Integrated insect and disease management in banana crop
दुनिया भर में केला एक महत्वपूर्ण फसल है। भारत में लगभग 4.9 लाख हेक्टेयर में केले की खेती होती है जिससे 180 लाख टन उत्पादन प्राप्त होता है। महाराष्ट्र में सबसे अधिक केले का उत्पादन होता है। महाराष्ट्र के कुल केला क्षेत्र का 70 फीसदी अकेले जलगांव जिले में है।
देशभर के कुल केला उत्पादन का लगभग 24 फीसदी भाग जलगांव जिले से प्राप्त होता है। केले को ‘’गरीबों का फल’’ कहा जाता है। केले का पोषक मान अधिक होने के कारण केरल राज्य एवं युगांडा जैसे देशों में केला प्रमुख खाद्य फल है। केले के उत्पादों की बढती मांग के कारण केले की खेती का महत्व भी दिन प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है।
केले की फसल भी कीट एवं रोगों से काफी प्रभावित होती है,अगर सही समय पर उपाय न किये जाय तो भारी नुकसान का सामना करना पड़ सकता है |
केले की फसल में लगनेवाले मुख्य कीट :
1. तना छेदक कीट ( Banana Stem Borer):
तना छेदक कीट एवं उससे ग्रसित केले का पौधा
लक्षण एवं नुकसान :
केले के तना छेदक कीट का प्रकोप 4-5 माह पुराने पौधो में होता है । शुरूआत में पत्तियाँ पीली पडती है, तत्पश्चात तना से गोंद जैसा पदार्थ निकालना शुरू हो जाता है। वयस्क कीट तना के के आधार पर दिखाई देते है। तने मे लंबी सुरंग बन जाती है तत्पश्चात जल एवं खाद्य नली को ब्लाक कर देता है , जो बाद मे सडकर दुर्गन्ध पैदा करता है।
प्रबंधन:
- प्रभावित एव सूखी पत्तियों को काटकर खेत से बाहर जला देना चाहिए, खेत की साफ सफाई पर विशेष ध्यान रखना चाहिए
- समय- समय पर ट्राइकोग्रामा कार्ड पचास हज़ार प्रति हेक्टेयर की दर से स्थापित करना चाहिए |
- नए सकर्स/पौधे की महीन जड़ को समय - समय पर निकालते रहना चाहिए ।
- घड काटने के बाद पौधो को जमीन की सतह से काट कर उनके उपर कीटनाशक जहर जैसे - इमिडाक्लोरोपिड (1 मिली. /लिटर पानी) के घोल का छिडकाव कर अण्डो एवं वयस्क कीटो को नष्ट करे
- पौध लगाने के पाचवे महीने में क्लोरोपायरीफॉस (1 प्रतिशत) का तने पर लेप करके कीड़ो का नियंत्रण किया जा सकता है।
- खेत में प्रति हेक्टेयर 6-8 की संख्या में गंध प्रपंच/फेरोमोन ट्रैप स्थापित करना चाहिए |
2. पत्ती खाने वाला केटर पिलर (Leaf-eating-caterpillar)
पत्ती कुतरने वाला कीट/केटरपिलर
लक्षण एवं नुकसान :
यह कीट नये छोटे पौधों के उपर प्रकोप करता है, लार्वा बिना फैली पत्तियों में गोल छेद बनाता है और पत्तियों को खाता रहता है |
प्रबंधन :
- अण्डों को पत्ती से बाहर निकाल कर नष्ट करें |
- नव पतंगों को पकड़ने हेतु 8-10 फेरोमोन ट्रेप / हेक्टेयर लगायें।
- कीट नियंत्रण हेतु ट्राइजफॉस 2.5 मि.ली./लीटर पानी का घोल बनाकर छिड़काव करें एवं साथ में चिपचिपा पदार्थ अवश्य मिलाऐं |
3. माहू/एफिड (Banana Aphid):
केला का माहू/ एफिड एवं ग्रसित पौधा
लक्षण एवं नुकसान :
इस कीट प्रकोप से पत्तिय गुच्छे जैसी प्रतीत होती है ,माहू पत्तियों से रस चूसता है जिससे कि पौधे की बढ़वार रुक जाती है | माहू, बंची टाप रोग का वाहक भी होता है जो इस वायरस को फैलाने में मदद करता है
प्रबंधन :
