बुंदेलखंड मे डायरेक्ट सीडिंग राइस की उन्नत खेती

बुंदेलखंड मे डायरेक्ट सीडिंग राइस की उन्नत खेती

Cultivation of direct seeded paddy in the districts of Bundelkhand

Paddy is not a commonly grown crop in Bundelkhand as the region of Bundelkhand is known to be a drought prone area. But direct seeded rice can be cultivated even with less water. Area of paddy in the districts falling under Bundelkhand 2018 According to 2019 data, it was 2,83,550 hectares.

Cultivation of direct seeded paddy in the districts of Bundelkhand

बुंदेलखंड मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के शुष्क और पथरीली जमीन वाला भूभाग है, जिसमे मध्य प्रदेश के सात जिले सागर, दतिया, छतरपुर, टीकमगढ़, दमोह, पन्ना, निवाड़ी और उत्तरप्रदेश के सात जिले ललितपुर, बांदा, महोबा, जालौन, चित्रकूट, हमीरपुर, झांसी शामिल हैl

धान, बुंदेलखंड मे आमतौर पर उगाई जाने वाली फसल नहीं है क्योंकि बुंदेलखंड का क्षेत्र सूखा प्रभाबित इलाके के रूप मे जाना जाता हैl परंतु डायरेक्ट सीडिड राइस की खेती कम पानी मे भी की जा सकती हैl बुंदेलखंड के अंतर्गत आने वाले जिलों मे धान का क्षेत्रफल 2018-19 के आँकड़ों  के अनुसार 2,83,550 हेक्टर थाl

भारत विश्व का 21.6 % उत्पादन करके दूसरा सबसे बडा धान उत्पादक देश हैl बुंदेलखंड मे ज्यादातर जिलों मे पानी की कमी के कारण ज्यादा पानी वाली फसल नहीं ले पाते और खेतों को खाली छोड़ना पड़ता हैl डायरेक्ट सीडिड राइस की खेती के द्वारा बुंदेलखंड के किसान एक नए युग की शुरुआत कर सकते हैl

डायरेक्ट सीडिंग राइस की खेती की खूबिया :-

  1. इस का मुख्य फायदा जल का कम उपयोग होना है l
  2. कम मजदूरों की आवश्यकता पड़ती है l
  3. खेत मे कम ज़लअवरोध की वजह से सामान्यतः धान के खेत से जितनी मात्रा मे मीथेन का उत्सर्जन होता है उससे कम इस पद्धति मे होता है l
  4. मृदा की संरचना भी कम जलभराब के कारण बिगड़ती नहीं है l

भूमि का चुनाव और खेत की तैयारी :-

खेत को सूखा या पोखर (गीला) तैयार किया जा सकता है। अच्छी भूमि समतलन की आवश्यकता होती है जिसे लेजर-समर्थित समतल उपकरण या मशीनरी का उपयोग करके सर्वोत्तम रूप से प्राप्त किया जा सकता है। खेत पूरी तरह समतल हो जाना चाहिए जिससे की खेत मे किसी भी तरह का जलभराब ना सामने आएl एक समान खेत सिंचाई या जल नियंत्रण को सक्षम बनाता है और खरपतवार के दबाव को कम करता है।

बुवाई का समय :-

डायरेक्ट सीडिंग राइस की बुवाई के लिए पंक्ति बुवाई विधि की अनुशंसा हैl धान ज्यादातर मानसून के मौसम (खरीफ) के दौरान उगाया जाता है जब वर्षा अधिक होती है। मानसूनी वर्षा को पूरी तरह उपयोग करने के लिए, डी एस आर की बुवाई का उपयुक्त समय मानसून की शुरुआत से लगभग 10-15 दिन पहले होता है। धान की बुवाई का अनुकूल समय 1 जून से 20 जुलाई तक हैl

बीज दर :-

धान की इस पद्धति मे बीज की बुवाई दर 16 से 20 किलोग्राम प्रति हेक्टेर प्रस्तावित है l डायरेक्ट सीडिड राइस की खेती मे उन्नत एवं संकर बीजों का चुनाव करना चाहिए l

