कद्दुवर्गीय सब्जियों के 7 प्रमुख रोगों के लक्षण व उनका निवारण

कद्दुवर्गीय सब्जियों के 7 प्रमुख रोगों के लक्षण व उनका निवारण

Diagnosis  and control  of 7 major diseases of Cucurbit crops  

कद्दूवर्गीय सब्जियों की उपलब्धता साल में लगभग 8-10 महीने रहती है। इनका उपयोग सलाद (खीरा, ककड़ी); पकाकर सब्जी के रूप में (लौकी, तोरई, करेला, काशीफल, परवल, छप्पन कद्दू); मीठे फल के रूप में (तरबूज, खरबूजा); मिठाई बनाने में (पेठा, परवल, लौकी) तथा अचार बनाने में (करेला) प्रयोग किया जाता है।

इन सब्जियों में कई प्रकार के रोग लगते हैं जिससे इनकी उपज पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। इन फसलों में लगने वाले रोगों के लक्षण तथा उनके नियंत्रण के उपायों का उल्लेख निम्नप्रकार है-

अ.   फफूंद द्वारा होने वाले मुख्य रोग

1.    मृदुरोमिल आसिता: इस रोग के लक्षण पत्ती की ऊपरी सतह पर हल्के पीले कोणीय धब्बे दिखाई देते हैं। बाद में पत्ती की निचली सतह पर मृदुरोमिल फफूंद बैंगनी रंग की दिखाई देती है । फल आकार में छोटे हो जाते हैं । रोगी पौधों के पीले धब्बे शीघ्र ही लाल भूरे रंग के हो जाते हैं।

रोग का निदान :

  1. फसल के पकने के बाद फसल के अवशेषों को जला देना चाहिए।
  2. खड़ी फसल पर मैन्कोजेब का 0.2‌‌% की दर से छिड़काव करने से इस बीमारी को कम कर सकते हैं।
  3. रोग रोधी प्रजातियां उगानी चाहिए ।

चुर्णिल आसिता : रोग ग्रसित पौधों की पत्तियां2. चुर्णिल आसिता : 

रोग ग्रसित पौधों की पत्तियों की ऊपरी सतह पर सफेद या धुंधले धूसर, गोल व चूर्ण रूप में छोटे धब्बे बनते हैं जो बाद में पूरी पत्ती पर फैल जाते हैं।

पत्तियों व फलों का आकार छोटा व विकृत हो जाता है । तीव्र संक्रमण होने पर पत्तियाँ गिर जाती है व पौधों का असमय निष्पत्रण हो जाता है।

निदान :

  1. रोग ग्रसित पौधों के अवशेषों को नष्ट करना चाहिए।
  2. रोग की प्रारम्भिक अवस्था पर कैराथेन (1 ग्राम/लीटर पानी) के घोल का छिड़काव करना चाहिए।

3. श्यामवर्ण (एन्थ्रेक्नोज) :

इस रोग के लक्षण पत्तियों व फलों पर प्रकट होते हैं। शुरू में पत्तियों पर पीले, गोल जलयुक्त धब्बे दिखाई देते हैं। ये धब्बे आपस में मिलकर बड़े व भूरे हो जाते हैं।

रोगी पत्तियाँ सूख जाती है। फलों पर धब्बे गोलाकार जलयुक्त व हल्के रंग के होते हैं।

खीरा, खरबूजा व लौकी की पत्तियों पर कोणीय या खुरदरे गोल धब्बे दिखाई देते हैं जो पत्ती के बड़े भाग या पूरी पत्ती को झुलसा देती है।

रोग निदान :

  1.  कद्दू कुल के जंगली पौधों को इकट्ठा कर नष्ट करना चाहिए।
  2.  बीज को थाइराम या बाविस्टीन (2 ग्राम/किग्रा. बीज) से उपचारीत करके बोना चाहिए।
  3.  मैन्कोजेब (2 ग्राम/लीटर पानी) का सात दिन के अंतराल पर दो बार छिड़काव करना चाहिए ।

4. पत्ती झुलसा : 

