Use of organic manure in fish productivity
मछली पालन आय का एक महत्वपूर्ण स्रोत है मछली पालन कई मछुवारे परिवारो के जीवन व्यतीत करने का प्रमुख साधन/ व्यवसाय है परन्तु मछली पालन से जितना मत्स्य पालकों को लाभ प्राप्त होना चाहिए वो नही हो पाता है क्योकि मछलियों का उत्पादकता दर बहुत कम ही हो पाता है, जिसका प्रमुख कारण मछलियों को पर्याप्त मात्रा में पोषक तत्वों का नहीं मिल पाना है
मछलियों में हो रहे पोषक तत्वों के कमी को खाद पदार्थो का उपयोग करके किया जा सकता है यह खाद पदार्थ बहुत से प्रकार के होते है जैसे की गाय के गोबर, सूअर, मुर्गी, पालन से निकल रहे अपशिस्ट पदार्थ इत्यादि।
चूंकि इन अपशिस्ट पदार्थों में बहूत सारे आवश्यक पोषक तत्व पाए जाते है जो तालाबों में सूक्ष्मजीवी जीवों के लिए आवश्यक आहार का कार्य करता है जिससे तालाबो में पादप प्लवक (phytoplankton) एवं जंतु प्लवक (zooplankton)की संख्या बढ़ जाती है एवं इन जीवों को मछलियाँ प्रमुख रूप से भोजन के रूप में उपयोग करती है
उत्पादकता:
उत्पादकता का विचार सर्वप्रथम १७६६ में प्रकृतिवाद के संस्थापक क्वेसने के लेख में सामने आया। उत्पादन दक्षता की औसत माप है। उत्पादकता को इस प्रकार से व्याखित किया जा सकता है। किसी भी एक स्थाई स्थान एवं स्थाई समय अन्तराल में जीवो के द्वारा अकार्बनिक पदार्थो से कार्बनिक पदार्थो का संश्लेषण करने को ही उत्पादकता कहते है
उत्पादकता को मुख्यत: (gC/m²/day) से दर्शाते है अत: उत्पादकता को इस प्रकार से भी परिभाषित किया जा सकता है “उत्पादन प्रक्रिया में आउटपुट और इनपुट के अनुपात को उत्पादकता कह सकते है”|
समुद्र सबसे बङे पारिस्थितिक तंत्र में से एक है और इसकी उत्पादकता विभिन्न जलवायु वाले क्षेत्रों में भिन्न –भिन्न होती है | समुद्र तट के किनारे उत्पादकता २-३ ग्राम प्रति वर्ग मी. प्रतिदिन होती है जबकि गहरे समुद्र में मात्र ०.५ ग्राम प्रति वर्ग मीटर प्रतिदिन होती है तथा झीलों में इसका मान ४-१० ग्राम प्रति वर्ग मीटर प्रतिदिन होती है |
उत्पादकता के प्रकार –
उत्पादकता को मुख्यत: दो भागो में बाटा गया है जो निम्न प्रकार से है -
१.प्राथमिक उत्पादकता:
किसी भी एक पारिस्थितिक तंत्र में उपस्थित कार्बिनक पदार्थों के संचय को प्राथमिक उत्पादकता कहते है” उत्पादकता साधरण अकार्बनिक पदार्थों से कार्बनिक पदार्थों का उत्पादन, हरे पौधों द्वारा उर्जा संचय की दर पर निर्भर करता है| इसउर्जा परिवर्तन की दर या कार्बनिक जैव भार में वृद्धि को प्राथमिक उत्पादकता कहते है | प्राथमिक उत्पादकता को पुनः दो भागो में बाटा गया है| ग्रॉस प्राथमिक उत्पादकता– प्रकाश संश्लेषण या रासायनिक संशलेषण के द्वारा निर्मित उत्पादन को ग्रास प्राथमिक उत्पादकता कहते हैं इसमे से कुछ पदार्थश्वसन क्रिया द्वारा कार्बनिक पदार्थों के विघटन द्वारा नष्ट हो जाते हैं नेट प्राथमिक उत्पादकता- श्वसन द्वारा नष्ट पदार्थों को ग्रास प्राथमिक उत्पादकता में से घटाने पर जो उर्जा बचता है उसे नेट प्राथमिक उत्पादकता कहते हैं
२. द्वितिय उत्पादकता:
द्वितीय उत्पादकता में उपभोक्ता एवं अपघटक भोजन को रासायनिक उर्जा में परिवर्तन करते है|
उत्पादकता की मापन विधियाँ –
उत्पादकता को निम्न विधियों से मापा जा सकता है|
- गैस आदान प्रदान रीती (लाइट एवं डार्क वाटर बोतल)- यह विधि गार्डर एंड ग्रान ने १९२७ में दिया था|
