Multi cut fodder sorghum cultivation technique.
भारत में मात्र 4 प्रतिशत भूमि पर चारे की खेती की जाती है तथा एक गणना के अनुसार भारत में 36 प्रतिशत हरे चारे एवं 40 प्रतिशत सूखे चारे की कमी है | अत: हमें उन चारा फसलों की खेती करनी होगी जो लम्बे समय तक पशुओं को पोष्टिक हरा चारा उपलब्ध कराने के साथ साथ हमारी जलवायु में आसानी से लगाई जा सके|
शरद ऋतू में बरसीम, जई, रिजका, कुसुम आदि की उपलब्धता मार्च के पहले पखवाड़े तक बनी रहती है किन्तु बहु कट चारा ज्वार से पशुओं को लम्बे समय तक हरा चारा आसानी से मिल सकता है। ज्वार का चारा स्वाद एवं गुणवत्ता में बहुत अच्छा होता है |
शुष्क भार के आधार पर ज्वार चारे में औसत 9 से 10 प्रतिशत प्रोटीन, 8-17 प्रतिशत शर्करा, 30-32 प्रतिशत फाइबर, 65-72 प्रतिशत एन.डी. एफ., 36 प्रतिशत सेलुलोज एवं 21 से 26 प्रतिशत हेमी सेलुलोज पाया जाता है |
चारा ज्वार की बहु कटाई वाली किस्में:
चारा उत्पादन हेतु भारत में ज्यादातर किसान ज्वार की स्थानीय किस्में लगाते है जो कम उत्पादन देने के साथ-साथ कीट एवं रोगों से प्रभावित होती है | अत: किसानो को अधिक उत्पादन देने वाली बहु कटाई चारा ज्वार किस्मों का अपने क्षेत्र के अनुरूप चयन करना चाहिए |
एस. एस. जी.-59-3,एम. पी. चरी, पूसा चरी 23, को. 29, सी. एस. एच. 20, सी. एस. एच. 24 एम. एफ, पी. सी. एच. 106, पी. सी. एच. 109,पंजाब सुड़ेक्स तथा हरा सोना
ज्वार खेत का चुनाव एवं तैयारी :
चारा ज्वार की खेती वैसे तो सभी प्रकार की भूमि में की जा सकती है परन्तु अच्छे जल निकास वाली दोमट मिट्टी इसके लिय उत्तम है | बुवार्इ से पहले 10-15 से.मी. गहरी जुताई करें तथा इसके बाद 2-3 जुताई कल्टीवेटर से करके जमीन को भुरभुरी बनाऐ तथा इसके बाद जमीन को समतल करे, अंतिम जुताई से पहले खेत में 8-10 टन गोबर की सड़ी हुई खाद अच्छी तरह मिला दें |
ज्वार की बुआई के लिए बीजोपचार :
बीज को थीरम अथवा कैप्टान दवा 2.5 ग्राम प्रति किलोग्राम की दर से शोधित कर लेना चाहिये। तथा प्ररोह मक्खी एवं चुसक प्रकार के कीटों के प्रकोप को प्रारंभिक अवस्था में रोकनें के लिए बीज को इमिडाक्लोरोप्रिड (गोचो) 14 मि.ली. प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करना चाहिए |
ज्वार की बुआई का समय: बहु कटाई वाली किस्मों की बुआर्इ अप्रेल के पहले पखवाड़े में करनी चाहिए तथा असिंचित क्षेत्रों में मानसून के आने के बाद अथवा 15 जून बाद बुआई करें |
ज्वार की बुआर्इ की विधि : बुआर्इ कतारों में करे तथा कतार से कतार की दूरी 25 से 30 से.मी. रखें | बीज की बुआर्इ ड्रील या पोरे की मदद से 2.5 से.मी. से 4 से.मी. की गहराई में करें |
