Major nematodes of Wheat crop and their management
गेहूँ विश्व की सबसे ज्यादा खायी जाने वाली अनाज की फसल है तथायह भारत में बोई जाने वाली रबी की एक मुख्य फसल है l गेहूँ में न केवल कार्बोहायड्रेट प्रचुर मात्रा में होता है, अपितु प्रोटीन की मात्रा भी पाई जाती है l इसके अतिरिक्त गेहूँ में एंटीऑक्सीडेंट, विटामिन खनिज एवं रेशे भी भरपूर मात्रा में विद्यमान है l भारत में यह फसल 307.2 लाख हेक्टेयर भूमि पर उगाई जाती है l
उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा एवं मध्य प्रदेश इसके मुख्य उत्पादक राज्य हैं l उत्पादकता की दृष्टि से हरियाणा राज्य दूसरे स्थान पर है, जबकि पंजाब उत्पादकता में प्रथम स्थान पर है l
बहुत सी बीमारियाँ व कीड़े गेहूँ की फसल को नुकसान पहुंचाते हैं l सूत्रकृमि की समस्या भी इसके सफल उत्पादन को प्रभावित करने वाला मुख्य कारक है l हेटेरोडेरा अवेनी एवं अन्गुइना ट्रिटीसि गेहूं में आने वाले अहम सूत्रकृमि हैं जिनका वर्णन नीचे दिया गया हैl
(क) अन्गुइना ट्रिटीसि
यह एक बीज जनित सूत्रकृमि है l एक संक्रमित बीज में लगभग 3000-12000 छोटे-छोटे सूत्रकृमि रहते हैं l ज़मीन से नमी लेने के बाद दूसरी अवस्था के किशोर (लार्वे) सक्रिय हो जाते हैं व बाह्यपरजीवी के रूप में पौधे से भोजन लेते हैं l
फसल में दाने बनने के समय ये सूत्रकृमि पनपते हुए दानों में चले जाते हैं व अन्तःपरजीवी बन जाते हैं l तत्पश्चात यह सूत्रकृमि जल्दी से अपनी सभी अवस्थाएं पूरी कर लेता है l अंत में बीज के स्थान पर एक अन्य बीज रुपी सरंचना (ममनी या कोकल) बना लेते हैं जिसमे सिर्फ दूसरी अवस्था के किशोर ही पाए जाते हैं l
लक्ष्ण:
- पौधे की बढ़वार रुक जाती है व फुटाव अपेक्षाकृत ज्यादा होता है l
- बालें छोटी रह जाती हैं तथा मोटी हो जाती हैंl
- बीज की तुलना में कोकल का आकार छोटा रहता है l
- अनुकूल वातावरण मिलने पर क्लेवीबेक्टेर ट्रिटीसि नामक जीवाणु के साथ मिलकर यह सूत्रकृमि टूंडू नामक बीमारी फैलता है l
- टूंडू बीमारी में
- प्राय बालें बूट पत्तों से बाहार नहीं आ पाती तथा इनमे दाने भी नहीं बन पातेl
- ग्रसित बालों में जीवाणु द्वारा बनाये गए पीले रंग के चिपचिपे पदार्थ का स्राव होता है l
रोकथाम:
- प्रमाणित बीज का प्रयोग करें l
- ग्रसित बीजों को 10% नमकीन पानी में डुबो दे और तैरती हुई ममनियो को छलनी की सहायता से छान लें l इसके बाद बीज को साफ पानी से अच्छी तरह धो लें l स्वस्थ बीज को बीजने से पहले छाया में सुखा लें l
(ख). हेटेरोडेरा अवेनी
यह एक अन्तःपरजीवी सूत्रकृमि है l गैर मौसमी समय में अंडे इसकी मृत मादा, जिसे सिस्ट या पुटी भी कहते हैं, के शरीर में रहते हैं l अक्तूबर माह में दूसरी अवस्था के किशोर मृत मादा को छोड़ कर गेहूँ की जड़ों में घुस जाते हैं l जड़ में घुसने के बाद ये अपनी सभी अवस्थाएं जड़ों में ही पूरी करते हैं l
जनवरी के अंत में जड़ों पर सफ़ेद रंग की मादा दिखाई देती है l एक साल में यह सूत्रकृमि एक ही पीढ़ी पूरी कर पाता है l इस सूत्रकृमि के कारण गेहूँ व जौ में ‘‘मोल्या’’बीमारी होती है l
लक्ष्ण:
- खेत में कहीं कहीं पर पत्ते पीले पड़ जाते हैं तथा पौधे बोने रह जाते हैं l
- ग्रसित पौधे की जड़ों पर गांठें बन जाती हैं और पौधे में फुटाव कम होता है l
- पौधे की जडें झाड़ीनुमा रह जाती हैं l
- प्रभावित पौधों पर कम दानों वाली छोटी बालें आती हैं l
रोकथाम:
- मई-जून के महीने में 15 दिन के अन्तराल पर 2-3 गहरी जुताई करें l
- 1-2 साल तक गेहूँ/जौ के स्थान पर सरसों या चना या अन्य फसल लगायें l
- रोगरोधी किस्में जैसे BH 393, BH-75 और गेहूं की Raj MR-1 खेत में लगायें l
- 15 नवम्बर से पहले-पहले गेहूँ की बिजाई पूरी कर लेंl
- अधिक संक्रमण वाले क्षेत्र में कार्बोफ्यूरान का 33 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से बिजाई के समय उपयोग करें l
- 6. अजोटोबेक्टर क्रोकोम (HT-54) या अजोटीका का 50 मि. ली. प्रति 10 किलोग्राम बीज की दर से बीज उपचार करें l इसके उपरान्त बीज को छाया में सुखाएं l
Authors:
गुरप्रीत सिंह एवं आर एस कंवर
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