Soybean Crop and its 6 Major Insects
सोयाबीन (ग्लाइसिन मैक्स), जिसे कई जगह सोजाबीन के नाम से भी जाना जाता है,एक खरीफ की वार्षिक फसल है| इसे व्यापक रूप से खाद्य बीन के लिए उगाया जाता है तथा यह दलहन के बजाय तिलहन की फसल मानी जाती है | इसके मुख्य घटक प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, एवं वसा होते हैं | प्रोटीन की अधिक मात्रा होने के कारण इससे दूध उत्पाद बनाए जाते हैं |
यह पशु आहार और भोजन के लिए प्रोटीन का एक अच्छा और सस्ता स्रोत है | इससे बनने वाले खाद्य पदार्थो में सोया सॉस,और किण्वित बीन पेस्ट, नाटो,और टेम्पेह शामिल हैं| सोयाबीन का वनस्पति तेल, खाद्य और औद्योगिक अनुप्रयोगों में उपयोग किया जाता है|
इसकी फलियों में महत्वपूर्ण फायटिक अमल,आहार खनिज और विटामिन बी अधिकांश मात्रा में पाये जाते हैं| सोयाबीन में वसा बहुत कम मात्रा में तथा कोलेस्ट्रॉल बिलकुल नहीं होता| इसके प्रमुख आहार खनिज, कैल्शियम, मैग्नीशियम, आयरन और सेलेनियम हैं| यह बहुत सी बीमारियों जैसे कैंसर ,ह्रदय रोग को दूर करता है तथा शरीर में हड्डियों को मजबूत करता है|
सोयाबीन की खेती –
उत्तराखंड मे सोयाबीन खरीफ की मुख्य तिलहनी फसल है| सोयाबीन में 40% प्रोटीन व 20% तेल की मात्रा पायी जाती है| प्रदेश के बुंदेलखंड के सभी जनपदों एवं बदायु ,रामपुर, बरैली, मेरठ एवं शाहजहांपुर जिलों में इसकी खेती की जाती है|
सोयाबीन की प्रजातियां
पी. के. 472; पी.के. 416; पूसा 16; पंत सोयाबीन 1029; पूसा 9712; टी. ए. एम. एस. 38; जे.एस. 80-21; जे.एस.75-46; जे.एस. 75-46; एम.ए.सी.एस. 124; पी. एस. 20; पी. एस. 19; पी. एस. 21; पी. एस. 59; पी. एस. 22;पी. एस. 63;पी. एस. 23;पी. एस. 65;पी. एस. 1042;पी. एस. 1241;पी. एस. 1347;पी. एस. 1225
सोयाबीन बुवाई के लिए प्रमुख ऋतु
इसके उत्पादन का समय जून माह के तीसरे हफ्ते से लेकर जुलाई मध्य तक सर्वोत्तम रहता है परन्तु पर्वतीय छेत्रों मे बुवाई का समय मई के अंतिम सप्ताह से जून के दूसरे सप्ताह तक है| देर से बुवाई करने में उपज कम मिलती है|
सोयाबीन उगाने के लिए जलवायु
सोयाबीन गर्म एवं नम जलवायु में अच्छी तरह से पनपती है| इसकी कई प्रजातियों के लिए 26 डिग्री सेल्सियस से 36 डिग्री सेल्सियस तक का तापमान उपयुक्त रहता है| मृदा का तापमान अगर 16 डिग्री सेल्सियस या उसे ज्यादा हो तो तेजी से अंकुरण होता है और जोरदार बीज वृद्धि होती है|
सोयाबीन उत्पादन केे लिए भूमि एवं मृदा
जिस भूमि में सोयाबीन उगाया जाये वहां पर फसल चक्र होना बहुत जरुरी है| मंडुआ और मक्के की फसल से हम आवर्तन कर सकते हैं और इससे हम कई स्थानिक रोगजन से अपनी फसल का बचाव कर सकते हैं|
सोयाबीन के लिए अच्छी तरह से सूखी हुई दोमट मिट्टी सर्वोत्तम है| सामान्यतः पर्वतीय एवं मैदानी छेत्रों में इसकी खेती की जा सकती है| 6.0-7.5 पी.एच. मान वाली मिटटी सोयाबीन उत्पादन के लिए उपयुक्त है| लवणीय मिट्टी बीज के उत्पादन की दर को घटा देती है|जलभराव भी फसल को नुकसान पहुंचाता है|इसलिए बरसात में मिट्टी में पानी के निकास होने की छमता होनी चाहिए|
बीज चयन उपचार एवं बीज दर-
बीज हमेशा प्रमाणित स्रोतों से लेने चाहिए| रोग जनित,अविकसित,सख्त,छतिग्रस्त एवं सिकुडे बीजों को नहीं लेना चाहिए| बीज हमेशा सशख्त,एवं रोग हीन होने चाहिए|इनके उपचार के लिए इन्हे कार्बेण्डजिम से 4 ग्राम – 1 किलोग्राम बीज दर से मिलाना चाहिए|सोयाबीन की खेती में बुवाई से पहले राइज़ोबियम नामक जैव से उपचार किया जाना लाभदायक है|
बीज दर अलग अलग प्रजातियों बीजों के आकार , बोने का समय तथा अंकुरण में निर्धारित होता है परन्तु औसत पर 16 किलोग्राम/ एकर पर्याप्त होता है.
