महिलाओं के पोषण और आजीविका सुधार में डेयरी की सम्भाब्य भूमिका

भारत में पशुधन क्षेत्र सकल घरेलू उत्पाद का 4.11 प्रतिशत और कुल कृषि सकल घरेलू उत्पाद का 25.6 प्रतिशत योगदान देता है। भारत के लगभग 20.5 मिलियन लोग अपनी आजीविका के लिए पशुधन पर निर्भर हैं और उनमें से 69 प्रतिशत कार्यबल का योगदान महिलाओं द्वारा किया जाता है। अन्य क्षेत्रों के विपरीत, पशुधन क्षेत्र महिलाओं की सशक्तिकरण और आजीविका को सुरक्षित करने का अवसर प्रदान करता है ।

महिलाएं अन्य संपत्तियों की तुलना में अधिक पशुधन रखती हैं, इसलिए वे उनके संबंध मे ठोस निर्णय ले सकती हैं। भारत को खाद्य उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाने में पशुधन क्षेत्र विशेष रूप से डेयरी की महत्वपूर्ण भूमिका है। बढ़ती मानव आबादी और सिकुड़ते भूमि संसाधनों के कारण स्वस्थ भोजन की बढ़ती मांग ने डेयरी को आज की जलवायु संकट के समय में किसानों के लिए जीवन रक्षक विकल्प बना दिया है।

19वीं पशु गणना की तुलना में 20वीं पशुगणना में पशुधन की संख्या में 4.6 प्रतिशत की वृद्धि भारतीय किसानों के बीच उनकी लोकप्रियता को दर्शाती है। भले ही भारत सबसे बड़ा दूध उत्पादक (विश्व उत्पादन का 23 प्रतिशत) है, लेकिन भारतीय डेयरी अपने बड़े पैमाने पर उत्पादन के लिए नहीं जानी जाती है बल्कि यहाँ गायें बड़े पैमाने पर छोटे डेयरी किसानों द्वारा पाला जाता है, जिनके पास 2-4 गायें होती हैं।

पिछली पशु गणना रिपोर्ट के अनुसार संकर नस्ल और विदेशी गायों की संख्या में 27 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। कुल मवेशियों की आबादी का लगभग 75 प्रतिशत मादा है, जो दूध के लिए किसान की प्राथमिकता को दर्शाता है। इसलिए गरीबी उन्मूलन, रोजगार सृजन, लैंगिक समानता और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करने में डेयरी क्षेत्र की भूमिका को कम करके नहीं आंका जा सकता है।

महिलाओं की भूमिका पशुधन अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण है क्योंकि कृषि में अधिकांश महिलाएं उत्पादन से संबंधित कम भुगतान और कठिन परिश्रम वाली कृषि गतिविधियों जैसे निराई, बुवाई, कटाई आदि में शामिल हैं, जबकि पशुधन में विशेष रूप से देखभाल करने वाली उबाऊ कार्य जैसे शेड की सफाई, खिलाई पिलाई के साथ साथ उत्पादन और विपणन गतिविधिया जैसे की दूध निकालने, दूध प्रसंस्करण और दूध उत्पाद विक्रय में भी वे शामिल होती हैं।

2015-16 में डेयरी सहकारी समितियों में पाँच मिलियन महिला सदस्य थीं, और यह 2020-21 में बढ़कर 5.4 मिलियन हो गई। 2020-21 में डेयरी उत्पादक सहकारी समितियों के सभी सदस्यों में महिलाओं की संख्या 31 प्रतिशत है। भारत में महिला डेयरी सहकारी समितियों की संख्या 2012 के 18954 से बढ़कर 2015-16 में 32092 हो गई।

लैंगिक समानता, आजीविका और आय सृजन के अलावा पोषण संबंधी समृद्धि और पोषक विविधता डेयरी को भारत, अन्य विकासशील और अविकसित देशों में कुपोषण से निपटने का हथियार बनाती है। डेयरी सबसे सस्ता और साल भर उपलब्ध पौष्टिक भोजन है, विकासशील देशों की आबादी का एक बड़ा वर्ग इसे अपने आहार में मुख्य भोजन के रूप में उपयोग करता है।

भारत की प्रति व्यक्ति उपलब्धता 425 ग्राम प्रतिदिन है जो आई.सी.एम.आर की सलाह (280 ग्राम प्रतिदिन) से बहुत अधिक है। रिपोर्ट कहती है कि भारत में उत्पादित कुल दूध का लगभग 48 प्रतिशत किसान के स्तर पर खपत होता है और 52 प्रतिशत विपणन योग्य अधिशेष के रूप में उपयोग होता है। इस विपणन योग्य अधिशेष में से 50 प्रतिशत संगठित क्षेत्र में वितरित किया जाता है।

