भारत की अर्थव्यवस्था पर अमेरिकी शुल्क का प्रभाव

भारत की अर्थव्यवस्था पर अमेरिकी शुल्क का प्रभाव

Impact of US tariffs on India’s economy

अमेरिका और भारत के बीच व्यापारिक संबंध दशकों से मजबूती से चले रहे है। भारत, विश्व के उन देशों में है जिनके साथ अमेरिका का व्यापारपरिवहन बहुत बड़ा है। अमेरिका में भारतीय वस्त्र गहने, समुद्री उत्पाद विशेषकर झींगा, आईटी सेवाएँ, रसायन, चमड़े एवं फर्नीचर. प्रमुख निर्यात कि श्रेणियों में हैं। ये उद्योग लाखों लोगों को रोजगार देते हैं जिसमे बहुत से छोटे किसान, श्रमिक, प्रसंस्करण इकाई इनसे जुड़े हुए हैं।

वित्त वर्ष 2024-25 में भारत का अमेरिका को निर्यात लगभग 86.5 अरब अमेरिकी डॉलर रहा है।
कुल वस्तु विनिमय में इस व्यापार का बड़ा हिस्सा है।  लेकिन वर्ष 2025 में अमेरिकी राष्ट्रपति ने भारत से आयातित कई उत्पादों पर टैक्स (टैरिफ) दरें बढ़ा दीं। पहले करीब 25% पारस्परिक शुल्कलागू हुआ, फिर कुछ उत्पादों के लिए यह बढ़ाकर 50% कर दिया गया। ये कदम मुख्यतः उन बाधाओं के चलते उठाया गया कि भारत रूस से तेल की खरीद कर रहा है  जिसे अमेरिका ने इसे एक समस्या माना।

इन टैरिफ़ों का असर सिर्फ बढ़े हुए कर भरने तक सीमित नहीं रहा, बल्कि:

  • भारतीय निर्यातकों को अभी अमेरिका में अपने सामान के लिए मांग घटी हुई महसूस हो रही है क्योंकि कीमत अधिक हो गई है।
  • कई निर्यात आदेश रद्द कर दिये गए या टाले गए हैं,  खासकर झींगा उद्योग में निर्यात की लागत बढ़ गई है क्योंकि अतिरिक्त प्रतिकूल आयत शुल्क एव प्रतिपूरक शुल्क भी हैं, जिससे कुल कर बोझ लगभग 55-60% से ऊपर हो गया है।
  • इससे काम करने वाले मजदूरोंश्रमिकों, प्रसंस्करण उद्योगों और उन क्षेत्रों में आजीविका पर दबाव बढ़ गया है जहाँ निर्यात पर निर्भरता ज्यादा है। विशेषकर तटीय,राज्य जैसे आंध्र प्रदेश जहाँ झींगा उद्योग बड़ा है।
  • भारतीय निर्यातक प्रतिस्पर्धात्मकता खो रहे हैं क्योंकि अन्य देशों (जैसे इक्वाडोर, इंडोनेशिया, वियतनाम) को या तो कम शुल्क झेलना पड़ रहा है या वे शुल्क में राहत पा रहे हैं। इससे भारत का बाजार हिस्सा घटने लगा है।

पृष्ठभूमि: शुल्क क्यों लगाए गए?

अगस्त 2025 में अमेरिकी प्रशासन ने शुरू में भारत से आयातित कुछ चुनिंदा वस्तुओं पर 25% “पारस्परिक शुल्कलगाया। इसका मुख्य कारण अमेरिका का यह आरोप था कि भारत रूस से बड़े पैमाने पर कच्चे तेल  खरीद रहा है, और इसके अलावा कुछ रक्षा सौदे और विदेश नीति के मोर्चे पर ऐसे कदम उठा रहा है जो अमेरिका की चिंताओं के अनुरूप नहीं हैं। कुछ ही हफ्तों बाद, 27 अगस्त 2025 से एक अतिरिक्त शुल्क दंड 25% जोड़ दिया गया, जिससे कुल दर 50% हो गई। यह बढ़ी हुई दर उन उत्पादों पर लागू हुई जो अमेरिका में भारत से आयात किए जाते हैं (जैसे वस्त्र, गहनेज्वेलरी,गृह उद्योग, झींगा, चमड़ा, फर्नीचर, रसायन आदि) कुछ श्रेणियाँ (जैसे औषधीय, विद्युत उपकरण, पेट्रोलियम उत्पाद) इन टैरिफ से छूट में रहीं।  

प्रभावित निर्यात का परिमाण

नीचे कुछ सत्यापित आंकड़ों के साथ जानकारी दी जा रही है:

