Management of Root-knot Nematode in Pomegranate

सूत्रकृमि (निमेटोड) एक तरह का पतला धागानुमा कीट होता है। यह जमीन के अन्दर पाया जाता है। इसे सूक्ष्मदर्शी की सहायता द्वारा आसानी से देखा जा सकता है। इनका शरीर लंबा बेलनाकार तथा बिना खंडों वाला होता है। मादा सूत्रकृमि गोलाकार एंव नर सर्पिलाकार आकृति का होता है। इनका आकार 0.2 मि.मी. से 10 मि.मी. तक हो सकता है। सूत्रकृमि कई तरह के होते हैं और इनमें से प्रमुख जड़गांठ सूत्रकृमि है।

इनका प्रकोप फसलों पर ज्यादा देखा गया है। ये परजीवी सूत्रकृमि के रूप में मृदा अथवा फसलों के ऊतकों में रहते हैं। ये कई वर्षों तक मिट्टी के नीचे दबे रह सकते हैं और पौधों को नुकसान पहुंचाते हैं। सूत्रकृमि का प्रकोप सभी फसलों पर होता है।

इसके कारण जड़ में गांठ का सूखापन, पुट्टी का सूखापन, नीबू का सूखापन, जड़ गलन का सूखापन, जड़ फफोला आदि रोग होते हैं।

भारत, विश्व में अनार उत्पादन एवं क्षेत्रफल की दृष्टि से प्रथम स्थान पर है। देश में महाराष्ट्र, गुजरात, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, राजस्थान तथा तेलंगाना राज्यों का अनार उत्पादन में मुख्य स्थान प्राप्त है। जड़गांठ सूत्रकृमि, मेलोइडोगाइन इनकॉग्निटा अनार के बगीचे में उपज की हानि का कारण बनता जा रहा है। इस सूत्रकृमि को राजस्थान में अनार की एक गंभीर समस्या के रूप में देखा जा सकता है।

वर्तमान में राजस्थान के बाड़मेर, जालौर, जोधपुर और नागौर जिलों में इसका प्रकोप दिनों-दिन बढ़ता जा रहा है। जड़गांठ सूत्रकृमि (मेलोइडोगाइन इनकॉग्निटा), भारत में कई बागवानी और सजावटी पौधों का एक  विनाशकारी सूत्रकृमि है।

पश्चिमी क्षेत्र में इस सूत्रकृमि का प्रकोप देखा गया है। यह अनार की नर्सरी और बगीचों के लिए एक प्रमुख चिता का विषय बन गया है। ये सूत्रकृमि, फफूंदजनित रोगों के परिसरों के लिए जाने जाते हैं। इस सुत्रकृमि ने अनार के बगीचे में कवक रोगों के प्रतिरोध के टूटने में प्रमुख भूमिका निभाई है। ये मुख्य रुप से रोपण सामग्री द्वारा मुख्य क्षेत्र में प्रेषित होते हैं।

इस सूत्रकृमि का प्रकोप मुख्य रूप में अनार की नर्सरी और बागानों में होता है। इस सूत्रकृमि से प्रभावित पेड़ पीले, सुखे और रूखे लक्षणों को प्रदर्शित करते हैं तथा पौधे की जड़ प्रणाली विशिष्ट कठोर जड़‌गाठ दिखाती है।

प्रबंधन के दृष्टिकोण में सुत्रकृम प्रतिरोधी किस्मों का चयन गैर होस्ट या खराब मेजबान फसलों के साथ नर्सरी क्षेत्र में उपयुक्त फसलचक्र को अपनाना, नर्सरी को बढ़ाने के लिए सूत्रकृमि मुक्त क्षेत्रों का चयन करना, मुदा के सौरीकरण द्वारा नर्सरी का कीटाणुशोधन करता, बीज और मृदा के उपचार में शामिल हैं।

लक्षण

 अनार के बगीचों में पत्तियों का पीलापन, पौधे का बौनापन, मुरझाना या सूखना, जड़ों में गांठों का निर्माण और पेड़ों पर कम फल बनना आदि जड़गांठ सूत्रकृमि के प्रमुख लक्षण हैं।

 प्रबंधन

अनार के पेड़ों में जड़गांठ सूत्रकृमि के नियंत्रण के लिए अनार उत्पादकों द्वारा निम्न प्रबंधन विकल्प अपनाए जा सकते हैं;

  • पौध की स्थापना/रोपण से पहले नर्सरी/ मुख्य बागीचे की गर्मियों में गहरी जुताई
  • रोपण सामग्री जड़गांठ सूत्रकृमि से रहित होनी जरूरी
  • रोपाई से पहले फसलचक्र को अपनाना
  • पॉलीथीन बैगों को भरने के लिए सोलराइज्ड मिट्टी का उपयोग करें अथवा नर्सरी की मिट्टी को 2-3 सप्ताह के लिए सफेद पारदर्शी शीट (100 गेज) द्वारा मई के महीने के दौरान मदर प्लांट से पॉलीथिन बैग या नर्सरी में ग्राफ्ट स्थापित करने से पहले उपयोग करना आवश्यक।
  • पेसिलोमाइसेस लिलासिनस का जड़गांठ सूत्रकृमि के जैविक नियंत्रण के लिए प्रयोग।
  • जड़गांठ सूत्रकृमि का प्रकोप ज्यादा होने पर सबसे पहले रासायनिक नेमाटीसाइड का प्रयोग कर सकते हैं ताकि इनकी आबादी को नुकसान की सीमा से कम किया जा सके। इसके लिए किसान दानेदार नेमाटीसाइड फ्लुएनसल्फॉन 2 प्रतिशत जी. आर. का उपयोग कर सकते हैं। दानेदार नेमाटीसाइड का उपयोग करने के लिए, ड्रिपर के नीचे एक छोटा सा गड्डा (5-10 से.मी.) बनाएं और दानेदार रसायन/10 ग्राम प्रति ड्रिपर (अधिकतम खुराक 40 ग्राम पौधे से अधिक नहीं होना चाहिए) लागू करें, इसे मिट्टी से ढककर पानी देना शुरु कर दें।
  • एक अन्य नेमाटीसाइड जैसे फ्लूपीरम 34-48 प्रतिशत एससी/5 मि.ली./पौधे के साथ भी ट्रेंचिंग किया जा सकता है। भीगने से पहले पौधे में पर्याप्त रूप से पानी दिया जाना चाहिए। दो लीटर पानी में 2 मि.ली. नेमाटीसाइड मिलाएं और 500 मि.ली. प्रति ड्रिपर (4 ड्रिपर पौधा) या 10000 मि.ली. प्रति ड्रिपर (2) ड्रिपर/ पौधा) डालें।
  • अनार का स्वस्थ पौधा प्रभावी परिणाम प्राप्त करने हेतु 3-4 महीने के लिए अनार के पौधों के बीच की जगह में पूसा नारंगी गंदा और पूसा बसंती गंदा जैसी अफ्रीकी गेंदा किस्मों का रोपण करना चाहिए।

Authors:

पार्वती, सीमा यादव

वरिष्ठ वाचस्पति शोध , पादप सूत्रकृमि विभाग 

कृषि विश्वविदध्याल्य  उदयपुर   राजस्थान

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