डेयरी क्षेत्र 8 करोड़ डेयरी किसानों का समर्थन करता है, जिनमें से केवल 2 करोड़ संगठित क्षेत्र से जुड़े हैं। दूध के अलावा, इन दिनों गाय का गोबर, जिसे पहले अपशिष्ट के रूप में माना जाता था, अब जैव उर्वरक, बायोडीजल और बायोगैस निर्माण के लिए एक संसाधन के रूप में उपयोग किया जाता है।

भारत मे डेयरी उत्पादों के लिए प्राथमिकताए:

दूध की प्रति व्यक्ति उपलब्धता पंजाब और हरियाणा में सबसे अधिक है, इसके बाद राजस्थान और गुजरात का स्थान है। ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के दूध की खपत में भी काफी असमानता है। कई पारंपरिक दुग्ध उत्पाद सदियों से भारतीय व्यंजनों का महत्वपूर्ण हिस्सा रहे हैं।

पारंपरिक खाद्य पदार्थों के रूप में डेयरी उत्पादों की उपस्थिति, जैसे पश्चिमी भारत की छाछ, पूर्वी भारत की मिठाइयाँ, उत्तर भारत का घी और दक्षिण भारत का दही, इन पारंपरिक डेयरी उत्पादों की व्यापक माँग को दर्शाता है। जैसा कि पूर्वी और उत्तर पूर्वी भारत में अधिकांश मांसाहारी लोग निवास करते हैं, मांस उनका पसंदीदा पशु प्रोटीन है।

कई शोधों का दावा है कि पूर्वी और उत्तर पूर्वी लोग लैक्टोज असहिष्णु हैं इसलिए वे तरल दूध का सेवन करना पसंद नहीं करते हैं।

पोषकता से भरपूर डेयरी और डेयरी उत्पाद

दूध को प्रकृति का सबसे सम्पूर्ण भोजन माना जाता है। भैंस के बाद दुनिया में गाय का दूध (83%) प्रमुख है। इन गोजातीय के अलावा कुछ गैर-गोजातीय दूध जैसे ऊंट, बकरी, भेड़ और गधे का दूध अपने चिकित्सीय मूल्य के लिए विश्व मंच पर महत्व प्राप्त कर रहा है।

डेयरी और इसके उत्पादों को न केवल इसकी ऊर्जा सघनता, प्रोटीन प्रचुरता और सूक्ष्म पोषक तत्वों की पर्याप्त प्रकृति के लिए बल्कि इसकी उच्च जैव उपलब्धता के लिए भी सुपर फूड माना जाता है। मानव स्वास्थ्य के लिए आवश्यक सूक्ष्म खनिज (विशेष रूप से कैल्शियम, मैग्नीशियम, पोटेशियम, जस्ता और फास्फोरस) दूध में उपलब्ध हैं।

डेयरी उत्पादों में कैल्शियम और फॉस्फोरस की प्रचुरता इसे गर्भवती महिलाओं, बढ़ते बच्चों, वृद्धों और गठिया के रोगियों के लिए एक क्रियाशील आहार बनाती है। बच्चों में हड्डियों के विकास में कैल्शियम की अहम भूमिका होती हैय यह हड्डियों को मजबूती और घनत्व प्रदान करता है और वृद्ध लोगों में हड्डियों के अधः पतन और ऑस्टियोपोरोटिक फ्रैक्चर को रोकता है।

कैल्शियम कोलेस्ट्रॉल के स्तर को कम करता है, रक्तचाप को बनाए रखता है और कोरोनरी हृदय रोगों की संभावना को कम करता है।

प्रोटीन युक्त डेयरी उत्पाद

प्रोटीन से भरपूर डेयरी उत्पाद वजन घटाने के लिए आदर्श माने जाते हैं। हमारे आहार में भरपूर प्रोटीन उपापचय को गति प्रदान करता है और शरीर की संरचना में सुधार करता है। तरल दूध (3-4%), दही (10%), पनीर (15-16%) और चीज (22-25%) प्रोटीन युक्त डेयरी उत्पाद माने जाते हैं।