- बाग़ की साफ सफाई रखे
- स्वस्थ एवं कीट मुक्त सकर्स का प्रयोग करे
- ग्रसित राइजोम को खेत से बाहर नष्ट कर दे
- प्रकोप दिखाई देने पर पीला चिपचिपा प्रपंच 6 से 8 प्रति हे. की संख्या में स्थापित करे
- नीम आधारित जैव कीटनाशक जैसे एज़डीरेक्तिन @२ मिलि/लीटर या मेथाइल डेमेटान 25 इ.सी. 0.05% का प्रयोग करे
- विवेरिया बेसियाना के 10 ग्राम/ लीटर पानी में घोल का स्प्रे करे |
4. केलेे का बीटल / मच्चेता कीट (Banana beetle):
केला का बीटल
लक्षण एवं नुकसान :
यह कीट पत्तियों के अन्दर छिपकर नयी पत्तियों एवं फलों खाता है जिससे कि फलो के ऊपर काले धब्बे पड़ जाते है और फल का स्वाद भी बदल जाता है
प्रबंधन:
- बाग़ की साफ सफाई रखे
- स्वस्थ एवं कीट मुक्त सकर्स का प्रयोग करे
- ग्रसित राइजोम को खेत से बाहर नष्ट कर दे
- केरोसिन तेल युक्त राख का बुरकाव करे
- यदि बीटल कीट दिखाई दे रहे हों, तो इसके कारण भी काला चित्ती दिखाई देता है इसकी रोकथाम के लिए डायमिथोएट 1.5 मिली प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।”
5. केले का थ्रिप्स (Thrips)
केला का थ्रिप्स
लक्षण एवं नुकसान :
तीन प्रकार की थ्रिप्स केला फल (फिंगर) को नुकसान पहुंचाती है। थ्रिप्स प्रभावित फल भूरा बदरंग, काला तथा छोटे-छोटे आकार के आ जाते हैं। यदपि फल के गूदे पर इसका प्रभाव नहीं पड़ता पर इनका बाजार भाव ठीक नहीं मिलता।
नियंत्रणः मेटारिजीयम @10 ग्राम/लीटर पानी का घोल बनाकर छिडकाव करें तथा मोटे कोरे कपड़े से बंच को ढंकने से भी कीट का प्रकोप कम होता है।नीला चिपचिपा प्रपंच 6 से 8 की संख्या में प्रति एकड़ स्थापित करे |
6. लेस विंगस बग (Lacewings bug)
लक्षण एवं नुकसान :
यह कीट सभी केला उत्पादक क्षेत्रों में पाया जाता है। इस कीट से प्रभावित पत्तियां पीली पड़ जाती हैं। पत्तियों के निचले भाग में रहकर रस चूसती हैं।
नियंत्रण
नीम तेल की 1.5 मि.ली. दवा प्रति लीटर पानी का घोल बनाकर छिड़काव करें |
7. केला प्रकंद छेदक (Rhizome weevil)
यह कीट केले के प्रकंद में छेद करता है। इसको इल्ली प्रकंद के अन्दर छेद करती है। परन्तु वह बाहर से नहीं दिखायी देती है। कभी-कभी केले के स्यूडोस्टेम में भी छेद कर देता है। इन छिद्रों में सड़न पैदा हो जाती है।
नियंत्रण
प्रकंदों को लगाने से पहले 0.5 फीसदी क्लोरप्यारीफोस के धोल में 30 मिनट तक डुबोकर उपचारित करें। अत्याधिक प्रकोप होने पर 0.03 फीसदी फास्फोमिडान के घोल का छिड़काव करें।
केले की फसल में लगनेवाले रोग:
1. सिगाटोका लीफ स्पाट रोग ( Sigatoka Leaf spot )
सिगाटोका लीफ स्पॉट रोग
लक्षण एवं नुकसान :
यह केले में लगने वाली एक प्रमुख बीमारी है इसके प्रकोप से पत्ती के साथ साथ घौद के वजन एवं गुणवत्ता पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। शुरू में पत्ती के उपरी सतह पर पीले धब्बे बनना शुरू होते है जो बाद में बड़े भूरे परिपक्व धब्बा( आँख के आकर) में बदल जाते है।
प्रबंधन:
- रोपाई के 4-5 महीने के बाद से ही ग्रसित पत्तियों को लगातार काटकर खेत से बाहर जला दें।
2. जल भराव की स्थिति में जल निकास की उचित व्यवस्था करे।
