Top Rot Disease of Sugarcane and its control

बिहार प्रदेश में चीनी उद्योग कृषि पर ही निर्भर है एवं गन्ना ही चीनी मिलों के लिए कच्चा माल है तथा प्रदेश के लिए प्रमुख नगदी फसल है। जैसा कि हम सब जानते है कि गन्ना एक दिर्घ अवधि वाला फसल है जो खेतों में खड़ी रह कर विभिन्न ऋतुओं से गुजरता है एवं अनेक प्रकार के किट व्याधियों के जीवन चक्र से ग्रसित हो कर गुजरता है, जिसके परिणाम स्वरूप गन्ने की फसल को काफी हद तक हानी पहुँचता है।

गन्ना की खेती तना गेंड़ीयों से होती है और लगभग साल भर खेत में खडी रहती है। तना गेड़ियों से उपजाई जाने वाली फसलों पर रोगों के आक्रमण से काफी हद तक क्षती होती है, इसलिए गन्ना बीज चुनाव हेतु थोड़ी सी चुक काफी नुकसानदायक साबित होती है। इसे विभिन्न तापक्रम एवं आर्द्रता से भी गुजरना पड़ता है जिससे कि अनेक रोगों के प्रसार हेतु कभी-न-कभी अनुकुल वातावरण प्राप्त हो जाता है और पौधे विभिन्न प्रकार के रोगों से ग्रसित हो जाते है।

किसी-किसी क्षेत्रों में गन्ने के बाद गन्ने की फसल बुआई  की जाती है जिसके फलस्वरूप गन्ने के कटे-छटे अवशेषों से मिट्टी में व्याधिजनों के पलने और फैलने का मार्ग मिल जाता है एवं प्रकृति में व्याधिजनों के नये-नये जातिकाऐं विकसित होते रहते है, जो कि नये प्रभेदों की रोगरोधी क्षमता को कम कर ग्रसित करने में सहायक होते है एवं फसल को काफी हद तक नुकसान पहुँचाते है।

भातरवर्ष में गन्ने की फसल में 100 से ज्यादा रोगों की उतपत्ति प्राप्त है परन्तु बिहार प्रदेश में लगभग 20 रोगों से गन्ना फसल को नुकसान होता है तथा औसतन 10-15 प्रतिशत एवं कभी-कभी इससे भी ज्यादा किसान बंधुओं एवं चीनी मिलों को नुकसान उठाना पड़ता है। गन्ना फसल के रोगों को चार भागों में विभाजित किया गया है। (क) फफुँद जनित रोग (ख) शाकाणु जनित रोग (ग) विषाणु जनित रोग (घ) फाईटोफ्लाज्मा जनित रोग। 

बिहार प्रदेश में निम्नलिखित बिमारियों से फसल ग्रसित होते है जिससे की फसल पूरी तरह नष्ट भी हो जाता है एवं भारी क्षति होती है।

(क) फफुँद जनित रोग (ख) शाकाणु जनित रोग
1 लालसर 1 लालधारी
2 सूखा 2 पर्ण झुलसा
3 कालिका 3 खँटी का कुँठन
4 गलित शिखा    
5 गेंड़ी सड़न    
(ग) विषाणु जनित रोग (घ) फाईटोफ्लाज्मा जनित रोग
1 मोजैक   1 घासिय प्ररोह
2 पीला पत्ता              

इन रोगों में सबसे ज्यादा फफूँद जनित रोगों से गन्ने फसल को नुकसान होता है जिसमें गलित शिखा रोग भी प्रमुख्य है तथा हानि होता है । गलित शिखा रोग से उपज एवं चीनी की मात्रा में कमी आँकी गई हैं साथ ही पिछले पाँच (05) वर्षो में इस रोग से महत्वपूर्ण प्रभेद भी ग्रसित हुऐ है।

यह एक फफुँद (फ्यिूजेरियम मोनीलिर्फमी) कारक के द्वारा होता है। इस रोग का प्रकोप माह मार्च-अप्रैल से दिखाई देता है। यह रेाग प्रायः आक्रांत गेड़ी, वर्षा का पानी एवं अक्रांत अवशेषों से ज्यादा फैलता है।

इस रोग से लगभग 2.0 से 22.5 प्रतिशत तक एवं उग्रावस्था में 80 प्रतिशत तक उपज एवं 10.8 से 64.5 प्रतिशत तक की चीनी की मात्रा में कमी हो जाती है। जिससे किसान एवं चीनी मिलों को काभी हद तक नुकसान सहना पड़ता है।

इस रोग का प्रकोप माह मई से अगस्त तक प्रायः अधिक पाया गया है। बिहार के वातावरण में इस रोग की वृद्धि हेतु तापक्रम 240 से0 से 300 से0, नमी 75-85 प्रतिशत एवं 700-1000 मी0मी0 बारिश उपयुक्त पाया गया है। शुरुआत में इस रोग से अक्रान्त पौधों के लक्षण शिर्ष भाग की प्रथम एवं कोमल पत्तियों पर दिखाई पड़ती है।

ग्रसित पत्तियाँ एक दूसरे के साथ मिलकर घुमावदार हो जाती है एव पत्तियों का रंग हल्का पीला एवं दुधिया रंग का प्रतीत होता है। ग्रस्त पौधों की नीचे की पत्तियाँ प्रायः अन्य पत्तियों के अपेक्षा छोटी एवं नुकिली हो जाती है।

