Scientific cultivation technique of Rye, Toria and Mustard crop
बिहार में रबी मौसम में उगायी जाने वाली तेलहनी फसलों में राई, तोरीया एवं सरसों का प्रमूख स्थान है। इनका उपयोग खाद्य तेल एवं जानवरोंहेतु खल्ली के रूप में किया जाता है। अधिक एवं गुणवत्तायुक्त उपज प्राप्त करने हेतु यह आवश्यक है कि इसकी खेती वैज्ञानिक ढ़ंग से की जाए जिससे अधिक से अधिक मुनाफा प्राप्त किया जा सकें।
राई-तोरी, सरसों के उन्नत प्रभेद एवं खेती की विधि:
राई में प्रभेद (समय से बुआई हेतु उपयुक्त) -
वरूणा: औसत उपज 20 क्वि/हे0 होता है। इस फसल की अवधि 135 से 140 दिन में तैयार हो जाता है।
पूसा बोल्ड: इसकी औसत उपज 19 क्वि0/हे0 है। इस फसल की अवधि 120 से 145 दिन होता है।
क्रान्ति: इसकी औसत उपज 21 क्वि0/हे0 है। इस फसल की अवधि 125 से 130 दिन में तैयार हो जाता है।
राजेन्द्र राई पछेती: औसत उपज 14 क्विटल प्रति हे0 है इस फसल का अवधि 105 से 115 दिन है।
राजेन्द्र सुफलाभ : इसकी औसत उपज 16 क्विंटल प्रति हे0 है इस फसल की अवधि 107 से 116 दिन है।
तोरी के प्रभेद:
आर0 ए0 यु0टी0एस0 17: इसकी औसत उपज 12 क्विंटल प्रति हे0 है । फसल अवधि 80-90 दिन दिन है।
पंचाली: औसत उपज 11 क्ंिवटल प्रति हे0, फसल अवधि 90 से 105 दिन है।
पी0टी0-303: औसत उपज 12 क्विंटल प्रति हे0, फसल अवधि 95 से 105 दिन।
सरसो के प्रभेद:
राजेन्द्र सरसों -1: औसत उपज 15 क्विंटल प्रति हे0, फसल अवधि 100 दिन है
स्र्वाणा: औसत उपज 11 क्विंटल प्रति हे0, फसल अवधि 110 से 120 दिन है।
बुआई के समय:
राई 15 से 25 अक्टुबर तक (समय से), 15 नवम्बर -7 दिसम्बर तक (पछेेती), तोरी-सरसो 10 से 15 अक्टुबर तक।
सरसों की बीज दर:
05 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर।
पंक्ति में बुआई के लिए पंक्ति से पंक्ति की दुरी 30 सेमी0 तथा पौधे से पौधे की दूरी 10 सेमी0 रखने से इकाई क्षेत्रफल में प्रर्याप्त पौधे संख्या हो जाती है। बीज को 4-5 सेमी0 की गहराई पर बोने से बीज का जमाव समान रूप से होता है।
बीज उपचार:
फसल को कीट एवं रोग से बचाव हेतु बुआई के पुर्व बीज का उपचार थीरम/कैप्टन/कारबेन्डाजिम 2.0 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से करें।
खाद एवं उर्वरक:
खेत की तैयारी करते समय 10 टन कम्पोस्ट प्रति हे0 की दर से प्रयोग करना चाहिए तथा 60 किग्रा0 नेत्रजन, 40 किग्रा0 स्फूर एवं 40 किग्रा0 पोटाश खेत में डालने से फसल के लिए पोषक तत्व की आवश्यकता पूरी हो जाती है।
नेत्रजन की आधी मात्रा तथा स्फूर एवं पोटाश की पूरी मात्रा अंतिम जुताई के समय खेत में मिला दें तथा नेत्रजन की आधी मात्रा फसल में फुल आने के समय उपरिवेशन के रूप में देनी चाहिए।
