30 Oct बायो-कीटनाशक का विस्तृत वर्णन
Detailed description of Bio-pesticides
बायो-कीटनाशक पारंपरिक रासायनिक कीटनाशकों से भिन्न होते हैं, क्योंकि ये प्राकृतिक रूप से पाई जाने वाली सामग्री से बने होते हैं, जिनमें सूक्ष्मजीव, पौधे या अन्य प्राकृतिक स्रोत शामिल होते हैं। इनका मुख्य लक्ष्य कृषि में कीटों के खिलाफ जैविक दृष्टिकोण से लड़ना है, जबकि पारंपरिक रसायनों का प्रभाव भी कम करना है। ये पर्यावरण के लिए सुरक्षित होते हैं और मानव स्वास्थ्य पर अपेक्षाकृत कम प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं। बायो-कीटनाशकों का महत्व हाल के वर्षों में बढ़ा है, क्योंकि कृषि में अधिक सतत और पर्यावरण-अनुकूल दृष्टिकोण की आवश्यकता महसूस की गई है।
सूक्ष्मजीव आधारित बायो–कीटनाशक
इस श्रेणी में बैक्टीरिया, फफूंद, वायरस, और निमेटोड (सूक्ष्म कृमि) जैसे जीवों का उपयोग कीटों और रोगों के खिलाफ किया जाता है। ये जीव विभिन्न प्रकार के कीटों के खिलाफ प्रभावी होते हैं और आमतौर पर पौधों के लिए हानिकारक नहीं होते।
बैक्टीरिया आधारित कीटनाशक:
बैसिलस थुरिंजिएन्सिस (Bacillus thuringiensis) सबसे सामान्य रूप से उपयोग किए जाने वाले बायो-कीटनाशकों में से एक है। यह बैक्टीरिया कीटों के लार्वा को संक्रमित करता है और उनकी पाचन प्रणाली को नुकसान पहुंचाकर उन्हें मार देता है। यह लार्वा विशेष रूप से तितलियों और पतंगों के खिलाफ प्रभावी है। जब कीट इसे ग्रहण करते हैं, तो बैक्टीरिया के विषाक्त प्रोटीन उनकी पाचन प्रणाली को नष्ट कर देते हैं, जिससे उनकी मृत्यु हो जाती है।
वायरस आधारित कीटनाशक:
वायरस आधारित बायो-कीटनाशक, जैसे न्यूक्लियोपॉलीहेड्रोवायरस (Nucleopolyhedrovirus, NPV), कीटों को संक्रमित करके उन्हें मारते हैं। ये वायरस विशेष रूप से तितली और पतंगे के लार्वा को लक्षित करते हैं और इनके चक्र को बाधित करते हैं। वायरस कोशिकाओं को संक्रमित करते हैं, जिससे कीट मर जाते हैं और वायरस की संख्या में वृद्धि होती है।
फफूंद आधारित कीटनाशक:
मेटारहिजियम और ब्यूवेरिया जैसे फफूंद आधारित बायो-कीटनाशक विभिन्न प्रकार के कीटों को लक्षित करते हैं। ये फफूंद कीटों की बाहरी त्वचा में प्रवेश करते हैं और उनके शरीर के अंदर बढ़ने लगते हैं। इससे कीट कमजोर हो जाते हैं और अंततः मर जाते हैं।
वनस्पति आधारित बायो–कीटनाशक
ये कीटनाशक विभिन्न पौधों से प्राप्त होते हैं जो प्राकृतिक रूप से कीटों को नियंत्रित करने की क्षमता रखते हैं। नीम का तेल, अजाडिरेक्टिन, और पायरेथ्रिन इसके प्रमुख उदाहरण हैं।
नीम आधारित कीटनाशक:
नीम के पेड़ से प्राप्त होने वाले तेल और अजाडिरेक्टिन, कीटों के विकास को बाधित करते हैं। नीम का तेल कीटों के हार्मोन सिस्टम को बाधित करके उनके भोजन और प्रजनन पर प्रभाव डालता है, जबकि अजाडिरेक्टिन कीटों की लार्वा अवस्था को विकसित होने से रोकता है। नीम आधारित उत्पाद आमतौर पर कम विषैले होते हैं और पर्यावरण के लिए सुरक्षित माने जाते हैं।
