17 Sep राजस्थान में ड्रैगन फ्रूट की खेती: एक नई संभावना
Dragon Fruit Cultivation in Rajasthan: A New Possibility
शोजी लाल बैरवा
ड्रैगन फल की खेती एक उभरता हुआ और लाभदायक कृषि व्यवसाय है, खासकर उन क्षेत्रों में जहां पानी की कमी एक बड़ी चुनौती है। यह फल (पिटाया या कमलम) कैक्टस परिवार से संबंधित है और कम पानी की आवश्यकता के कारण शुष्क और अर्ध-शुष्क जलवायु में अच्छी तरह से उग सकता है। राजस्थान में सरकार के समर्थन और सफल किसान उदाहरणों के कारण ड्रैगन फल की खेती की संभावनाएं बढ़ रही हैं, उदयपुर, धौलपुर, सीकर, भीलवाड़ा और जयपुर जैसे क्षेत्रों में किसान इसे उगा रहे हैं, और यह अर्ध-शुष्क जलवायु में अच्छी तरह से फल दे रहा है। यह फल पोषक तत्वों से भरपूर है और उच्च बाजार मूल्य (लगभग ₹300 प्रति किलो) के कारण किसानों के लिए आकर्षक है।
ड्रैगन फल मूल रूप से मैक्सिको का है, लेकिन अब वियतनाम, थाईलैंड, और अन्य दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों में व्यापक रूप से उगाया जाता है। भारत में इसकी खेती पिछले 4-5 वर्षों में तेजी से बढ़ी है, और राजस्थान जैसे राज्यों में भी इसका प्रसार हो रहा है। इसकी मांग घरेलू और अंतरराष्ट्रीय बाजार में बढ़ रही है। वर्तमान में, इसका औसत बाजार मूल्य लगभग ₹300 प्रति किलो है, जो इसे आर्थिक रूप से आकर्षक बनाता है।
ड्रैगन फल की मांग घरेलू और अंतरराष्ट्रीय बाजार में बढ़ रही है। इसे ताजा खाया जा सकता है, और इससे जाम, आइसक्रीम, जेली, जूस, और वाइन जैसे उत्पाद भी बनाए जा सकते हैं। यह डायबिटीज और कोलेस्ट्रॉल नियंत्रित करने में मददगार है, जिससे स्वास्थ्य-जागरूक उपभोक्ताओं के बीच इसकी मांग बढ़ रही है। राजस्थान सरकार ने 2016 से ड्रैगन फल की खेती को बढ़ावा देने की योजना बनाई थी, और केंद्र सरकार ने भी इसे 50,000 हेक्टेयर तक विस्तारित करने का लक्ष्य रखा है।
राजस्थान के कई क्षेत्र, जैसे भीलवाड़ा, जयपुर, और टोंक, ड्रैगन फल की खेती के लिए उपयुक्त हैं। केंद्र सरकार की मिशन फॉर इंटीग्रेटेड डेवलपमेंट ऑफ हॉर्टीकल्चर (MIDH) योजना के तहत ड्रैगन फल की खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है।
भारत में ड्रैगन फ्रूट की मांग बढ़ रही है, और इसका आयात 2017 में 327 टन से बढ़कर 2019 में 9,162 टन हो गया, जो 2020 और 2021 में क्रमशः 11,916 और 15,491 टन तक पहुंच गया। यह दर्शाता है कि स्थानीय उत्पादन में वृद्धि हो रही है।
राजस्थान में ड्रैगन फल की खेती एक आकर्षक और लाभदायक विकल्प है, खासकर उन किसानों के लिए जो शुष्क क्षेत्रों में कम पानी वाली फसलों की तलाश में हैं। प्रारंभिक निवेश अधिक है, लेकिन दीर्घकालिक लाभ (20 साल तक) इसे एक स्थायी व्यवसाय बनाता है। सरकार के समर्थन और बढ़ती मांग के साथ, यह कृषि क्षेत्र में एक उज्ज्वल भविष्य रखता है।
