जैव-प्रौद्योगिकी के द्वारा तिलहनी फसलो में तना गलन रोग हेतु प्रतिरोधकता की अभियांत्रिकी

जैव-प्रौद्योगिकी के द्वारा तिलहनी फसलो में तना गलन रोग हेतु प्रतिरोधकता की अभियांत्रिकी

Engineering of Stem rot resistance in oil seeds through biotechnology

 

ति‍लहनी फसलों का एक अति मत्वपूर्ण फफूंदी कारक रोग, स्क्लेरोटिनिया तना सड़न / गलन नाम से जाना जाता हैं। इसी रोग को उदाहरण के रूप में लेते हुए प्रस्तुत समीक्षा इस तथ्य को विस्तार से प्रस्तुत करेगी की, किस प्रकार कृषि जैव-प्रौद्योगिकी, किसानों की समस्याओं का प्रभावी समाधान ढूंढ़ने में सक्षम है ।

स्क्लेरोटिनिया स्क्लेरोटियोरम बैक्‍ट्रीया जनित तना गलन रोग

स्क्लेरोटिनिया स्क्लेरोटियोरम (Sclerotinia sclerotiorum (Lib) de Bary) जीवाणु एक नेक्रोट्रॉफिक पैथोजन है , यानि‍ यह अपना भोजन पौधों के सडे-गले अवशेषों से प्राप्त कर जीवित रहता है। इस जीवाणु की जीवन चक्र की चार अवस्थाएं: स्केलोरेसिया (sclerotia), एपोथेसिएम (apothecium), एस्कोस्पोर (ascospores) तथा माइसीलियम (mycelium) होती है।

स्क्लेरोशिया, भूमि से विस्फोटित रूप में अंकुरित होकर माइसीलियम को उत्पन्न करते हैं, जो संवेदनशील पौधों को संक्रमित कर देते हैं। हाइफ़ा भी पहले भूमि पर पड़े अजीवित कार्बनिक पदार्थों के ऊपर अंकुरित होती है, तथा इस प्रकार मध्य कड़ी के रूप में माइसीलियम उत्पन्न करके उसके द्वारा संक्रमण फैलाती है।

इसके अतिरिक्त स्क्लेरोशिया अंकुरित होकर बढ़ते हैं तथा एपोथेसिया उत्पन्न करते हैं, जो बाद में एस्कोस्पोर उत्पन्न कर उन्हें वायु में वितरित कर देते हैं।एस्कोस्पोर, अति सूक्ष्म व हलके होने के कारण दूर तक चले जाते हैं तथा पौधों के निर्जीव भागों के सम्पर्क में आने के बाद अंकुरित होकर फैल जाते हैं, और पौधों के स्वस्थ्य भागों में तेजी से संक्रमण फैलाते हैं। एस्कोस्पोर, पौधों के सजीव भागों के सम्पर्क में आने के पश्चात सीधे सीधे संक्रमण फैलाने में भी पूर्ण सक्षम होते हैं।

केवल सूरजमुखी ही एकमात्र ऐसी फसल है जिसे स्क्लेरोटिनिया दृढ़ता से लगातार केवल जड़ों के द्वारा ही संक्रमित करते आ रहा है। स्क्लेरोटिनिया जीवाणु बाद में पौधों की कोशिकाओं व उत्तकों पर अपना विस्तार करते हैं, तथा अधिक मात्रा में स्क्लेरोशिया उतपन्न करते हैं, जिन्हे रोग ग्रस्त सूखे पौधों की जड़ों और तनो के पिथ पर आसानी से देखा जा सकता है (चित्र 1)। स्क्लेरोटिनिया रोग के जीवाणु, इस प्रकार अपनी शीत रितु को, स्क्लेरोशिया के रूप में मिट्टी और पौध अवशेषों के भीतर व्यतीत करते हैं ।

स्क्लेरोटिनिया जीवाणु बाद में पौधों की कोशिकाओं व उत्तकों पर अपना विस्तार करते हैं, तथा अधिक मात्रा में स्क्लेरोशिया उतपन्न करते हैं