- कार्बन १४ रीती (रेडियो आइसोटोप रीती )- यह विधि विल्लार्ड लिब्बी ने १९४० में दिया था|
- हारवेस्ट रीती - बनर्जी एवं बेनर्जी ने १९६७ ने दिया था|
- बाम्ब कैलोरीमेट्री – लिथ ने १६६५ में दिया था|
कार्बनिक उत्पादकता:
कार्बनिक उत्पादकता का मुख्य तथ्य मिट्टी के साथ कार्य करना है | इसमें जानवरों के अपशिस्ट पदार्थो एवं पौधों से निकले अपशिष्ट पदर्थों का उपयोग मिट्टी की उर्वरक छमता को बढ़ाने के लिए करते है इन अपशिष्ट पदार्थों को सड़ा कर तालाबो में डाला जाता है इस सड़े हुए पदार्थ को खाद (fertilizer/ manure ) कहते हैं
यह मछलियों के साथ साथ अन्य प्रकार की खेती के लिए बहुत ही प्रभावकारी रीती है क्योकि इसके उपयोग से तालाबों एवं खेतो की मिट्टियों में पोषक तत्वों की मात्रा बढ़ जाती है जो तालबों में पादप प्लवक एवं जन्तु प्लवक की मात्रा को बड़ा देती है
इन पादप एवं जंतु प्लवक को मछलियाँ अपने प्रमुख भोजन की रूप में उपयोग करती है मुख्यता छोटी मछलियाँ ( fish larva) इसके उपयोग से मछलियों की वृद्धि तेजी से एवं अधिक होती है|
कार्बनिक खाद को पेड़ पौधों का भंडार गृह भी कहा जाता है इसके उपयोग से मिट्टी की उर्वरता तो बढ़ता है हीसाथ ही साथ मिट्टी को संरक्षित रखने में भी सहायता प्रदान करता है यह मिट्टी के छोटे-छोटे कणों के साथ बंध कर मिट्टी की दानेदार संरचना को बनाए रखता है
खाद मिट्टी के रंग को भी काला बनाये रखता है काली मिट्टी खेती के लिए बहुत ही लाभकारी होती है खाद के उपयोग से मिट्टी के तापमान को भी समान्य रूप में बनाये रखने में मदद मिलता है खाद के उपयोग से जल की स्वामित्व एवं दैहिक शक्ति को भी बढाया जा सकता है|
मछलियों के लिए अनुकूल कार्बन:नाइट्रोजन एवं नाइट्रोजन:फॉस्फोरस:पोटेशियम का अनुपात २०:१ एवं ८:४:२ होता है |
जैविक खाद के प्रकार:
जैविक खाद के सयोंजक:
जैविक खाद |
नाइट्रोजन (%) |
फॉस्फोरस (%) |
पोटेशियम(%) |
गोबर खाद |
०.३ -०.४ |
०.१-०.२ |
०.१-०.३ |
घोड़ा के अपशिष्ट (खाद) |
०.४-०.५ |
०.३-०.४ |
०.३-०.४ |
मुर्गी के अपशिष्ट |
१.० -१.८ |
१.४-१.८ |
०.८-०.९ |
गंदे पानी एवं कीचड़ |
२.०-३.५ |
१.०-५.० |
०.२-०.५ |
फार्म यार्ड खाद |
०.५-१.५ |
०.४-०.८ |
०.५-१.९ |
वानस्पतिक खाद |
०.४-२.० |
०.३-१.० |
०.७-१.५ |
हरी खाद |
०.५-०.७ |
०.१-०.२ |
०.६-०.८ |
सुखा हुआ ब्लड |
१०.०-१२.० |
१.०-१.५ |
१.० |
मछली के अपशिष्ट |
४.०-१०.० |
३.०-९.० |
०.३-१.५ |
अस्थिचुर्ण |
२.०-४.० |
२०.०-५.० |
- |
घर से निकले अपशिष्ट |
०.५-१.९ |
१.६-४.२ |
२.३-१२.० |
धन का भुषा |
०.३-०.५ |
०.२-०.३ |
०.३-०.५ |
सूर्यमुखी का खली |
७.९ |
२.२ |
१.९ |
रुई के बिज का खली |
६.४ |
२.९ |
२.२ |
जैविक खादों के पोषकतत्वों का परीसंचरण-
जैविकखाद उपयोग के फायदे:
जैविक खाद के उपयोग से पेड़ पौधों एवं मिट्टी को आवश्यक पोषक तत्व नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, पोटेशियम पर्याप्त मात्रा में मिल जाता है इसके उपयोग से मिट्टी एवं तालाबों में विषाक्तता नही होता है यह मछली के लिए प्राकृतिक भोजन का पर्याप्त मात्रा में उत्पादन करता है इसमे स्वाभाविक रूप से सङनशील की शक्ति को बढ़ा देता है|