  • अगस्त 2025 में भारत के अमेरिका को निर्यात  6.86 अरब अमेरिकी डॉलर, जबकि जुलाई 2025 में ये 8.01 अरब अमेरिकी डॉलर थे इससे स्पष्ट है कि टैरिफ के कारण निर्यात में गिरावट आई है।
  • नए टैरिफ लागू होने के बाद (25% पारस्परिक + अतिरिक्त ) भारत के कुछ उत्पादों का कुल निर्यात जो अमेरिका में भेजे जाते हैं, लगभग 55% वस्तुएँ नकारात्मक प्रभाव झेलेंगे।
  • झींगा निर्यात में गिरावट की आशंका है क्रिसिल की रिपोर्ट के अनुसार, झींगा निर्यात में 1518% की गिरावट हो सकती है, क्योंकि अमेरिका में भारतीय झींगा पर कुल शुल्क लगभग 58.26% हो गया है।
  • वहीं, भारतीय निर्यातकों को 27 अगस्त, 2025 से प्रभावी 50% अमेरिकी शुल्क दर का सामना करना पड़ेगा। रिपोर्ट बताती है कि इंजीनियरिंग ग्रूप के उत्पादों सहित लगभग 12.5 अरब अमेरिकी डॉलर के निर्यात पर असर पड़ेगा।
  •  48.2 अरब अमेरिकी डॉलर  मूल्य के भारतीय निर्यात इस शुल्क के  दायरे में गया है।
  • भारत के कुल अमेरिकी निर्यात का लगभग 55–66% हिस्सा प्रभावित हुआ हैं
  • लगभग 30% निर्यात ही टैरिफमुक्त श्रेणियों (औषधि, विद्युत उपकरण एवं अवशिष्ट तेल) में बचा रहा।
  • अगस्त 2025 में भारत का अमेरिका को निर्यात 6.86 अरब अमेरिकी डॉलर  रह गया, जबकि जुलाई 2025 में यह  8.01 अरब अमेरिकी डॉलर जो  स्पष्ट संकेत है कि टैरिफ से निर्यात में गिरावट आई है

सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) और समष्टिगत प्रभाव

भारत के मुख्य आर्थिक सलाहकार  वी. अनंथा नागेश्वरन ने स्पष्ट कहा कि इन शुल्को से वर्ष 2025-26 की सकल घरेलू उत्पाद वृद्धि दर में लगभग 0.5% से 0.6% तक की कमी हो सकती है। यह प्रभाव तीन स्तरों पर दिखाई देता है:

  1. प्रत्यक्ष प्रभावनिर्यात घटने से विदेशी मुद्रा आय और करराजस्व में कमी।
  2. अप्रत्यक्ष प्रभावरोजगार हानि और उत्पादन घटने से घरेलू खपत कमजोर।
  3. मनोवैज्ञानिक प्रभावविदेशी निवेशकों का भरोसा कमजोर होना और शेयर बाजार में उतारचढ़ाव।

अतिरिक्त शुल्क का भारत की अर्थव्यवस्था पर असर

स्तर

क्या होता है

संभावित असर

प्रत्यक्ष प्रभाव

निर्यात कम होना विदेशी मुद्रा लाने वाला पैसा और करराजस्व घटना।

भारत की कुल सकल घरेलू उत्पाद”  वृद्धि दर में लगभग 0.5-0.6% की कमी हो सकती है यदि ये टैरिफ साल भर बने रहें।

अप्रत्यक्ष प्रभाव

उद्योगों में उत्पादन घटेगा।
श्रमिकों को रोजगार कम मिलेगा।
वेतनआय में गिरावट, जिससे घरेलू मांग कम हो सकती है।

इन उद्योगों में गिरावट से दूसरी इकाइयों के उत्पादन पर भी असर पड़ेगा; कुल घरेलू खर्च नीचे आएगा, जिससे जीडीपी वृद्धि सुस्त हो सकती है।

मनोवैज्ञानिक प्रभाव

निवेशकों का भरोसा कम होना; शेयर बाज़ार में उतारचढ़ाव; विभिन्न व्यवसायों को भविष्य की अनिश्चितता का सामना करना।

निवेशों (विदेशी और घरेलू) में देरी; उद्योगों को योजनाएँ स्थगित करनी पड़ सकती हैं; आर्थिक माहौल में अविश्वास बढ़ेगा जो आर्थिक गतिविधियों को धीमा करेगा। यह प्रभाव तत्काल दृष्टि से कम दिखाई देता है लेकिन समय के साथ बड़ा हो सकता है।

अतिरिक्त तथ्य

  • भारत सरकार ने  2025-26 की सकल घरेलू उत्पाद”  वृद्धि अनुमान 6.3-6.8% बनाए रखा है, हालाँकि टैरिफ के कारण जोखिम बढ़े हुए हैं।
  • मुख्य आर्थिक सलाहकार वी. अनंथा नागेश्वरन का कहना है कि यदि यह अतिरिक्त टैरिफ मात्र अस्थायी रहे तो प्रभाव सीमित हो सकता है।

वस्त्र और गृह वस्त्र उत्पाद

वैश्विक परिस्थितियों का कपास निर्यात पर प्रभाव:

भारत का कपास निर्यात मुख्य रूप से अमेरिका, चीन और यूरोप जैसे देशों में होता है।अमेरिकन प्रशासन ने व्यापारिक तनावों के कारण चीन के खिलाफ व्यापार युद्ध शुरू किया और अमेरिका से अन्य देशों के आयात पर शुल्क बढ़ाए। इसके कारण भारत को चीन के लिए कपास निर्यात करने में दिक्कतें आईं। वहीं, अमेरिका के साथ भारत का व्यापार घटा और भारतीय कपास की कीमतें बढ़ गईं। अमेरिका में भारतीय कपास की बिक्री महंगी हो गई, जिससे प्रतिस्पर्धा में गिरावट आई।

जब अमेरिका ने चीन से आयात पर भारी शुल्क लगाए, तो इससे भारतीय कपास की चीन में मांग पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ा। हालांकि, भारत और चीन के बीच व्यापार संबंधों को लेकर थोड़ी राहत मिली, लेकिन कुल मिलाकर कपास निर्यात पर दबाव बना रहा। चीन ने अन्य देशों से सस्ता कपास खरीदने की कोशिश की और भारत से आयात कम कर दिया। इसने भारतीय किसानों को कम दाम पर अपनी उपज बेचने के लिए मजबूर किया।

कपास की कीमतों में वृद्धि:

अमेरिका में ट्रम्प द्वारा लागू किए गए शुल्कों का प्रभाव केवल निर्यात पर नहीं पड़ा, बल्कि कपास के वैश्विक मूल्य में भी उतारचढ़ाव आया। जब अमेरिका ने चीन के आयात पर शुल्क लगाए, तो उसने कपास की कीमतों को प्रभावित किया। भारतीय कपास का मूल्य बढ़ने से भारतीय वस्त्र उद्योग की लागत में वृद्धि हुई। वस्त्र उत्पादकों को कपास महंगा मिला, जिसके कारण उनकी उत्पादन लागत भी बढ़ गई।

भारत में वस्त्र उद्योग पहले से ही कम मुनाफ़ा / लाभांश पर चलता है, और जब कपास की कीमतें बढ़ीं, तो उद्योग पर और अधिक दबाव पड़ा। इससे वस्त्र निर्यात करने वाले उद्योगों को कठिनाइयाँ आईं, क्योंकि कपास के महंगे दामों ने उनके लिए उत्पादों की लागत को बढ़ा दिया। वस्त्र उद्योग की प्रतिस्पर्धात्मकता में कमी आई, और भारतीय उत्पादों को वैश्विक बाजार में ला हुआ।

भारत का अमेरिका को निर्यात मुख्यतः परिधान, बेडशीट, तौलिये और कार्पेट पर आधारित है। इन पर 50% शुल्क लगने से भारतीय उत्पाद महंगे हो गए। बांग्लादेश, वियतनाम और मैक्सिको जैसे प्रतिस्पर्धी देशों को इसका लाभ मिलने लगा। इससे भारत के वस्त्र उद्योग, जो पहले से ही कम मुनाफ़ा पर चलता है, पर बड़ा दबाव पड़ा।

 चित्र.1 : शुल्क का वस्त्र एवं कपास पर प्रभाव

भारत का अमेरिका को निर्यात, विशेषकर वस्त्र उद्योग और गृह वस्त्र उत्पाद जैसे उत्पादों, पर आधारित है। इसमें मुख्य रूप से परिधान, बेडशीट, तौलिये, और कार्पेट शामिल हैं। इन उत्पादों पर 50% शुल्क  लगाए जाने से भारतीय उत्पाद महंगे हो गए हैं। इसके परिणामस्वरूप, भारत के उत्पादों की प्रतिस्पर्धात्मकता में कमी आई है और बांग्लादेश, वियतनाम और मैक्सिको जैसे प्रतिस्पर्धी देशों को इसका लाभ मिलने लगा।यहां हम अमेरिकी शुल्क के प्रभाव और प्रतिस्पर्धी देशों को मिलने वाले लाभ पर विस्तृत रूप से चर्चा करेंगे

अमेरिकी शुल्क का प्रभाव

भारतीय वस्त्र उत्पादों की महंगाई:

    • ट्रम्प प्रशासन के द्वारा 50% शुल्क लगाने से भारत के निर्यातक अमेरिकी बाजार में महंगे हो गए। इसका सीधा प्रभाव भारत के वस्त्र उद्योग पर पड़ा, क्योंकि पहले से ही कम मुनाफे  पर काम करने वाले उद्योग के लिए यह शुल्क बढ़ोतरी एक बड़ा आर्थिक दबाव था।
    • उदाहरण के तौर पर, जब भारतीय तौलिये और बेडशीट जैसे उत्पादों पर शुल्क बढ़ा, तो इनकी कीमतें अमेरिकी उपभोक्ताओं के लिए अत्यधिक महंगी हो गईं, जिससे उनकी खरीदारी में गिरावट आई।

प्रतिस्पर्धी देशों का लाभ:

    • बांग्लादेश, वियतनाम, और मैक्सिको जैसे देशों ने इस स्थिति का फायदा उठाया और उनके उत्पादों की कीमतें भारत की तुलना में कम हो गईं।
    • इन देशों के कम शुल्क दरों के कारण, वे अमेरिकी बाजार में भारतीय उत्पादों को पार कर गए और अमेरिकी उपभोक्ताओं को बेहतर मूल्य पर प्रतिस्पर्धा दी।

भारतीय वस्त्र उद्योग की कम होती लाभप्रदता:

    • वस्त्र उद्योग पहले से ही कम लाभ पर काम कर रहा था, और अब अमेरिकी शुल्क ने इस उद्योग को आर्थिक दबाव और लाभ में कमी का सामना करने के लिए मजबूर किया।
    • इसका असर भारत के निर्यातकों पर पड़ा, जो पहले से ही व्यापार की ऊंची लागत, प्रसंस्करण खर्चे और मूल्य वृद्धि की समस्याओं से जूझ रहे थे।

नौकरियों पर असर:

    • वस्त्र उद्योग में काम करने वाले श्रमिकों और कर्मचारियों को भी इसका नुकसान हुआ, क्योंकि निर्यात में कमी आई और निर्यातकों को कामकाजी समय और मजदूरी में कटौती करनी पड़ी।
    • इसके साथ ही, नई नौकरियों का सृजन भी रुक गया, क्योंकि उद्योग के पास विकसित बाजारों में बढ़ने का कोई अवसर नहीं था।

प्रतिस्पर्धी देशों को मिलने वाले लाभ

कम शुल्क दरों के कारण लाभ:

    • बांग्लादेश और वियतनाम जैसे देशों ने अमेरिकी बाजार में अपनी स्थिति को मजबूत किया, क्योंकि इन देशों पर कम शुल्क लगाया गया था।
    • बांग्लादेश, जो पहले से ही वस्त्र उत्पादों का एक प्रमुख निर्यातक था, कोअमेरिकी प्रशासन के शुल्क नीति के कारण अमेरिकी बाजार में अधिक लाभ हुआ। इन देशों के लिए अमेरिकी बाजार में प्रवेश करना सस्ता हो गया, जिससे वे भारत के बाजार हिस्से को अपनी ओर खींचने में सफल रहे।

