अगेती फूलगोभी में उत्तम पौध उत्पादन की तकनीकी
फूलगोभी जाड़े के मौसम में उगायी जाने वाली एक प्रमुख सब्जी फसल है। यह विभिन्न पोषक तत्वों (पोटेशियम, सोडियम, कैल्शियम, फॉस्फोरस आदि) और जैव-सक्रिय पदार्थो (ग्लूकोसिनोलेट्स) की एक प्रमुख स्त्रोत है। यह पाया गया है कि कुछ ग्लूकोसिनोलेट्स कैंसर से बचाने में सहायक हैं।
भारत में फूलगोभी खेती 452 हजार हेक्टेयर क्षेत्रफल में की जाती हैं और उत्पादन 8499 हजार मीट्रिक टन हैं।
अगेती फसल की पैदावार तो थोड़ी कम होती हैं लेकिन अधिक बाजार भाव, कम फसल अवधि और मौजूदा फसल प्रणाली में उत्तम समावेश होने के कारण इसकी लोकप्रियता किसानों में निरंतर बढ़ती जा रही हैं।
अगेती फूलगोभी की नर्सरी उगाना एक कठिन कार्य है इसीलिए नर्सरी की देखभाल विशेषरुप से करने की आवश्यकता होती है और इसके लिए नई तैयार की कई गई उन्नत तकनीकी प्रक्रियायों को क्रम से अपनाये।
उत्तम किस्में और बीज के स्रोत
खासकर अगेती फूलगोभी में वैसे तो क्षेत्रवार स्थानीय किस्में भी खेती के लिए प्रचलित है लेकिन विकसित की हुई उत्तम किस्मों में समानता और पैदावार अधिक होती है साथ ही फूलों (कर्ड) की गुणवत्ता भी अच्छी होती है इसलिए इन किस्मों की खेती करना ज्यादा लाभप्रद है ।
फूल बनने के लिए आवश्यक तापमान के हिसाब से गोभी में चार प्रमुख समूह बनाये गए है (सारणी -1)
फूलगोभी की खेती के लिए उपयुक्त किस्म का चयन करते समय इन समूहों का विशेष ध्यान रखे अन्यथा नुकसान हो सकता है क्योंकि पछेती किस्मों की अगेती बुवाई से फूल देरी से बनते है और अगेती किस्मों को पछेती लगाने से बहुत छोटे (बटन) और रायसी (फूल पर मखमली और छोटे-छोटे महीन कलिया दिखाई देना) फूल बनते है।
सारणी -1: परिपक्वता के आधार पर फूलगोभी की उन्नत किस्में :-
परिपक्कता समूह |
किस्में |
बुआई समय |
रोपाई का समय |
पौध की आयु |
परिपक्वता समय |
उपज (कु./है.) |
अगेती-1अ |
पूसा मेघना, साबौर अग्रिम |
मई अंत |
मध्य जुलाई तक |
40-42 दिन |
अगस्त से अक्टूबर अंत |
90-110 |
अगेती-1ब |
पूसा अश्विनी, पूसा कार्तिकी, पूसा दीपाली, पूसा कार्तिक संकर (F1) |
जून मध्य |
अंतिम जुलाई तक |
38-40 दिन |
अक्टूबर से नवम्बर |
120-160 |
मध्य-अगेती |
पूसा शरद, पूसा हाईब्रिड-2, इम्प्रूवड जापानीज, काशी अगहनी |
अगस्त |
सितम्बर |
30 दिन |
नवम्बर से दिसम्बर |
200 – 250 |
मध्य-पछेती |
पूसा पौशजा, पूसा शुक्ति, पालम उपहार |
सितम्बर |
अक्टूबर |
25-30 दिन |
दिसंबर से जनवरी |
280-320 |
पछेती |
पूसा स्नोबाल-1,पूसा स्नोबाल के-1, पूसा स्नोबाल केटी -25, पूसा स्नोबॉल हाइब्रिड -1 (F1) |
अक्टूबर से नवम्बर |
नवम्बर से दिसम्बर |
21-25 दिन |
फ़रवरी से मध्य मार्च |
300-350 |
मृदा जनित बीमारियों से प्रभावित भूमि में पौधशाला न बनायें। अगेती फूलगोभी की पौधशाला पर्याप्त नमी वाले स्थान पर बनानी चाहिए। पानी के स्त्रोत के नजदीक ही जगह का चुनाव करें। जल निकास की उचित व्यवस्था करें।