दहीः

आंत के लिए एक आदर्श उत्कृष्ट किण्वित भोजन है । लैक्टोज के किण्वन से लैक्टिक एसिड बनता है जो दही मे कार्बोहाइड्रेट को कम करता है जिसके परिणामस्वरूप उच्च प्रोटीन प्रतिशत प्राप्त होता है। पोषक गुणों के साथ-साथ इसमें चिकित्सीय और स्वास्थ्य को बढ़ावा देने वाले गुण होते हैं।

लैक्टिक एसिड बैक्टीरिया की सघनता, आंत को स्वस्थ रखती है। बैक्टीरियल प्रोटीऐज के कारण दूध प्रोटीन का क्षरण पेप्टाइड्स में होता है, इसे बायोएक्टिव पेप्टाइड्स कहा जाता है, इससे विभिन्न स्वास्थ्य लाभ होते हैं, जिसमें एंटीऑक्सिडेंट, एंटीथ्रॉम्बोटिक, एसीई निरोधात्मक और एंटी-एजिंग गतिविधियां हैं।

पनीरः

यह पोटेशियम और सेलेनियम से भरपूर होता है जो कि भूलने की बीमारी को रोकने और प्रजनन सम्बन्धी समस्याओं को कम करने में मदद करता है। पनीर महिलाओं के लिए सबसे अच्छा लाभदायक होता है। यह गर्भवती महिलाओं में भ्रूण को विकसित करने में मदद करता है, मासिक धर्म की ऐंठन को कम करता है और स्तन कैंसर के खतरे को कम करता है।

शाकाहारियों के लिए यह प्रोटीन का सबसे अच्छा स्रोत है। यह मांसपेशियों की ऐंठन को कम करने में मदद करता है। पनीर बनाने में छाछ एक उप-उत्पाद है। छाछ का सेवन करने से हाई ब्लड प्रेशर का खतरा काफी हद तक कम हो जाता है।

यह उचित पाचन और अवशोषण प्रक्रिया में सहायता करता है। रोजाना छाछ का सेवन करने से गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल सिस्टम नियंत्रित होता है और मेटाबॉलिज्म में सुधार होता है। यह शरीर की गर्मी को शांत करता है और शारीरिक तंत्र को संतुलित करता है।

चीजः

दही और पनीर की तरह चीज भी एक किण्वित डेयरी उत्पाद है। यह पारंपरिक रूप से भूमध्यसागरीय क्षेत्र का एक प्रोटीन युक्त आहार है। वर्तमान समय में इसकी उच्च प्रोटीन गुणवत्ता और खनिज प्रचुरता के कारण इसे भारतीय बाजार में भली भांति स्वीकार किया जाने लगा है।

उपभोक्ताओं की स्वास्थ्य आवश्यकता, पसंद और स्वाद के अनुसार विश्व बाजार में विभिन्न प्रकार की चीज उपलब्ध है। चूंकि यह एक किण्वित डेयरी उत्पाद है, इसमें सूक्ष्म पोषक तत्व और प्रोबायोटिक बैक्टीरिया भरपूर मात्रा में उपलब्ध है जिसके कई स्वास्थ्य लाभ हैं।

वसा युक्त डेयरी उत्पाद

क्रीम (20 प्रतिशत), मक्खन (80 प्रतिशत) और घी (99 प्रतिशत) वसा युक्त डेयरी उत्पाद हैं। वसा में घुलनशील विटामिन का समृद्ध स्रोत होने के कारण यह वसा त्वचा, हड्डियों, बालों और सामान्य स्वास्थ्य के लिए लाभकारी हैं।

घीः

घी पाचन में सहायता करता है और यह एक प्राकृतिक एंटीऑक्सीडेंट और कैंसररोधी तत्व के रूप में भी काम करता है। इसमें विभिन्न प्रकार के वसा में घुलनशील विटामिन और फैटी एसिड होते हैं।

घी अपने एंटीऑक्सीडेंट गुणों के कारण एक लंबे समय तक स्थायी रहता है। किसी भी प्रकार के अल्सर के जोखिम से बचने के लिए यह हमारी  आंतो के लिए आदर्श भोजन है। कम नमी होने के कारण यह अधिक समय तक खराब नही होता है।

आजीविका के लिए डेयरी

आजीविका, आय अर्जित करने और सुरक्षित जीवन यापन करने के लिए की जाने वाली क्रिया  हैं। भारत के अधिकांश भाग में कृषि के बाद डेयरी एक जीविकोपार्जन का विकल्प है। लेकिन औद्योगीकरण, निजीकरण, रोजगार हेतू पुरुष पलायन के कारण पहाड़ी और प्राकृतिक आपदा क्षेत्रों मे कई महिला किसानों ने डेयरी को अपनी आजीविका के प्राथमिक विकल्प के रूप में स्वीकार किया है।