ड्रैगन फ्रूट की खेती के लिए उपयुक्त जिले:
कई समाचार पत्र और मीडिया रिपोर्ट्स से पता चलता है कि राजस्थान में किसान ड्रैगन फ्रूट की खेती से अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं। बलुई दोमट और पथरीली मिट्टी में खेती संभव है, यह फसल पथरीली और कम उपजाऊ मिट्टी में भी उग सकती है, बशर्ते जल निकासी अच्छी हो। जलभराव इस फसल के लिए हानिकारक है। और गर्म, शुष्क जलवायु (20°C से 40°C) उपयुक्त प्रतीत होती है। यह 40°C तक के गर्म तापमान को भी सहन कर सकता है। राजस्थान में पॉलीहाउस या छाया नेट का उपयोग करके जलवायु को नियंत्रित किया जा सकता है।
लाल गूदा वाली किस्म (Red Flesh Variety): यह सबसे लोकप्रिय किस्म है। इसका गूदा लाल और स्वाद में मीठा होता है, और बाजार में इसकी अच्छी मांग है। लाल गूदा वाली किस्म राजस्थान के किसानों के बीच सबसे ज्यादा पसंद की जाती है। सफेद गूदा वाली किस्म (White Flesh Variety): इसका गूदा सफेद और हल्का मीठा होता है। यह भी उगाई जाती है, लेकिन लाल किस्म जितनी लोकप्रिय नहीं है। पीले फल वाली किस्म (Yellow Fruit Variety): इस किस्म का फल पीला और गूदा सफेद होता है। यह कम आम है, लेकिन कुछ क्षेत्रों में सफलतापूर्वक उगाई जा सकती है।
भीलवाड़ा, उदयपुर, धौलपुर, सीकर, जयपुर, कोटा, टोंक और बालोतरा जैसे जिले ड्रैगन फ्रूट की खेती के लिए उपयुक्त प्रतीत होते हैं। राजस्थान के कई जिले ड्रैगन फ्रूट की खेती के लिए उपयुक्त पाए गए हैं। यहाँ कुछ प्रमुख जिलों की सूची दी गई है:
भीलवाड़ा: कोटड़ी उपखंड का खाजिना गांव इसकी खेती के लिए प्रसिद्ध है।
उदयपुर: खेरवाड़ा तहसील का फेर फल गांव, जहाँ बंजर भूमि पर खेती हो रही है।
धौलपुर: बीहड़ क्षेत्रों में सफल खेती के उदाहरण मौजूद हैं।
सीकर: डार्क जोन में ड्रिप इरिगेशन के साथ खेती की जा रही है।
जयपुर: बासी क्षेत्र में कई वर्षों से खेती जारी है।
कोटा: यहाँ की जलवायु और मिट्टी इसके लिए अनुकूल है।
बालोतरा: पश्चिमी राजस्थान में बागवानी के साथ खेती का विस्तार हो रहा है।
टोंक: चिरोंज गांव में एक बीघे में ड्रैगन फ्रूट की खेती हो रही है।
ड्रैगन फ्रूट की खेती की सफलता की कहानियां:
राजस्थान, जो अपनी शुष्क जलवायु और बंजर भूमि के लिए जाना जाता है, अब एक नई फसल की खेती में अग्रणी बन रहा है—ड्रैगन फ्रूट। यह फल, जो अपनी अनोखी दिखावट और स्वास्थ्य लाभों के लिए प्रसिद्ध है, राजस्थान के किसानों के लिए एक नई उम्मीद लेकर आया है।
राजस्थान के स्थानीय किसानों की सफलता से पता चलता है कि भीलवाड़ा, उदयपुर, धौलपुर, सीकर, जयपुर, कोटा, और बालोतरा जैसे जिले खेती के लिए उपयुक्त हो सकते हैं। राजस्थान के कई किसानों ने बंजर और बीहड़ क्षेत्रों में भी इसकी खेती को सफल बनाया है, जो इसकी अनुकूलनशीलता को दर्शाता है।
