थनैला रोग : दुधारू पशुओं की बड़ी समस्या

थनैला रोग : दुधारू पशुओं की बड़ी समस्या

Garget (Thanala) Disease: The Biggest Problems of dairy cattle

थनैला , दुधारू पशुओं का रोगथनैला रोग (Garget), दुधारू पशुओं में होने वाली एक बीमारी है। यह बीमारी मुख्यतः गाय, भैंस,भेड़ ,बकरी सुअर आदि में होती है। जिसमे प्रभावित पशुओं के थन गर्म हो जाते है एवं सूजन बढ़ जाती है । शारीरिक तापमान बढ़ जाता है । दूध देने की क्षमता कम हो जाती है । जानवर खाना पीना बंद कर देता है ।

यह बीमारी प्रत्यक्ष रूप में जितना नुकसान करती है उससे कही ज्यादा अप्रत्यक्ष रूप से पशुपालको को आर्थिक नुकसान पहुंचती है!

रोग कारक –

यह बीमारी अनेक कारको के वजह से होती है । जैसे की जीवाणु , विषाणु , मोल्ड , फफूंद , यीस्ट, आदि इसके अलावा वातावरण प्रतिकूलता के कारण यह रोग होता है!

थनैला रोग संक्रमण –

रोग का प्रमुख कारण साफ सफाई अच्छी तरह से नहीं होना होता है । रोग का संचरण दूषित त्वचा पर जीवाणु का थन की नलिका में प्रवेश करने से होता है । पशु का दूध निकालने वाले ग्वालो द्वारा संक्रमित पशु से स्वस्थ पशु में होता है । थन पर गोबर व कीचड़ संक्रमण का कारण होते है । फर्श की अच्छी तरह से सफाई न होना आदि !

थनैला रोग लक्षण –

अदृश्य लक्षण – प्रारम्भ में इस रोग में थन व दूध सामान्य प्रतीत होते है ।परन्तु दूध की कमी , दूध की गुणवत्ता में ह्रास एवं बिसुखने के पश्चात थन आंशिक या पूर्ण रूप से ख़राब हो जाता है !

दृश्य लक्षण – पशुओं के थन में गांठ एवं सूजन आ जाती है । प्रारम्भ में एक या दो थन प्रभावित होते है। लेकिन उपचार न होने पर अन्य सभी थनो में ये रोग फ़ैल जाता है । दूध में खून एवं मवाद दिखने लगता है दूध पानी जैसा दिखाई देने लगता है । कुछ दिनों पश्चात् थन से दूध आना बंद हो जाता है । समय पर उपचार न होने की वजह से सूजन बढ़कर अपरिवर्तनीय हो जाती है ।

बीमारी को पहचानने के लिए निम्न प्रकार के उपाय किये जा सकते है 

  • पीएच पेपर द्वारा समय – समय पर जाँच की सकती है!
  • केलिफोर्निया मास्टायसिस सलूशन के माध्यम से जाँच !
  • संदेह की स्थिति में दूध कल्चर एवं सीटीभीति जाँच !

Garget (Thanala) Diseaseथनैला रोग रोकथाम –

  1. दुधारू पशुओं के रहने के स्थान की नियमित साफ सफाई जरुरी है ।फिनायल के घोल व अमोनिआ कम्पाउंड का छिड़काव करना चाहिए ।
  2. दूध दोहने के पश्चात् थन की यथोचित सफाई के लिए लाल पोटाश या सेवलॉन का प्रयोग किया जाना चाहिए !
  3. थनैला होने पर तुरंत पशुचिकित्सक की सलाह से उपचार करना चाहिए !
  4. दूध दोहन निश्चित अंतराल पर होना चाहिए । दूध दोहन की तकनीक सही होनी चाहिए जिससे थन को किसी भी प्रकार का नुकसान न हो !
  5. रोगी पशु को स्वस्थ पशु से अलग कर देना चाहिए !

थनैला रोग का उपचार –

  • रोग का सफल उपचार प्रारंभिक अवस्थाओं में ही संभव है अन्यथा रोग के बढ़ जाने पर थन ख़राब हो सकते है !
  • इस रोग से बचने के लिए दुधारू पशु के दूध की जाँच समय पर करवा लेनी चाहिए !
  • जीवाणु नाशक औषधियों के द्वारा उपचार ,पशुचिकित्सक के द्वारा करवाना चाहिए ,यह औषधीया थन में चढ़ाकर तथा मासपेशियो में इंजेक्शन द्वारा दी जाती है !
  • थन में ट्यूब चढ़ाकर उपचार के दौरान पशु का दूध पिने योग्य नहीं होता अतः अंतिम ट्यूब के चढ़ाने के बाद ४८ घंटे बाद तक दूध प्रयोग में नहीं लाना चाहिए ।उपचार पूर्ण रूप से किया जाना चाहिए !

थनैला रोग के कारण आर्थिक हानियाँ-

थनैला रोग के ग्रस्त पशु के दूध में कोशिका की संख्या बढ़ जाती है,नमक बढ़ जाता है । यह दूध मानव उपयोग के लिए अनुप्युक्त होता है ! दूध के उत्पादन में ५ से २५ % की गिरावट आ जाती है ! थनैल रोग से ग्रसित पशु के दूध का सेवन नहीं करना चाहिए क्योंकि इसमें स्वतंत्र एंटीबायोटिक एवं जीवाणुओं की संख्या अधिक होती है !


Authors:

दीपिका तेकाम , निकिता सोनवणे

पशुपालन प्रसार विभाग

मुंबई पशुवैद्यकीय महाविद्यालय , परेल, मुंबई [ ४०००१२]

Email:  mseebombay@gmail।com

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