श्वेत क्रांति और ऑपरेशन फ्लड की श्रृंखला ने भारत को दूध की कमी से शीर्ष दूध उत्पादक देश में बदल दिया। तरल दूध की खरीद के लिए भारत के विभिन्न हिस्सों में आनंद डेयरी पैटर्न बनाने के लिए 1965 में आनंद, गुजरात में राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड (एन.डी.डी.बी) की स्थापना की गई थी।

ये दूध शेड विकास कार्यक्रम न केवल डेयरी किसानों के लिए बाजार प्रदान करते हैं बल्कि यह विभिन्न पहल कार्यक्रम (कृत्रिम गर्भाधान, सब्सिडी, गुणवत्ता फीड, प्रशिक्षण आदि) के माध्यम से दूध उत्पादन में वृद्धि करते हैं और उपभोक्ताओं को उचित मूल्य पर गुणवत्तापूर्ण दूध भी प्रदान करते हैं।

1950 के बाद भारत के दुग्ध उत्पादन ने बढ़ती दिशा मे ही अनुसरण किया है। 1991 में, निजी कंपनियों ने डेयरी क्षेत्र में प्रवेश किया। निजी कंपनियों और डेयरी सहकारी समितियों के बीच प्रतिस्पर्धा से साल भर  के लिए महिला किसानों को प्रतिस्पर्धी बाजार मिल जाता है और वे प्रतिस्पर्धी दर पर दूध बेचने में सक्षम होती हैं ।

लैंगिक आधारित ये डेयरी सहकारी समितिया महिलाओं के लिए न केवल आय का सृजन करती है बल्कि ये उनमे नेतृत्व की गुणवत्ता, निर्णय लेने की क्षमता  सामाजिक सुरक्षा और संपर्क बढ़ाने में सफल रही है।

चूँकि दुग्ध उत्पादन के लिए पारिवारिक श्रम की आवश्यकता होती है जो गरीब परिवारों में पर्याप्त रूप से उपलब्ध होता है और इसके लिए बड़ी भूमि की आवश्यकता नहीं होती है, इसलिए भूमिहीन व महिला किसान इसे पारंपरिक रूप से आजीविका के विकल्प के रूप में चुन सकते हैं।

निष्कर्ष

डेयरी हिन्दू संस्कृति से जुड़ा हुआ है । गौ-उत्पाद पवित्रता की प्रतीक है । दूध अपने प्राकृतिक रूप में ही पौष्टिक तत्वों का खजाना है । पोषक तत्वों की जरूरत हर उम्र के लोगों को होती है। दूध को आसानी से विटामिन डी, कैल्शियम और कई अन्य आवश्यक पोषक तत्वों से समृद्ध किया जा सकता है।

लो फैट या स्किम्ड दूध भी मानव स्वास्थ्य के लिए एक अच्छा विकल्प हो सकता है। दूध के अलावा गाय का गोबर पशुपालन का एक आवश्यक उप उत्पाद है। सरकार की नवीन पहलों ने गाय के गोबर को एक विशिष्ट पहचान दी है।

प्राकृतिक खेती, जैविक खेती, जलवायु परिवर्तन के उपाय और बायोगैस संयंत्रों ने गाय के गोबर की स्थिति को अपशिष्ट से कृषक महिलाओं के लिए धन के रूप में रूपांतरित किया है। महिलाओं को पशुधन क्षेत्र के निर्णय लेने और विकास के हर चरण में शामिल किया जाना चाहिए। हमें पशुपालन में महिलाओं की उचित भूमिका को पहचानना चाहिए।

पशुपालन पर प्रशिक्षण,  बैंकों और पशु चिकित्सा विभागों से जोड़ने, महिलाओ के हक मे नीतिगत बदलाव से महिलाओं को इस क्षेत्र में उनकी वास्तविक पहचान मिल सकती है और पशुपालन से उनकी आजीविका लाभदायक और टिकाऊ हो सकती है।


Authors:

अर्पिता महापात्र1 और सूर्य प्रकाश2

1भा.कृ.अनु.प.-केन्द्रीय कृषिरत महिला संस्थान, भुवनेश्वर, ओडिशा

2भा.कृ.अनु.प.-केंद्रीय भेड़ और ऊन अनुसंधान संस्थान, अविकानगर, राजस्थान

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