ऑक्सेलिक एसिड – मुख्य पादप अविषालु तथा रोग कारक

रोगाणु, रोग ग्रस्त स्थान पर एक प्रकार का द्रव्य उत्पन्न करता है ।इस द्रव्य के अणु तथा पौध-उत्तकों के मध्य आण्विक स्तर पर जटिल एवं गहन संकेतिक सुचना का आदान प्रदान होता है, जो रोग के स्थापित होने को सुनिश्चत करता है। स्क्लेरोटिनिया स्क्लेरोटिओरम , ऑक्सेलिक एसिड (OA) की मिली-मोलर सांद्रता का निर्माण करता है तथा संकर्मिक उत्तकों पर इसे छोड़ देता है।

सूरजमुखी में यह अम्ल गतिशील विष के रूप में कार्य करते हुए पौधे को सुखा देता हैI ऑक्सेलिक एसिड उत्तकों को न केवल अम्लीय बना देता है, अपितु यह कोशिकाओं की भित्ति से Ca++ आयन निकालकर, ग्रहणक्षम बलाघादित उत्तकों एवं तंतुओं को रोग जीवाणु के अवकर्षक एन्ज़ाइम्स के समक्ष खुला छोड़ देता है।

ऑक्सेलिक एसिड, 0- डाईफिनॉल ऑक्सिडेज की सक्रियता को भी समाप्त कर देता है जिससे ऑक्सीडेटिव बर्स्ट दब जाता है। सुई द्वारा ऑक्सालेट का संक्रमण करने से पौधों में स्क्लेरोटिनया रोग के लक्छण उभर आते हैं।

स्क्लेरोटिनिया स्क्लेरोटिओरम के उत्परिवर्ती (म्युटेंट), जिनमे ओक्सालेट बनाने की क्षमता नही होती है, रोगजनक नहीं होते हैं, जबकि वह प्रत्यावर्तित वितति, जो ऑक्सालेट निर्माण करने की क्षमता को हासिल कर लेती है, संक्रमण फैलाने में पूर्ण सक्षम होती है। यह आंकड़े साफ़ साफ़ दर्शाते हैं कि ऑक्सेलिक अम्ल ही रोग कारक तत्व है।यह पौधे की अति संवेदनशील अनुक्रिया को दबा देता है I

स्क्लेरोटिनिया तना सडन रोग प्रबंधन

स्क्लेरोटिनिया रोग प्रबंधन के लिए पारम्परिक पौध प्रजनन विधि तथा रसायनों का उपयोग, दोनों ही रणनीतियां उपयोग में लाई जाती हैं। अनुवांशिकी अध्यन ने स्पष्ट कर दिया है की स्क्लेरोटिनिया रोग एक मात्रात्मक गुण है और बहुत सारे जींस मिलकर प्रतिरोधी क्षमता का विकास करते हैं।

इस रोग के प्रति प्रतिरोधक स्रोत उपलब्ध हैं , जिनको पादप प्रजनक उपयोग में ला रहे हैं।फिर भी इस रोग का प्रभावी इलाज तो यही है की संक्रमित भूमि पर फसल को न लगाया जाय, और भूमि पर इस रोग के संक्रमण को हर प्रकार से रोका जाय।

अनेक प्रकार के रसायनो का उपयोग इस रोग के रोकथाम के लिए किया गया है, परन्तु यह काफी महंगे हैं और प्राय: उतने प्रभावी नहीं हैं, या वातावरण की दॄष्टि से असुरक्षित हैं। इसलिए किसानों ने इस रोग के निवारण हेतु नए दृष्टिकोणों की मांग की है। फसलों का पराजीनी बदलाव (ट्रांसजेनिक मॉडिफिकेशन), एक ऐसी तकनीक है जिससे स्क्लेरटोरिया रोग के रोकथाम में महत्वपूर्ण सफलता प्राप्त की जा सकती है।

पराजीनी रणनीति (Transgenic strategies) के अंतर्गत, रोगाणु के रोग कारक तत्व OA (pthogenicity factor OA) का निराविशिकरण (detoxification) करना, पौधों के अंतर्जात सुरक्षा प्रणाली (endogenous defense pathways) को सक्रिय करना, तथा कवक विरोधी प्रोटीन्स (anti-fungal proteins) द्वारा स्क्लेरोटिनिया स्क्लेरोटीओरम के विकास को रोकना सम्मलित हैं।

ओक्सालेट ऑक्सिडेज (OXO) द्वारा पौधे में स्क्लेरोटिनिया प्रतिरोधक क्षमता विकसित करना

