ईख में समेकित कीट प्रबंधन

ईख में समेकित कीट प्रबंधन

Integrated Insect Pest Management of Sugarcane

गन्नेे में समेकित कीट प्रबंधन की विभिन्न क्रियाआ द्वारा फसल की उत्पादकता एवं गुणवता में वृद्वि करने के लिए किसानों को निम्नलिखित बिन्दुओं खेतों में सुनियोजित ढंग से अपनाने की जररुत है।

  • गन्ना को रोपने से कटनी तक साप्ताहिक निगरानी कर छिद्रक कीट एवं उनके मित्रों के बारे में जानकारी रखना।
  • छिद्रक कीटों को नष्ट करने के लिए उन्हीं तकनीकों को अपनायें जिनसे वातावरण प्रदूषित न हो
  • उर्वरकों तथा रसायनों की संस्तुति मात्रा का उचित समय पर प्रयोग।
  • उपयुक्त प्रजाति तथा कीट मुक्त गन्ना का चयन।
  • खेत की गर्मियों में गहरी जुताई करके खुला छोड़ना तथा खरपतवार मुक्त रखना।
  • गन्ना के कीटों की पहचान, जीवन चक्र, आपात का समय एवं लक्षण की जानकारी के लिए साप्ताहिक अन्तराल पर निरीक्षण।
  • अन्य शस्य क्रियाओं का स-समय प्रयोग।
  • उचित फसल-चक्र अपनाना।
  • समय पर रोपाई, अनुशंसित दूरी एवं उचित समय पर सिंचाई करना।
  • मित्र कीटों (परजीवों/परभक्षी) का संरक्षण और उनकी संख्या को बढ़ाना।
  • खेत में फेरोमोन ट्रेप एवं प्रकाश पास लगाकर नर पतंगों को एकत्रित कर नष्ट करना।
  • जैविक एवं वानस्पतिक कीटनाशों के प्रयोग को प्रोत्साहन।
  • फसल का आर्थिक नुकसान होने की आशंका में मान्यता प्राप्त रसायनों की अनुशंसित मात्रा का प्रयोग।

समेकित प्रबन्धन की विधियाँ:

1. किस्म प्रबन्धन

गन्ना की कीट अवरोधी किस्मों का उपयोग समेकित प्रबन्धन हेतु किया जाता है। इस प्रबन्धन में प्रमुख हानिकारक कीटों को सहन करने वाली किस्मों का चुनाव कर रोपनी करनी चाहिए जिससे फसल व उनके कुप्रभाव से सुरक्षित हो सकें। घ्यान रहे कि किसी भी एक किस्म का विस्तार ज्यादा क्षेत्र में न रहे। आगात व मघ्य पिछात किस्मों का चयन व ससमय कटाई भी अतिआवश्यक है।

2. शस्य क्रियाएँ:

अ. रोपाई के पूर्वः

  • ग्रीष्म कालीन गहरी जुताई।
  • खेतों में पिछली ईख फसल के ठूँठ और खरपतवारों को साफ करना।
  • फफूँदी नाशक एवं कीट नाशकों से गुल्लियों का शोधन।
  • भूमिगत कीटों से बचाव के लिए खली एवं पलेवा के साथ निम्विसिडीन का प्रयोग।
  • समय पर रोपाई एवं पौधों की बीच उचित दूरी रखना।

ब. बुवाई के बादः

  • खेतों में पाये जाने वाले हानिकारक कीटों के अण्डें एवं पिल्लुओं का नष्ट करना।
  • कीट ग्रसित पौधों को काटकर हटाना।
  • प्रकाश पास एवं फेरोमेन ट्रेप खेतों में लगाकर कीटों को एकत्र कर नष्ट करना।
  • चूहों के बिलों को पानी भरकर नष्ट करना।
  • परभक्षी चिड़ियों को बर्डपर्चर लगाकर आकर्षित करना।

3. जैविक विधियाँ:

अ. परभक्षीः

ईख के खेत में हानिकार कीटों की संख्या में प्राकृतिक तौर पर पाये जाने वाले परभक्षी कीटों के द्वारा भी उनकी संख्या को संतुलित बनाये रखा जा सकता है, जिनमें-मकड़िया, लेडीवर्डवीटिल, क्राइसोपरला, मिरीउवग, वाटरवग, क्रिकेट, मेढ़क, छिपकिली, चिड़ियाँ आदि हैं।

ब. परजीवीः

छिद्रक कीटों की विभिन्न अवस्थाओं को ग्रसित करने वाले परजीवि प्रकृति में पाये जाते हैं जिनके द्वारा उनकी बढ़वार को कम किया जा सकता है जिसका विवरण निम्नलिखित है-
अण्ड परजीवी ट्रायकोग्रामा जेपोनिकम या ट्रायकोग्रामा किलोनिस का 50000 अण्डा 10 दिनों के अन्तराल पर जून से अगस्त माह तक छोडे़।

4. रासायनिक नियंत्रण-

समेकित प्रबंधन पद्वति में रासायनिक नियंत्रण अंतिम उपाय के रुप में अपनाया जाता है। रासायनिक नियंत्रण को आवश्यकतानुसार उचित मात्रा एवं सही समय पर प्रयोग करें। आवश्यकता से तात्पर्य है कि जब नियंत्रण के अन्य साधनों से वांछित परिणाम न मिलें और कीटों की संख्या आर्थिक क्षति स्तर से ऊपर हो एवं प्राकृतिक जैविक कारकों का अनुपात असंतुलित हो तभी नाशीरसायनों का प्रयोग किया जाना चाहिए।

  • क्लोरपाइरिफॉस 20 ई0 सी0 5 लीटर/हे0 रोपनी के समय पोरियों पर सिराउर में छिड़काव करें।
  • शीर्ष छिद्रक की तीसरी एवं चौथी पीढ़ी को नियंत्रित करने हेतु जून के अंतिम सप्ताह से जुलाई के प्रथम सप्ताह में Cartap hydrochloride 4 जी0 25 कि0ग्राम/हे0 खेत में डालें एवं मिटट्ी चढ़ावें।
  • परजीवी नहीं होने की स्थिति में क्लोरपाइरिफॉस 20 ई0 सी0 2 लीटर प्रति हे0 की दर से छिड़काव करें।

समेकित प्रबंधन से लाभः

  • इस विधि से परिस्थातिक तंत्र और पर्यावरण की सुरक्षा।
  • कीटनाशक एवं अन्य विषैले रसायनों से जल, वायु तथा भूमि की रक्षा।
  • मानव जाति में होने वाले दुष्प्रभाव में कमी।
  • मित्र कीटों की सुरक्षा और इनमें कीटनाशकों के प्रति बढ़ती प्रतिरोधात्मक क्षमता को रोकना।
  • निर्यात को बढ़ावा।
  • कीटनाशकों के अन्धाधुंध प्रयोग से मित्र कीटों का विनाश एवं नये कीटों के आगमन को रोकना।
  • कीटनाशकों के अविवेक पूर्ण प्रयोग में कमी।
  • गुणवयुक्ता फसल उत्पादन की प्राप्ति।
  • फसल लागत में कमी और शुद्व आय में वृद्वि।

 Authors:

अनिल कुमार, हरी चन्द एवं बलवन्त कुमार
ईख अनुसंधान संस्थान,
डा0 राजेन्द्र प्रसाद केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय, पूसा (समस्तीपुर) – 848 125

Email: agri_anil@rediffmail.com

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