Fruit rot and apical decay in Chilli crop

Fruit rot and apical decay in Chilli crop

मिर्च का फलविगलन तथा शीर्षारंभि क्षय रोग

The disease of fruit rot in chillies is called anthracnose in English. Anthracnose causes considerable loss in the production and quality of red chillies. This disease causes major hindrance in increasing the yield of chilli. In India, the loss of chilli production from this disease ranges from 10% to 54%.

मिर्च में होने वाले फल विगलन के रोग को अंग्रेजी में एन्थ्रक्नोसे कहा जाता है. एंथ्रेकनोस लाल मिर्च की उत्पादन एवं उसके गुणवत्ता में काफी नुक्सान पहुंचाता है. यह बीमारी मिर्च की उपज को बढ़ाने में प्रमुख व्यवधान उत्पन्न करता है. भारत में इस रोग से 10% से 54% तक की मिर्च उत्पादन की हानि होती है।

फलविगलन रोग कोलेटोट्रिकुम कैप्सिसी नामक एक कवक द्वारा होता है। इस रोग में सम्मिलित अन्य प्रजाति के कवक भी है जैसे की कोलेटोट्रिकुम अक्यूटेटम  और कोलेटोट्रिकुम गलिओस्पोरोइड्स हैं। इस रोग का असर मिर्च के पौधों के सभी अंग जैसे की पत्तियां, डंठल तथा फलों  पर जान पड़ता है। 

पके हुए लाल मिर्च, जिसकी मांग भारत के निर्यात में काफी अधिक मात्रा, में इस कवक का प्रकोप  सबसे अधिक होता है। पहले ये छोटे, गले हुए से, हल्के भूरे रंग के, गोलाकार और धब्बेदार आकार के लक्षण प्रतीत होते हैं। बाद में, इन धब्बों का आकार बढ़ता है और उनका रंग भूरा हो जाता है। इन धब्बों की सीमा गहरे भूरे या काले रंग की होती है। इन घावों के मध्य में कवक के कई काले छोटे असरवुलस दिखाई देते हैं।

इस रोग के गंभीरता वाली स्थिति जिसमें फल पूर्ण तरह से विकरित हो जाते है उसके लिए 20 डिग्री से 24 डिग्री तापमान और 95% आर्द्रता होती हैं। बीमारी के प्रारम्भिक चरण में कवक फलों के अंदर प्रवेश करता है। अगर हम फलों को काटते हैं तो हम सफेद कवकीय माइसेलियल मैट से ढके बीजों को देख सकते है।

यह कवक बीजों को रंग को बदल देता है तथा उनके अंकुरण को भी बिगाड़ता है।  फल की त्वचा की नीची सतह पर कई छोटे गोल ब्लैक स्क्लेरोटियम स्केलेरोशियम दिखाई देता है। यह कवक फल के डंठल पर भी संक्रमण का कारण बनता है और डंठल रोग संसक्रमण का कारण बनता है।

फलों और उनके डंठल के संपूर्ण विकृत होने से गंभीर आर्थिक नुकसान होता हैं। इस रोग के गंभीर अवस्था हो जाने पर मिर्च का पौध ऊपर से नीचे की ओर सूखने लगते है और नए टहनियों के मरने का कारण बनती है। इस स्थिति को डाईबैक कहा जाता है। संक्रमित टहनियां और शाखाएं पत्तियों को छोड़ देती हैं। यदि यह स्थिति फल बनाने के समय होती है, तो फल उत्पादन कम हो जाता है।

 fruit rot in chillies  fruit rot

चित्र: मिर्च में फलविगलन के लक्षण

इस रोग के प्रमुख लक्षण :

पत्तियों पर लक्षण-छोटे, वृत्ताकार या अनियमित आकार, भूरे से काले रंग के बिखरे हुए धब्बे पत्तियों पर दिखाई देते हैं। इन धब्बों का केंद्र सफेद होता है जिसमें कई काले असरवुलस होते हैं। गंभीर संक्रमण के कारण पत्तियों का झाड़न होता है।

तनों पर लक्षण-तनों पर अनियमित आकार के भूरे से  दाग विकसित होते हैं जिनके आसपास अक्सर अधिक गहरा भूरा किनारा होता है। इन दागों का केंद्र फट जाता है और गंभीर संक्रमण के कारण झड़ जाता है। बाद में इन दागों का केंद्र सफेद हो जाता है और अनेक छोटे बिंदुओं के फल के रूप में विकसित होने वाले फ्रूटिंग बॉडीज़ “असरवुलस” बनते हैं।

फलविगलन तथा शीर्षरंभि क्षय रोग से निदान:

कृषि नियंत्रण उपाय:

कृषि नियंत्रण उपाय वे व्यवहार होते हैं जो मिर्च के पौधों में एंथ्राक्नोस रोग की संख्या और तीव्रता को कम करते हैं। इनमें शामिल हैं:

  1. फसल चक्र: अन्य फसल जिन पर यह रोग न आता हो उसके साथ मिर्च फसल को चक्र दें ताकि रोग चक्र को तोड़ा जा सके और भूमि में इनोकुलम का बढ़ाव कम हो सके। टमाटर, आलू, बैंगन और खीरा फसल के पास मिर्च फसल न लगाएं क्योंकि यह कवक इन फसलों पर संक्रमित होता है और यहां से बचता है।
  2. स्वच्छता: रोग के फैलाव को कम करने के लिए सभी संक्रमित पौधों के साथ-साथ गिरे हुए पत्तों और फलों को हटा दें और नष्ट कर दें। अगर आपको किसी भी मिर्च के पौधे में एंथ्रेकनोस रोग का पता चलता है तो उसे तुरंत हटा दें और नष्ट कर दें I
  3. हमेशा स्वस्थ और बीमारीमुक्त बीज का उपयोग करें। क्योंकि यह रोग बीजों से फैलता है। यह हवा, मिट्टी और जल से भी फैलता है I
  4. उचित सिंचाई: फफूंद के विकास को बढ़ावा देने वाली नमी को कम करने के लिए ऊपर से सिंचाई जैसे की स्प्रिंकलर आदि से बचें और पौधे की जड़ पर सिंचाई करें। नर्सरी और खेत में थंबा पानी की अनुमति न दें और तुरंत पानी निकाल दें ताकि मिर्च फसल को फंगल संक्रमण से बचाया जा सके I
  5. खाद प्रबंधन: उचित ऊरविकरण पौधे की स्वास्थ्य बनाए रखने और तनाव कम करने में मदद करता है, जिससे पौधा रोगों के प्रति कम संवेदनशील होता है।

रासायनिक नियंत्रण उपाय:

रसायनिक नियंत्रण उपाय मिर्च के एंथ्रेक्नोज रोग को रोकने और नियंत्रित करने के लिए फफूंदनाशक का उपयोग करने के बारे में होता है। फंगिसाइड रोग प्रतिरोधी या रोग नियंत्रण के रूप में लागू किए जा सकते हैं। रोकथामीय अनुप्रयोग रोग के प्रकोप से पहले किया जाता है, जबकि चिकित्सात्मक अनुप्रयोग रोग के प्रकोप के बाद किया जाता है। मिर्च के फल विगलन रोग को नियंत्रित करने में सक्षम फफूंदनाशक में शामिल हैं:

  1. एजोक्सिस्ट्रोबिन: यह फफूंदनाशक मिर्च के एंथ्रेक्नोज रोग को रोकने और नियंत्रित करने में कारगर है। यह रोकथामीय रूप से लागू किया जाता है और इसके पास चिकित्सात्मक और संरक्षणीय गुण होते हैं।
  2. क्लोरोथैलोनिल: यह फफूंदनाशक मिर्च के एंथ्रेक्नोज रोग को नियंत्रित करने में कारगर है। इसे रोकथामीय रूप से लागू किया जाता है और इसके पास संरक्षणी
  3. मैन्कोजेब: यह फफूंदनाशक मिर्च के पौधों में एंथ्रैक्नोज रोग को रोकने और नियंत्रित करने में प्रभावी है। इसे रोग के प्रकोप से पहले लगाया जाता है और इसके पास उपचारात्मक और संरक्षणीय गुण होते हैं।
  4. प्रतिरोधी किस्मों का चयन करें

जैविक नियंत्रण उपाय:

जैविक नियंत्रण उपाय मिर्च के पौधों में एंथ्रैक्नोज रोग को नियंत्रित करने के लिए उपयोग की जाने वाली लाभकारी सूक्ष्मजीव का उपयोग करते हैं। जैविक नियंत्रण बीज उपचार या पत्ती छिड़काव के रूप में लागू किया जा सकता है। सूक्ष्मजीव जैविक नियंत्रण के उदाहरण जो मिर्च के पौधों में एंथ्रैक्नोज रोग को नियंत्रित करने में प्रभावी हैं उनमें निम्नलिखित शामिल हैं:

  1. ट्राइकोडर्मा spp : ये कवक मिर्च के पौधों में एंथ्रैक्नोज रोग को दबाने में प्रभावी होते हैं। वे मूल प्रडाली को कब्जा करते हैं और फफूंद को गिराने वाले एंजाइम उत्पन्न करते हैं, जिससे रोग की गंभीरता को कम किया जाता है।
  2. बेसिलस spp : ये बैक्टीरिया मिर्च के पौधों में एंथ्रैक्नोज रोग को नियंत्रित करने में प्रभावी होते हैं। वे एंटीमाइक्रोबियल कम्पाउंड उत्पन्न करते हैं जो फंगस के बहुलीकरण को रोकता है.

 

Authors:

अर्पिता श्रीवास्तव, वैज्ञानिक

शाकीय विज्ञान संभाग, भारतीय कृषि अनुसन्धान संस्थान, नयी दिल्ली

Email: asrivastava45@gmail.com

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