स्क्लेरोटिनिया कवक से मुकाबला करने की एक सामान्य प्रक्रिया यह है की ऑक्सेलिक एसिड (OA), जोकि पौधों के लिए विष है तथा स्क्लेरोटिनिया रोगाणु द्वारा छोड़े गए स्राव के रोगकारक तत्व का विघटन किया जाय।

तीन प्रकार के एंजाइम – ऑक्सलेट ओक्सिडेज (OXO), (EC १.२.३.४), ऑक्सलेट डिकार्बोक्सिलेज (EC ४.१.१.२) तथा ओक्सालिल-CoA कार्बोक्सीलेज (EC ४.१.१.८) ऐसे एंजाइम हैं जो ऑक्सेलिक एसिड (OA) को विघटित कर सकते हैं। बैक्टीरियल ओक्सालिल-CoA कार्बोक्सीलेज जीन, के प्रयोग से पौधों को इस प्रकार इंजीनियरिंग की जा सकती है की वे ऑक्सलेट को उत्प्रेरित करके उनमें स्क्लेरोटिनिया के प्रति प्रतिरोधकता उतपन्न करे।

यद्यपि दोनों, बैक्टीरियल तथा फंगल ऑक्सीलेट डिकार्बोक्सिलेजेज, ऑक्सलेट को CO2, तथा फॉर्मिक एसिड में बदल देते हैं, जो पौधों के लिए विषकारक होते हैं। इसलिए वैज्ञानिकों की अधिक रूचि OXO की तरफ है जो O2 और OA का विघटन H2O2 तथा CO2 में करता हे जो विषकारक नहीं होते।

इस एन्ज़ाइम को सर्वप्रथम जौ तथा गेहूं में खोजा गया, तत्पश्चात इस एन्ज़ाइम का चरित्र चित्रण भी किया गया। गेहूं के OXO को ‘जर्मिन’ के नाम से जाना जाता है और यह कुपिन परिवार का एन्ज़ाइम है। गेहूं का जर्मिन एप्लास्टिक (aplastic – अर्थात जो किसी अन्य रूप में परिवर्तित न हो), मल्टीमेरिक (multimeric – अर्थार्त ऐसा प्रोटीन जो एक से अधिक एक ही प्रकार या विभिन्न प्रकार के पॉलीपेप्टाइड्स चेन द्वारा निर्मित हो) और ग्लायकोसाइलेटेड (glycosylated) गुणों को धारण करने वाला ऐसा एन्ज़ाइम है जो तापमान, प्रोटीएज (protease) तथा H2O2 द्वारा विघटित नहीं होता है।

एक बीजपत्रीय तथा द्विबीजपत्रीय अनेक उच्य स्तरीय पौधों से जर्मिन जैसे प्रोटीन्स (GLPs – germin like proteins) पृथक किए जा चुके हैं जिनकी सीक्वेंस आइडेंटिटी (sequence identity) गेहूं के जर्मिन से मेल खाती है। हालाँकि अभी तक केवल गेहूं, जौ, मक्का, जई, धान, राई, और चीड़ के जर्मिन में ही OXA की सक्रियता को देखा गया है।

वैज्ञानि‍को ने गेहूं के OXA जीन (gf-२.8) को एग्रोबेक्टीरियम के माध्यम से सोयबीन में स्थापित करके ट्रांसजेनिक सोयबीन का निर्माण किया। ‘३५-S-gf -२.८ ‘ की होमोजाइगस अवस्था वाले ट्रांसजेनिक सोयबीन ने OXO की सक्रियता वाले १३० KDa आकार का प्रोटीन उत्पन्न किया। इस OXO की सक्रियता अधिकांशतः कोशिकाओं की भित्तियों में पाई गई, जहाँ रोग जीवाणु अधिक अक्रामक होते हैं।

स्क्लेरोटिनिया स्क्लेरोटोरियम का संक्रमण ट्रांसजेनिक सोयबीन के तने और बीजपत्र पर कराने पर पाया गया की सोयाबीन में रोग फैलाव के स्तर में काफी कमी आ गई, तथा रोग से उभरे घाव का आकार भी छोटा हो गया। यह इस बात को दर्शाता है की OXO तना गलन के प्रति प्रतिरोधक क्षमता उत्पन्न करता है।