बीज उपचार :-

मृदा जनित रोगों के प्रबंधन के लिए अनुशंसित कवकनाशी से बीज उपचार आवश्यक है। इसके लिए बीज की बजन की हुई मात्रा को 24 घंटे के लिए पानी + कवकनाशी (बाविस्टिन @ 1 ग्राम / किग्रा चावल के बीज या एमिसन @ 1 ग्राम / किग्रा चावल के बीज) के घोल में भिगोया जाता है।

भिगोने के लिए उपयोग किए जाने वाले पानी की मात्रा बीज उपचार के लिए उपयोग किए जाने वाले बीज की मात्रा के बराबर होती है। 24 घंटे के बाद बीज को कवकनाशी के घोल से हटा दिया जाता है और 1-2 दिनों के लिए छाया में सुखाया जाता है जब तक कि बुवाई से पहले अंकुरण दिखाई न दे।

मिट्टी जनित रोगजनकों जैसे दीमक या अन्य कीड़ों से बचाने के लिए इमिडाक्लोप्रिड @ 3 मिली / किग्रा बीज के साथ बीज उपचार या टेबुकोनाज़ोल @ 1 मिली / किग्रा बीज के साथ मिट्टी जनित कवक और दोनों से बचाने के लिए बीज उपचार एवं कीटों के प्रकोप को कम करने मे प्रभावी पाए गए हैं।

प्रजातियाँ  :

बेहतर सूखा सहनशीलता के साथ जल्दी पकने वाली और प्रकाश-अवधि-असंवेदनशील चावल की किस्में डीएसआर के लिए उपयुक्त हैं।

क्र. संख्या प्रजाति अवधि (दिनों मे) उपज (कुंतल / हेक्टेयर)
01 वंदना 95 3.0-3.3
02 मालवीय धान – 1304 108-110 4.8-5.1
03 सी. आर. धान – 309 111-120 4.4-5.9
04 सहभागी धान 100 3.8-4.5
05 सी. आर. धान – 100 105-110 4.5-4.7

खाद्य एवं उर्वरक

डायरेक्ट सीडिड राइस की खेती मे उर्वरकों की मात्रा सामान्य धान की जितनी ही प्रयोग की जाती हैl सामान्य धान की तुलना मे 12 से 15 किलोग्राम नाइट्रोजन का अतिरिक्त प्रयोग किया जाना चाहिए l

स्थानीय / चयनित किस्म :- 150 to 165 kg N/ha, 60 kg P2O5 / ha, 60 kg K2O /ha, and 25 kg Zinc sulphate/ ha).

उन्नत / संकर किस्म :- 60-75 Kg N/ha , 30 kg P2O5 and 25 kg Zn SO4.

पोटैशियम, फोसफोरस एवं जिंक की पूरी मात्रा और नाइट्रोजन की 23 किलोग्राम / हकटेरे बुवाई के समय डाल देनी चाहिए l शेष नाइट्रोजन को तीन भागों मे बांटकर अलग – अलग अंतराल व अवस्था के अनुसार डालना चाहिएl लीफ कलर चार्ट (एलसीसी) का उपयोग करके नाइट्रोजन उर्वरकों का प्रबंधन भी किया जा सकता है।

खरपतबार प्रबंधन

खरपतबार के रोकथाम के लिए मैनुअल और यांत्रिक तरीके धान मे ज्यादा श्रम लागत की वजह से उतने कार्यसिद्ध नहीं होतेl ऐसी स्थिति मे शाकनाशी जबरदस्त प्रभावी रहे हैl बड़े पैमाने पर चावल की खेती में, शाकनाशी आधारित खरपतवार प्रबंधन सबसे अच्छा विकल्प बन गया हैl

डायरेक्ट सीडिड राइस पर खोज कर रहे शोधकर्ताओ  के अनुसार शाकनाशी को एक व्यवहार्य विकल्प माना जा सकता है हाथ से निराई के पूरकl 20, 22.5 और 25 ग्राम / हेक्टेयर पर पेनॉक्ससुलम का प्रयोग घास के घनत्व पर बेहतर नियंत्रण करता है अन्य शाकनाशी जो डीएसआर में प्रभावी पाए जाते हैं वे हैं पाइराज़ोसल्फ्यूरॉन और ऑक्साडिरागिल पूर्व-उद्भव के रूप में और एज़िमसल्फ़्यूरॉन, पेनॉक्ससुलम, साइहालोफ़ॉप-ब्यूटाइल, और एथोक्सिसल्फ़्यूरॉन के बाद के उद्भव के रूप में प्रभावी पाए गए है l