मई महीने में पौधशाला के लिए चयनित भूमि का प्लास्टिक शीट से ढ़ककर सौलेराइजेशन से भूमि उपचार करें। बुवाई से एक सप्ताह पहले मिट्टी को केप्टान के 3 ग्रा./ली. पानी के घोल से तर भी करें।
बुवाई के एक सप्ताह पहले 1 कि.ग्रा. ट्राइकोडर्मा विरिडी को 100 कि.ग्रा. गोबर की खाद में मिला कर तैयार करे और इसे नर्सरी बैड में मिलाये। इससे आद्र-गलन और मृदा जनित रोगो से बचाव होता है।
पौध तैयारी के लिए बैड0 - 5.0 मी. लम्बाई में, 45 से.मी. चौड़ाई में तथा 20 - 30 सें.मी. उठी हुई बनाये। एक हेक्टेयर क्षेत्रफल में रोपाई के लिए लगभग 25 से 30 नर्सरी बैड पर्याप्त होती हैं।
नर्सरी तैयारी के समय प्रत्येक बैड़ में 20-25 कि. ग्रा. अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद मिलायें।
बीज की मात्रा और उपचार
अगेती फूलगोभी में बीज दर अधिक रखी जाती है क्योंकि अंकुरण कम होता है और प्रति हेक्टेयर पौधों की संख्या भी अधिक लगती है। सामान्यतः 500-750 ग्राम बीज से तैयार की गई पौध एक हेक्टेयर क्षेत्रफल में रोपाई हेतु पर्याप्त होती है।
मध्य और पछेती फूलगोभी के लिए 400-500 ग्राम बीज से तैयार की गई पौध एक हेक्टेयर क्षेत्रफल में रोपाई हेतु पर्याप्त होती है। बीज की गुणवत्ता अच्छी हो इसके लिए हमेशा प्रमाणित स्रोत जैसे कि राष्ट्रीय बीज निगम या किस्म को विकसित करने वाले संस्थान या राज्य बीज निगम आदि उचित किस्म का बीज खरीदें ।
फूलगोभी में कई प्रकार की बीमारियाँ बीज जनित होती है और उनसे बचाव लें प्रथम प्रयास स्वस्थ बीज ले कर पूरा करे। दूसरा प्रयास बुवाई से पहले उचित बीज उपचार से पूरा होता है। इसके लिए केप्टान या बाविस्टीन 2 ग्रा. प्रति कि.ग्रा. बीज की दर से या ट्राईकोड्रमा 5 ग्रा. प्रति कि.ग्रा. बीज के हिसाब से बीज उपचार करें। इससे आर्द्रगलन की समस्या कम आती है।
जिन क्षेत्रों में काला सड़न (पत्तियों के बाहरी किनारों पर अंग्रेजी के वी ‘V’ अक्षर आकार के हरिमाहीन एवं पानी में भीगे जैसे धब्बे बनना जो बाद में पीले पड़ जाते हैं) की समस्या आती है उन क्षेत्रों में इसके नियंत्रण हेतु बीजों को स्ट्रेप्टोसाइक्लिन 250 मि.ग्रा. प्रति ली. पानी के घोल में 2 घंटे भिगो कर छायादार जगह में थोड़ी देर सुखाकर बुवाई करें।
पौधशाला का गर्मी और बारिश से बचाव
अगेती फूलगोभी की पौध तैयारी मई - जून के महीने में की जाती है और इन महीनों में अधिक गर्मी से बचाव के लिए पौधशाला को सिरकी या हरे रंग के 75 प्रतिशत छाया देने वाले परा-बैंगनी किरणों से सुरक्षित नायलॉन जाल (नायलॉन नेट) से पौधशाला को ढकना जरुरी है ।
इसके लिए नेट या सिरकी को सांय काल में हटा देना चाहिए और सुबह 9-10 बजे वापिस ढक दे । इस प्रकार छाया प्रदान करने से अंकुरण अच्छा होता है और प्रति इकाई स्वस्थ पौध भी अधिक मिलती है जिससे प्रति हेक्टेयर क्षेत्र के लिए पौध तैयारी हेतु कम जगह की आवश्यकता होती है।
