Phytopathogen detection strategies and their role in disease management

फसल के उत्पादनमें भारी नुकसान को कम करने के लिए पादप रोगजनको का पता लगाना अत्यंत महत्वपूर्ण है। उचित एवं तात्कालिक पादप रोगजनको का पता एवं निदान करने से फसलो मे होने वाले नुकसान में गुणात्मक एवं मात्रात्मक कमी लायी जा सकती है l

पादप रोग जनको की प्रारंभिक पहचानसे फसल सुरक्षा उपायों को अधिक उपयुक्त और लक्षित अनुप्रयोगी बनाया जा सकता है l यहाँ, पादप रोगजनको के लिए पारंपरिक और आधुनिक पहचान विधियोको संक्षेप में प्रस्तुत किया है l

रोगग्रस्त पौधे के नमूने में संक्रामक रोगज़नक़ों का पता लगाने और निदान के लिए कई विधियो को विकसित किया गया हैl कई वर्षों में इन तरीकों ने पौधों पर संक्रमण के लक्षणों की पारंपरिक बीमारी की पहचान से लेकर न्यूक्लिक एसिड- और प्रोटीन-आधारित अति सटीक विधियां विकसितकी गयी हैं। कॉलोनी की गिनती और कल्चर विधि जीवित रोगज़नक़ की उपस्थिति की पुष्टि करने के लिए एकपारम्परिक विधि है।हालांकि यह तकनीक श्रम और समय लेती है, परन्तु सटीक और पुष्टिकरण परिणाम प्रदान करती है।

जांच विधियो का उपयोग प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष पहचान तकनीकों द्वारा किया जा सकता है।आण्विक और सीरोलॉजिकल तकनीकों द्वारा रोगज़नक़ की प्रत्यक्ष पहचान क्रमशः डीएनए और प्रोटीन से  पता लगाया जाता है।जबकि अप्रत्यक्ष पहचान में कई मापदंडों कोजैसे कि तापमान परिवर्तन, रूपात्मक परिवर्तन और वाष्पशील कार्बनिक यौगिकों (वीओसी) को सम्मिलित किया जाता है।

पीसीआर रोगज़नक़ों की पुष्टि के लिए सबसे अधिक इस्तेमाल की जाने वाली आणविक तकनीक है। जो उनकी तेज़ी और उच्च संवेदनशीलता के कारण होती है।सिद्धांत रूप में, पीसीआर तकनीक में अलगाव, चयनात्मक प्रवर्धन और रोगाणु के अत्यधिक विशिष्ट डीएनए या आरएनए हस्ताक्षर कीजाँच शामिल है, जो उन्हें अन्य रोगजनकों से अलग करता है। पीसीआर के रूपांतरण जैसे कि, रीयल-टाइम पीसीआर (क्यूपीसीआर), रिवर्स ट्रांसक्रिपटेस पीसीआर (आरटी-पीसीआर) और मल्टीप्लेक्स पीसीआर भी रोगज़नक़ पहचान के लिए लोकप्रिय हैं।

रीयल-टाइम पीसीआर विशिष्ट डाई द्वारा प्रतिदीप्ति उत्सर्जन का पता लगाने पर आधारित है जो लक्ष्य (टारगेत) डीएनए अनुक्रम से जुड़ता है। प्रवर्धित उत्पाद की मात्रा पारंपरिक पीसीआर की तुलना में आसान हैक्योंकि उत्पन्न प्रतिदीप्ति की तीव्रता एम्प्लिकॉन की मात्रा से सीधे आनुपातिक होती है।

हाल ही में एलिस एवं समूह (२०१९) द्वारा टोबाको मोज़ेक वायरस का पता लगाने मेंरीयल-टाइम पीसीआर का प्रयोग किया गया।रिवर्स ट्रांसक्रिपटेस पीसीआर जीवित और मृत कोशिकाओं के बीच भेदभाव प्रदान करता है।

मल्टीप्लेक्स पीसीआर में विभिन्न प्राइमरों की सहायता से कई रोगजनकों की एक साथ पहचान कम समय में की जा सकती है। वायरल रोगजन्य  पीसीआर की सफलता डीएनए निष्कर्षण, अवरोधकों की उपस्थिति, पीसीआर पोलीमरेज़ गतिविधि और पीसीआर बफर आदि जैसे घटकों पर निर्भर करती है । यह आभासी सकारात्मक परिणाम दे सकता है अगर प्राइमर किसी भी समान लेकिन अलग डीएनए अनुक्रम के साथ जुड़ता है।