उत्पादन लागत का कम होना:

    • मैक्सिको जैसे देशों में उत्पादन की लागत कम होती है, और उन्हें अमेरिकी बाजार में प्रवेश के लिए अधिक शुल्क नहीं देना पड़ता, जिससे वे भारतीय उत्पादों की तुलना में अधिक किफायती मूल्य पर सामान पेश करने में सक्षम हुए।

लाभकारी व्यापार समझौते:

    • वियतनाम और बांग्लादेश जैसे देशों ने मुक्त व्यापार समझौते का लाभ उठाकर अमेरिका के साथ व्यापारिक संबंधों को बढ़ाया। इन देशों ने व्यापारिक प्रतिबंधों को तोड़ते हुए अमेरिकी बाजार में अपने उत्पादों का विस्तार किया।

अमेरिकी शुल्क का भारतीय वस्त्र उद्योग पर दीर्घकालिक प्रभाव:

विकास की दिशा में रुकावटअमेरिकी शुल्क से भारतीय वस्त्र उद्योग को देर से प्रतिस्पर्धात्मक स्थिति में आने का मौका मिला। अमेरिकी बाजार में प्रवेश के लिए भारतीय उत्पादों को महंगा बनाकर भारतीय निर्यातकों को अपने व्यापार को समय पर समायोजित करने में मुश्किलें आईं।

नई रणनीतियों की आवश्यकताभारतीय वस्त्र उद्योग को अपने प्रतिस्पर्धी उत्पादों की मूल्य निर्धारण रणनीतियों को बदलने की आवश्यकता महसूस हुई। इसके तहत, उद्योग को नवीन तकनीकों और नवाचारों का उपयोग करके प्रसंस्करण लागत को कम करने और गुणवत्ता को बढ़ाने के प्रयास करने पड़े।

वैश्विक बाजार में पुनः रणनीतिक कदमभारत को अब अमेरिकी बाजार के अलावा नए बाजारों में अपने उत्पादों की पहचान और उपस्थिति बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित करना पड़ा। इसके लिए, मध्य पूर्व, यूरोप और एशिया के अन्य देशों में निर्यात बढ़ाने की जरूरत थी।

गहने ज्वेलरी

भारत के कुल गहने निर्यात का लगभग 40% हिस्सा अमेरिका में जाता है। 50%शुल्क ने इस क्षेत्र को सीधे झटका दिया। उत्पादन में गिरावट और निर्यातकों की लागत बढ़ने से सूरत और मुंबई जैसे हब में रोजगार पर खतरा मंडराने लगा।

समुद्री उत्पाद (झींगा)

भारत विश्व का सबसे बड़ा झींगा निर्यातक है और उसका सबसे बड़ा बाजार अमेरिका है। 50% शुल्क  लगने से अमेरिकी बाजार में कीमतें असंगत हो गईं। अनुमान है कि झींगा निर्यात में 30–35% तक की गिरावट सकती है।

निर्यात कीमतों में असंगति

  • अमेरिकी बाजार में भारतीय झींगा महंगे हो गए।
  • वियतनाम, इंडोनेशिया और इक्वाडोर जैसे प्रतिस्पर्धी देश सस्ते दाम पर वही उत्पाद देने लगे।

निर्यात मात्रा में गिरावट

  • क्रिसिलकी रिपोर्ट: वर्ष 2025-26 में झींगा निर्यात की मात्रा में लगभग 15–18% गिरावट सकती है।
  • इंडिया रेटिंग्स का अनुमान: झींगा निर्यात से होने वाली कुल आय में लगभग 12% कमी हो सकती है।
  • इंडस्ट्री संघों का मानना है कि अमेरिका को निर्यात में 30–35% तक की गिरावट संभव है।

चित्र.2 : अमेरिकी शुल्क का कृषि उत्पादों पर प्रभाव

राज्यस्तर पर असर

  • आंध्र प्रदेश, जो भारत का सबसे बड़ा झींगा उत्पादक राज्य है (कुल उत्पादन का लगभग 65–70%), सबसे अधिक प्रभावित हुआ है।
  • आंध्र प्रदेश सरकार ने अनुमान लगाया कि झींगा निर्यात से उसे लगभग ₹ 25,000 करोड़ का नुकसान हो सकता है।
  • उद्योग संगठनों के अनुसार लगभग 50% निर्यात आदेश रद्द हुए।

रोजगार पर असर

  • झींगा उत्पादन और प्रसंस्करण में लगभग 12–15 लाख लोग प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े हैं।
  • आदेश  घटने से रोजगार असुरक्षित हो गया है, खासकर ग्रामीण और तटीय क्षेत्रों में।

लंबी अवधि का जोखिम

  • यदि अमेरिकीशुल्क लंबे समय तक बने रहते हैं, तो भारत की बाजार हिस्सेदारी स्थायी रूप से घट सकती है।
  • अमेरिकी खरीदार वियतनाम या इक्वाडोर जैसे नए आपूर्तिकर्ता पर बदल जायेंगे तो उन्हें वापस भारतीय झींगा की ओर लाना कठिन होगा।

