Symptoms, disease spread and disease management of loose smut disease in wheat

गेहूँ (ट्रिटिकम प्रजाति) न केवल भारतीय परिदृश्य में अपितु वैश्विक स्तर पर एक महत्वपूर्ण खाद्यान्न फसल है जोकि विभिन्न प्रकार की जलवायु, भौगोलिक क्षेत्र एवं फसल परिस्थितियों के बीच उगाई जाती है। यह करोडों लोगो का मुख्य खाद्य है। दुनिया में समस्त कृषित भूमि के लगभग छठे भाग पर गेहूँ की खेती की जाती है। गेहूँ विश्व के सभी प्रायद्वीपों में उगाया जाता है।

गेहूँ विश्व की निरंतर बढ़ रही जनसंख्या के लिए लगभग २० प्रतिशत आहार कैलोरी की पूर्ति करता है। भारतीय परिदृश्य में गेहूँ खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने वाली महत्वपूर्ण फसलों में से एक है।

दुनिया  में भारत गेहूँ का दूसरा सबसे बडा उत्पादक देश है। हमारे देश में वर्ष 2023-24 में लगभग 31 मिलियन हैक्टेयर भूमि से रिकॉर्ड 112.92 मिलियन टन गेहूँ का उत्पादन होने का अनुमान है।

उपज में बढत बनाए रखने के लिए जैविक एवं अजैविक प्रतिबलों का प्रबंधन अति आवश्यक है। गेहूँ की उपज को सीमित करने की क्षमता रखने वाले बहुत से रोग इस फसल में लगते हैं जिनमें रतुआ अथवा गेरूई (तना, पत्ती व पीला रतुआ), चूर्णिल आसिता, करनाल बंट, पत्ती झुलसा या स्पॉट ब्लॉच आदि प्रमुख हैं।

इन रोगो के साथ-साथ गेहूँ में बीज-जनित रोग खुला कंडवा भी एक मह्त्वपूर्ण रोग है जिसका निदान एवं प्रबंधन आवश्यक है।  

खुला कंडवा (लूज स्मट) रोग के लक्षणः

खुला कंडवा रोग को गेहूँ की खुली कंगीयारी, अनावृत कंड एवं लूज स्मट रोग जैसे अन्य नामों से भी जाना जाता है। यह रोग अन्त: बीजजनित रोग है। इस रोग के लक्षण केवल बालियां निकलने पर दृष्टिगत होते हैं।

इस रोग में पूरा पुष्पक्रम (रैचिस को छोडकर) स्मट बीजाणुओं के काले चूर्णी समूह में परिवर्तित हो जाता है। यह चूर्णी समूह प्रारम्भ में पतली कोमल धूसर झिल्ली से ढका होता है जो शीघ्र ही फट जाती है और बडी संख्या में बीजाणु वातावरण में फैल जाते हैं।

यें काले बीजाणु हवा द्वारा दूर स्वस्थ पौंधों तक पहुंच जाते हैं जहाँ ये अपना नया संक्रमण कर सकते हैं।  

चित्र 1: गेहूँ के खेत में अनावृत कंड रोग से ग्रसित बालियां

रोग का विकास एवं रोग प्रसार:

लूज स्मट रोगजनक टीलियोबीजाणुओं को हवा द्वारा खुले पुष्पों पास उडाकर पहुंचाया जाता है और ये अंडाशय को या तो स्टिग्मा के माध्यम से या सीधे अंडाशय की दीवार के माध्यम से संक्रमित करते हैं। एक खुले पुष्पक (फ्लोरेट) में उतरने के बाद, टीलियोबीजाणु बेसिडियोबीजाणु को जन्म देते हैं।

बेसिडियोबीजाणु वही अंकुरण करते हैं। दो संगत बेसिडियोस्पोर के हाइपे फिर एक द्विकेंद्रकीय चरण को स्थापित करने के लिए संलयन (फ्यूज) करते हैं। अंडाशय के अंदर अंकुरण के बाद, कवकजाल बीज में विकासशील भ्रूण पर आक्रमण करता है। कवक बीज में अगले बुवाई मौसम तक जीवित रहता है।

बुवाई के बाद जैसे-जैसे नया पौधा बढ़ता है, इसके साथ कवक बढ़ता है। एक बार जब फूलों के बनने का समय होता है, तो फूलों के स्थान पर टीलियोबीजाणु उत्पन्न होते हैं और विकसित होते हैं जहाँ कि बीज अथवा दानों को बनना था। रोगी पौधे गेहूँ के स्वस्थ पौधों की तुलना में लंबे होते हैं और उनमें पहले बालियां निकल आती हैं।

इससे संक्रमित पौधों को यह फायदा होता है कि असंक्रमित पौधों के फूल संक्रमण के लिए अधिक शारीरिक और रूपात्मक रूप से अतिसंवेदनशील होते हैं। हवा और मध्यम बारिश, साथ ही साथ ठंडे तापमान (16–22 डिग्री सेल्सियस) बीजाणुओं के फैलाव के लिए आदर्श होते हैं।

रोगी बालियों से यें  टीलियोबीजाणु स्वस्थ पौधों के खुले पुष्पों पहुंचते हैं और इस प्रकार रोग विकास चलता रहता है।

रोग प्रबंधन के उपाय:  

  • स्वस्थ्य व अच्छी फसल लेने के लिए स्वस्थ एवं प्रमाणित बीज ही बोने चाहिए।
  • बीज बोने से पहले, बीज में 2.0 से 5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज के हिसाब से कार्बोक्सीन (37.5%) + थीरम (37.5%) या कार्बेन्डाजिम (50% घुलनशील चूर्ण) से बीज को शोधित कर लेना चाहिए।
  • मई-जून माह में बीज को ठंडे पानी में 4 घंटे (सुबह 6 बजे से 10 बजे तक) भिगोने के बाद कड़ी धूप में अच्छी तरह सुखाकर अगले साल बोने के लिए भंडार में सुरक्षित रखा जा सकता है। ठंडे पानी में भिगोने से बीज में पड़ा कवक सक्रिय हो जाता है, जो कड़ी धूप में सुखाने पर मर जाता है। ऐसे बीज को अगले फसल मौसम में बोने से रोग नहीं पनपता है।
  • यदि बीज के लिए फसल बोई गई है, तो बाली निकलते समय उसका निरीक्षण करते रहना चाहिए तथा जैसे ही कन्डुआ ग्रस्त बालियां दिखाई दें, उन्हें किसी कागज की थैली से ढक कर पौधे को उखाड़ कर जला दें या मिट्टी में दबा दें।

Authors

डॉ रविन्द्र कुमार

भाकृअनुप-भारतीय गेहूँ एवं जौ अनुसंधान संस्थान, करनाल-132001 (हरियाणा)

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