इसके अतिरिक्त, खेत पर OXO -ट्रांसजेनिक सोयबीन का स्क्लेरोटिनिया जीवाणु के प्रति अनुक्रिया को चिह्नित किया तथा ट्रांसजेनिक सोयबीन के शाश्कीय अनुक्रिया का असंक्रमित भूमि पर अध्ययन किया गया। भिन्न-भिन्न तीन स्थानों पर किए गए तीन वर्षों के जैव आमापन अध्यन के आधार पर यह तथ्य सामने आया की OXA -संचित (ट्रांसजेनिक) सोयबीन स्क्लेरोटिनिया के प्रति अत्यधिक प्रतिरोधी थी। जबकि असंक्रमित भूमि पर किए गए अध्यन के अनुसार संचित तथा गैर संचित पैतृक लाइन में बीज उत्पादन, फसल परिपक्वता, बीज भार/ आकार, बीज प्रोटीन, तथा तेलांश के प्रति कोई मुख्य अंतर नहीं पाया गया।

कुछ और अध्ययन के अनुसार भी OXO – द्वारा उत्पन्न प्रतिरोधकता, किसी सर्वोत्तम व्यसायिक किस्म का ग्रहणक्षम पृष्ठभूमि में होने के तुल्य है। एग्रोबेक्टेरियम माध्यम से OXO- संचित सूर्यमुखी का निर्माण भी किया गया है। स्क्लेरोटिनिया का पत्तियों पर संक्रमण कराने पर पाया गया की, संचित पौधों की पत्तियों पर संक्रमण द्वारा उत्पन्न घाव का आकार परखी (control) की तुलना में काफी कम था।

पत्तियों के डंठल पर संक्रमण करने पर पाया गया की परखी में यह संक्रमण डंठल से तने तक फैल गया, जबकि संचित पौधों में यह संक्रमण डंठल तक ही सीमित रहा। दस दिनों के पश्चात् संक्रमण द्वारा किए गए घाव का आकार संचित पौधों में परखी पौधों की तुलना में छः गुना कम था, ओर दो सप्ताह के पश्चात पाया गया की, असंचित परखी पौधों में संक्रमण, पौधों के शीर्ष तक पहुँच गया जबकि इसकी तुलना में संचित पौधों में संक्रमण डंठल से तने तक ही पहुँच पाया।

यह अनुसन्धान इस बात की पुष्टि करता है की , OXO संचित सोयाबीन में स्क्लेरोटिनिया के प्रति प्रतिरोधक्ता उत्पन्न करता है। ग्रीन हॉउस और फ़ील्ड बायोएस्सै ने यह भी दर्शाया की OXO ट्रांसजेनिक पौधों में तना गलन, जड़ गलन तथा शीर्ष गलन के प्रति भी प्रतिरोधक क्षमता में बढोत्तरी हुई है।

OXO-संचित पौधों का संयोजन जब प्राकृतिक रूप से स्क्लेरोटिनिया रोधक पौधों से कराया गया तो प्राप्त OXO-ट्रांसजीन वाले संकर पौधे असंचित आइसोजेनिक संकर पौधों की तुलना में अधिक स्क्लेरोटिनिया रोधक पाए गए।अतः ऐसा प्रतीत होता है की प्राकृतिक रोधकता तथा ट्रांसजीन के समावेश द्वारा स्क्लेरोटिनिया के प्रति उच्य स्तर की प्रतिरोधक क्षमता प्राप्त की जा सकती है।

जौ-OXO संचित सरसों में OXO की उच्य स्तर की गतिविधि पाई गई।ऐसे पौधों में बाहर से OA प्रवेश कराने पर, उन्हें OA के प्रति सहिष्णु पाया गया। संचित पॉपलर में गेहूं-जर्मिन की अधिभावाकृति पाई गई, जिसके परिणाम स्वरुप उसमें OA उत्त्पन्न करने वाले रोगाणु सेप्टोरिया म्यूसिवा के प्रति प्रतिरोधकता बढ़ गई।

सबसे रोचक उजागर तथ्य तो यह हे कि OXO-संचित मक्का ने कीटों के प्रति भी प्रतिरोधक्ता क्षमता दिखाई है। यह सारे परिणाम इस ओर इशारा करते हैं की H2O2 उत्त्पन्न करने वाले OXO जैसे एन्ज़ाइम की असीम उपयोगिता है तथा इसके उपयोग से पौधों को अनेक प्रकार के रोगों तथा कीटों के प्रति उच्य प्रतिरोधकत्ता से अभियंत्रित किया जा सकता है I