रसायन और चमड़ा

जैविक रसायन चमड़ा और फर्नीचर जैसे क्षेत्र अमेरिकी टैरिफ से सीधे प्रभावित हुए।

  • रसायन क्षेत्र: भारत का अमेरिका को रसायनों का निर्यात लगभग  10–12 अरब अमेरिकी डॉलर  का है। इस पर शुल्क  लगने से भारतीय उत्पाद महंगे हो गए और यूरोपीय संघ चीन के उत्पाद अधिक प्रतिस्पर्धी बन गए।
  • चमड़ा उद्योग: भारत के चमड़े और जूतों के निर्यात में अमेरिका का हिस्सा लगभग 15–18% है। पहले से ही यह क्षेत्र वियतनाम और बांग्लादेश की सस्ती आपूर्ति से दबाव में था। 50% शुल्क लगने से भारत की बाजार हिस्सेदारी और घटने की संभावना है।
  • फर्नीचर: छोटे और मध्यम उद्यम आधारित यह उद्योग अमेरिका में बड़े पैमाने पर निर्यात करता था, लेकिन अब आदेश निरस्त  हो रहे हैं।

फार्मा और आईटी सेवाएँ -(सुरक्षित क्षेत्र)

  • कुछ प्रमुख क्षेत्र टैरिफ से अप्रभावित रहे, जिसकी वजह से भारत के कुल निर्यात को पूरी तरह से धराशायी होने से बचाव मिला। भारत अमेरिका को सामान्य  दवाओं का सबसे बड़ा निर्यातक है। कुल औषधि निर्यात का लगभग 32–35% हिस्सा अमेरिका जाता है। इन पर शुल्क  लागू नहीं हुआ, इसलिए इस क्षेत्र में स्थिरता बनी रही। भारत के 150 से अधिक आईटी क्षेत्र के निर्यात में अमेरिका की हिस्सेदारी लगभग 60% है।

भारतीय कृषि क्षेत्र पर अमेरिकी  शुल्क का विस्तृत प्रभाव

1. दलहन का निर्यात

भारत दुनिया का सबसे बड़ादलहन  निर्यातक है और अमेरिका इस क्षेत्र का प्रमुख आयातक रहा है। लेकिन जब अमेरिकी  प्रशासन ने  2025 में 50 प्रतिशत शुल्क लगाया, तो यह भारतीय दालों की कीमतों को अमेरिकी बाजार में बढ़ा दिया। इससे भारतीय दालों की प्रतिस्पर्धात्मकता घट गई। अब अमेरिकी उपभोक्ता और व्यापारियों ने कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, रूस और तंजानिया जैसे देशों से सस्ते विकल्प खरीदने शुरू कर दिए। इससे भारतीय किसानों को दालों के बेहतर मूल्य का नुकसान हुआ और निर्यातकों के लिए बड़े आर्थिक नुकसान का कारण बना।

भारत में दलहन  की कीमतों में गिरावट आने के कारण, किसानों को अपनी उपज का समुचित मूल्य नहीं मिल पाया। इसके साथ ही, उन्हें अतिरिक्त लागतों का भी सामना करना पड़ा। जैसेजैसे अमेरिकी बाजार से भारतीय दालों की मांग में कमी आई, किसानों का आत्मविश्वास और उनकी वित्तीय स्थिति भी प्रभावित हुई।

2. चाय और मसालों पर असर

भारत चाय और मसालों का प्रमुख उत्पादक है, और इन दोनों का अमेरिकी बाजार में निर्यात भी महत्वपूर्ण रहा है। चाय और मसालों पर बढ़े हुए शुल्कों का असर भारतीय निर्यातकों पर पड़ा। पहले, भारतीय चाय और मसाले अमेरिका में किफायती दामों पर बिकते थे, लेकिनअमेरिकी शुल्क लागू होने के बाद इन उत्पादों की कीमतें बढ़ गईं। इसके परिणामस्वरूप, अमेरिकी व्यापारियों और उपभोक्ताओं ने भारतीय चाय और मसालों की बजाय अन्य देशों के सस्ते विकल्पों को प्राथमिकता दी।

यह बदलाव भारतीय निर्यातकों के लिए एक बड़ा आर्थिक झटका था। उन्हें केवल अमेरिकी बाजार से अपनी हिस्सेदारी गंवानी पड़ी, बल्कि नई बाजारों में प्रतिस्पर्धा में भी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। भारत के निर्यातकों को चाय और मसालों का व्यापार नए बाजारों में स्थापित करने के लिए काफी अतिरिक्त प्रयास करने पड़े।

3. अन्य कृषि उत्पादों का निर्यात

भारत अन्य कृषि उत्पादों का भी निर्यात करता है जैसे ताजे फल, सब्जियां, मेवा, खाद्य तेल और अन्य खाद्य उत्पाद। इन सभी पर ट्रम्प द्वारा लागू किए गए शुल्कों का असर पड़ा। उदाहरण के लिए, भारतीय आम, अंगूर, पपीता जैसे ताजे फल पहले अमेरिका में अच्छे दाम पर बिकते थे लेकिन शुल्कों के बढ़ने से इन फलों की कीमतें बढ़ गईं, जिससे अमेरिकी उपभोक्ता और व्यापारी इन फलों को महंगे समझने लगे और उनके स्थान पर अन्य देशों से फल खरीदने लगे।

मेवा और खाद्य तेल जैसे उत्पादों पर भी यही असर पड़ा। भारत से आने वाले इन उत्पादों की कीमतें बढ़ने के कारण उनका प्रतिस्पर्धात्मक मूल्य घट गया और अमेरिका में इनके निर्यात में गिरावट आई।

भारतीय कृषि निर्यातकों पर दबाव

अमेरिकी  शुल्कों का सबसे बड़ा प्रभाव निर्यातकों पर पड़ा। पहले, भारतीय कृषि उत्पाद अमेरिकी बाजार में बहुत प्रतिस्पर्धी थे, लेकिन शुल्क के बाद, भारतीय उत्पाद महंगे हो गए और निर्यातकों को नए बाजारों में अपने उत्पादों की बिक्री बढ़ाने की जरूरत महसूस हुई। इसका मतलब था कि उन्हें नए व्यापारिक रास्ते और नई रणनीतियों को अपनाना पड़ा, ताकि वे अपने नुकसान को कम कर सकें।