राजस्थान में कई किसानों ने ड्रैगन फ्रूट की खेती से अपनी जिंदगी में बदलाव लाया है। राजस्थान के इन किसानों की कहानियाँ ड्रैगन फ्रूट की खेती की संभावनाओं को उजागर करती हैं। बंजर और बीहड़ क्षेत्रों में भी इस फसल ने न केवल किसानों की आर्थिक स्थिति को मजबूत किया, बल्कि पर्यावरण को हरा-भरा करने में भी योगदान दिया।
ड्रिप इरिगेशन, और उन्नत तकनीकों के उपयोग ने इन किसानों को कठिन परिस्थितियों में भी सफलता दिलाई। ये कहानियाँ अन्य किसानों के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं और यह साबित करती हैं कि मेहनत, नवाचार और सही मार्गदर्शन के साथ कोई भी क्षेत्र समृद्धि का केंद्र बन सकता है।
ड्रैगन फ्रूट की खेती राजस्थान के किसानों के लिए एक नया सुनहरा अवसर बन रही है, जो उनकी जिंदगी को बदल रहा है। यहाँ कुछ प्रेरणादायक किसानों की कहानियाँ दी गई हैं, जिन्होंने अपनी मेहनत और नवाचार से इस खेती को सफल बनाया।
जयपुर के राम कुमार यादव: बंजर भूमि पर नया प्रयोग
जयपुर जिले के दादर बावड़ी गाँव के राम कुमार यादव ने पारंपरिक खेती से हटकर ड्रैगन फ्रूट की खेती को अपनाया। उनकी जमीन शुरू में सूखी और कम उपजाऊ थी, जिसके कारण पारंपरिक फसलों से अच्छा उत्पादन मिलना मुश्किल था। लेकिन राम कुमार ने हिम्मत नहीं हारी। उन्होंने ICAR-कृषि विज्ञान केंद्र (KVK) से संपर्क किया और ड्रैगन फ्रूट की खेती के लिए प्रशिक्षण लिया। KVK के विशेषज्ञों ने उन्हें ड्रिप इरिगेशन सिस्टम और जैविक खेती की तकनीकों के बारे में बताया, जिसे उन्होंने अपनी खेती में लागू किया। 2022 में, उन्होंने 0.4 हेक्टेयर जमीन पर 1,320 ड्रैगन फ्रूट के पौधे (Elis Red वैरायटी) लगाए, जिसमें 3 लाख रुपये का निवेश किया गया, जिसमें 330 सीमेंटेड पोल, ड्रिप इरिगेशन, प्रूनिंग और पोषक तत्व प्रबंधन शामिल थे। जुलाई 2024 तक, उन्होंने 1.8 लाख रुपये कमाए, जिसमें प्रति पौधे 10-12 फल पैदा हुए, जो 60-70 रुपये प्रति फल पर बिके। अक्टूबर 2024 तक, उन्हें अतिरिक्त 1.5 लाख रुपये की उम्मीद है। उनकी सफलता के लिए राजस्थान कृषि विभाग ने उन्हें ‘जिला अभिनव किसान’ पुरस्कार और 25,000 रुपये का नगद पुरस्कार दिया। आज, राम कुमार की खेती न केवल उनके परिवार की आर्थिक स्थिति को मजबूत कर रही है, बल्कि आसपास के किसानों के लिए भी प्रेरणा का स्रोत बन गई है। उनकी कहानी जयपुर के कई अन्य किसानों को इस नई फसल को अपनाने के लिए प्रोत्साहित कर रही है।
भीलवाड़ा के रामेश्वर लाल जाट: श्रीलंका से पौधे