OXO द्वारा पौधों में सुरक्षा प्रतिक्रिया का प्रेरित होना

जर्मिन प्रकार के प्रोटीन्स (GLPs) अति संरक्षित समूह है। इन पर किए गए अनेक अध्ययन इस बात को दर्शाते हैं की इनका पौधों की बढोत्तरी एवं विकास तथा जीवीय और अजीवीय तनाव के प्रति प्रतिक्रिया उत्पन्न करने में बड़ी भूमिका होती है। उदाहरण के लिए गेहूं और जौ में उपस्थित जर्मिन, बीज अंकुरण के समय तथा बाद में वयस्क पत्तियों में रोग लगने पर तीव्र रूप से अभिव्यक्त होता है।

चूर्णी फफूंदी संक्रमण का जौ की पत्तियों पर प्रवेश कराने पर पाया गया की छः घंटे पश्चात उसकी मिजोफिल कोशिकाओं में एक विशेष प्रकार का रोगाणु –प्रतिक्रियत्मक OXO ट्रांसक्रिप्ट पाया गया।हाल ही में पाया गया है की जौ जर्मिन तथा सम्बंधित GLPs एक विशेष प्रकार के बाह्य कोशिकीय मैंगनीज़ रहित एन्ज़ाइम का प्रतिनिधित्व करते हैं जो OXO तथा सुपर ओक्साईड डिसम्युटेज (SOD) की प्रतिक्रिया को प्रदर्शित करते हैं।

दो GLPs ऐसे हैं, जिनकी SOD के रूप में पहचान कर ली गई है, परन्तु उनमें oxo की कोई गतिविधि नहीं पाई गई।सुपर ओक्साईड डिसम्युटेज (SOD) गतिविधि, H2O2 उत्पन्न करने में भी अग्रणी पाया गया है। स्क्लेरोटिनिया रोग से लड़ने में OXO की दोहरी भूमिका है : एक तरफ तो वह स्क्लेरोटिनिया विष को निष्क्रिय करता है, तथा दूसरी तरफ वह पौधे में H2O2 के रूप में सुरक्षा प्रेरित अणु उत्पन्न करता है।सूर्यमुखी में जर्मिन प्रकार की OXO गतिविधि बहुत कम मात्रा में होती है, अतः उसमें AO उत्पन्न करने वाले स्क्लेरोटिनिया रोगाणु भी अधिक मात्रा में लगते हैं, और इसलिए सूर्यमुखी, पौधों तथा रोगाणु के मध्य होने वाली OXO एंजाइम प्रेरित क्रिया-प्रतिक्रिया के वैज्ञानिक महत्तव को समझने के लिए अति उपयोगी है।

वैज्ञानि‍को ने ये देखा है कि, पराजीनी सूर्यमुखी पत्तियों की कोशिकाएं OA का विघटन, तथा H2O2 को उत्पन्न करती हैं। पराजीनी सूर्यमुखी की पत्तियों में अतिसंवेदनशील प्रतिक्रिया (हाईपरसेंसिटिव रेस्पोंस) जैसे की विक्षतिअनुकरण उत्पन्न हुई जो H2O2, OXO, सैलिसिलिक एसिड तथा रक्षक जीन अभिव्यक्ति के उच्च स्तर को दिखलाता है। जिन पराजीनी पौधों में OXO का स्तर कम था परन्तु पत्तियों पर घाव भी नहीं थे, उन पौधों में भी रक्षक जीन की अभिव्यक्ति स्तर अधिक पाया गया, जिससे यह प्रतीत होता है की रक्षक जीन सक्रियण, कोशिकीय मृत्यु जैसे अतिसंवेदनशील प्रतिक्रिया (HR) पर निर्भर नहीं करता।

mRNA परिच्छेदिकायन (प्रोफाइलिंग) से ज्ञात होता है की OXO-संचित सूर्यमुखी में अनेक प्रकार के जींस विभिन्न प्रकार से व्यक्त होते हैं, जिनमे से तीन रक्षक प्रोटीन जींस PR 5, सूर्यमुखी कार्बोहाइड्रेट्स ऑक्सिडेज, और डिफ़ेंसिन का निस्र्पण किया जा चूका है।असंक्रमिक OXO-संचित पत्तियों में इन जींस की अभिव्यक्ति नाटकीय ढंग से बढी हुई पाई गई जो SA तथाH2O2 की OXO द्वारा उत्पन्नH2O2 पौधों के आतंरिक तत्वों (एन्डोजीनस सब्सट्रेट) के साथ सीधे तौर पर या SA के द्वारा या जस्मोनिक एसीड (JA) के द्वारा क्रिया करके रक्षक जींस की सक्रियता को उत्प्रेरित कर देता है।