विशेष रूप से दलहनी  और चाय जैसी वस्तुएं जिन पर भारी निर्भरता थी, अब महंगी हो गईं हैं निर्यातकों को अपनी व्यापारिक रणनीतियों में बदलाव करना पड़ा और अंतरराष्ट्रीय विपणन रणनीतियां भी बदलनी पड़ीं।

1. निर्यातकों का वित्तीय दबाव

निर्यातकों को अपने उत्पादों की कीमतें बढ़ाने और अमेरिकी बाजार में अपनी प्रतिस्पर्धात्मकता को बनाए रखने के लिए अतिरिक्त प्रयास करने पड़े। यह उन्हें नई विपणन रणनीतियों के साथ नई बाजारों में व्यापारिक संबंध स्थापित करने के लिए मजबूर करता था। इसके अतिरिक्त, निर्यातकों को इस नई स्थिति में अपने परिवहन और वितरण व्यवस्था और आपूर्ति श्रृंखला को भी पुनर्गठित करना पड़ा, ताकि वे अपनी कीमतों को कुछ हद तक नियंत्रण में रख सकें।

2. किसानों के लिए कठिनाइयाँ

अमेरिकी शुल्कों का असर सिर्फ निर्यातकों पर ही नहीं, बल्कि किसानों पर भी पड़ा। जो किसान दलहन  और अन्य कृषि उत्पादों की विकसित बाजारों में निर्यात करते थे, उन्हें अब कम कीमतों का सामना करना पड़ा। खासकर दालों और मसालों के लिए, भारतीय किसानों को बेहतर मूल्य नहीं मिल पाया। इसके कारण, किसानों की आर्थिक स्थिति प्रभावित हुई और उन्हें अपनी उपज का उचित मूल्य प्राप्त करने के लिए संघर्ष करना पड़ा।

भारतीय किसानों को यह महसूस हुआ कि पहले जो बाजार उन्हें उपयुक्त मूल्य दे रहे थे, अब वे महंगे हो गए और उनसे प्रतिस्पर्धा करने में मुश्किलें रही थीं। निर्यात में कमी और कीमतों के गिरने से किसानों की आमदनी पर सीधा असर पड़ा।

3. निर्यात में कमी और नई चुनौतियाँ

जब अमेरिकी बाजार में भारतीय कृषि उत्पादों के निर्यात में गिरावट आई, तो निर्यातकों को नई बाजारों की पहचान करनी पड़ी। यूरोप, मध्यपूर्व और एशिया जैसे बाजारों में भारतीय कृषि उत्पादों का निर्यात बढ़ाने के प्रयास किए गए। लेकिन इन देशों में पहले से प्रतिस्पर्धी देशों के उत्पाद मौजूद थे, और इसलिए भारतीय उत्पादों को वहां किफायती दरों पर बेचना मुश्किल हो गया।

इसके साथ ही, निर्यातकों को इन नए बाजारों में स्थापित होने के लिए अतिरिक्त समय, धन और प्रयास लगाना पड़ रहा है इसने भारतीय कृषि निर्यातकों के लिए एक बड़ी चुनौती उत्पन्न कर दी है।

दीर्घकालिक प्रभाव

अमेरिकी शुल्क नीति ने भारतीय कृषि क्षेत्र को दीर्घकालिक रूप से प्रभावित किया है। यह स्पष्ट है कि अमेरिकी बाजार में भारतीय कृषि उत्पादों की मांग में गिरावट ने भारतीय निर्यातकों और किसानों को परेशान किया। हालांकि, भारतीय निर्यातकों ने नए व्यापारिक समझौतों की दिशा में कदम बढ़ाए, लेकिन इस नीति के प्रभाव के बाद भारतीय कृषि उत्पादों को नई प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ रहा है

भारतीय कृषि क्षेत्र को अब अपनी निर्यात रणनीतियों को और अधिक लचीला और अर्थपूर्ण बनाना पड़ा। कृषि तकनीकों में सुधार और सटीक कृषि को अपनाने से किसानों को मदद मिल सकती है, ताकि वे उत्पादन लागत को घटा सकें। साथ ही, कृषि उत्पादों की गुणवत्ता और मानक में सुधार कर भारतीय कृषि उत्पादों को वैश्विक बाजार में प्रतिस्पर्धात्मक बनाए रखना जरूरी हो गया है।

रोजगार पर असर

भारत के वस्त्र, होमटेक्सटाइल, गहने और समुद्री उत्पाद ऐसे उपक्रम हैं जहाँ बड़ी संख्या में श्रमिक कार्यरत हैं। इन पर टैरिफ का असर सबसे ज्यादा दिखाई दे रहा है।

भारत के वस्त्र, होमटेक्सटाइल, गहने और समुद्री उत्पाद श्रमगहन क्षेत्र हैं। इन पर अमेरिकी टैरिफ का असर सबसे ज्यादा दिखाई दे रहा है।

संभावित नौकरी हानि

  • परिधान और होमटेक्सटाइल क्षेत्र: लगभग 3–3.5 लाख नौकरियाँ प्रभावित हो सकती हैं।
  •  गहनेजूलरी (सूरत, मुंबई): लगभग 1.5–2 लाख नौकरियाँ खतरे में हैं।
  • झींगा और समुद्री उत्पाद (आंध्र प्रदेश, ओडिशा, गुजरात): लगभग 1–1.5 लाख रोजगार प्रभावित हो सकते हैं।
  • कुल मिलाकर 5–7 लाख नौकरियों पर खतरा मंडरा रहा है।