सिंचाई               

डायरेक्ट सीडिड राइस की खेती का मुख्य फायदा जल का कम से कम प्रयोग होना हैl इस पद्धति की खेती मे खेत बिना जल भराव वाला उपयुक्त माना जाता हैl धान की मुख्य अवस्थाए (बुवाई के समय कल्ला आते समय, बूटिंग के समय, फूल लगते समय और दाना बनते समय खेत मे पर्याप्त नमी बनाए रखना चाहिए l रोपाई वाली फसल के मुकाबले सीधी बुवाई वाली खेती मे 45 से 50 प्रतिशत कम पानी लगता हैl डायरेक्ट सीडिड वाले खेत मे नमी बनी रहे इसका ध्यान रखना चाहिए l

 धान मे लगने वाले प्रमुख रोग एवं नियंत्रण :- 

जीवाणु झुलसा रोग          

धान का जीवाणु रोग मुख्यत पर्णीय रोग है जो धन की पत्तियों पर लगता है इस रोग के प्रभाव के कारण पौधों की पत्तिया झुलस जाती है जिसके कारण इस रोग को धन का झुलसा रोग के नाम से जाना जाता है l पत्तियों के ऊपरी सिरों पर हल्के हरे व पीले रंग के 5 से 10 से. मी. लंबे धब्बे दिखाई देते है जो की पत्तियों के ऊपरी सिरे पर दिखते है यह धब्बे अनुकूलित वातावरण मिलने पर समय के साथ पीले रंग से बदलकर भूरे रंग मे परिवर्तित होकर पत्तियों मे फेल जाते है l  

नियंत्रण:  इस रोग के बचाव के लिए खेत मे उचित जल निकास का प्रबंध करना चाहिए। v  नाइट्रोजनिक  उर्वरकों का कम से कम प्रयोग करना चाहिए। v  रोग का  प्रकोप दिखने पर कापर आक्सीक्लोराइड के साथ स्ट्रेप्टोसाइक्लिन रसायन का घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए।

धान का झुलसा (फफूंद) रोग         

यह रोग पौधे के लगभग सभी भागों को क्षति पहुँचाता है किन्तु खास तौर पर पौध और पुष्प गुच्छ अवस्था मे मुख्य पत्तियों बाली पर आँख के आकार के धब्बे बनते है, बीच मे राख के रंग का ब किनारों पर गहरे भूरे धब्बे लालिमा लिए हुए होते है कई धब्बे मिलकर कथथ् सफेद रंग के बड़े धब्बे बना लेते है जिससे पौधा झुलस जाता है।  

नियंत्रण : फसल मे लक्षण दिखने पर ट्राईसाइक्लाज़ोल 75% डब्लयूपी 150 ग्राम या आइसोप्रोथियोलेन 300 मि. ली या 400 ग्राम पानी मे घोल बनाकर प्रति एकरे की दर से छिड़काव करना चाहिए l  

खेरा रोग         

इस मे पत्तियों पर हल्के पीले रंग के धब्बे बनते है जो बाद मे कत्थई रंग के हो जाते है पौधा बौना रह जाता है। अधिक प्रभावित होने पर पौधे की जड़े भी कत्थई रंग की हो जाती हैl यह रोग मिट्टी मे जस्ते की कमी के कारण  होता है l

 नियंत्रण: इसकी रोकथाम के लिए फसल पर 5  कि. ग्रा. जिंक सल्फ़ेट, 2.5 कि. ग्रा मे बुझे चुने के साथ 1000 ली. पानी मे मिलाकर प्रति हकटेरे मे छिड़काव करना चाहिए l बुझा हुआ चूना उपलब्ध न होने पर 2 % यूरीया  के साथ जिंक सल्फ़ेट का  छिड़काव  करना चाहिए l   