यह दर्शाया जा चूका है की, PR5 प्रकार के प्रोटीन्स में अनेक प्रकार की फफूंदी, जैसे फाइटोफथोरा इन्फ़ेसटेन्स , कैंडिडा अल्बीकन्स , न्यूरोस्पोरा क्रासा और ट्राइकोडर्मा रिसि आदि, के प्रति पात्रे (इनविट्रो) अवस्था के अंतर्गत कवक विरोधी क्रिया पाई गई है। पौधों के डेफेंसीन अनेक प्रकार की फफूंदी की संवृद्धि को बाधित कर देते हैं।ऐसा करने के लिए या तो यह फफूंदी की हाइफे की लम्बाई को बढ़ने से रोकते हैं या फिर हाइफ़ा के विस्तार को रोक कर ऐसा करते हैं।

सूर्यमुखी के कार्बोहाइड्रेट ऑक्सिडेज (SCO) की समानता एक ऐसे सूचित SCO के साथ पाई गई है, जिसमे कवक विरोधी गतिविधि है, तथा यह संचित अरेबिडोप्सिस में रोगाणु के प्रति प्रतिरोधक्ता अभिव्यक्त करता है।सूर्यमुखी के कार्बोहाइड्रेट ऑक्सिडेज की समानता बर्बेराइन ब्रिज एन्ज़ाइम के साथ भी पाई गई है जो बेंजोफिनांथ्रिडीन अल्कलॉइड मार्ग का एक मुख्य एन्ज़ाइम है और खसखस (Poppies) में कवक विरोधी रसायन उत्पन्न करता है।

बर्बेराइन ब्रिज एन्ज़ाइम तथा कार्बोहैड्रेट ऑक्सिडेस दोनों ही H2O2 उत्पन्न कर सकते हैं, जो दर्शाता है की OXO-प्रेरित SCO, H2O2 के स्तर को OXO संचित पत्तियों में और अधिक बढा सकता है। यद्यपि, अल्कलॉइड बायोसिनथेटिक पाथवे, सूर्यमुखी के पौधों में न भी पाया जाता हो, फिर भी कार्बोहैड्रेट ऑक्सिडेज की कवक विरोधी गतिविधि दर्शाती है की, सूर्यमुखी की सुरक्षा प्रणाली के लिए यह महत्वपूर्ण है।

आंतरिक रूप से निर्मित OXO स्क्लेरोटिनिया के प्रति जिस प्रकार की प्रतिरोधक्ता उत्पन्न करता है वह अनेक प्रकार की क्रियाओं के परिणाम स्वरुप होता है।यह पौधे के अंदर होने वाले आन्तरिक तत्त्व की चयापचय (मेटाबोलिज्म) के परिणाम स्वरुप उत्पन्न होने वाले H2O2 के कारण होता है, जो रोगाणु के प्रति सुरक्षा जींस की अभिव्यक्ति को बढा देता हैI स्क्लेरोटिनिया द्वारा निर्मित OA का विघटन होने से, इस रोगाणु द्वारा किए जाने वाली क्षति कम हो जाती है तथा रोग के विस्तार में कमी आ जाती है।

यह लगता है की अन्तः निर्मित OXO अन्य OA उत्पन्न करने वाले जीवाणु जैसे, क्रिस्टूलेरीला पिरामिडेलिस और सेप्टोरिया मुसिवा, के प्रति भी प्रतिरोधक्ता उत्पन्न करता है।हमारे शोध कार्य इस बात की पुष्टि करते हैं कि, H2O2 उत्पन्न करने वाले OXO प्रकार के एन्ज़ाइम के उपयोग से पौधों को इस प्रकार से इंजीनियर किया जा सकता है कि, उनमें अनेक प्रकार के जीवाणु के प्रति प्रतिरोधक क्षमता उत्पन्न की जा सके।