सूक्ष्म, लघु और मझोले उद्यम संकट

  • इन क्षेत्रों में लगभग 70% इकाइयाँ सूक्ष्म, लघु और मझोले उद्यम हैं।
  • क्रिसिल की रिपोर्ट में कहा गया है कि 50% टैरिफ इनके लिए जीवित रहने का संकट बन सकता है।
  • उत्पादन घटने से कई छोटे कारखाने अस्थायी रूप से बंद होने की कगार पर हैं।

दीर्घ अवधि असर

  • कुशल श्रमिक जैसे हीरे तराशने वाले, टेक्सटाइल मजदूर अगर बेरोजगार हुए तो उन्हें दूसरे उद्योगों में समायोजित करना कठिन होगा।
  • ग्रामीण और तटीय क्षेत्रों में प्रवासी श्रमिकों की आमदनी पर सबसे बड़ा खतरा है।

व्यापार घाटा और विदेशी मुद्रा

अगस्त 2025 में भारत का मर्चेंडाइज़ ट्रेड घाटा  26.49 अरब अमेरिकी डॉलर  रहा। निर्यात घटने से यह घाटा आगे और बढ़ने का खतरा है। विदेशी मुद्रा भंडार पर भी दबाव पड़ सकता है। यदि निर्यात से आय कम हुई और आयात विशेषकर कच्चा तेल जारी रहा तो चालू खाता घाटा बढ़ सकता है।अमेरिकी टैरिफ का सीधा असर भारत के निर्यातआयात संतुलन पर पड़ रहा है।

सरकार की प्रतिक्रिया

भारत सरकार ने टैरिफ के प्रभाव को कम करने के लिए कई कदम उठाए:

1.      राहत पैकेजनिर्यातकों के लिए क्रेडिट गारंटी, टैक्स रियायत और कार्यशील पूँजी सहायता।

2.      वस्तु और सेवा कर में छूटकुछ क्षेत्रों पर टैक्स दरें घटाकर लागत कम करने की कोशिश।

3.      बाजार विविधीकरणलैटिन अमेरिका, अफ्रीका और दक्षिणपूर्व एशिया के बाजारों को टारगेट करने की रणनीति।

4.      वार्ता की कोशिशेंअमेरिकी प्रशासन से टैरिफ घटाने या छूट देने के लिए कूटनीतिक प्रयास।

दीर्घकालिक निहितार्थ

1. वित्तीय और नीतिगत स्तर

·         निर्यात बीमा को मजबूत करना: निर्यात क्रेडिट गारंटी निगम  की कवरेज बढ़ाकर छोटे निर्यातकों को सुरक्षा दी जा सकती है।

·         उच्च शुल्क  वाले उत्पादों पर उत्पादनलिंक्ड प्रोत्साहन : विशेष रूप से झींगा प्रसंस्करण, टेक्सटाइल और जूलरी क्षेत्र में योजनाएँ शुरू कर लागत घटाई जा सकती है।

·         रुपये की संभावित अस्थिरता को देखते हुए सरकार निर्यातकों को मुद्रा जोखिम प्रबंधन में आंशिक सब्सिडी दे सकती है।

2. उत्पादन और लागत सुधार

·    टेक्नोलॉजी अपग्रेडेशन: स्वचालन , AI-आधारित क्वालिटी चेक और ऊर्जाकुशल मशीनरी से उत्पादन लागत घटाई जाए।

·     क्लस्टरआधारित इंफ्रास्ट्रक्चर: टेक्सटाइल और सीफूड क्लस्टर्स में साझा कोल्डस्टोरेज, पैकेजिंग और परीक्षण प्रयोगशालाएँ।

· रित उत्पादन : पर्यावरण मानकों को पूरा करने के लिए नवीकरणीय ऊर्जा आधारित उत्पादन केंद्र स्थापित करना, जिससेसस्टेनेबिलिटी टैगसे वैश्विक खरीदार आकर्षित हों।

3. मानव संसाधन और रोजगार

·         कौशल विकास प्रोग्राम: प्रभावित श्रमिकों को व्यापार, उत्पाद पैकिंग, गुणवत्ता नियंत्रण और मूल्य संवर्धित प्रसंस्करण जैसे क्षेत्रों में प्रशिक्षित करना।

·         सामाजिक सुरक्षा प्रणाली: अल्पकालिक रोजगार हानि से बचाने के लिए राज्य सरकारों के साथ मिलकर न्यूनतम आय गारंटी या स्किल स्टाइपेंड।

·         महिला और ग्रामीण उद्यमिता पर फोकस: श्रमगहन उद्योगों में महिलाप्रधान सूक्ष्म, लघु और मझोले उद्यम को विशेष प्रोत्साहन।

4. कूटनीतिक और वैश्विक स्तर

·         विश्व व्यापार संगठन में अपील: भारत इस मुद्दे को विश्व व्यापार संगठन में (व्यापार विवाद)के रूप में ले जाकर बहुपक्षीय समर्थन जुटा सकता है।

·         ग्रुप 20और ब्रिक्स मंच का उपयोग: बहुपक्षीय वार्ताओं में शुल्क बाधाओं को वैश्विक व्यापारस्थिरता के खिलाफ बताकर अमेरिका पर दबाव बनाया जा सकता है।

·         द्विपक्षीय बार्टर/स्वैप समझौते: कुछ देशों (रूस, ब्राज़ील, इंडोनेशिया) से मुद्रास्वैप और उत्पादआधारित समझौते ताकि डॉलर पर दबाव घटे।

