12 Jul ठंड के मौसम में किसान कैसे करे हरी पत्तेदार सब्जियों की खेती
How can farmers cultivate green leafy vegetables in cold weather?
भारतवर्ष में उगाई जाने वाली हरी पत्तेदार सब्जियों में पालक, मैथी, सरसों एवं बथुआ प्रमुख है जोकि हमारे स्वास्थ्य के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। हरी सब्जियों के अंदर प्रचुर मात्रा में रेसा, प्रोटीन, वसा, विटामिन्स (विटामिन बी-2 विटामिन सी एवं विटामिन के) और खनिज पदार्थ (लोहा, कैल्शियम एवं फास्फोरस) मौजूद होते है।
रेशेयुक्त सब्जियां सस्ती व आसानी से उपलब्ध होने के साथ-साथ भोजन को पाचनशील, स्वादिष्ट, संतुलित व पौष्टिक बनाने में सहायता करती है। संतुलित आहार के अनुसार हमें प्रतिदिन दैनिक आहार में 100 ग्राम हरी पत्तेदार सब्जियां लेनी चाहिए।
अन्य सब्जियों की तुलना में हरी सब्जियों के सेवन से एनीमिया, कैंसर और हृदय से संबंधित बीमारियों से बचा जा सकता है। सर्दी को मौसम में हरी पत्तेदार सब्जियों की खेती किसानों के लिए मुनाफे का सौदा है क्योंकि अन्य सब्जियों की तुलना में पत्तेदार सब्जियों की खेती में कम लागत आती है।
ये सब्जियाँ दो भागों में बांटी गयी है:
1. शीतकालीन: पालक, मेथी, विलायती पालक, सरसों व बधुआ आदि ।
2. ग्रीष्मकालीन: चौलाई, छोटी चौलाई, कुल्फा व पोई आदि।
शीतकालीन मुख्य फसलों की उन्नत किस्में
पालक– आलग्रीन, पूसा ज्योति, पूसा हरित, पूसा भारती, जोबनेरग्रीन, एच. एस. 23, वर्जिनिया स्वॉय व अर्ली स्मूथलीफ आदि।
मैथी- पूसा अर्ली बंचिग, राजेन्द्र क्रांति, हिसार सोनाली, हिसार मुक्ता, हिसार सुवर्णा, हिसार माधवी, आरएमटी-1, अजमेर मेथी-1, अजमेर मेथी-2, पूसा कसूरी, लेम सेलेक्शन-1, पंत रागिनी, गुजरात मेथी-1 आदि।
सरसों: पूसा साग-1
बथुआ: पूसा ग्रीन
भूमि का चुनाव एवं तैयारी: इनकी खेती सभी प्रकार की मिट्टी में आसानी से की जा सकती है लेकिन बलुई-दोमट मिट्टी व अच्छी खाद युक्त भूमि जिसका पी.एच. मान 6.5-7.5 के मध्य हो उत्तम मानी जाती है । भूमि को भली भांति 3-4 बार जोतकर मिटटी को हल्का और भुरभुरा बना लेना चाहिए अन्यथा अंकुरण प्रभावित होता है। प्रत्येक जुताई के बाद सुहागा अवश्य लगाना चाहिए जिससे खेत में नमी बनी रहे।
जलवायु:
पालक, मेथी, सरसों और बथुआ को मध्यम तापमान में पूरे वर्ष उगाया जा सकता है लेकिन ठंड के मौसम में इनकी वानस्पतिक वृद्धि अच्छी होती है। अच्छी वृद्धि और उपज के लिए 15-20 डिग्री सेंटीग्रेट तापक्रम उपयुक्त रहता है।
शरदकालीन फसल होने के कारण इसमें पाला सहन करने की क्षमता होती है। इनकी वानस्पतिक वृद्धि के लिए लंबे ठन्डे मौसम, आर्द्र जलवायु एवं कम तापमान उपयुक्त होते हैं।
बिजाई का समय:
सर्दी के मौसम में हरी पत्तियों की उत्पादन के लिए अगस्त से दिसंबर बिजाई का उत्तम समय होता है।
बीज की मात्रा:
पालक व विलायती पालक: 25-30 कि.ग्रा./ हेक्टेयर
देसी मेथी: 20-25 कि.ग्रा. बीज/ हेक्टेयर
कसूरी मेथी: 10-12 कि.ग्रा./ हेक्टेयर
बथुआ: 5-7 कि.ग्रा. बीज/ हेक्टेयर
बिजाई की विधि:
बुवाई से पहले खेत में खाद डालकर अच्छी तरह से मिला दें और भुरभुरी कर लें। यदि खेत में नमी की कमी हो तो बुआई के पहले पलेवा या सिंचाई कर पर्याप्त नमी बना लें। तत्पश्चात बीजों की बुवाई करें। अच्छे उत्पादन के लिए बीज को 20-30 से.मी. पंक्ति से पंक्ति की दूरी तथा 10 से.मी. पौधे से पौधे की दूरी पर बुवाई करनी चाहिए।
बीज बुवाई की गहराई 5 से.मी. से ज्यादा नहीं रखनी चाहिए। आवश्यकता से अधिक या अधिक घने हो जाने पर कुछ पौधों को निकाल दें। पत्तियों की कटाई करते समय यह ध्यान रखें कि कटाई जमीन की सतह से 3-5 सेमी. ऊपर से ही करें।
खाद एवं उर्वरक:
पालक में बुवाई से पूर्व अच्छी गली सड़ी हुई गोबर की खाद या कम्पोस्ट खाद लगभग 20-25 टन प्रति हेक्टेयर के हिसाब से मिट्टी में मिलायें। पत्तियों वाली सब्जियों के लिए नत्रजन एक बहुत ही जरूरी तत्व है। नत्रजन 80 कि.ग्रा., 40 कि.ग्रा. फॉस्फोरस तथा 40 कि.ग्रा. पोटॉश प्रति हेक्टेयर के हिसाब से मिट्टी में मिला देना चाहिए। नत्रजन की एक चौथाई मात्रा तथा फॉस्फोरस एवं पोटॉश की पूरी मात्रा बुवाई से पूर्व अंतिम जुताई के समय मिट्टी में मिला देनी चाहिए। शेष नत्रजन प्रत्येक कटाई के बाद बराबर मात्रा में छिड़काव करने से अधिक उपज प्राप्त होती है।
मेथी में बुवाई से पूर्व अंतिम जुताई के समय 10-15 टन प्रति हेक्टेयर के हिसाब गली सड़ी गोबर की खाद को मिट्टी में मिला देनी चाहिए। मेथी दलहनिया फसल होने की कारण वायुमंडलीय नत्रजन को उपलब्ध करने में सक्ष्म होती है इसलिए इस फसल को नत्रजन की कम आवश्यकता पड़ती है। नत्रजन 20-25 कि.ग्रा., फॉस्फोरस 40-50 कि.ग्रा. एवं पोटाश 20-30 कि.ग्रा.प्रति हेक्टेयर की दर से खेत में डाल देना चाहिए. नत्रजन की आधी मात्रा एवं फॉस्फोरस एवं पोटाश की पूरी मात्रा भूमि में अंतिम जुताई के समय मिला दें एवं बची मात्रा को प्रत्येक कटाई के बाद बराबर हिस्सों में बांटकर खड़ी फसल में छिड़का दे।
बथुआ में 20-25 टन गोबर की सड़ी हुई खाद या कम्पोस्ट, 20 कि.ग्रा. नत्रजन, 40 कि.ग्रा. फॉस्फोरस एवं 20-30 कि.ग्रा. पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से भूमि में अंतिम जुताई के समय मिला दें तथा शेष नत्रजन प्रत्येक कटाई के बाद बराबर मात्रा में टॉप ड्रेसिंग के रूप में देना चाहिए। शेष नत्रजन प्रत्येक कटाई के बाद बराबर मात्रा में छिड़काव करने से अधिक उपज प्राप्त होती है।
सिंचाई:
सिंचाई सब्जियों की किस्म, मिट्टी की स्तिथि व मौसम को ध्यान में रखकर की जाती है। बीज की बुवाई हमेशा नमीयुक्त स्तिथि में ही करनी चाहिए जिससे अंकुरण अच्छा होता है। यदि बुवाई के समय खेत में पर्याप्त नमी न हो तो बवाई के तुरंत बाद हलकी सिंचाई देनी चाहिए सर्दियों के मौसम में 10-15 दिन के अंतराल पर सिंचाई करनी चाहिए।
खरपतवार नियंत्रण:
हरी पत्तियों वाली फसलों में समय-समय पर निराई-गुड़ाई करते रहना चाहिए जिससे खरपतवार नियंत्रण अच्छा रहता है और पौधों के बढऩे में कोई असुविधा नहीं होती। फसल को खरपतवार मुक्त रखने के लिए 2-3 निराई-गुड़ाई की आवश्यकता होती है। खरपतवार नियंत्रण के लिए फ्लुक्लोरालीन 1.0-1.5 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर (बसलीन) बुवाई से पहले और बाकी खरपतवारनाशी बिजाई के बाद परन्तु खरपतवार जमाव से पहले छिड़काव करे। खेत में खरपतवारनाशी दवाई लगाने से पहले खेत में पर्याप्त नमी का होना आवश्यक है। फसल को खरपतवार मुक्त रखने से पतियों की अधिक पैदावार और गुणवत्ता प्राप्त होती है तथा कीड़ों का प्रकोप भी कम होता है।