भीलवाड़ा के खजीना गाँव के रामेश्वर लाल जाट ने ड्रैगन फ्रूट की खेती को एक साहसिक और दूरदर्शी कदम के रूप में शुरू किया। उन्होंने गुजरात में ड्रैगन फ्रूट की खेती की सफलता के बारे में सुना और श्रीलंका, भूटान और स्विट्जरलैंड में इसकी खेती के बारे में शोध किया। 2020 में, उन्होंने 1.5 बीघा जमीन पर लगभग 2,000 ड्रैगन फ्रूट के पौधे लगाए, जिसमें 6 लाख रुपये का निवेश किया। शुरुआती दौर में उन्हें मिट्टी की कम उर्वरता और पानी की कमी जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ा। लेकिन उनकी लगन और तकनीकी जानकारी ने उन्हें इन समस्याओं से पार पाने में मदद की। उन्होंने ड्रिप इरिगेशन और जैविक खाद का उपयोग किया, जिससे पौधों की वृद्धि बेहतर हुई। 2022 तक, उनके पौधों ने फल देना शुरू किया, जिसमें प्रति पौधे 25-30 किग्रा फल पैदा हुए। ड्रैगन फ्रूट का बाजार मूल्य 800 रुपये प्रति फल तक पहुंच गया, जिससे उन्हें वार्षिक आय में 15 लाख रुपये तक की संभावना मिली। आज, रामेश्वर लाल की फसल स्थानीय बाजारों में अच्छी कीमत पर बिक रही है, और वे अपने गाँव के अन्य किसानों को भी इस खेती के लिए प्रशिक्षण दे रहे हैं। उनकी कहानी यह साबित करती है कि सही दृष्टिकोण और तकनीक के साथ कठिन परिस्थितियों में भी सफलता हासिल की जा सकती है।
उदयपुर के चिराग: छोटी शुरुआत, बड़ा परिणाम
उदयपुर के खेरवाड़ा तहसील के फेर फल गाँव के चिराग ने 2020 में ड्रैगन फ्रूट की खेती शुरू की। उन्होंने केवल 1 हेक्टेयर जमीन पर 200 पौधों के साथ शुरुआत की। उनकी मेहनत और सही देखभाल ने जल्द ही परिणाम दिखाए। चिराग ने वडोदरा, गुजरात में प्रशिक्षण लिया और उत्तर प्रदेश के एक प्रगतिशील किसान से संपर्क कर अतिरिक्त मार्गदर्शन प्राप्त किया। उन्होंने मिट्टी की गुणवत्ता को सुधारने के लिए जैविक खाद का उपयोग किया और ड्रिप इरिगेशन सिस्टम को अपनाया, जिससे पानी की कमी की समस्या से निपटा जा सका। उनकी फसल ने पहले ही साल में अच्छा उत्पादन देना शुरू कर दिया, जिसे देखकर चिराग ने अपनी खेती को बढ़ाने का फैसला किया। आज उनकी खेती 2 हेक्टेयर तक फैल चुकी है, और वे ड्रैगन फ्रूट को स्थानीय और शहरी बाजारों, जैसे कि जयपुर, दिल्ली, गुजरात, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश में बेच रहे हैं। इस फसल की उच्च मांग और अच्छी कीमत ने उनकी आय में काफी वृद्धि की है। चिराग का कहना है कि ड्रैगन फ्रूट की खेती ने न केवल उनकी आर्थिक स्थिति को सुधारा, बल्कि उनके गाँव में रोजगार के नए अवसर भी पैदा किए। उनकी सफलता ने उदयपुर के कई अन्य किसानों को इस फसल को अपनाने के लिए प्रेरित किया है।
सीकर के महेश शर्मा: डार्क जोन में चमक
सीकर जिले के पलासरा गाँव के 42 वर्षीय महेश शर्मा ने पानी की कमी वाले “डार्क जोन” में ड्रैगन फ्रूट की खेती को एक नया आयाम दिया। उनके पास 5 एकड़ खेती योग्य जमीन और 5 एकड़ बंजर जमीन थी, जिसमें एक बोरवेल था। 