प्राइमर डेटा का ज्ञान, प्राइमर डिज़ाइनिंग, महँगे रसायन, बुनियादी ढाँचे एवं कुशल विशेषज्ञता इस तकनीक की बाधाएँ हैं। इसके अलावा, विस्तृत डेटा नमूनाकरण और प्रसंस्करण प्रक्रिया इसकी प्रयोज्यता में बाधा डालती है।सीरोलॉजिकल तकनीक, एलिसा (इएलआइएसए) अपने विशिष्ट एंटीजन के आधार पर वायरस, बैक्टीरिया और कवक का पता लगाने में सक्षम बनाती है।विशिष्ट एंटीजन विशेष रूप से एक एंजाइम से संयुग्मित एंटीबॉडी के साथ बांधती हैं।

स्थिर एंजाइम के सब्सट्रेट को डालने से रंग में परिवर्तन होता है जो दिखाई देता है और साथ ही एंटीजन-एंटीबॉडी इंटरेक्शन के मात्रात्मक परिणाम भी देता है। रिकोम्बिनेट और विशिष्ट मोनोक्लोनल एंटीबॉडी के उपयोग ने पौधे के रोग का पता लगाने में इसके प्रदर्शन और उपयोग को बढ़ा दिया है। नबी एवं सहकर्मियों ने डबल एंटीबॉडी सैंडविच-एलिसा, रिवर्स ट्रांसक्रिप्शन-पीसीआर एवं रियल टाइम आरटी-पीसीआरकी मदद से एप्पल स्टेम ग्रूविंग वायरसऔर एप्पलस्टेम पिटीगं वायरसका पता सफलतापूर्वक लगाया है।

एलिसा(इएलआइएसए)एक किफायती तकनीक है और दृश्य रंग परिवर्तन से रोगज़नक़ को पता लगानाआसान हो जाता है। लक्षण प्रकट होने से पहले कम पता लगाने के लिए बैक्टीरिया के लिए कम संवेदनशीलताइस तकनीक की कुछ कमियां हैं। एलिसा (इएलआइएसए)एकल-लक्ष्य पर आधारित है, इसलिए सभी लक्षित रोगजनकों की स्क्रीनिंग बहुत धीमी और कठिन है।

इम्युनोफ्लोरेसेंस (आईएफ) प्रतिदीप्ति सूक्ष्मदशंक यंत्रपर आधारित तकनीक है जो उच्च विशिष्टता के साथ संक्रामक रोगज़नक़ों का पता लगती है। इस तकनीक में, रोगग्रस्त नमूने को पतले ऊतक सेक्शन में सूक्ष्मदशंक यंत्र के स्लाइड पर रखकर नमूना के लक्ष्य अणु के वितरण को विशिष्ट एंटीबॉडी संयुग्मित फ्लोरोसेंट डाई देखा जाता है। प्याज में बोट्राइटीससिनरेरियारोगजनक का पता फेंग एवं रामास्वामी(२०१५) ने इम्युनोफ्लोरेसेंस द्वारा किया।

फ्लुरोसेंसे इन्सिटु हाईब्रिडईजेशन(एफ आई एस एच) एक आणविक तकनीक है जो रोगग्रस्त पौधे के नमूने में लक्ष्य जीन की पहचान करने के लिए फ्लोरोसेंट डीएनए जांच का उपयोग करती है। यह अन्य आणविक और सीरोलॉजिकल तकनीकों के विपरीत,कल्चर करने योग्य रोगज़नक़ों के अलावा,कल्चर अयोग्य रोगज़नक़ों का पता लगाने की भी सुविधा प्रदान करता है। आई एफऔर एफ आई एस एचदोनों फोटोब्लिचिंग समस्या के कारण आभासी सकारात्मक परिणाम देते हैं।