सोयाबीन में उर्वरकों का प्रयोग-
इसके लिए भूमि की तैयारी के समय हमें 10 टन सड़ी गोबर की खाद को 360 किलो सुपर फॉस्फेट के साथ डालें| इससे जड़ों मे ग्रंथियाँ अच्छी बनती हैं| इनके साथ 40 किलोग्राम यूरिया एवं 50 किलो पोटाश प्रति एकर में इस्तमाल करना चाहिए| खरीफ में भूमि को सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती| परन्तु वर्षा न हो तो फूल व फली बनने समय सिंचाई अवश्य करैं|
सोयाबीन की निराई गुड़ाई एवम खरपतवारों का नियंत्रण-
बुवाई के 20-25 दिन के बाद निराई कर देनी चाहिए| इसके 20-25 दिन बाद खरपतवार होने पर दूसरी निराई कर देनी चाहिए| इसके लिए एलाक्लोर 50 इ. सी. 4लीटर / हेक्टेयर की दर से 400-600 ली. पानी में घोल बना कर बुवाई से 48 घंटे के भीतर छिड़काव करें|
सोयाबीन फसल के कीट-
लगभग 74 स्पीशीज के कीट सोयाबीन की फसल के हर स्त्तर में देखे गये हैं|
1. पत्ती काटने वाला कमला कीट-
यह बालदार तथा गहरे पीले रंग का होता है| इसके शरीर पर पीले या भूरे रोयें होते हैं| यह प्राम्भिक अवस्था में पत्तियों को झुण्ड में निचली सतह पर खा जाते हैं| और बड़ी अवस्था में 30-50% तक पत्तियों को खा जाते हैं|
इसकी रोकथाम के लिए लेम्डा साईहलोथिन 5 इ.सी. 250 मिली./हेक्टेयर अथवा ट्राइजोफॉस 40 इ.सी 750मिली/हेक्टेयर अथवा इमामिक्टन बेनज़ोएट 5 एस. जी. 250 ग्राम/ हेक्टेयर को 700-800 लीटर पानी/ हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें|
पत्ती काटने वाला कमला कीट
2. हरी अर्ध कुंडलक इल्ली-
यह भी सोयाबीन का एक प्रमुख कीट है| यह पत्तियों को निचली सतह से खाता है| यह कीट एकल अवस्था में अर्धकुण्डलका बनाकर चलती है और पत्तियों को किनारे से खाती है|इसकी रोकथाम के लिए इंडोक्साकारब 15.8 इ.सी /333 मिली / हेक्टेयर अथवा क्लोरान्ट्रॉनिलीप्रोले 18.5 एस.जी./150 मिली/हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें|
हरी अर्ध कुंडलक इल्ली
3. तम्बाकू की इल्ली-
यह सोयाबीन की पत्तियों को नुकसान पहुंचाने वाला हानिकारक कीट है|इसमें मादा समूह में अण्डे देती है और इन्ही अंडो से सूंडियां निकलकर पत्तियों को समूह में खाते हुए हानि पहुंचाती हैं|
इसकी रोकथाम के लिए इंडोक्साकारब 15.8 इ.सी. /33 मिली / हेक्टेयर या क्लोरान्ट्रॉनिलीप्रोले 18.5 एस. सी./ 150 मिली /हेक्टेयर अथवा इमामिक्टन बेनज़ोएट 5 एस. जी /250 ग्राम/ हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें|
तम्बाकू की इल्ली
4. तना छेदक मक्खी (स्टेम मक्खी)-
यह मक्खी धात्विक काले रंग की होती है| जो की 70-80% पौधों को ग्रसित करती है| यह मुख्य तना,टहनियों और डंठलों में सुरंग बनाती है| पौध अवस्था मे इनके लगने के कारण पौधे सूख कर मर जाते हैं|
इसके रोकथाम के लिए क्लोरान्ट्रॉनिलीप्रोले 185 एस. सी./150 मिली./हेक्टेयर अथवा इंडोक्साकारब 15.8 इ.सी./ 333 मिली/ हेक्टेयर या फोरेट 10 ग्राम /15 किलोग्राम /हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें|
तना छेदक कीट
5. सफ़ेद मक्खी-
यह छोटे आकार की मक्खी है जो पत्तियों की निचली सतह पर अंडे देती है तथा पीला विषाणु रोग फैलाती है| ये पौधे के रस से भरण करती है जिससे फली अच्छी नही होती|
इसकी रोकथाम के लिए कार्बोफ्युरान 3 ग्राम/50 किलोग्राम /हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें|
सफ़ेद मक्खी
6. छल्ला भृंग / मेखला भृंग-
यह कीट पौधों के तनों व डंठलों में दो बारीक वल्ल(रिंग) बनता है जिससे वल्ल का भाग सूख जाता है| मध्यम आकार की मादा तने तथा टहनियों में दो छल्ले बनाकर उसमें अंडे देती है|
इसकी रोकथाम के लिए फसल में क्लोरान्ट्रॉनिलीप्रोले 18-5 एस.सी. की दर से 150 मिली / हेक्टेयर, ट्रायजोनोफोस 40 ई.सी. की दर से 625 मिली / हैक्टेयर अथवा प्रोफेनोफॉस 50 ई.सी. / 1000 मिली. / हैक्टेयर की दर से छिड़काव करें।
छल्ला भृंग
Authors
नीता गौड़*1 , सुधा मठपाल**2 एवं रश्मि जोशी***3
1सह – प्राध्यापक; गोविंद बल्लभ पंत विश्वविद्यालय पंतनगर
2शोध विद्यार्थी; गोविंद बल्लभ पंत विश्वविद्यालय पंतनगर
3शोध विद्यार्थी; गोविंद बल्लभ पंत विश्वविद्यालय पंतनगर
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