Important diseases of Moong bean and their management
1. अल्टरनेरिया पर्ण धब्बा रोग मूंग के प्रमुख रोग :-
लक्षण एवं पहचान- पत्ती की सतह पर भूरे रंग के धब्बे दिखाइ देते है। प्रारंभिक अवस्था में ये धब्बे गोल एवं छोटे भूरे रंग के होते है। बाद में ये छल्ले के रुप में गहरे भूरे रंग का आकार ले लेते है। संक्रमित भाग पत्ती से अलग होकर गिर जाता है। रोगजनक के बीजाणु (कोनिडिया) रोगजनित पौधो के अवशेष एवं ठुण्ठ पर तथा आश्रित खरपतवारों पर जीवित रहते है। इनकी बढ़वार के लिये 70 प्रतिशत आपेक्षिक आद्रता एवं 12 से 25 डिग्री तापमान उपयुक्त होता है।
नियंत्रण :-
- खेतों को साफ-सुथरा रखे।
- थायरम 2.5 ग्राम प्रति किलो बीज के हिसाब से बीजोपचार करें।
- फसलों में जिनेब 2 ग्राम प्रति लीटर के हिसाब से छिड़काव करें।
2. अनथ्रक्नोज (श्याम वर्ण रोग) :-
यह रोग बीज पत्र तथा तना पत्ती एवं फलियों पर होता है। संक्रमित भाग पर अनियमित आकार के भूरे धब्बे लालिमा लिये हुये दिखाइ देते है जो कुछ समय बाद गहरे रंग के हो जाते है।
नियंत्रण :-
- संक्रमित पौधों को नष्ट कर देना चाहिये।
- बीजों को बोने से पूर्व केप्टान अथवा थायरम (2.5 ग्राम) वाविसिटीन या कवच (1.5 ग्राम) प्रति किलो बीज दर से उपचारित कर बोएं।
- फसल चक्र अपनाये।
- स्वस्थ बीज का उपयोग करें।
3. जीवाणु पत्ती धब्बा रोग :-
पत्ती की सतह पर बहुत सारे भूरे रंग के सूखे हुये धब्बे दिखाइ पड़ते है। प्रकोप बढ़ने पर ये धब्बे पूरी पत्ती पर फैल जाते है। जिससे सभी पत्तीया पीली दिखाइ देती है एवं पत्तीया गिर जाती है। पत्ती की निचली सतह पर देखने पर ये धब्बे लाल रंग लिये हुये होते है। इसका प्रभाव तने एवं फलियों पर भी देखा जा सकता है।
नियंत्रण :-
- बीज को 500 पी.पी.एम. स्टेप्ट्रोसाइक्लीन घोल में 30 मिनट के लिये डुबाकर रखें। बोने से पहले बीजों को दो छिड़काव स्टेप्टोसाइक्लीन की एवं 3 ग्राम कापर आक्सीक्लोराइड प्रति लीटर के हिसाब से दोनो को आपस में मिलाकर 12 दिन के अंतराल में छिड़काव करें।
4. सर्कोस्पोरा पत्ती धब्बा रोग :-
इस रोग के लक्षण छोटे-छोटे धब्बों के रुप में पत्ती की सतह पर देखे जा सकते है। ये धब्बे हल्के भूरे रंग के तथा इनका किनारा लाल-भूरा रंग लिये हुये होता है। ये धब्बे फलियों एवं शाखाओं पर भी देखे जा सकते है। प्रकोप अधिक होने पर ये धब्बे पूरे पौधों में फैल जाते है एवं पत्ती सिकुड़ कर छोटी हो जाती है।
नियंत्रण :-
- रोग प्रतिरोधी किस्मों को उगाये।
- मूंग के साथ अंतवर्ती फसले जैसे अधिक ऊचाइ वाले अनाज एवं मिलेटस लगायें।
- फसलों की कम संख्या रखते हुये चौडे पटटी वाले पौध रोपण का उपयोग करें।
- मल्च का इस्तेमाल करें।
- काबेन्डाजिम (0.05 प्रतिशत) बुवाइ के 30 दिन बाद छिड़काव करें।
5. लीफकर्ल (पत्ती मोड़न) :-
