अफारा रोग: पशुओं में आकस्मिक मौत का प्रमुख कारण 

जुगाली करने वाले पशुओं में अफरा एक आम समस्या है । इनके रुमेन (पेट) में पाचन के दौरान गैस का बनना एक सामान्य प्रक्रिया है तथा यह गैस थोड़े थोड़े अंतराल पर  मुँह के रास्ते से हमेशा निकलती रहती है । परन्तु जब किसी कारण बस गैस बाहर नहीं निकल पाती है, तब गैस भरने की वजह से पेट फूल जाता है। इस अवस्‍था अफारा कहते है।

अफारे के कारण पशु की कृति या छायाचित्र बदल जाती है और पशु को साँस लेने में परेशानी होती है। कुछ पशुओं में तीव्र अफरा की वजह से आकस्मिक मृत्यु भी हो जाती है । अफरा दो तरह का होता है, झागयुक्त अफरा तथा गैसीय अफरा ।

 झागयुक्त अफरा

 झागयुक्त अफरा, गैसीय अफरा की तुलना में अधिक पाई जाती है तथा इसमें रुमेन में उपस्थित तरल पदार्थ (रुमेन द्रव्य या रूमेण फ्लूइड) के ऊपर स्थायी झाग बन जाती है जिससे गैस के बाहर निकलने की मुलभुत प्रक्रिया में ही बाधा उत्पन हो जाती है ।

झागयुक्त अफरा का प्रमुख कारण अत्यधिक मात्रा में ताजे, तरुण रसीले घासों, लूसर्न या अन्य लेगुमिनोस (फलीदार) आहार या अल्फ़ा अल्फ़ा घास खाना है । इसके अलावा बहुत महीन पिसा हुआ अनाज का दाना खासकर गेहूं या जौ का दाना देने से भी अफरा की समस्या उत्पन हो सकती है ।

झाग बनने के अन्य बहुत से कारण होते है, जैसे की कुछ पशुओं में अनुवांशिक रूप के अफरा होने का खतरा ज्यादा होता है, चारे में कुछ विशेष प्रोटीन की उपस्थिति, चारे के खाने की दर, मात्रा, तथा  चारे की गुढ़वत्ता, रूमेण में सूक्ष्मजीविओं की उचित संख्या एवं प्रकार इत्यादि ।

लेगुम या दलहनी चारे की पत्तियों में सपोनिन या कुछ ऐसी प्रोटीन्स  होती हैं जो रूमेण फ्लूइड में मिल जाती हैं जिसके कारण रूमेण फ्लूइड की सांद्रता बढ़ जाती है । सांद्रता बढ़ने की वजह से पाचन के दौरान बनने वाली गैसें रूमेण फ्लूइड में झाग बनाती है ।

बुलबुला बनने से गैस बाहर नहीं निकल पाती है जो पशु के डायफ्राम के फैलाव में भी बाधा उत्पन करती है जिससे पशु को साँस लेने में बाधा उत्पन्न होती है ।

गैसीय अफरा

इस प्रकार के ब्लोट में आहारनाल की गुहा किसी कारण बस बाधित हो जाती है, चाहे किसी चीज (जैसे आलू) के खाने के कारण जो ग्रासनली को अवरुद्ध कर दे । किसी बीमारी में जिसके कारण लिम्फनोड (एक तरह की गांठ) के  कारण या ट्यूमर बन जाने की वजह से, जिससे ग्रासनली दब जाती है या अन्य कांई कारण जो ग्रासनली को बाधित कर देती है और जिससे गैस बाहर नहीं निकल पाती है ।

कुछ बीमारीओं जैसे टिटनेस, मिल्क, फीवर, रेबीज, या कोई अन्य बीमारी जो वेगस तंत्रिका को या मष्तिस्क के मेदुलरी तंत्र को प्रभावित करती हो, में भी  ग्राशनली अवरुद्ध हो जाती है ।  

इस प्रकार के ब्लोट में गैस के छोटे छोटे बुलबुले आपस में मिलकर बड़े बड़े बुलबुले बना लेते है । ये गैस के बुलबुले रूमेण के द्रव के ऊपर आ जाते है परन्तु झाग नहीं बनाते है लेकिन आहारनली के बंद होने या रूमेण के कार्यकलाप में असामान्यता के कारण गैस बाहर नहीं निकल पाती है ।

अफारे के लक्षण 

अफारे की अवस्‍था मे पशु के बाएं तरफ की पैरालंबर फोसा (थोड़ा त्रिकोणाकार गड्डे सी आकृति जो पिछले पैर के ऊपर तथा रीढ़ की हड्डी के नीचे होती है) फूल जाती है।  पशु को साँस लेने में दिक्कत होती है इसीलिए वह बार- बार मुंह से साँस लेता है । साँस लेने की रफ़्तार बढ़ जाती है, ह्रदय गति में वृद्धि हो जाती है ।

पशु बार बार पेशाब या गोबर करता है, बेचैन रहता है, बार बार उठता और बैठता रहता है, पेट में दर्द होता है अतः बीच बीच में पैर से अपने पेट पर मारता रहता है, चिल्लाता है, जीभ बाहर निकल सकती है, जिससे लार निकलती रहती है । अफरा की तीब्रता बढ़ जाने पर रूमेण की एकान्तर संकुचन एवं शिथिलन प्रक्रिया जो एक सामान्य प्रक्रिया है तथा पाचन में मदद करती है, उसकी दर कम हो जाती है या बंद हो जाती है ।