ज्वार बीज की दर : बहुकट चारा ज्वार की किस्मों हेतु बीज की मात्रा 40 से 50 की.ग्रा. प्रति हेक्टेयर रखें |
ज्वार में खाद एवं उर्वरक :
अंतिम जुताई से पहले खेत में 8-10 टन गोबर की सड़ी हुई खाद अच्छी तरह मिला दें | प्राय: ज्वार की फसल को 80 कि. ग्रा. नत्रजन एवं 40 कि. ग्रा. फास्फोरस प्रति हेक्टेयर की आवश्यकता होती है|
ज्वार में खरपतवार नियन्त्रण :
अंकुरण से पहले एट्राजिन का 0.5 से 0.75 किग्रा. प्रति हेक्टेयर की दर से छिडकाव करें। इन्टर कल्चर के द्वारा भी खरपतवार को नष्ट किया जा सकता है |
चारा ज्वार में रोग एवं कीट :
प्ररोह मक्खी के प्रकोप को रोकनें के लिए बीज को कार्बोसल्फान 50 एस. टी. 160 ग्राम अथवा इमिडाक्लोरोप्रिड (गोचो) 14 मि.ली. प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करके बुआई करनी चाहिए | अधिक प्रकोप होने पर फसल में कार्बेरिल 50% घु.पा. प्रति हेक्टेयर को 500 ली. पानी में मिलाकर छिडकाव करें जरूरत पड़ने पर दूसरा छिडकाव 10 से 12 दिन के अन्तराल पर करें |
तना भेदक कीट का प्रकोप फसल में 10 से 15 दिन से शुरू होकर फसल के पकने तक रहता है! खेत में बुआई के समय रासायनिक खाद के साथ 10 की. ग्रा. की दर से फोरेट 10 जी अथवा कार्बोफ्युरोंन दवा खेत में अच्छी तरह मिला दें तथा बुआई के 15 से 20 दिन बाद कार्बेरिल 50 प्रतिशत घुलनशील पाउडर 2ग्रा./ली. पानी में घोल बना कर 10 दिन के अन्तराल पर दो छिड़काव करना चाहिए |
फसल में चूसक प्रकार के कीटो के प्रकोप को रोकने के लिए फसल में 0.5 मि.ली./ली. की दर से इमिडाक्लोरोप्रिड का छिडकाव कर सकते है | दवा के छिडकाव के बाद 20 दिन तक यह चारा पशुओं को नहीं खिलाएं तथा फसल 30-40 दिन की हो जाने पर ज्यादा कीट एवं रोग नाशक दवाओं का प्रयोग नहीं करना चाहिए ताकि चारे की गुणवत्ता बनी रहे |
चारा ज्वार फसल की कटाई :
ज्वार की पहली कटाई बुआई के 60 दिन बाद करें एवं उसके बाद प्रत्येक कटाई 45 दिन बाद करें | तथा हर कटाई के समय जमीन से 10-12 सेमी. की ठूंठी छोड़ देनी चाहिए फसल में फुटाव ठीक प्रकार से हो|
चारा ज्वार का उत्पादन :
बहु कटाई वाली किस्मों से 2-3 कटाई में औसत 650 से 700 क्विंटल/हेक्टेयरहरा चारा एवं 150 क्विंटल/ हेक्टेयरसूखा चारा तथा संकर किस्मों से औसत 850 से 950 क्विंटल/हेक्टेयरहरा चारा एवं 200 क्विंटल/हेक्टेयरसूखे चारे का उत्पादन लिया जा सकता है |
Authors"
1हंसराज शिवरान, 2रामधन घसवा, 3मीना चौधरी एवं 4सुरज्ञान रुन्डला
1,2शोध छात्र,स्वामी केशवानन्द राजस्थान कृषि विश्वविद्यालय,बीकानेर
3शोध छात्रा, श्री करण नरेन्द्र कृषि विश्वविद्यालय,जोबनेर
4शोध छात्रा, चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार
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