  1. प्रतिस्पर्धात्मकता की परीक्षायदि भारत उत्पादन लागत घटाने और वैकल्पिक बाजार खोजने में सफल रहा तो यह संकट अवसर बन सकता है।
  2. प्रत्यक्ष विदेशी निवेश पर असरयदि नीतिगत अनिश्चितता बनी रही तो विदेशी निवेशक सतर्क हो सकते हैं।
  3. आपूर्ति श्रृंखला विविधताभारत को निर्यात निर्भरता कम करके बहुबाजार रणनीति अपनानी होगी।
  4. रोजगार और सामाजिक स्थिरताश्रमगहन क्षेत्रों पर दबाव सामाजिक असंतोष भी पैदा कर सकता है।

 रणनीतिआधारित समाधान

रणनीति

समयसीमा

जिम्मेदार संस्था

निर्यात बीमा को सूक्ष्म, लघु और मझोले उद्यम तक विस्तार

तात्कालिक (0–6 माह)

वाणिज्य मंत्रालय

योजनाएँ: झींगा प्रसंस्करण, टेक्सटाइल, ज्वेलरी में

तात्कालिकमध्यम (6–12 माह)

 कृषि मंत्रालय

विदेशी मुद्रा  पर आंशिक सब्सिडी

तात्कालिक (0–6 माह)

वित्त मंत्रालय

निर्यात और आयात

मध्यम (6–18 माह)

वाणिज्य मंत्रालय

कॉमर्स चैनलों से सूक्ष्म, लघु और मझोले उद्यम को ग्लोबल मार्केट एक्सेस

तात्कालिक (0–6 माह)

 

स्टार्टअप इंडिया

क्लस्टरआधारित इन्फ्रास्ट्रक्चर

मध्यम (12 माह)

सूक्ष्म, लघु और मझोले उद्यम मंत्रालय, राज्य सरकारें

रीस्किलिंग और अपस्किलिंग

मध्यमदीर्घ (12–24 माह)

(स्किल इंडिया मिशन)

निष्कर्ष

वर्ष 2025 में अमेरिका द्वारा भारत पर लगाए गए 25% और 50% शुल्क ने भारत की अर्थव्यवस्था को गहरी चुनौती दी है। निर्यात का बड़ा हिस्सा प्रभावित हुआ, जिससे सकल घरेलू उत्पाद”  वृद्धि दर में 0.5% से अधिक गिरावट का अनुमान है। श्रमगहन क्षेत्रों में रोजगार संकट गहराया और छोटे उद्योगों की प्रतिस्पर्धात्मकता कमजोर हुई है। फिर भी, फार्मा और आईटी जैसे क्षेत्रों ने कुछ संतुलन बनाए रखा। यदि भारत नीतिगत सुधार, लागत घटाने, वैकल्पिक बाजार खोजने और घरेलू उद्योग को प्रोत्साहित करने में सफल रहा तो यह संकट दीर्घकाल में मजबूती का आधार भी बन सकता है। लेकिन यदि यह अवसर चूक गया, तो भारत की अमेरिकी बाजार में हिस्सेदारी घटेगी और समग्र आर्थिक विकास पर नकारात्मक असर पड़ेगा।

संदर्भ

इकोनॉमिक टाइम्स (9 सितम्बर 2025) .सी.जी.सी. ने निर्यातकों को उच्च शुल्क से निपटने में मदद हेतु कदम उठाए। आकलन तिथि: 1, सितम्बर, 2025

 

इकोनॉमिक टाइम्स (2025) निर्यातकों ने विस्तारित .सी.जी.सी. कवर की मांग की।
व्यवसाय मानक (2025) सरकार समुद्री भोजन एवं वस्त्र क्षेत्र में पी.एल.आई. योजना बढ़ा सकती है।

 

रॉयटर्स; टाइम्स ऑफ इंडिया (15 सितम्बर 2025) भारत और अमेरिका व्यापार वार्ता करेंगे, संबंध पुनर्स्थापन की उम्मीद। आकलन तिथि: 17 सितम्बर, 2025

 

राष्ट्रीय कौशल विकास निगम (2025) पुनः कौशल निर्माण पहल। आकलन तिथि: 16 सितम्बर 2025

 

इंडियन एक्सप्रेस; सीफूड सोर्स (15 सितम्बर 2025) ट्रंप टैरिफ प्रभाव स्पष्ट; आंध्रप्रदेश ने झींगा निर्यात में ₹25,000 करोड़ के नुकसान और 50% निर्यात आदेश रद्द होने का अनुमान लगाया। आकलन तिथि: 16 सितम्बर 2025

 

एसएंडपी ग्लोबल; इंडिया ब्रीफिंग; मिंट (19 अगस्त 2025) अमेरिकी शुल्क ट्रैकर: भारत के 48.2 अरब अमेरिकी डॉलर के निर्यात के लिए सामरिक निहितार्थ। आकलन तिथि: 17 सितम्बर 2025


Authors

अनिर्बान मुख़र्जी1, कुमारी शुभा1, अजीत कुमार पाल2, पंकज सुमन3 एवं उज्जल कुमार4

1 वैज्ञानिक, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद अनुसंधान केंद्र, पूर्वी क्षेत्र, पटना

2वरिष्ठ अनुसंधान सहयोगी, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद अनुसंधान केंद्र, पूर्वी क्षेत्र, पटना

3युवा शोधकर्ता, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद अनुसंधान केंद्र, पूर्वी क्षेत्र, पटना

4 प्रधान वैज्ञानिक, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद अनुसंधान केंद्र, पूर्वी क्षेत्र, पटना

Email: anirban.extn@gmail.com

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