पायरेथ्रिन्स:
पायरेथ्रिन्स क्राइसेंथेमम पौधों से प्राप्त होते हैं और कई प्रकार के कीटों के खिलाफ प्रभावी होते हैं। यह कीटों के तंत्रिका तंत्र पर हमला करता है, जिससे उनकी मांसपेशियाँ असामान्य रूप से काम करना बंद कर देती हैं और अंततः उनकी मृत्यु हो जाती है। पायरेथ्रिन्स का उपयोग कृषि में और घरेलू कीटनाशकों में किया जाता है, और ये अपेक्षाकृत कम विषैले होते हैं।
जैविक नियंत्रण एजेंट
बायो-कीटनाशक के अंतर्गत आने वाले जैविक नियंत्रण एजेंट प्राकृतिक शत्रुओं का उपयोग करके कीटों की आबादी को नियंत्रित करते हैं। इनमें शिकारी कीड़े, परजीवी कीट, और कीट खाने वाले पक्षी शामिल होते हैं। यह विधि प्राकृतिक संतुलन को बनाए रखने में मदद करती है और कीटनाशकों के अत्यधिक उपयोग को कम करती है।OO—
शिकारी कीड़े:
लेडीबग्स (Ladybugs), प्रयिंग मैंटिस (टिड्ढा प्रजाति), और मकड़ियाँ ऐसे शिकारी कीड़े हैं जो छोटे कीटों जैसे एफिड्स (aphids), माइट्स (mites), और व्हाइटफ्लाई (white-fly) का शिकार करते हैं। इनका उपयोग विशेष रूप से जैविक खेती में कीटों को नियंत्रित करने के लिए किया जाता है।
परजीवी कीट:
परजीवी कीड़े जैसे कि ट्राइकोग्रामा (Trichogramma) कीड़े अपने अंडों को कीटों के अंडों में डालते हैं, जिससे कीटों की अगली पीढ़ी का विकास रुक जाता है। इनका उपयोग प्रमुख रूप से कीटों की संख्या को नियंत्रित करने में होता है और ये विशेष रूप से कॉटन बॉलवॉर्म और कॉर्न बोरर जैसे कीटों के खिलाफ प्रभावी होते हैं।
कीटनाशकों के उपयोग से जुड़े लाभ और समस्याएँ
हालांकि कीटनाशक फसलों और खाद्य उत्पादन को बढ़ाने में सहायक होते हैं, लेकिन उनके उपयोग से जुड़ी कई समस्याएँ भी हैं। इनके प्रभाव को समझने के लिए हमें उनके फायदों और हानियों दोनों को संतुलित रूप से देखना होगा।
कीटनाशकों के लाभ
कृषि उत्पादकता में वृद्धि:
कीटनाशक फसलों को कीटों से बचाकर उनकी उत्पादकता में सुधार करते हैं। ये खाद्यान्न और अन्य फसलों की पैदावार को सुरक्षित रखते हैं, जिससे भोजन की कमी की समस्या को हल करने में मदद मिलती है। कीटनाशक के प्रभावी उपयोग से किसानों की आय भी बढ़ती है और कृषि की उत्पादकता में वृद्धि होती है।
सार्वजनिक स्वास्थ्य में सुधार:
मच्छरों और मक्खियों जैसे रोगवाहक कीटों के खिलाफ कीटनाशकों का उपयोग रोगों के प्रसार को रोकने में सहायक होता है। मलेरिया, डेंगू, और अन्य कीटजनित बीमारियों के खिलाफ कीटनाशकों का उपयोग सार्वजनिक स्वास्थ्य कार्यक्रमों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
भंडारण के दौरान खाद्य सुरक्षा:
कीटनाशकों का उपयोग केवल फसलों के उत्पादन में ही नहीं, बल्कि भंडारण के दौरान भी किया जाता है। ये खाद्यान्नों और अन्य कृषि उत्पादों को भंडारण के दौरान कीड़ों और रोगाणुओं से सुरक्षित रखते हैं, जिससे खाद्य क्षति और अपव्यय को कम किया जा सकता है।