2020 में, उन्होंने यूट्यूब वीडियो से प्रेरित होकर ड्रैगन फ्रूट की खेती शुरू की। उन्होंने हरियाणा से 84 पौधे खरीदे और 21 स्तंभों पर 4-5 पौधे प्रति स्तंभ लगाए। पानी की कमी को दूर करने के लिए, उन्होंने पहाड़ से 5,000 फीट की पाइप लाइन (140 पाइप) बिछाई और ड्रिप इरिगेशन का उपयोग किया। पहले वर्ष में, उन्होंने 2 लाख रुपये कमाए, जिसमें प्रति पौधे 5 किग्रा फल पैदा हुए, जो 300 रुपये प्रति किग्रा पर बिके। अब, प्रति पौधे 25 किग्रा तक का उत्पादन होता है, और उनकी वार्षिक आय लाखों में पहुंच गई है। महेश ने ड्रैगन फ्रूट के साथ-साथ पपीता (1.5 एकड़ पर 700 पेड़), आम, लीची, जैकफ्रूट, नींबू, मौसमी, अमरूद, अनार और जैविक सब्जियाँ (गोभी, ब्रोकोली, आलू, गाजर, टमाटर, हल्दी, मूली, भिंडी, हरी मिर्च, प्याज, लौकी) भी उगाईं। उनके पास 8 गीर नस्ल की गायें हैं, जिनका गोबर पंचामृत और जैविक खाद के लिए उपयोग होता है। उनकी कहानी अन्य किसानों के लिए एक मिसाल है।
धौलपुर के गजेंद्र कांदिल: बीहड़ में हरियाली
धौलपुर के राजाखेड़ा उपखंड के करा खेड़ली गाँव के गजेंद्र कांदिल ने बीहड़ क्षेत्र में ड्रैगन फ्रूट की खेती को सफल बनाया। मार्च 2023 में, उन्होंने पश्चिम बंगाल के कोलकाता से 4,000 पौधे खरीदे और 2 बीघा जमीन पर लगाए, जिसमें 6 लाख रुपये का निवेश किया। उन्होंने ड्रिप इरिगेशन का उपयोग किया, जिसमें गर्मियों में हर 7 दिन और सर्दियों में हर 20 दिन में सिंचाई की जाती है। गजेंद्र ने जैविक खाद और वर्मीकंपोस्ट का उपयोग करके मिट्टी की गुणवत्ता सुधारी। उनके पौधे 10-11 महीनों में फल देना शुरू करते हैं, और लाल रंग के ड्रैगन फ्रूट 400 रुपये प्रति किग्रा पर बिकते हैं। पौधे 10 साल तक फल देते हैं। सिद्धार्थ शाह और सुजीत सरकार से वैज्ञानिक सलाह लेकर, उन्होंने अपनी खेती को और बेहतर बनाया। ड्रैगन फ्रूट के स्वास्थ्य लाभों में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाना, पाचन में सुधार, कोलेस्ट्रॉल नियंत्रण और उच्च जल सामग्री शामिल हैं। उनकी सफलता ने बीहड़ क्षेत्र के अन्य किसानों को प्रेरित किया है।
भरतपुर के नाथीलाल शर्मा: चुनौतियों को अवसर में बदला
भरतपुर के नाथीलाल शर्मा ने 74 साल की उम्र में ड्रैगन फ्रूट की खेती शुरू की। उन्होंने हैदराबाद और जोधपुर में प्रशिक्षण लिया और 6 बीघा जमीन पर 3,000 पौधे लगाए। शुरुआती निवेश 25-30 लाख रुपये था, और पहले वर्ष में उन्होंने 1 लाख रुपये का लाभ कमाया। अब, उनकी वार्षिक आय लाखों में पहुंच गई है। उन्होंने ड्रिप इरिगेशन और जैविक खेती के तरीकों को अपनाया। पौधे 16 महीनों में छोटे फल देने लगते हैं, और 18 महीनों में पूरी तरह से पके (गुलाबी) फल तैयार होते हैं। पौधे 20 साल तक लाभ देते रहते हैं। उनके बेटे ने उन्हें इस खेती का विचार दिया, और उन्होंने गणतंत्र दिवस पर मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा से मुलाकात की, जिन्होंने सरकारी समर्थन का आश्वासन दिया। नाथीलाल अब अपने गाँव के अन्य किसानों को इस खेती के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं। उनकी कहानी यह दिखाती है कि उम्र कोई बाधा नहीं है।