नये पत्ती पर हरीमाहिनता के रुप में पत्ती की मध्य शिराओं पर दिखाइ देते है। इस रोग में पत्तीया मध्य शिराओं से ऊपर की ओर मुड़ जाती है नीचे की पत्तीया अंदर की ओर मुड़ जाती है पत्ती की निचली सतह की शिराये लालिमा लिये हुये भूरे रंग की हो जाती है। बोवाइ के कुछ हफ्ते बाद ही इसके लक्षण पौधों में दिखने लगते है। जिसमें पौधों की बढ़वार रूक जाती है और पौधो की मृत्यु हो जाती है।
नियंत्रण :-
- यह विषाणु जनित रोग है जिसका संचरण कार्य थि्प्स द्वारा होता है। थि्प्स के लिये एक ग्राम एसीफेट या 2 मिली लीटर डाइमेथोएट प्रति लीटर के हिसाब से छिड़काव करें। फसलों की समय पर बुवाइ करें।
6. पीला चित्रवर्ण या पीला मोजेक रोग :-
शुरूआती लक्षण में पीले छोटे धब्बे नयी पत्ती पर फैले हुये दिखाइ देते है बिमारी फैलने पर ये धब्बे बड़े आकार के होकर पुरी पत्ती को पीला कर देते है। प्रभावित पत्ती ऊतकक्षयी लक्षण प्रदर्शित करते है। पौधों की बढ़वार रूक जाती है। फुल एवं फली की संख्या कम हो जाती है फली आकार में छोटी एवं पीला रंग लिये हुये होती है।
नियंत्रण :-
- यह बिमारी सफेद मक्खी द्वारा फैलती है अत: इसे रोकने हेतु कीटनाशी दवा जैसे डायमिथोएट 30 इ.सी. 1 लीटर प्रति हेक्टेयर अथवा फास्फामिडान 250 मि.ली प्रति हेक्टेयर का 2 से 3 बार छिड़काव करें।
7. चूर्णिल आसिता या भभूतियारोग :-
दलहनी फसलों के प्रमुख रोगों में से चुर्णिलआसिता है। पत्ती की ऊपरी सतह पर सफेद पावडर के समान संरचना दिखाइ देती है। जो कि बाद में मटमैले रंग में बदल जाती है। ये सफेद पावडर तेजी से बढ़ते है और पत्ती की निचली सतह पर आवरण के रुप में फैल जाते है। बिमारी का प्रकोप बढ़ने पर ये सफेद पावडर जैसे संरचना पत्ती की दोनों तरफ की सतह पर दिखने लगते है। पत्तीया असमय झडने लगती है मौसम अनुकुल होने पर इस तरह के लक्षण पत्ती के अतिरिक्त शाखाओं एवं फलों में दिखने लगते है।
नियंत्रण :-
- कवकनाशी दवायें जैसे केराथेन (2 प्रतिशत) केलेक्सीन (0.1 प्रतिशत) या सल्फेक्स (0.3 प्रतिशत) घोल बनाकर छिड़काव करें। बीज की बुवाइ जून के प्रथम सप्ताह में करें ताकि बिमारी को दूर किया जा सके। संक्रमित फसल के अवशेष को नष्ट कर दे।
8. गेरूवा या रस्ट रोग :-
पत्ती की ऊपरी सतह पर हल्के हरे पीले छोटे-छोटे धब्बे दिखाइ देते है एवं पत्ती की निचली सतह पर भूरे लाल उभरे हुये स्फोट के रुप में ये धब्बे होते है। संक्रमण फैलने पर फली एवं तने पर भी ये स्फोट देखे जा सकते है प्रकोप अधिक होने पर पत्ती की दोनो सतहों पर रस्ट रोग के स्फोट फैल जाते है इस रोग के प्रभाव से पत्ती सिकुडी एवं मुडी हुइ हो जाती है।
नियंत्रण :-
- बीज को फफुंदनाशक दवा वाविसिटीन (2.5 ग्राम) प्रति किलो से उपचारित करना चाहिये। खडी फसल में बेलेटान (200 मि.ली) प्रति लीटर प्लाटंवैक्स (1.5 ग्राम) प्रति लीटर या जिनेब (2.5 ग्राम) प्रति लीटर आद्र्क के साथ छिड़काव करें।
Authors:
रश्मि गौरहा
R.A.E.O. D.D.A Office Raipur (C.G.)
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