सर्वप्रथम पत्ती पर हल्के भूरे रंग के धब्बे दिखाई देते हैं जो बाद में गहरे रंग के व आकार में बड़े हो जाते हैं।

धब्बे पत्तियों पर केन्द्रीयकृत गोल आकार में बनते हैं जिससे पौधे की पत्तियाँ झुलसी हुई दिखाई देती है। 

रोग निदान :

  1. स्वस्थ बीज का प्रयोग करें।
  2. फसल चक्र अपनायें।
  3. फसल पर इंडोफिल एम.- 45 (2-3 ग्राम/ लीटर पानी) का 10-15 दिन के अंतराल पर दो बार छिड़काव करें।

 म्लानि (विल्ट) में पौधा मुरझा कर सूख जाता है,5. म्लानि (विल्ट) : 

इसमें पौधा मुरझा कर सूख जाता है, पत्तियाँ पीली हो जाती है, कॉलर वाला क्षेत्र सिकुड़ जाता है। पौधों की जड़ें व भीतरी भाग भूरा हो जाता है।  

पौधों की वृद्धि रुक जाती है। लक्षण सबसे स्पष्ट फूल आने व फल बनने की अवस्था पर ज्यादा दिखाई देते हैं।

रोग निदान :

  1. रोग रोधी प्रजातियां उगानी चाहिए ।
  2. भूमि सौर्यीकरण करने से भी इस बीमारी को कम कर सकते हैं।
  3. बोने से पहले बीज को बेविस्टीन (1-2 ग्राम/लीटर पानी) से उपचारित करें तथा बीमारी आने के बाद ड्रेन्चिंग भी करें।

ब. विषाणु द्वारा होने वाले मुख्य रोग

1. कुकुम्बर मोजेक :

 पौधें छोटे रह जाते हैं तथा ग्रसित पौधों की नयी पत्तियाँ छोटी, पीले धब्बे दिखते हैं। पत्तियाँ सिकुड़ कर  मुड़ जाती है तथा एक पीला मौजेक या मोटिल क्रम दिखाई देता है जिससे क्लोरोटिक पैचेज दिखते हैं ।

कुछ फूल गुच्छों में दिखते हैं। फल भी छोटे व विकृत हो जाते हैं या फलत बिलकुल नहीं होती है।कुकुम्बर मोजेक में पौधें छोटे रह जाते हैं

रोग निदान :

  1. उपचारित बीज का प्रयोग करना चाहिए ।
  2. रोग ग्रसित पौधों को (कम संख्या में) उखाड़कर जलाना चाहिए व जंगली खरपतवारों को नष्ट करना चाहिए।
  3. इमिडाक्लोप्रिड (3-5 मिली/10 लीटर पानी) दवा का एक सप्ताह के अंतराल पर खड़ी फसल पर 2 बार छिड़काव करें, जिससे रोग वाहक कीट नष्ट हो जाते हैं।

2. कलिका नेक्रोसिस:

पत्तियों की शिराओं से नेक्रोसिस धारियां बन जाती है। इन्टरनोड छोटे रह जाते हैं। कलिका की नेक्रोसिस हो जाती है, बाद में कलिका सूख जाती है। धीरे धीरे कलिका वाली पूरी शाखा सूखने लगती है। पत्तियाँ सिकुड़ कर  पीली पड़ जाती है।

कलिका नेक्रोसिस: पत्तियों की शिराओं से नेक्रोसिस धारियां बन जाती हैरोग निदान :

  1. रोगी पौधों के भाग को इकट्ठा करके जलाना चाहिए।
  2. स्वस्थ बीज बोना चाहिए ।
  3. इमिडाक्लोप्रिड (3-5 मिली/10 लीटर) पानी की दर से 2 बार छिड़काव करना चाहिए।
  4. खेत के चारों ओर बाजरा की फसल उगायें जिससे बीमारी कम आती है।

Authors:
Dr. S.K. Maheshwari, Dr. B.R. Choudhary and Dr. S.R. Meena

Central Institute for Arid Horticulture (CIAH), Bikaner, Rajasthan-334006 
Email: maheshwariskciah@gmail.com

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