रोग एवं कीट प्रबंधन:
1. आर्द्र गलन – पौधों के उगते ही रोग लग जाता है। जिससे पौधे मरने लगते हैं। और खेत खाली होने लगता है। यह रोग भूमि एवं बीजों के माध्यम से फैलता है। इसकी रोकथाम के लिए बिजाई से पहले बीज को 2-3 ग्राम प्रति किलो ग्राम की दर से थिराम या केप्टान फफूंदीनाशक दवाई से उपचारित करना चाहिए।
2. पत्ती धब्बा- इस रोग से पत्तियों पर भूरे रंग गोल धब्बे बन जाते है जिससे यह सब्जियां बाजार में बेचने योग्य नहीं रह जाती है। इसके नियंत्रण के लिए जिनेब या मेन्कोजेब 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर 15 दिन के अंतराल पर छिड़काव करें।
3. पाउडरी मिल्ड्यू (छाछया) – पत्तियों की सतह पर सफेद पाउडर दिखाई देते है। जो संक्रमण बाद जाने पर पूरे पौधे पर सफेद चूर्णिल आवरण बना देता है। इस रोग से मेथी की फसल अधिक प्रभावित होती है. इसके नियंत्रण के लिए घुलनषील गंधक 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़कें। यह आवश्यकतानुसार 7-10 दिन के अंतर से दोहराएं।
4. चेपा – इस कीट के शिशु और प्रौढ़ कोमल पत्तियों से रस चूसते है और इसके अधिक प्रकोप से पत्तिया पीली पड़कर मुरझा जाती है। इसके नियंत्रण के लिए प्रारंभिक अवस्था में 2% नीम के तेल व अधिक संक्रमण की स्थिति में साइपरमैथरीन 0.5 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में मिलाकर 7-10 दिन के अंतराल पर छिड़काव करें। छिड़काव से कटाई के बीच कम से 7 दिन का अंतराल रखें।
5. पत्ती छेदक कीट- यह कीट पत्तियों में छेद कर नुकसान पहुंचाता है। संक्रमण के प्रारंभिक अवस्था में 2% नीम के तेल का छिड़काव करें व अधिक संक्रमण होने पर क्विनालोफोस 0.5 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में मिलाकर 7-10 दिन के अंतराल पर छिड़काव करे।
कटाई व उपज:
हरी पत्तेदार सब्जियों की पहली कटाई बिजाई के लगभग 3-4 सप्ताह के बाद करे। इसके बाद 15-20 दिन के अंतर पर कटाई करनी चाहिए। हरी पत्तियों वाली सब्जियों में सामान्यता: 4-8 कटाई की जाती है यह भूमि की उर्वकता शक्ति, मौसम और फसल की किस्मो पर निर्भर करती है। हरी पत्तियों की औसत उपज एवं पैदावार फसल की किस्म तथा कटाई की संख्या पर निर्भर करती है:
पालक : 100-150 किवंटल प्रति हेक्टेयर
मेथी :
i. देशी मेथी : 70-80 किवंटल प्रति हेक्टेयर तथा
ii. कसूरी मेथी : 80-100 किवंटल प्रति हेक्टेयर
बथुआ : 30-40 टन प्रति हेक्टेयर
जब हरी पत्तेदार सब्जियां कम मूल्य में उपलब्ध हो तो इन्हे ज्यादा मात्रा में खरीदकर धूप में सुखाकर इन्हे हाथों से रगड़कर मोटा-मोटा चूरा बना लें और इन्हे एअर टाइट डिब्बे में रख लें। जब ताजा पत्तेदार सब्जी उपलब्ध न हो तब इनका इस्तेमाल हम वर्षभर कर सकते है।
Authors:
पूजा रानी,
सहायक वनस्पति फिजियोलॉजिस्ट
बागवानी विभाग, कृषि महाविद्यालय, सी.सी.एस.एच.ए.यू., हिसार
Email:poojadhandey@gmail.com