03 Oct बिहार में कृषि विकास के लिए समेकित पोषक तत्व प्रबंधन का समग्र दृष्टिकोण
Holistic approach of integrated nutrient management for agricultural development in Bihar
बिहार, भारत का एक प्रमुख कृषि प्रधान राज्य है, जिसकी अर्थव्यवस्था और आजीविका का बड़ा हिस्सा कृषि पर निर्भर है। जलवायु परिवर्तन और प्राकृतिक संसाधनों के लगातार क्षय के बीच, कृषि उत्पादन को बढ़ाने और टिकाऊ बनाने के लिए समेकित पोषक तत्व प्रबंधन (आईएनएम) की आवश्यकता बढ़ गई है।
यह दृष्टिकोण मृदा स्वास्थ्य को बनाए रखते हुए उत्पादन बढ़ाने के लिए विभिन्न पोषक स्रोतों के संतुलित और कुशल उपयोग पर आधारित है।
समेकित पोषक तत्व प्रबंधन का महत्व
- मृदा की उर्वरता बनाए रखना: मृदा की उत्पादकता लंबे समय तक बनाए रखना।
- पोषक तत्वों की आपूर्ति में संतुलन: जैविक, अजैविक और प्राकृतिक स्रोतों का उपयोग।
- कृषि उत्पादकता में वृद्धि: फसलों की पैदावार में सुधार करना।
- पर्यावरणीय स्थिरता: रसायनिक उर्वरकों के अत्यधिक उपयोग से होने वाले प्रदूषण को रोकना।
बिहार में कृषि की स्थिति
बिहार की कृषि मुख्यतः मानसून पर निर्भर है। राज्य की भूमि उपजाऊ होने के बावजूद किसानों को निम्न समस्याओं का सामना करना पड़ता है:
- मृदा की उर्वरता में कमी।
- सिंचाई के लिए जल की कमी।
- रसायनिक उर्वरकों का अत्यधिक उपयोग।
- कृषि उपकरणों की कमी।
- जलवायु परिवर्तन से फसलों पर पड़ने वाला प्रभाव।
इन समस्याओं का समाधान समेकित पोषक तत्व प्रबंधन के माध्यम से किया जा सकता है।
समेकित पोषक तत्व प्रबंधन के घटक
जैविक खाद:
- गोबर, कम्पोस्ट, वर्मी कम्पोस्ट आदि का उपयोग।
- जैविक खाद मृदा की संरचना और जल धारण क्षमता को सुधारती है।
रसायनिक उर्वरक:
- संतुलित मात्रा में नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटाश (NPK) का उपयोग।
- फसल की जरूरतों के अनुसार उर्वरकों का चयन।
हरित खाद:
- ढैंचा, सन, और मूंग जैसी फसलों को खेत में सड़ाकर उपयोग करना।
- यह मृदा में जैविक कार्बन की मात्रा बढ़ाता है।
सूक्ष्म पोषक तत्व:
- जिंक, आयरन, और बोरॉन जैसे सूक्ष्म पोषक तत्वों का सही अनुपात में उपयोग।
- फसल की गुणवत्ता और पैदावार बढ़ाने में सहायक।
जैव उर्वरक:
- राइजोबियम, एजोटोबैक्टर, और पीएसबी (फॉस्फेट सोल्यूबिलाइजिंग बैक्टीरिया) जैसे जैव उर्वरकों का उपयोग।
- मृदा में पोषक तत्वों की उपलब्धता में सुधार।
फसल चक्र और मिश्रित खेती:
- फसल चक्र अपनाने से मृदा में पोषक तत्वों का संतुलन बना रहता है।
- दलहनी और अनाज वाली फसलों की मिश्रित खेती।
बिहार में समेकित पोषक तत्व प्रबंधन की आवश्यकता
बिहार में धान, गेहूं, मक्का और गन्ना जैसी प्रमुख फसलें उगाई जाती हैं। इन फसलों की उन्नत उत्पादन क्षमता प्राप्त करने के लिए निम्नलिखित कारणों से आईएनएम आवश्यक है:
- मृदा स्वास्थ्य: बिहार की कुछ भूमि में उर्वरता की कमी है, जो उत्पादन को सीमित करती है।
- जलवायु अनुकूलन: जलवायु परिवर्तन के कारण खेती के लिए नई रणनीतियों की आवश्यकता है।
- पर्यावरण संरक्षण: रसायनिक उर्वरकों का अतिरेक उपयोग मिट्टी, जल, और वायु को प्रदूषित कर रहा है।
- कृषि लागत में कमी: जैविक और हरित खाद के उपयोग से किसानों की लागत में कमी आती है।
समेकित पोषक तत्व प्रबंधन के लाभ
- उच्च उत्पादकता: फसल उत्पादन में सुधार।
- मृदा संरचना में सुधार: जैविक और हरित खाद का उपयोग मृदा की संरचना को सुधारता है।
- पर्यावरण संतुलन: प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण।
- पोषक तत्वों की उपलब्धता: पौधों को आवश्यक पोषक तत्व सही मात्रा में मिलते हैं।
- लंबी अवधि में लाभ: यह दृष्टिकोण टिकाऊ कृषि को प्रोत्साहित करता है।
बिहार में आईएनएम लागू करने की रणनीतियाँ
- किसानों को प्रशिक्षण: समेकित पोषक तत्व प्रबंधन के महत्व और तकनीकों को समझाने के लिए कार्यशालाओं और जागरूकता कार्यक्रमों का आयोजन।
- सरकार की भूमिका:
- सब्सिडी पर जैविक खाद और जैव उर्वरकों की उपलब्धता।
- आईएनएम को बढ़ावा देने के लिए योजनाएं और कार्यक्रम।
- वैज्ञानिक शोध और नवाचार:
- मृदा परीक्षण प्रयोगशालाओं की स्थापना।
- क्षेत्र विशेष के लिए उपयुक्त फसल और पोषक तत्व प्रबंधन की सिफारिश।
निष्कर्ष
बिहार में कृषि को सुदृढ़ और टिकाऊ बनाने के लिए समेकित पोषक तत्व प्रबंधन एक अनिवार्य कदम है। यह न केवल फसलों की पैदावार बढ़ाएगा, बल्कि मृदा स्वास्थ्य, पर्यावरणीय स्थिरता और किसानों की आय में भी सुधार करेगा।
किसानों, वैज्ञानिकों और नीति निर्माताओं के संयुक्त प्रयास से बिहार की कृषि को नई ऊंचाइयों पर ले जाया जा सकता है।
लेखक
अजीत कुमार
सहायक प्राध्यापक-सह-वैज्ञानिक (मृदा विज्ञान-मृदा सूक्ष्म जीव विज्ञान),
सूक्ष्म जीव विज्ञान विभाग, आधार विज्ञान एवं मानविकी महाविद्यालय,
डॉ. राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय, पूसा (समस्तीपुर)-848125, बिहार
Email:ajeetrau@gmail.com