुसन्धान संस्थान की वेबसाइट (www.igfri.res.in) से जानकारी ली जा सकती है और लेखक से भी संपर्क किया जा सकता है |
Authors
विकास कुमार
वैज्ञानिक
भारतीय चरागाह एवं चारा अनुसन्धान संस्थान झाँसी, उत्तर प्रदेश
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