धान मे लगने वाले प्रमुख कीट एवं प्रबंधन :- 

गंधी बग          

धान के इस कीट के बारे मे कहा जाता है की यह कीट खेत मे अधिक गंध होने से आती है इस कारण इसे गंधी बग कहा जाता है । इस कीट का प्रभाव दूधिया व दाने भरने की अवस्था मे होता है । इनके रस चूसने के कारण तना सूख जाता है ।  

नियंत्रण: इसकी रोकथाम के लिए मेलथिऑन 50 ई. सी. का 625 मि. ली. / हकटेरे का प्रयोग कर सकते है ।

तना छेदक          

इस कीट की सूडियाँ पत्तियों को छेदकर अंदर घुस जाती है तथा अंदर ही अंदर पौधे के तने को खाती हुई गांठ तक पहुँच जाती है। पौधे की बढ़ने की अवस्था मे इस कीट का प्रयोग होता है तो पौधे मे बालियाँ नहीं निकलती है।

 नियंत्रण : जिंक सल्फेट + बुझा हुआ चूना (100 ग्राम + 50 ग्राम) प्रति नाली की दर से 15 – 20 ली. पानी में घोलकर छिडकाव करें। 

पत्ती लपेटक कीट

मादा पत्तियों की सिराओ के पास झुंड मे अंडे देती है जो अंडे 6-8 दिन मे सूडियों को जन्म देते है और सूडियाँ मुलायम पत्तियों को खाती है तथा बाद मे लार द्वारा रेशमी धागा बनाकर पत्तियों के किनारों को मोड देती है जिससे धान की पत्तिया सफेद व झुलसी हुई दिखाई देती है।

नियंत्रण: मालाथियान 5 प्रतिशत विष धूल की 500 – 600 ग्राम मात्रा प्रति नाली की दर से छिडकाव करें |

उत्पादकता               

डायरेक्ट सीडिड राइस की उत्पादकता सामान्य पद्धति वाली धान से तो कम ही प्राप्त होती है परंतु श्रम और लागत के हिसाब से अच्छी मानी जा सकती है l 3.0  से 4.5 टन / हेकटेर बिभिन्न प्रजातियों मे प्राप्त हुई है l  

कटाई               

किस्म की वृद्धि की अवधि के आधार पर, डायरेक्ट सीडिड राइस के लिए कटाई का समय लगभग 110−120 दिन का होना चाहिएl कटाई खेत से परिपक्व चावल की फसल को इकट्ठा करने की प्रक्रिया है। धान की कटाई की गतिविधियों में कटाई, स्टैकिंग, हैंडलिंग, थ्रेसिंग, सफाई और ढोना शामिल हैं। इन्हें व्यक्तिगत रूप से किया जा सकता है या एक साथ संचालन करने के लिए कंबाइन हार्वेस्टर का उपयोग किया जा सकता है।              

चावल की कटाई में बुनियादी कार्य होते हैं जो अलग-अलग चरणों में या कम्बाइन हार्वेस्टर का उपयोग करके संयोजन में किए जा सकते हैं। इसमे शामिल है:

1.      काटना – परिपक्व पुष्पगुच्छों और भूसे को जमीन के ऊपर काटना l

2.      थ्रेसिंग – धान के दाने को बाकी कटी हुई फसल से अलग करना l

3.      सफाई – अपरिपक्व, अधूरी, गैर-अनाज सामग्री को हटाना l

4.      ढोना – कटी हुई फसल को खलिहान के स्थान पर ले जाना खेत में l

5.      सुखाना – कटी हुई फसल को खेत में छोड़ कर धूप में सुखाना l

6.      स्टैकिंग / पाइलिंग – कटी हुई फसल को अस्थायी रूप से ढेर या ढेर में संग्रहित करना l

7.      बैगिंग – पिसे हुए अनाज को परिवहन और भंडारण के लिए थैलों में डालना l


Authors

कार्तिकेय सूत्रकार

जूनियर रिसर्च फ़ेलो, डी. बी. टी., चना परियोजना, आनुवंशिकी  एवं पादप प्रजनन विभाग,

रानी लक्ष्मी बाई केन्द्रीय कृषि विश्व विध्यालय, झाँसी (उ. प्र.) – 284003

ईमेल :- kartikeya1995@gmail.com

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