साथ ही मिट्टी जाॅच के आधार पर गंधक, जिंक एवं बोराॅन का भी प्रयोग करना चाहिए। असिंचित अवस्था के लिए 30 किलोग्राम नेत्रजन, 20-20 किलोग्राम स्फूर तथा पोटाश का प्रयोग करना चाहिए।
पौधों की छटनी:
बीज बुआई के 15 दिनों बाद पौधों की वछनी की आवश्यकता पड़ती है। प्रत्येक पंक्ति में 10-10 सेमी0 की दूरी पर एक-एक स्वस्थ्य पौधे को छोड़कर अन्य सभी पौधों को निकाल देना चाहिए। कतार में सही दूरी पर पौधे से होने से उपज में वृद्धि होती है।
निकौनी-कमौनी:
बुआई के 15-20 दिनों के बाद निकौनी आवश्य कर देनी चाहिए। इससे खेत खरपतवार से मुक्त हो जाती है। साथ ही पौधों के जड़ो को पास प्रकाश एवं हवा ज्यादा प्राप्त होती है। जिससे फसल की बढ़वार अच्छी होती है।
सिंचाई:
राई एवं सरसों में दो सिंचाई आवश्यक होती है। पहली सिंचाई फूल लगने के समय। दूसरी सिंचाई फलियाँ बनते समय करनी चाहिए।खेत में नमी के कमी के कमी होने पर हल्की सिंचाई करनी चाहिए।
रोग, कीट-व्याधि प्रबंधन:
प्रमूख कीट हानिकारक कीट-आरा मक्खी, लाही नियंत्रण हेतु मेटासिस्टाक्स 25 ईसी0 एक लीटर प्रति हे0 या मोनोक्रोटोफाॅस 36 ईसी0 ली0 दवा 1000 ली0 पानी में मिलाकर एक हे0 में छिड़काॅव करना चाहिए।
प्रमूख रोग: अल्टरनेरिया अंगमारी, श्वेत फफोला रोग, पाउडरीया मिल्ड्यू।
रोग नियंत्रण: मैनकोजेब 2 किग्रा0/1000 ली0 पानी के साथ बुआई के 50 से 60 दिनों के बाद खेत में छिड़काव करें।
समेकित रोग-कीट नियंत्रण:
- गर्मी मौसम (मई-जून) में खेत की गहरी जुताई करें।
- समय/अगात फसल की बुआई करें।
- संतुलित खाद एवं उर्वरक का प्रयोग करें।
- समय पर खेत में वाछनी एवं निकौनी करें।
- पिछले वर्ष मौसम के पौधों के अवशेषों को भलीभांति नष्ट कर दें।
- बुआई के समय बीज को उपचार अवश्य करें।
- अनुसंशित एंव उन्नत प्रभेद के बीज का ही प्रयोग करें।
- समुचित फसल चक्र को अपनायें।
- माहु कीट के फसल सुरक्षा हेतु सरसों के साथ सौंफ की खेती करें।
- खेत में रोगग्रस्त/बिमार पौधें नजर आयें तो उसे उक्षाड़ कर जला देना चाहिए।
- खेत में फसल के मित्र कीट यथा लेडी वर्ड विटल, क्रायसोपा, सिटफीट फ्लाई आदि का संरक्षण करें।
फसल की कटाई:
75 प्रतिशत फलियाँ भुरी-पीली हो जाने पर फसल की कटनी कर लेनी चाहिए।
विषेष सुझाव:
राई-तोरी-सरसों के खेत में प्रति हेक्टेयर 4-5 मधुमक्खी के बक्से रखने से परागन की क्रिया तेजी से होती है। जिसके फलस्वरूप फसल के दाने के भराव बढ़ता है जिससे फसल की उपज बढ़ जाती है। इस कार्य करने से किसानों को सरसों के खेत से एक अतिरिक्त कृषि उत्पाद की प्राप्ति होती है।
Authors:
निषांत प्रकाष, चिदानन्द चैधरी एवं सुरेन्द्र चैरसिया
कृषि विज्ञान केन्द्र, लोदीपुर, अरवल
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