पशुओ मे अफारे से बचाव

  • सुबह सुबह पशु को गीले चारागाह पर भेजने से बचे ।
  • भूखे पशु को अधिक मात्रा में गीले तरुण एवं केवल लेगुमिनस चारा न दें या उसे ऐसे चारागाह में न भेजे बल्कि उसे पहले सूखा चारा भी खिलाएं ।
  • पशु के आहार के प्रकार एवं मात्रा में में अचानक अधिक परिवर्तन न करे ।
  • आहार में अधिक अनाज देने से ब्लॉट के होने की संभावना को कम करने के लिए खाने से पहले यदि लासालोसिड (@ ०.६६ मिग्रा. प्रति किग्रा शरीर भार या मोनेनसिन ०.६६ से ०.९९ मिग्रा. प्रति किग्रा शरीर भार के हिसाब से देने से ब्लॉट के होने की संभावना कम हो जाती है ।
  • जिन पशुओ में अनुवांशिक रूप से अफरा का खतरा ज्यादा हो, या ऐसे समय में जब पशुओं को अफरा उत्पन्न करने वाले चारे की उपलब्धता बहुत अधिक हो, तब आहार में एतिहातन पोलोक्सलिन (४४ मिग्रा. प्रति किग्रा शरीर भार के हिसाब से) का इस्तेमाल कर सकते है ।

पशुओं मे अफारे का इलाज

सबसे पहले पशु के खाने के इतिहास की जानकारी जरुरी है । मवेशिओं में झागयुक्त अफरा में झाग बनने से रोकने वाले पदार्थ जैसे २५०-५०० मिली बनस्पति तेल (अलसी, मूंगफली, मक्के या सोयाबीन का तेल) इस्तेमाल करते है जिसमे थोड़ा सा २५-३० मिली तारपीन का तेल भी इस्तेमाल कर सकते है या १००-३०० मिली मिनरल (पैराफिन आयल) दे सकते है ।

इसे दो से तीन दिन तक दें । इसके अलावा डाइमेथिकोन या पोलोक्सलिन का इस्तेमाल कर सकते है । मवेशी को १०० मिली ब्लॉटोसिल पिला दें । एंटीएलर्जिक जैसे  क्लोरफिनेरामिन (एविलिन) का प्रयोग कारगर हो सकता है । यदि अफरा उपस्थित सारे पशुओं में हो गया हो तो तुरंत ही हरे चारे की मात्रा को कम कर दें या बंद कर दें तथा भूसा, साइलेज या हे का उपयोग करना चाहिए । ये पशु की हालत के आधार पर एक या दो बार दिया जा सकता है ।

 जीभ से एक लकड़ी का डंडा बांध देते है जिससे जीभ के बार बार संकुचन के कारण बहुत सारी लार निकलती रहती है । यह लार पेट में जाकर पेट के पी. एच. को सामान्य स्तर पर बनाकर रखती है, जिसका सामान्य स्तर पर होना अति आवश्यक होता है ।

 पी. एच. को ठीक करने के लिए १५० से २०० ग्राम खाने का सोडा (सोडियम बाई कार्बोनेट) एक लीटर पानी में घोलकर पिलाते है जिससे रूमेण का पी. एच. भी ठीक रहता है तथा गैस भी कम बनती है ।

गैसीय अफरा के निदान के लिए स्टमक ट्यूब बिधि सबसे उत्तम बिधि है इसमें मुँह के रास्ते स्टमक  ट्यूब जो प्लास्टिक की लम्बी ट्यूब होती है तथा पेट तक जा सकती है, का उपयोग करके अवरुद्ध आहार नली को ठीक कर सकते है तथा गैस तुरंत स्टमक टयूब से होते हुए बाहर निकल आती है । स्टमक टयूब को पेट में बहुत सावधानी पूर्वक प्रशिक्षित व्यक्ति को ही डालना चाहिए 

गैस के बाहर निकलने के बाद ग्रासनली के अवरुद्ध होने के कारण का इलाज करना चाहिए । स्टमक टयूब बिधि से गैसीय एवं झागयुक्त अफरा को विभेदित किया जा सकता है । प्लास्टिक ट्यूब विधि का झागदार अफरा में कोई फायदा नहीं होता है ।

अगर स्थिति काफी नाजुक है ट्रोकार एवं कैनुला के द्वारा गैस को निकलना पड़ता है या फिर तब पेट का ओपरेशन (रुमीनोटॉमी) करना  पड़ता है ।

पशुओं में ब्लॉट की समस्या से बचने के लिए उनको अत्यधिक मात्रा में गीले, तरुण हरे लेगुमिनॉस चारे को अचानक देने से बचे । अचानक अधिक मात्रा में बहुत पिसा हुआ अनाज देने से बचे क्योंकि आहार की मात्रा एवं प्रकार में होने वाले अचानक परिवर्तन से पशुओं में ब्लॉट एवं एसिडोसिस के होने का खतरा बढ़ जाता है ।

आहार में हरे चारे के साथ सूखा चारा भी दें । ब्लॉट से संवेदन शील पशुओं में एंटिफॉमिंग पोलोक्सलिन एवं आइनोफोर जैसे मोनेनसिन देने चाहिए । ब्लॉट के इलाज के लिए तुरंत पशुचिकित्सक से संपर्क करे ।


Authors:

डॉ मनोज कुमार त्रिपाठी1, डॉ पंकज कुमार2, डॉ प्रणय कुमार कोंडा3

बैज्ञानिक आई .सी ए.आर परिसर का पूर्वी प्रक्षेत्र, पटना

वरिष्ठ बैज्ञानिक आई .सी ए.आर परिसर का पूर्वी प्रक्षेत्र, पटना

पीएचडी स्कॉलर आई. वी. आर. आई, इज़्ज़तनगर, बरेली

Ema। l: tr। path। manoj123@red। ffma। l.com