इसी प्रकार, मध्य-अगेती की पौध तैयारी के समय अधिक और तेज वर्षा से बचाव के लिए पौधशाला को वर्षा के दौरान प्लास्टिक शीट से ढकने की आवश्यकता होती है । छाया नेट केवल गर्मी से बचाता है जबकि सिरकी गर्मी और वर्षा दोनों से बचाव के लिए उपयुक्त है । इसलिए जिन पौधशाला में सिरकी से छाया देते है उनमें प्लास्टिक शीट की जरुरत नहीं होती है ।
छाया और पंक्ति पद्ति पौध तैयारी के लिए बेहतर
भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली में एक प्रयोग द्वारा पाया गया की अगेती फूलगोभी के लिए हरे छाया जाल (75% छाया) या सिरकी से दिन के तेज धूप के समय पौधशाला को ढ़कने से बीजों का अंकुरण और प्रति पौधशाला क्षेत्र से सामान्य से बहुत अधिक स्वस्थ पौध प्राप्त की गई ।
साथ ही पौध शैया (नर्सरी बैड) पर पंक्तियों में बुआई करने से छिटककर बुआई करने की बजाये बहुत अच्छे परिणाम मिले है । इस प्रकार, छाया और पंक्ति का उपयोग कर के कम क्षेत्र में भी आवश्यक पौध कम बीज की मात्रा से भी तैयार की जा सकती है जिससे पानी, श्रम और पैसे की भी बचत होती है (सारणी - 2) ।
सारणी -2: अगेती फूलगोभी में बेहतर पौध उत्पादन के लिए छाया और पंक्ति पद्दति का प्रभाव
पौध सरंक्षण तरीके |
बुवाई तरीका |
बीज अंकुरण (%) |
स्वस्थ पौध उत्पादन (% अंकुरित बीज का) |
रोपाई उपरांत खेत में पौधों की जीवित रहने की संख्या (%) |
प्रति वर्ग मी. शुद्ध क्यारी क्षेत्र में तैयार पौधों की संख्या |
आवश्यक पौधशाला क्षेत्र (वर्ग मी./हे) |
आवश्यक बीज मात्रा (ग्राम/हे.) |
आर्द्र-गलन की समस्या |
75% छाया-जाल (हरा शेड-नेट) |
(i) छिटकना |
69 |
43 |
71 |
477 |
148.0 |
548.1 |
मध्यम |
(ii) पंक्ति |
80 |
59 |
80 |
655 |
96.5 |
357.5 |
कम |
|
सिरकी (सरकंडे से बनी) |
(i) छिटकना |
71 |
38 |
73 |
422 |
135.9 |
503.4 |
मध्यम |
(ii) पंक्ति |
85 |
57 |
81 |
633 |
92.5 |
342.6 |
कम |
|
खुल्ला (छाया रहित) |
(i) छिटकना |
54 |
23 |
72 |
255 |
201.8 |
747.5 |
अधिक |
(ii) पंक्ति |
63 |
31 |
76 |
344 |
170.8 |
632.5 |
अधिक |
बीजों की बुवाई और शुरुआती देखभाल
- फूलगोभी नर्सरी में बुवाई 5 से 2.0 से.मी. और गहरी 5 से 7 सें.मी. की दूरी पर बनी पंक्तियों में करें। पंक्ति से पंक्ति की दुरी 7 सेमी होनी चाहिए।
- प्रत्येक पंक्ति में 25-30 बीज समान दुरी पर डालें । सूखी छनी हुई गोबर की खाद में बाविस्टिन 2 ग्राम प्रति किलोग्राम (यदि भूमि उपचार नहीं किया हो तो) मिलाकर पंक्तियों को ढक दे।
- बुवाई के बाद नर्सरी बैड को सुखी घास सें ढ़के और 4 दिन बाद अंकुरण होने पर हटायें।
- अन्यथा नव-अंकुरित पौधे घास में फस जायेंगे और हटाते समय टूट जायेंगे इससे पौधों का नुकसान और बीमारी आने की सम्भावनाये अधिक होती है।
- प्रतिदिन सुबह और सांयकाल में झारे से पानी दे। अगेती फूलगोभी की पौधा तैयारी के समय अधिक गर्मी और गर्म हवाएं चलती है जिससे पौधशैय्या में नमी की उचित मात्रा बनाये रखना मुश्किल होती है। इसके लिए उठी हुई नर्सरी बैड्स के बीच नालियों में 3 से 5 दिन के अंतराल में तीन चौथाई (3-4) ऊंचाई तक पानी भर दे। यह पौधशाला में नमी तो बढ़ाता ही है साथ में पौधो की जड़ों के विकास में भी बहुत सहायक होता है।
