अजोला की खेती और इसका देशी दुधाारु जानवरो के चारे के रुप मे ऊपयोग
अब तक अजोला का इस्तेमाल मुख्यत: धान में हरी खाद के रूप में किया जाता था, लेकिन अब इसमें छोटे किसानों हेतु पशुपालन के लिए चारे हेतु बढती मांग को पुरा करने की जबरदस्त क्षमता हैं।
अजोला खेती की प्रक्रिया
किसी छायादार स्थान पर पशुओं की संख्या के अनुसार किसान 1.5 मीटर चौडी, लम्बाई आवश्यकतानुसार (3 मीटर) और 0.30 मीटर गहरी क्यारी बनाये। क्यारी को खोदकर या ईंट लगाकर भी बनाया जा सकता हैं।
क्यारी में आवश्यकतानुसार सिलपुटिन शीट को बीछाकर ऊपर के किनारों पर मिट्टी का लेप कर व्यवस्थित कर दें।
सिलपुटिन शीट को बिछाने की जगह पशुपालक पक्का निर्माण कर क्यारी तैयार कर सकते है। 100-120 किलोग्राम साफ उपजाऊ मिट्टी की 3 इंच मोटी मिट्टी की परत क्यारी में बना देवें।
नोट- आज कल बाजार में कृत्रिम अजोला टब भी उपलब्ध हैं, किसान चाहे तो उसे खरीद सकते हैं।
अब इसमें 5-10 सेमी तक जलस्तर आ जाये इतना पानी क्यारी में भरते हैं। 5-7 किलो गोबर (2-3 दिन पुराना) 10-15 लीटर पानी में घोल बनाकर मिट्टी पर फैला दे, यदि जानवर गोबर की घोल वाले अजोला को नहीं खाते हैं, तो इसके लिए रासायनिक खाद भी तैयार करके डाला जाता हैं, जैसे-
एसएसी- 5 किलो
मैग्नीशियम सल्फेट- 750 ग्राम
पोटाश- 250 ग्राम
इनका मिश्रण तैयार करके, तैयार मिश्रण का 10-12 ग्राम/ वर्गमीटर/ सप्ताह के अन्तराल पर क्यारी में डालें।
इस मिश्रण पर 02 किलो ताजा अजोला को बिछा देंवें, इसके पश्चात् 10 लीटर पानी को अच्छी तरह से अजोला पर छिडकें, जिससे अजोला अपनी सही स्थिति में आ सकें।
ध्यान रहे कि मिट्टी और जल का पीएच 5-7 और क्यारी का तापमान 25-30 डिग्री सेन्टीगेड अजोला की अच्छी बढवार हेतु उपयुक्त रहता हैं। क्यारी को अब नायलोन की जाली से ढककर 20-21 दिन तक अजोला को वृध्दि करने दें।
लागत
अजोला उत्पादन इकाई स्थापना में क्यारी निर्माण, सिलपुटिन शीट, छायादार नायलोन जाली एवं अजोला बीज की लागत पशुपालक को प्रतिवर्ष नहीं देनी पड़ती हैं।
इन कारको को ध्यान में रखते हुए अजोला उत्पादन लागत लगभग 10 रूपये किलो से कम आंकी गई हैं। अजोला क्यारी से हटाये पानी को सब्जीयों व पुष्प खेती में काम लेने से यह एक वृद्वि नियामक का कार्य करते हैं।
अजोला लगाने हेतु उचित समय
अक्टुम्बर महीने से लेकर मार्च महिने तक इसको शुरू किया जा सकता हैं। अप्रैल, मई, जून महिने में अजोला उत्पादन काफी कम हो जाता हैं, लेकिन छाया का इस्तेमाल किया जाये तो अजोला का उत्पादन उपरोक्त महिनों में भी किया जा सकता हैं।
रखरखाव
शीत ऋतु व गर्मी में तापक्रम कभी-कभी कम एवं अधिक होने की सम्भावना रहती हैं, अत: उस स्थिति में क्यारी का तापक्रम उचित बनाये रखने हेतु क्यारी को पुरानी बोरी के टाट अथवा चदर से ढक सकते हैं।
क्यारी के जलस्तर को 10 सेमी तक बनाये रखे। प्रत्येक चार-पांच माह पश्चात् अजोला को हटाकर पानी व मिट्टी बदले तथा नई क्यारी के रूप में पुन: सर्ंवधन करें।
किस्म- अजोला पिनाटा, अजोला माईक्रो फाईला
उपज- 200 से 250 ग्राम/वर्ग फीट
अजोला का पशुओं के लिए चारे के रूप में उपयोग-
क्यारी में तैयार अजोला को छलनी की सहायता से बाहर निकालकर इसको अलग से स्वच्छ जल से भरी बाल्टी में घोया जाता है, तकि जानवर को इसकी गंध नहीं आये।
बडे जानवर (गाय, भैंस)- 1 से 1.5 किलो/प्रतिदिन
छोटे जानवर (बकरी, भेड)- 150-200 ग्राम/प्रतिदिन
मुगीयो- 30-50 ग्राम/प्रतिदिन
नोट- जानवर जो 3-4 लीटर/प्रतिदिन दुध देते हैं, उनको अजोला खिलाने से प्रोटीन की पूर्ति पुरी हो जाती हैं और उनको अलग से दाना देने की कोई जरूरत नहीं रहती हैं।
लाभ- अजोला को रोज दाने या चारे में मिलाकर पशुओं को प्रतिदिन खिलाने से ऐसा पाया गया हैं कि इससे मिलने वाले पोषण से दुध उत्पादन में 10-15 प्रतिशत वृध्दि होती हैं, इसके साथ 20-25 प्रतिशत चारे की बचत होती हैं, अजोला को मुगीयों को खिलाने से उनका वनज 10-12 प्रतिशत ज्यादा बढता हैं।
अजोला की पोषण क्षमता- शुष्क मात्रा के आधार पर प्रोटीन (25-35 प्रतिशत), कैल्शियम (67 मिलीग्राम/100 ग्राम) और लोहा (73 मिलीग्राम/100 ग्राम),रेशा 12-15 प्रतिशत, खनिज 10-15 प्रतिशत एवं 7-10 प्रतिशत एमीनो अम्ल, जैव सक्रिय पदार्थ एवं पॉलीमर्श आदि पाये जाते हैं।
Authors
डॉ. राम निवास
विषय विशेषज्ञ (पशुपालन), कृषि विज्ञान केन्द्र, पोकरण
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