हालांकि, फोटोबोलेचिंग के कारण संवेदनशीलता में कमी को फ्लोरोफोरेस की सांद्रता को बढ़ाकर, प्रकाश की तीव्रता और अवधि को कम करके तथा अधिक मजबूत फ्लोरोफोर जोकि फोटोब्लॉचिंग के लिए कम संवेदनशील का उपयोग करके रोकी की जा सकती है।फ्लो साइटोमेट्री (एफ सी एम) एक लेज़र-आधारित ऑप्टिकल डिटेक्शन तकनीक है।कोशिकओं याकणों वाले नमनो को एक तरल पदार्थ मे निलम्बित कर एफ सी एम मे इन्जेट किया जाता है।

नमूने कि पतली प्रवाहको लेजर बीम से गुजारा जाता है जिससे कि विभन्न कोशिकाएंऔर उनके घटक अनोखे बिखरे हुये प्रकाश देते है।यह आकार, परिमाण और सूक्ष्म जीवों की संख्या जैसे कई मापदंडों के एक साथ माप के लिए उपयुक्त है। यह अत्यधिक संवेदनशील तकनीक बहुत कम समय में परिणाम देती है और स्क्रैप, रिंस, तरल पदार्थ या पूरे द्रव नमूनोमें विशिष्ट जीवित जीव का पता लगाने की अनुमति देती है।

उपयुक्त फ्लोरोसेंट टैग और मोनोक्लोनल एंटीबॉडी के उपयोग से संवेदनशीलता को बढ़ाया जा सकता है। एक न्यूक्लिक एसिड विशिष्ट डाई सायबरग्रीन-I  की सहायता से समुद्रीजल के वायरस का मापन भी संभव है। हालांकि, विश्लेषण से पहले कई मन्दन चरण की पूर्व आवश्यकता, इस तकनीक की सीमा है। फ्लो साइटोमीटर बहुत सारे डेटा उत्पन्न करता है जो विश्लेषण को श्रमसाध्य बनाता है।फ्लो साइटोमीटर का नियोजन पेक्टोबैक्टीरियम कैरोटोवोरमका सफलतापूर्वक पता लगाने के लिए किया गया (गोलन और अन्य, २०१०)।

अप्रत्यक्ष रणनीति मुख्य रूप से प्रतिकृति (इमेजिन्ग) तकनीकें हैं जो जैविक और अजैविक तनावों में पौधे की स्थिति का पता लगाती हैं। ये बहुत संवेदनशील, तेज, गैर-विनाशकारी और बड़ी डेटा जानकारी के लिए उपयोग किए जाते हैं। विभिन्न फसलों में रोग की भविष्यवाणी के लिए अप्रत्यक्ष तकनीक जैसे कि हाइपरस्पेक्ट्रल इमेजिंग, थर्मोग्राफी, प्रतिदीप्ति इमेजिंग और गैस क्रोमैटोग्राफीलागू की गई हैं।

सेब में वेन्चुरा इनेकुँलिस का पता हाइपरस्पेक्ट्रल इमेजिंग से देलालयूक्स और सहकर्मियों ने २००७ में लगाया।थर्मोग्राफी से ओडियम नियोक्लोपरसी की जाँच टमाटर में किया गया(प्रिंस और अन्य २०१५)।गैस क्रोमैटोग्राफी- मास स्पेक्ट्रोमेट्री से नारंगी में साइट्रस ट्रिस्टेजा वायरसको पहचना गया (चेउंग और अन्य २०१५)।

हाल के वर्षों में, बायोसेंसर कृषि, रोगविषयक ​​और पर्यावरण क्षेत्र में निदानकारी ​​उपकरण के रूप में उभरे हैं। एक बायोसेंसर एक विश्लेषणात्मक उपकरण है जो जैविक घटक को भौतिक-रासायनिक ट्रांसड्यूसर के साथ जोड़ता है तथा बायोमोलेक्यूल या सूक्ष्म जीव की उपस्थिति को मापता है।

रोगज़नक़ बायोसेंसिंग विधियाँ रोगज़नक़ के विभिन्न बायोरेसेप्टर की आणविक पहचान पर आधारित हैं। एंटीबॉडी, एंजाइम, डीएनए, सेल्स, फेज, बायोमिमैटिक जैसे बायोरेसेप्टर को ऑप्टिकल, केमिकल, मैग्नेटिक, इलेक्ट्रोकेमिकल, इलेक्ट्रिकल या वाइब्रेशनल सिग्नल पर आधारित सेंसरों के इस्तेमाल से पहचाना जा सकता है। पहचान की सीमा बढ़ाने के लिए ट्रांसड्यूसर के रूप में मैट्रिसेस का नैनोमैटेरियल एक विकल्प हो सकता है।