- साप्ताहिक अंतराल पर पंक्तियों के मध्य लकड़ी या खुरपी के सिरे से हल्की गुड़ाई करें और खरपतवार निकाले।
- पौध को सख्त बनाने (हार्डनिंग) हेतु अंतिम 5-6 दिनों में सिंचाई एक दिन के अंतराल पर करें। विशेषरुप सें अगेती फूलगोभी की पौध रोपाई सायःकाल में ही करे।
पौध रोपाई का समय
- अगेती फूलगोभी की रोपाई के समय मुश्किल वातावरणीय कारकों जैसे अधिक गर्मी, तेज गरम हवाएं, अचानक अधिक मॉनसूनी बारिशों को ध्यान में रखते हुए सामान्य से अधिक आयु की पौध का रोपाई के चुनाव करे। सामान्यता: अगेती फूलगोभी के लिए 5 से 6 सप्ताह की पौध रोपाई के लिए ठीक रहती है।
- मध्य और पछेती समूह की फूलगोभी की रोपाई के समय वातावरणीय कारक अनुकूल होते हैं इसलिए 3 से 4 सप्ताह पौध की रोपाई के लिए तैयार हो जाती है।
- अगेती फूलगोभी की रोपाई जून के अंतिम सप्ताह से प्रारम्भ कर देते है लेकिन मुख्यता इस समूह की किस्मों की रोपाई जुलाई के महीनों में की जाती है।
- मध्य पछेती समूह की किस्मों के लिए अक्टूबर माह में और पछेती समूह की किस्मों के लिए नवम्बर माह में रोपाई करें।
- अधिक पछेती फसल (मार्च अंत तक) के लिए पछेती किस्मों की दिसम्बर के मध्य तक बुवाई और जनवरी मध्य तक रोपाई करनी चाहिए।
- रोपाई से पहले पौधों की जड़ों को ट्राइकोडर्मा 10 ग्रा. प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर 30 मिनट तक डुबायें ताकि रोपाई के बाद आने वाले सड़न रोग से बचाव किया जा सके।
रोग एवं कीट प्रबन्धन
- पौधशाला में पेंटेड बग एक मुख्य कीड़ा है यह काले और संतरी लाल रंग का ढालनुमा शरीर होता है यह पतियों को निचली सतह से खुरच कर खाता है और बाद में छेद बना देता है इसके नियंत्रण के लिए स्पाइनोसिड (25 एस.सी.) 3.0 मि.ली. प्रति 10 लीटर पानी या इण्डोक्सीकार्ब5 एस.सी. 75 ग्राम प्रति हैक्टयर की दर से छिड़काव करें।
- आर्द्रपतन रोग का प्रकोप नर्सरी अवस्था में अत्यधिक होता है। इसके नियंत्रण हेतु बीजों को थीरम या केप्टान 2 ग्राम प्रति कि.ग्रा. बीज की दर से उपचारित करंे। आवश्यकतानुसार इन कवकनाशियों का 2 ग्राम प्रति लीटर का छिड़काव भी करें।
- काला सड़न से की रोकथाम के लिए स्ट्रपटोसाइक्लिन 40 ग्राम और कोपर आॅक्सीक्लोराइड 200 ग्राम को 200 लीटर पानी में मिलाकर 7 से 10 दिन के अंतराल पर छिड़काव करेंे।
- अल्टरनेरिया धब्बा रोग से पत्तियों पर गोल आकार के छोटे से बड़े भूरे वलयाकार धब्बे बनते है जो बाद में काले पड़ जाते है। इसके नियंत्रण हेतु मेंकोजेब 75 डब्लयू.पी. 2 ग्रा. प्रति लीटर पानी में मिलाकर 2-3 बार छिड़काव करें।
Authors
श्रवण सिंह, बृज बिहारी शर्मा और भोपाल सिंह तोमर
शाकीय विज्ञान विभाग
भा. कृ. अनु. प. - भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली - 110012
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