राजस्थान में ड्रैगन फ्रूट खेती का संक्षिप्त अवलोकन | ||||||
किसान | जिला | शुरुआत | जमीन | पौधे | विशेष उपलब्धि | |
1. | राम कुमार यादव | जयपुर | 2022 | 0.4 हेक्टेयर | 1320 | ‘जिला अभिनव किसान’ पुरस्कार |
2. | रामेश्वर लाल जाट | भीलवाड़ा | 2020 | 1.5 बीघा | 2000 | श्रीलंका से पौधे |
3. | चिराग | उदयपुर | 2020 | 2 हेक्टेयर | 200 (शुरुआत) | बहु-राज्य आपूर्ति |
4. | महेश शर्मा | सीक | 2020 | 21 खम्बे | 84 | डार्क जोन में सफलता |
5. | गजेंद्र कांदिल | धौलपुर | 2023 | 2 बीघा | 4000 | बीहड़ में खेती |
6. | नाथीलाल शर्मा | भरतपुर | – | 6 बीघा | 3000 | 74 वर्ष में शुरुआत |
7 | हेमराज बैरवा | टोंक | 2023 | 0.5 बीघा | 280 | बिहार से प्रेरणा |
स्रोत: विभिन्न स्रोतों से संकलित, 2025
राजस्थान में ड्रैगन फ्रूट की खेती के लिए प्रमुख समस्याएं और चुनौतियां:
- पौधों की उपलब्धता- ड्रैगन फ्रूट के पौधे राजस्थान में आसानी से उपलब्ध नहीं हैं। किसानों को इन्हें मंगवाने के लिए पड़ोसी राज्यों या विदेशों पर निर्भर रहना पड़ता है। उदाहरण के तौर पर, भीलवाड़ा के एक किसान ने श्रीलंका से पौधे मंगवाए, जो समय और लागत दोनों के लिहाज से चुनौतीपूर्ण है।
- तकनीकी ज्ञान की कमी:- ड्रैगन फ्रूट की खेती एक नई फसल है, और इसके बारे में किसानों के पास पर्याप्त जानकारी या प्रशिक्षण नहीं है। इसकी सफल खेती के लिए विशेषज्ञों की सलाह और प्रशिक्षण कार्यक्रमों की जरूरत होती है, जिसकी कमी एक बड़ी समस्या है।
- आर्थिक जोखिम: इस खेती में शुरुआती निवेश काफी अधिक होता है। पौधों की खरीद, मिट्टी की तैयारी, सिंचाई प्रणाली, और सहारा प्रणाली (ट्रेलिस) की स्थापना में भारी खर्च आता है।
- जलवायु संबंधी चुनौतियां: राजस्थान की शुष्क और गर्म जलवायु ड्रैगन फ्रूट के लिए सामान्य रूप से उपयुक्त है, लेकिन अत्यधिक गर्मी या सर्दी के दौरान पौधों की देखभाल में विशेष सावधानी बरतनी पड़ती है। कई बार पॉलीहाउस या छाया नेट का इस्तेमाल करना जरूरी हो जाता है, जो लागत बढ़ाता है।
- सिंचाई का प्रबंधन: ड्रैगन फ्रूट को नियमित और संतुलित मात्रा में पानी चाहिए। राजस्थान में पानी की कमी एक बड़ी समस्या है, जिसके कारण किसानों को ड्रिप इरिगेशन जैसी आधुनिक और महंगी सिंचाई तकनीकों का सहारा लेना पड़ता है।
- बाजार और विपणन: ड्रैगन फ्रूट की मांग अभी स्थानीय स्तर पर सीमित है। किसानों को अपने उत्पाद को बेचने के लिए सही बाजार ढूंढना और विपणन रणनीति बनाना मुश्किल होता है। हालांकि, कुछ किसानों ने ऑनलाइन प्लेटफॉर्म और सोशल मीडिया का उपयोग करके अपने उत्पाद की ब्रांडिंग और बिक्री शुरू की है।