लगभग सभी बायोसेंसर रोगों की विशिष्टता, सुवाह्यता और चयनात्मकता बढ़ाने के लिए फायदेमंद हैं।अधिकांश एंटीबॉडी आधारित बायोसेंसर का उपयोग वॉल्यूमेट्रिक, फ्लोरोसेंट, सरफेस प्लास्मोन रेजोनेंस (एसपीआर), इलेक्ट्रोकेमिकल प्रतिबाधा स्पेक्ट्रोस्कोपी (ईआईएस) और लेबल फ्री क्वार्ट्ज क्रिस्टल माइक्रोब्लैंस (क्यूसीएम) तकनीकों का उपयोग करके किया गया है।

इसी तरह, डीएनए आधारित बायोसेंसर में लेबल-मुक्त डीएनए संकरण वाल्टामेट्रिक आदि के अलावा इलेक्ट्रोल्यूमिनेशन, ऑप्टिकल, फ्लोरोसेंट औरक्लोरोमेट्रिक विधियां शामिल हैं।ट्राइकोडर्मा हर्ज़ियानम, बनाना बन्ची टॉप वायरस, बोट्रीटिस सिनेरिया, बोट्रीटिस स्क़मोसा आदि जैसे रोगजनको का पता डीएनए पर आधारित बायोसेंसर से किया गया (सिद्धिकी और अन्य, २०१४; वेई और अन्य, २०१४; वांग एंड ली २००७)।

एंटीबॉडी आधारित बायोसेंसर के प्रयोग से पल्म पॉक्स वायरस, कुकुम्बर मोज़ेक वायरस जैसे रोजनक की पहचान हुई है (जरोका और अन्य, २०११; जिओ वेई और अन्य, २०००)।खोत और अन्य (२०१२) वैज्ञानिको ने नेनो-मटेरियल आधारित बायोसेंसर से तिल्लेटिया इंडिका का पता लगाया है।

पारंपरिक पहचान तकनीकों का उपयोग उनके समय- और श्रम-गहन प्रकृति के बावजूद, उनकी उच्च संवेदनशीलता और चयनात्मकता के कारण किया जाता है।दूसरी ओर, उन्नत पादप रोगजनको की पहचान करने वाली तकनीक ने,फसलो में बीमारी के स्वचालित, संवेदनशील और वास्तविक समय पर ही अवलोकन का मार्ग खोला है।

हाल ही में बायोसेंसर आधारित पहचान ने पोर्टेबिलिटी के अलावा रोगज़नक़ पहचान की चयनात्मकता को बढ़ाने की जबरदस्त क्षमताप्रदशित किया है।जैसा कि ज़ाय्मो रिसर्च कॉर्पोरेशन (यु एस ए) के आदर्श वाक्य में कहा गया है कि, "विज्ञान की सुंदरता चीजों को सरल बनाना है।"

इस प्रकार, हमें विश्वास है कि नैनो तकनीक एवं बायोसेंसर के संयोजन से सटीक, संवेदनशील, सस्ती, सुविधाजनक, मल्टीप्लेक्स, पूरी तरह से एकीकृत, और पोर्टेबल यंत्र के सफल विकास और व्यावसायीकरण होने की संभावना है, ताकि शोधकर्ताओं और किसानो द्वारा खेतो में सरलता से रोगजनको के मूल्यांकन में मदद होहो सके।


Authors:

ज्योत्सना तिलगाम1, एम. आशा ज्योति2,सुरिन्द्र पॉल1एवंआदर्शकुमार1

1 भा.कृ.अनु.प.- राष्ट्रीय कृषि उपयोगीसूक्ष्मजीव ब्यूरोकुशमौर, मऊ नाथ भंजन-२७५१०३ (उ.प्र.)

2 भा.कृ.अनु.प.- भारतीय बीज विज्ञान संस्थान, मऊ नाथ भंजन-२७५१०३ (उ.प्र.)

Email - til gam.jyotsana@gmail .com

 

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