कीटनाशकों से जुड़ी समस्याएँ
पर्यावरणीय प्रदूषण:
कीटनाशकों का अत्यधिक और अनियंत्रित उपयोग पर्यावरणीय प्रदूषण का कारण बन सकता है। इन यौगिकों के लंबे समय तक मृदा और जल स्रोतों में बने रहने से पारिस्थितिक तंत्र में असंतुलन उत्पन्न हो सकता है। मृदा की उर्वरता कम हो सकती है, जल स्रोतों में विषाक्त पदार्थों का संचय हो सकता है, और जलीय जीवन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।
जैव विविधता का ह्रास:
कीटनाशकों का उपयोग केवल लक्षित कीटों पर ही नहीं, बल्कि अन्य जीवों पर भी प्रभाव डालता है। मधुमक्खियाँ, तितलियाँ, और अन्य परागणकर्ता कीटनाशकों के प्रति संवेदनशील होते हैं, और इनकी मृत्यु से जैव विविधता में कमी आ सकती है। जैव विविधता में कमी से पारिस्थितिक संतुलन बिगड़ सकता है, जो लंबे समय तक कृषि और वन्य जीवन पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है।
मानव स्वास्थ्य पर प्रभाव:
कई कीटनाशकों के संपर्क में आने से मनुष्यों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकते हैं। तीव्र संपर्क से तंत्रिका तंत्र, श्वसन तंत्र, और त्वचा संबंधी समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं। दीर्घकालिक संपर्क से कैंसर, प्रजनन समस्याएँ, और अन्य गंभीर स्वास्थ्य समस्याएँ हो सकती हैं। कीटनाशकों का असुरक्षित उपयोग किसानों, मजदूरों, और अन्य संबंधित व्यक्तियों के लिए जोखिम पैदा करता है।
कीटनाशक प्रतिरोध:
एक और महत्वपूर्ण समस्या यह है कि कीटनाशकों के बार-बार उपयोग से कीटों में प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो सकती है। यह समस्या दीर्घकालिक कृषि प्रबंधन के लिए गंभीर चुनौती प्रस्तुत करती है। कीटों में प्रतिरोधकता विकसित होने के बाद, किसान को अधिक शक्तिशाली और विषैले कीटनाशकों का उपयोग करना पड़ता है, जिससे पर्यावरणीय और स्वास्थ्य जोखिम बढ़ जाते हैं।
कीटनाशकों का उपयोग कृषि में कीट नियंत्रण के लिए आवश्यक है, लेकिन यह आवश्यक है कि हम इसका उपयोग संतुलित और सतत तरीके से करें। पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य पर इनके प्रतिकूल प्रभावों को कम करने के लिए जैविक और बायो-कीटनाशकों को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। साथ ही, नवीनतम शोध और तकनीकों का उपयोग कर हमें कीटनाशकों के सुरक्षित और प्रभावी विकल्पों की खोज में लगे रहना चाहिए, ताकि भविष्य में एक स्वच्छ, सुरक्षित, और संतुलित कृषि प्रणाली विकसित की जा सके।
Authors:
अभिनव सिंह1, निशा2*, प्रियंवदा मिश्रा1, नीलेश कपूर1, राकेश सिंह सेंगर1 और रविंद्र कुमार1
1पादप जैव प्रौद्योगिकी संभाग, जैव प्रौद्योगिकी महाविद्यालय, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, मेरठ
2 फैकल्टी ऑफ़ साइंस, स्वामी विवेकानंद सुभारती विश्वविद्यालय, मेरठ
Email: priyam9410@gmail.com
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