कुछ अन्तराल के उपरान्त पत्तियाँ हल्का झूलसा हुआ लाल धारी की तरह होने लगती है। ऐसे अक्रान्त बिन्दु से पत्तियों में बहुत सा छिद्र भी दिखाई पड़ता है। इसके उपरान्त अक्रान्त बिन्दु से पत्तियाँ टुटकर नीचे की ओर झुक जाती है एवं शिर्ष भाग से बहुत सी शाखाओं का निर्माण होता है जिससे कि ईख का उपरी भाग झाड़ीनुमा हो जाता है।

परिपक्व गन्ना रोग के उग्रावस्था में फुनगी पर चाकु से कटे जैसा दिखाई पड़ता है, जिससे कि अन्त में गन्ने का उपरी भाग सड़ना शुरू हो जाता है, और  पूरा पौधा कुछ समय पश्चात ऊपर से गलकर नष्ठ हो जाता है एवं पौधे की वृद्धि बिन्दु सड़ जाने की बजह से पौधों की बढ़वार रुक जाती है। जिससे की उपज क्षमता एवं चीनी की मात्रा में भारी कमी आ जाती है।

गलित शिखा 

पिछले पाँच (05) वार्षो में विभिन्न क्षेत्रों के निरीक्षण के दौरान देखा गया है कि अनेक निम्नलिखित विकसित उन्नत प्रभेद इस रोग से ग्रसित हुए हैं, जिनमें बिमारी की प्रतिशत निम्नतम 1.4 प्रतिशत से अधिकतम 21.2 प्रतिशत तक आंकी गई है।

गलित शिखा रोग से ग्रसित प्रभेद

प्रभेद रोग (प्रतिशत)
पूसा हसनपुर             हरिनगर             नरकटियागंज कल्याणपुर माधोपुर मझौलिया
को0 पू0 2061 3.0 4.3 4.6 6.2 8.1 3.6 4.6
को0 पू0 112 2.1 1.4 1.6 3.6 4.6 1.8 1.6
बी0ओ0 153 4.2 3.0 4.6 6.4 4.4 2.4 3.6
बी0ओ0 154 6.0 6.2 8.2 7.2 6.2 6.2 8.4
बी0ओ0 91 4.2 5.2 4.4 4.2 - 2.4 6.2
को0 पू0 9301 5.0 3.2 4.1 4.1 5.2 4.2 5.2
सी0 ओ0 0238 - 12.2 10.2 16.1 - - 18.2
सी0 ओ0 0118 - 11.3 11.8 12.6 - - 12.4
सी0 ओ0 एस0 ई0 95422 21.2 - - - - - -
को0 पू0 16437 3.4 2.4 3.0 4.0 4.0 3.0 4.0

नियंत्रण

रोग के पहचान के बाद वक्त रहते रोगों का निदान करना आवश्यक है। निम्न बिंदुओं पर ध्यान दे कर फसल को नुकसान से काफी हद तक बचाया जा सकता है।

  1. फसल कटने के बाद सुखी पत्तियों तथा कटे-फटे अवशेषों को जमा करके नष्ठ कर देना चाहिए। इससे जीवाणु की संख्या में काफी कमी हो जाती है।
  2. गर्मी के मौसम में गहरी जुताई करनी चाहिए, इससे घास तथा ईख के अवशेषों पर पलने वाले जीवाणु नष्ट हो जाते है।
  3. अनुशंसित प्रभेदों का चयन कर स्वस्थ तथा प्रमाणित बीज का व्यवहार करना चाहिए।
  4. रोग मुक्त खेतों से स्वस्थ तथा शुद्ध बीज का उपयोग करें ।
  5. रोगग्रस्त खेतों में खूँटी फसल न लें।
  6. रोगग्रस्त खेतों से हो कर सिंचाई की नालियाँ न बनावें।
  7. जल-जमाव की स्थिति में गलित शिखा रोग का फैलाव अधिक होता है। इसलिए ईख के लिए ऊँची जमीन का चुनाव करना चाहिए। यदि यह सम्भव नहीं हो तो जल निष्कासन का जरूर प्रबन्ध करना चाहिए।
  8. ईख फसल पर इस रोग के निदान हेतु गन्ने के गेंड़ी को कार्बेन्डाजीम (फफूँदनाशी) का 0.1 प्रतिशत दवा को प्रति लीटर पानी में 30 मिनट तक उपचारित कर प्रयोग करना चाहिये। इस रोग का लक्षण खड़े फसल में दिखाई देने पर कार्बोनेडाजीम दवा का 1.0 ग्राम प्रति ली0 अथवा मैनकोजेब दवा का 2.0 ग्राम प्रति ली0 दवा पानी में घोलकर 15 दिनों के अन्तराल पर तीन बार छिड़काव करने से रोग वृद्धि में काफी कमी होती है एवं रोग की नियंत्रित किया जा सकता है।

Authors:

मिन्नतुल्लाह एवं शिव पूजन सिंह

ईख अनुसंधान संस्थान, डा0 राजेन्द्र प्रसाद केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय, पूसा

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