अत: इस खाद के उपयोग मे प्रमुख समस्या यातायात एवं ज्यादा मात्रा में मिल नही पाना है साथ ही साथ इसके कारण खर्च भी बढ़ जाता है कार्बनिक खाद में मौजूद पोषक तत्व, जीवाणुओं के द्वारा प्रकाशित होता है इस क्रिया के लिए जल एवं नमी की आवश्यकता पडती है|जो हमेशा नहि मिल पाता है जिससे कभी कभी नुकशान हो जाता है
जैविक खाद का प्लवक उत्पादन में प्रमुख प्रभाव:
पादप प्लवक एवं जन्तु प्लवक की जनसँख्या, जानवरों एवं खाद के प्रकार के अनुसार विभिन्न विभिन्न होता है (चेन कियु, १९८२) जो निम्न है -
प्लवक उत्पादन |
नियंत्रित टंकी |
मुर्गी की खाद |
सूअर की खाद |
गोबर खाद |
पादप प्लवक |
---- |
५८.१ मी.ग्रा/ ली |
४९.९ मी.ग्रा/ ली |
३५.३ मी.ग्रा/ ली |
जन्तु प्लवक |
---- |
६८.०% |
२९.७% |
२९.५% |
तालबों में जैविक खाद डालने से तिलापिया मछली के विकास में हो रहे परिवर्तन का आकलन:
मापदण्ड |
उपचार |
|||
मुर्गी खाद |
मवेशी के खाद |
सूअर के खाद |
बिना खाद |
|
प्रारम्भिक भार |
१८.३८±०.२६ |
१८.३१±०.२६ |
१८.२३±०.२५ |
१८.१४±०.२७ |
अंतिम भार(ग्राम) |
३४.९४±०.४३ |
२६.४७±०.६७ |
२६.५०±०.६६ |
२०.१६±०.६९ |
भार में वृद्धि (ग्राम) |
१६.५६±०.४८ |
८.१६±०.७८ |
८.२७±०.६८ |
२.५३ ±०.६९ |
प्रतिदिन भार में वृद्धि |
०.२०±०.०१ |
०.१०±०.०१ |
०.१०±०.०१ |
०.०३±०.०१ |
भार में वृद्धि (%) |
९४.५±३.६ |
४७.३±४.९ |
४६.७±४.० |
१५.२±४.० |
SGR (% प्रतिदिन) |
०.७७±०.०२ |
०.४२±०.०४ |
०.४३±०.०३ |
०.१३ ±०.०४ |
बहुत से प्रकार के खाद डालने से तिलापिया मछलियों में हो रहे बदलाव जैसे की उपज का सकल लाभ, कुल उपज,पुरे साल का कुल उपज, उत्तरजीविता, प्रारम्भिक एवं अंतिम स्तिथि का आकलन “ब्राउन अ.ज” के द्वारा किया गया जो निम्न है -
मापदण्ड |
उपचार |
|
|||
मुर्गी खाद |
मवेशी खाद |
सूअर खाद |
खाद के बिना |
|
|
सकल लाभ (kgha-1) |
६८१.४±८.३ |
५११.९±१२.९ |
५१६.७±१२.९ |
३९३.१±१३.४ |
|
कुल उपज (kgha-1) |
३१३.८±९.४ |
१५.७±१५.१ |
१५२.१±१३.२ |
४०.५±१३.५ |
|
साल का कुल उपज(kg ha-1) |
१.२५५±३८ |
५८३±६० |
६०८±५३ |
१६२±५४ |
|
उत्तरजीविता (%) |
९७.५±०.३ |
९६.७±०.४ |
९७.५±०.४ |
९७.५±०.६ |
|
प्राम्भिक स्थिति |
१.६४±०.०२ |
१.५९±०.०२ |
१.५९±०.०१ |
१.५९±०.०१ |
|
अंतिम स्थिति |
१.६५±०.०५ |
१.३९±०.०४ |
१.३९±०.०४ |
१.४२±०.०४ |
|
तालबों में जैविक खाद डालने के बाद तिलापिया मछलीयों के सम्पूर्ण शारीर में पोषकतत्वों की मात्रा का आकलन ब्राउन अ.ज के द्वारा २००६ में किया गया इनके अनुसार तिलापिया मछलियों (tilapia rendalli) में पोषकतत्वों की मात्र निम्न है -
उपचार |
अनुमानित संघटन |
|||
नमी (%) |
राख (%) |
लिपिड (%) |
प्रोटीन (%) |
|
प्राम्भिक |
६४.०८±०.२९ |
१४.१५±०.२५ |
९.२२±०.०८ |
६६.६८±०.३० |
मुर्गी के अपशिष्ट |
६६.८४±०.०८ |
११.२६±०.०६ |
१५.९४±०.०३ |
७.५१±०.२१ |
मवेशी के अपशिष्ट |
६७.२४±०.२५ |
९.५५±०.०५ |
१५.३२±०.०७ |
६७.८६±०.१३ |
सूअर के अपशिष्ट |
६५.३५±०.३१ |
९.६३±०.०४ |
१५.६३±०.०८ |
६६.५०±०.२६ |
बिना खाद के |
६४.३१±०.११ |
९.०१±०.०७ |
१५.०४±०.०६ |
६२.९७±०.०९ |
ब्राउन अ.ज २००६ के आकलन अनुसार जैविक खाद के उपयोग से जन्तु प्लवक की मात्रा में वृद्धि होती है|
Authors:
दीपिका1, मंगेश एम. भोसले1 और अजय कुमार2
1तमिळ नाडू डॉ. जे. जयललीता मात्स्यीकी विश्व विद्यालय, नागपट्टीनम (ता.ना.)
2केंद्रीय मात्स्यीकी शिक्षा संस्थान, मुंबई.
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