2 Major nematodes of Cotton crop and their management
कपास गोसीपियम जाति की एक मुख्य नकदी फसल है । यह विश्व के गर्म इलाकों में उगाई जाती है। भारत में महाराष्ट्र, पंजाब, हरियणा, गुजरात मध्य प्रदेश, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश कपास के प्रमुख उत्पादक राज्य हैं। उत्तर भारत में खरीफ के मौसम में व दक्षिण भारत में यह पूरे साल उगाई जाती है।
इस फसल के क्षेत्रफल की दृष्टि से भारत विश्व में पहले स्थान व उत्पादन में दूसरे स्थान पर है । अनेक प्रकार के कीट,फफूंद एवं सूत्रकृमि कपास के सफल उत्पादन को प्रभावित करते हैं। कपास के दो मुख्य सूत्रकृमि निम्नलिखित हैं।
1) जड़ गांठ सूत्रकृमि (मेलॉइडोगाइनी):
यह सूत्रकृमि भारत सहित विश्व के अनेक देशो में कपास की फसल को नुकसान पहुँचाता है। उत्तर भारत, गुजरात एवं तमिलनाडु में यह आमतौर पर पाया जाता है।
जड गांठ सूत्रकृमि का जीवन चक्र:
यह पादप सूत्रकृमि अपना जीवन चक्र लगभग 30 दिन में पूरा कर लेता है। अत: इसकी एक वर्ष में कई पीढ़ियां बन जाती हैं।
जड गांठ सूत्रकृमि से ग्रसित कपास फसल के लक्षण:
पौधे के उपरी भाग के लक्षण विशिष्ट नही होते हैं। संक्रमित पौधे छोटे और बोने रह जाते है। तेज धूप में पत्तियां मुरझा जाती हैं। अधिक संख्या में सूत्रकृमि संक्रमण पौधे की प्रांरम्भिक मृत्यु का कारण होता है। संक्रमित जड़े विशेष प्रकार की गांठे बन जाती हैं जिससे जड़ें छोटी रह जाती हैं।
जड गांठ सूत्रकृमि से नुकसान:
भारत में जड़ गांठ सूत्रकृमि 16 - 41 प्रतिशत तक हानि पहुंचाते हैं। सूत्रकृमि द्वारा पौधों की जड़ों पर बनाये गए छिद्र अन्य हानिकारक सूक्ष्मजीवों को बेहतर वातावरण प्रदान करते हैं । जड़ गांठ सूत्रकृमि द्वारा संक्रमित पौधे पीथियम नामक फफूंद द्वारा होने वाली आर्द्र गलन बीमारी के अधिक सुग्राही हो जाते हैं। इस सूत्रकृमि की उपस्थिति में विल्ट/उखेड़ा की समस्या भी अधिक पनपती है ।
जड गांठ सूत्रकृमि का प्रबंधन:
1. इस सूत्रकृमि से निपटने के लिए ग्लुकोनएसीटोबैक्टर डाईजोट्रोफिकस (स्ट्रेन 35-47) का 50 मिली लीटर प्रति 5 किलो बीज की दर से उपचार करें । इन बीजों को छाया में सूखा कर बिजाई करें ।
2. परपोषी फसलों का फसल चक्र अपनाएं ।
अ) जड़ों पर बनी गांठें ब) जड़ गांठ सूत्रकृमि ग्रसित खेत
2) कपास में वृक्काकार सूत्रकृमि:
वृक्काकार सूत्रकृमि का जीवन चक्र:
यह एक अर्ध अंत: परजीवी सूत्रकृमि है। यह पादप सूत्रकृमि अपना जीवन चक्र लगभग 25 दिन में पूरा कर लेता है जिस कारण एक वर्ष मे अनेक पीढ़ियां बन जाती है। यह सूत्रकृमि देशी कपास पर अधिक पनपता है ।
वृक्काकार सूत्रकृमि के लक्षण:
पौधे के उपरी भाग के लक्षण विशिष्ट नही होते। पौधों का छोटा रह जाना, मुरझाना व पत्तियों का पीलापन सामान्य लक्षण हैं जो सूक्ष्म तत्वों की कमी आदि से मेल खाते हैं । जड़ें सड़ना शुरू हो जाती हैं ।
स) ग्रसित पौधे की जड़ पर विकसित मादा एवं अंडे
वृक्काकार सूत्रकृमि से नुकसान:
कपास की फसल में यह सूत्रकृमि अनुमानित 15 प्रतिशत तक नुकसान पहुंचाता है ।
फ्यूजेरियम और वर्टिसिलियम फफूंदों के साथ मिलकर यह विल्ट या उखेड़ा रोग उत्पन्न करता है। अकेली फंगस से यह बीमारी केवल सीमित पौधों में आती है व इस सूत्रकृमि के साथ मिलकर इसका प्रकोप बढ़ जाता है।
वृक्काकार सूत्रकृमि का प्रबंधन:
- मई-जून के महीने में 15 दिन के अन्तराल पर 2-3 गहरी जुताई करें ।
- ग्रसित खेत में दो तीन वर्षों तक प्याज़ या लहसुन की फसल लें ।
- लाल मिर्च को फसल चक्र में शामिल करना लाभकारी है ।
- कार्बोसल्फान 3% और फेंसल्फोथिओन 2% से बीज ड्रेसिंग करें ।
Authors:
गुरप्रीत सिंह, अनिल कुमार एवं आर. एस. कँवर
सूत्रकृमि विज्ञान विभाग, चौ. चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार
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