3. खेत को खरपतवार से मुक्त रखें।
4. पहला छिड़काव फफूंदनाशी कार्बेन्डाजिम 1 ग्राम 7 से 8 मि. ली. + बनोल आयल का छिड़काव करे। दूसरा प्रोपीकोनाजोल 1 मि.ली. 7 से 8 मि. ली.+ बनोल आयल का छिड़काव करे एव तीसरा ट्राइडमार्फ 1 ग्राम 7 से 8 मि. ली. +बनोल आयल का छिड़काव करे।
2. पत्ती गुच्छा रोग ( Bunchy Top)
बंची टॉप रोग
लक्षण एवं नुकसान :
यह एक वायरस(जेमिनी) जनित बीमारी है, जो कि माहू के द्वारा फैलाया जाता है ,प्रकोप होने पर पत्तियों का आकार बहुत ही छोटा होकर गुच्छे के रूप में परिवर्तित हो जाता है।
प्रबंधन:
- ग्रसित पौधों को अविलंब उखाड कर मिट्टी में दबा दें या जला दें। फसल चक्र अपनायें।
- कन्द को संक्रमण मुक्त खेत से लें।
- रोगवाहक कीट के नियंत्रण हेतु इमीडाक्लोप्रिड 1 मि. ली. / पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें।
- रोगवाहक कीट माहू के प्रबंधन एवं आकलन हेतु 6-8 कि संख्या में पीला चिपचिपा प्रपंच स्थापित करे
3. केले का जड़ गलन/एर्विनिया रॉट ( Erwinia root rot )
लक्षण एवं नुकसान :
इस बीमारी के अंतर्गत पौधे की जड़े गल कर सड़ जाती है एवं बरसात एवं तेज हवा के कारण गिर जाती है।
प्रबंधन:
- खेत में जल निकास की उचित व्यवस्था करें।
- रोपाई के पहले कन्द को फफूंदनाशी कार्बन्डाजिम 2 ग्राम/लीटर पानी के घाले से उपचारित करे।
- रोकथाम के लिये कापर आक्सीक्लोराइड 3 ग्राम 0.2 ग्राम स्ट्रेप्टोसाइक्लिन/लीटर पानी की दर से या ब्लीचिंग पाउडर 25 ग्राम/पौधे में ड्रेचिग करें।
4. केले का उकठा/पनामा विल्ट ( Panama wilt in Banana )
पनामा विल्ट/उकठा रोग
लक्षण एवं नुकसान :
इस बीमारी के अंतर्गत पौधे की जड़े एवं पानी संचरण की नली गल कर सड़ जाती है एवं धीरे धीरे पौधा सूखने लगता है।
प्रबंधन:
- खेत में जल निकास की उचित व्यवस्था एवं साफ सफाई रखे ।
- रोपाई के पहले सकर्स को फफूंदनाशी ट्राईकोडर्मा 6 ग्राम/लीटर पानी के घाले से उपचारित करे।
- रोकथाम के लिये 2 % कार्बेन्डाजिम + एग्लाल का पौधे में ड्रेचिग करें।
5. केले का एन्थ्रेक्नोज रोग ( Anthracnose )
एंथ्रेकनोज रोग
लक्षण एवं नुकसान :
यह बीमारी कोलेट्रोट्राईकम मुसे नामक फंफूद के कारण फैलती है। यह बीमारी केले के पौधे में बढ़वार के समय लगती है। इस बीमारी के लक्षण पौधो की पत्तियों, फूलों एवं फल के छिलके पर छोटे काले गोल धब्बों के रूप मे दिखाई देते हैं। इस बीमारी का प्रकोप जून से सितम्बर तक अधिक होता है क्योंकि इस समय तापक्रम ज्यादा रहता है।
नियत्रण
- प्रोक्लोराक्स 0.15 प्रतिशत या कार्वेन्डिज्म 2 ग्राम प्रति लीटर पानी का धोल बनाकर छिड़काव करें।
- केले को 3/4 परिपक्वता पर काटना चाहिये।
- इस रोग से फलों के गुच्छे एवं डंठल काले हो जाते हैं और बाद में सड़ने लगते हैं इसकी रोकथाम के लिए कॉपर आक्सीक्लोराइड तीन ग्राम प्रति लीटर में घोल का छिड़काव करें।
Authors:
टी. ए. उस्मानी, प्रदीप कुमार एवं राजीव कुमार
जैविक भवन, क्षेत्रीय केन्द्रीय एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन केंद्र,
सेक्टर-ई. रिंग रोड, जानकीपुरम,लखनऊ (उ.प्र.)
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