H2O2 ने आण्विक रोग वैज्ञानि‍को का ध्यान अपनी ओर कुछ इस प्रकार आकर्षित किया है की वो अब H2O2 उत्पन्न करने वाले एन्ज़ाइम्स जैसे, ग्लूकोज़ ऑक्सिडेज की अधिक अभिव्यक्ति के द्वारा, H2O2 के स्तर को मैनिपुलेट कर सकते हैं I

कवक विरोधी प्रोटीन उपागम

फसलें , रोग विरोधी पेप्टाइंंस या प्रोटीन की अति अभिव्यक्ति की रणनीति को अपनाते हुए अपने को बैक्टीरिया या कवक रोगाणु से सुरक्षित रखती हैं। अनेक प्रकार के जीवाणु विरोधी पेप्टाइड्स में इस प्रकार की प्रवर्ति दिखाई देती है। वैज्ञानिको ने अनेक जीवाणु विरोधी पेप्टाइंंस का अध्यन्न यह जानने के लिए किया है की, सूर्यमुखी की कोशिकाओं में उनका स्क्लेरोटिनिया विरोधी व्यवहार, उसकी स्थिरता, एवं विषैलापन किस प्रकार प्रदर्शित होता है।

इन पेप्टाइंंस में से टेकिपलेसिन (Tachyplesin -TP) सबसे उत्तम पाया गया। टेकिपलेसिन (TP) एक शक्तिशाली जीवाणु विरोधी पेप्टाइड है जिसे होर्सशु क्रेब (Tachypleus tridentatus) के हीमोसाइट्स (hemocytes) से पृथक किया गया है। पिछले अध्ययनो से पता चला है की 17-residue पेप्टाइड् में एक इन्ट्रिंसिक एम्फीपैथीक स्ट्रक्चर है जो दो anti parallel beta sheets को डाइसल्फाइड से कस कर बांधने के कारण प्राप्त होता है।

प्राकृतिक और कृतिम कोशिका भित्तियों, तथा प्रमाणित मापों पर आधारित, सक्रियता आमापन विधियां दर्शाती हैं की पेप्टाइड स्ट्रक्चर पर एमिनो एसिड साइड चेन के गुणों तथा भिन्नता का अधिक प्रभाव पड़ता है। TP, एक निश्चित सांद्रता पर स्क्लेरोटिनिया एस्कोस्पोर्स के जमाव को पूर्णतः रोक देता है। इस सांद्रता का विषैला प्रभाव सूर्यमुखी के कोशिका द्रव्य (प्रोटोप्लास्ट) पर केवल अति साधारण सा होता है।

यह ध्यान देने योग्य है की TP जड़, पत्ति, तथा फूलों के अंतराकोशिक द्रव्य में स्थायी रूप से संघठित रहता है। TP-संचित सूर्यमुखी के कैलस में, स्केलेरोटिनिया माइसीलियम के विकास में बाधा पाई गई। इन परिणामो से यह निष्कर्ष निकलता है की TP एक शक्तिशाली स्क्लेरोटिनिया विरोधी पेप्टाइड है जिसे इंजीनियर करके तेलीय फसलों में स्क्लेरोटिनिया के प्रति प्रतिरोधकता लाई जा सकती है।

वैग्यानिको ने राई में एग्रोबेक्टीरियम माध्यम से एक हाइब्रिड इंडो काइटिनेज़ जीन को कंस्टिट्यूटिव प्रमोटर के आधिन प्रवेश कराया।रचनान्तरित पौधों से प्राप्त संतति को तीन भिन्न-भिन्न प्रकार के कवक रोगाणु (सिलेण्डरोस्पोरियम कॉन्सेंट्रिकम, लेप्टोसफेरिया मकुलंस, और स्क्लेरोटिनिया स्क्लेरोटियरम) के विपरीत दो भिन्न-भिन्न भौगोलिक स्थानों की फील्ड ट्रायल पर परखा गया।

इन पौधों ने असंचित पैतृक पौधों की तुलना में इन रोगों के प्रति प्रतिरोधकता दिखलाई। काइटिनेज़ जीन का ओवर एक्सप्रेशन कई अन्य रोगाणु के प्रति भी शोधित प्रतिरोधकता प्रदर्शित करता है। पौधों में रोग प्रतिरोधकता उत्पन्न करने में फिनॉलिक्स की भी महत्वपूर्ण भूमिका होती है। वैज्ञानिको ने शीर्ष गलन कारक स्क्लेरोटिनिया स्क्लेरोटियरम के प्रति विभिन्न स्तर (अत्यंत ग्रहणक्षम से अति प्रतिरोधक तक) की प्रतिरोधकता प्रदर्शित करने वाली, चार सूर्यमुखी किस्मों में रोग लक्षण तथा कुल घुलनशील फिनोलिक मात्रा का परस्पर विश्‍लेषण किया।