- रोग और कीट प्रबंधन: ड्रैगन फ्रूट के पौधों पर कीटों और रोगों का खतरा रहता है। इन्हें नियंत्रित करने के लिए नियमित निगरानी और जैविक उपायों की जरूरत होती है, जो किसानों के लिए अतिरिक्त मेहनत और खर्च का कारण बनता है।
निष्कर्ष और सुझाव
राजस्थान, जो अपनी शुष्क जलवायु और रेगिस्तानी भूमि के लिए जाना जाता है, अब ड्रैगन फ्रूट की खेती के क्षेत्र में एक नया कदम उठा रहा है। यह विदेशी फल, जिसे अपनी अनोखी दिखावट और पोषण गुणों के लिए पहचाना जाता है, राज्य के किसानों के लिए आर्थिक रूप से लाभकारी सिद्ध हो रहा है। ड्रैगन फ्रूट की खेती न केवल कम पानी और कम उपजाऊ मिट्टी में संभव है, बल्कि यह बाजार में अच्छी कीमत भी दिला रहा है। ड्रैगन फ्रूट की खेती न केवल किसानों की आय बढ़ा रहा है, बल्कि राजस्थान की कृषि को भी एक नई दिशा दे रहा है। यह राज्य की बंजर भूमि को हरा-भरा बनाने और अर्थव्यवस्था को मजबूत करने का एक शानदार अवसर है। राजस्थान सरकार ने 2016 से ड्रैगन फल की खेती को बढ़ावा देने की योजना बनाई थी, और राज्य भर में सरकारी नर्सरियों के माध्यम से सब्सिडी दर पर ड्रैगन फ्रूट के पौधे उपलब्ध कराए जा रहे हैं।
सहायक सन्दर्भ:
किसान तक (2025) राजस्थान के इस किसान ने 74 साल की उम्र में सीखी ड्रैगन फ्रूट की खेती, अब कमा रहे लाखों रुपये।
कृषक जगत (2024) राजस्थान में ड्रैगन फ्रूट की खेती: जयपुर के किसान ने दिखाया कमाल, दैनिक जागरण, मंगलवार, 24 दिसंबर 2024।
ईटीवी भारत (2024) भरतपुर में ड्रैगन फ्रूट की खेती: नाथीलाल शर्मा ने बदली पारंपरिक खेती की तस्वीर, प्रकाशित: 19 अक्टूबर 2024।
राजस्थान कृषि विभाग (2022) ड्रैगन फ्रूट और पिस्ता की खेती को बढ़ावा, यूट्यूब वीडियो, 15 मार्च 2022 को राजस्थान कृषि विभाग के यूट्यूब चैनल पर प्रकाशित।
हिंदुस्तान (2016) राजस्थान में ड्रैगन फ्रूट की खेती शुरू, 30 जनवरी 2016 को प्रकाशित।
कृषि बाजार (2024) ड्रैगन फ्रूट की खेती: राजस्थान के लिए नया अवसर, हिंदी न्यूज18, 30 सितंबर 2024 को प्रकाशित।
ज़ी राजस्थान (2023) ड्रैगन फ्रूट: राजस्थान के किसानों की नई पसंद, ज़ी राजस्थान यूट्यूब चैनल पर 10 जुलाई 2023 को प्रकाशित।
सहसा (2025) राजस्थान में ड्रैगन फ्रूट: एक नई कृषि क्रांति, सहसा, 15 फरवरी 2025 को प्रकाशित।
कृषि जागरण (2022) ड्रैगन फ्रूट की खेती: राजस्थान में सरकार दे रही 35,000 रुपये की सब्सिडी, 8 जनवरी 2022 को प्रकाशित।
Authors:
शोजी लाल बैरवा1, राजेंद्र बैरवा2, और पप्पू लाल बैरवा3
1सहायक प्राध्यापक सह कनिष्ठ वैज्ञानिक (कृषि अर्थशास्त्र)
2सहायक प्राध्यापक, मेवाड़ विश्वविद्यालय, चित्तौड़गढ़ (राजस्थान)
3सहायक प्राध्यापक, एम.बी. कृषि महाविद्यालय, टोंक (राजस्थान)
डॉ. कलाम कृषि महाविद्यालय, अर्राबाड़ी, किशनजगंज,(बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर)
Email:smabm.bhu@gmail.com