उन्होंने पाया की पौधों में फिनोलिक कंपाउंड की उपलब्ध मात्रा, सूर्यमुखी की किस्म, रोग लगने का छण, तथा पौध उत्तकों की प्रकृति पर निर्भर करती है। फिनॉलिक्स की मात्रा और फिनाइलएलनाइन अमोनिआलाईएज की सक्रियता सबसे अधिक रोगप्रतिरोधक किस्म में पाई गई।यह अंतर रोग की उपस्थिति, या अनुपस्थिति से भी मेल खाते थे।अतः निष्कर्ष यह निकलता है कि, तेलीय फसलों में फिनॉलिक्स कम्पाउंड के स्तर की तालमेल से स्क्लेरोटिनिया के प्रति प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाया जा सकता है I

OXO-संचित फसलों की जैव सुरक्षा

जैव प्रौद्योगिकी ने आण्विक प्रजनन के माध्यम से फसलों की कई उन्नत, विशेष कर उत्तम गुण तथा कीट प्रतरोधकता वाली किस्मों को जन्म दिया। पहली पराजीनी किस्म सर्व प्रथम सन १९९६ में सामने आई। वर्तमान में अमरीका में, पराजीनी मक्का, सोयबीन, और कपास, कुल उपलब्ध छेत्र के आधे छेत्र में उपजाई जा रही है।

अपर्याप्त ज्ञान के कारण लोग इनके सेवन से कतरा रहे हैं। सूर्यमुखी के संदर्भ में ऐसा संशय भी है की, पराजीन द्वारा इनकी जंगली जातिया स्थानांतरित हो सकती है।वैग्यानिको ने सूर्यमुखी में स्क्लेरोटिनिया के प्रति प्रतिरोधक्ता व्यक्त करने वाले पराजीन का अध्ययन किया। एक प्रकार के OXO-पराजीन को जंगली सूर्यमुखी के साथ बैकक्रॉस कराया गया, तथा प्राप्त पौधों को इंडियाना, नार्थ डकोटा एवं केलिफोर्निया के फील्ड साइट्स में अवरोधित पिजड़ों में उगाया गया।

OXO-पराजीन की उपस्थिति के कारण स्क्लेरोटिनिया के प्रति प्रतिरोधक्ता स्पष्ट दिखाई पड़ी तथा इसकी वजह से बीज उत्पादन मात्रा में किसी प्रकार की कमी भी नहीं पाई गई। उन्होंने दिखलाया की पराजीन का जंगली जातियों में क्रियान्यवित रूप से सुनिश्चित बने रहना केवल इस बात पर ही निर्भर नहीं करता की पराजीन स्थानांतरित हो चूका है, बल्कि इस बात पर भी निर्भर करता है की उसकी नए होस्ट पोपुलेशन की पृश्ठभूमि में स्थानांतरण के कारण कथित जंगली जाति की रिलेटिव फिटनेस पर क्या असर पड़ा है।

इस प्रकार के अध्यन्न, इन नई तकनीकी की सुरक्षा प्रणाली को सिद्ध करने के लिए मत्वपूर्ण है।

चित्र 1: भारत में स्क्लेरोटिनिया स्केलेरोटीयमोरम जनित तना गलन रोग से प्रभावित विभिन्न राज्यों का मानचित्रन (अ), एवम् रोगज़नक एस. स्क्लेरोटियोरम और तना गलन रोग से पीड़ित भारतीय सरसों के पौधों और फसल की छवियां (ब)।


Authors:
नवीन चंद्र गुप्ता 1, महेश राव1, संध्या1 और पंकज शर्मा *
1 भा. कृ. आनु. प. – राष्ट्रीय जैव-प्रौद्योगिकि अनुसंधान केंद्र, पुसा, नई दिल्ली I
* भा. कृ. आनु. प.- सरसों अनुसंधान निदेशालय, भरतपुर, रजस्थान I

Email:navinbtc@gmail.com

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