ऑंवले के 13 प्रमुख रोग और उनके प्रबंधन

ऑंवले के 13 प्रमुख रोग और उनके प्रबंधन

13 Major Anola Disease and their Management

आँवला में लगने वाले प्रमुख रोग टहनी झुलसा, पत्ती धब्बा रोग, रतुआ, सूटी मोल्ड, लाइकेन, ब्लू मोल्ड, श्यामवर्ण, गीली सड़न, काली गीली सड़न, फोमा फल सड़न रोग, निग्रोस्पोरा फल सड़न रोग , पेस्टालोसिआ फल सड़न रोग व इंटरनल नेक्रोसिस हैं। जिसके रोकथाम क उपाय संक्षेप में इस लेख में उलेखित हैं।

यह वृक्ष हिमालय में 1350 मीटर तक आरोही उष्णकटिबंधीय क्षेत्रो में पाया जाता हैं और पुरे भारत वर्ष में उगाया जाता हैं। यह वृक्ष यूफोर्बीआयसी कुल का सदस्य हैं जिसे इंडियन ग्रूज़ वेर्री नाम से भी जाना जाता हैं। संस्कृत में इसे अमृता, अमृतफल, आमलकी, पंचरसा इत्यादि, अंग्रेजी में इण्डियन गूजबेरी तथा लैटिन में ‘फ़िलैंथस एँबेलिका’ कहते हैं।

फल और बीज विटामिन सी बीज की समृद्ध स्रोत हैं। पारंपरिक भारतीय चिकित्सा में, सूखे और वृक्ष के ताजा फलों और पत्तियों का इस्तेमाल किया जाता हैं। वृक्ष के सभी भागों दीर्घायु को बढ़ावा देने के लिए, और पारंपरिक रूप से पाचन बढ़ाने के लिए, हृदय और जिगर एनीमिया, दस्त, पेचिश, नकसीर, आंखों में सूजन, पीलिया आदि में इस्तेमाल किया जा सकता हैं। इसमें विषाणूरोधी, जीवाणुरोधी और कवक विरोधी गुण होते  हैं।

एंटीऑक्सीडेंट के रूप में आंवला का उपयोग अच्छी तरह से जाना जाता रहा हैं। इसके फल का उपयोग मुरब्बा, चटनी, आचार, रस तथा चूर्ण इतयादि बनाने के लिए किया जाता हैं। इससे च्यवनप्रास, त्रिफला,तेल आदि भी तैयार किया जाता हैं। इसमें प्रचुर मात्रा में विटामिन सी पायी जाती हैं।

आयुर्वेद के अनुसार हरीतकी (हरड़) और आँवला दो सर्वोत्कृष्ट औषधियाँ हैं। इन दोनों में आँवले का महत्व अधिक  हैं। चरक के मत से शारीरिक अवनति को रोकनेवाले अवस्थास्थापक द्रव्यों में आँवला सबसे प्रधान हैं। प्राचीन ग्रंथकारों ने इसको शिवा (कल्याणकारी), वयस्था (अवस्था को बनाए रखनेवाला) तथा धात्री (माता के समान रक्षा करनेवाला) कहा हैं।

इस अमूल्य औषधि को भी कई रोग ग्रसित करते हैं। पौधों की देख रेख नर्सरी से लेकर बड़े होने तक करनी आवश्यक हैं। जिससे उपज एवं गुणयुक्त फल प्राप्त होंगे कुछ गंभीर रूप से लगने वाले रोगो का विवरण निम्न लिखित दिया गया हैं:

1 आँवले का टहनी झुलसा

लक्षण

टहनी झुलसा रोग का संक्रमण बरसात के मौसम के दौरान आंवला पर दिखाई देता हैं। टहनियों का झुलसना और उप्पर से निचे की तरफ तने का सुखना इस रोग के मुख्य लक्षण हैं। अक्सर नर्सरी में इस रोग का 50% संक्रमण देखा गया हैं।

कारण जीव: डिप्लोडिआ थिओब्रोमईडी

नियंत्रण

नर्सरी में फसल को छायांकन से बचायें। कार्बेन्डाजिम (0.1%) या मैन्कोजेब या जिनेब @ 0.25% के निरंतर छिड़काव के साथ बगीचे में साफ-सफाई का ध्यान रखें।

2 आँवले का पत्ती धब्बा रोग

लक्षण

शुरआती लक्षण पत्तो पर बरसात के दिनों में पानीनुमा धब्बों के रूप दिखाई देते हैं। यह विक्षत् सामान्यतः २-३ से० मी० व्यास के होते हैं तथा पत्तो के सिरो से जले हुई दिखाए देते हैं। बाद में, धब्बे पत्ती की सतह पर संरचनाओं की तरह बिंदी के रूप में दिखाई देते हैं।

कारण जीव: कोलेटोट्रिईकम डेमाटीसियम

नियंत्रण

कैप्टॉन (0.2%) या कार्बेन्डाजिम (0.1%) का छिड़काव बीमारी को नियंत्रित करने के लिए लाभप्रद मन गया हैं।

3 आँवले का रतुआ

लक्षण

इस रोग में पत्तियों, पुष्प शाखाओं तथा तने पर रतुआ रोग से नारंगी रंग के फफोले दिखाई देते हैं।

कारण जीव: रवेनेलिआ एम्ब्लिकै

नियंत्रण

जुलाई-सितंबर के दौरान डाईथेन-जेड 78 (0.2%) की वेटएबल सल्फर (0.4%) के तीन छिड़काव इस रोग को रोकने के लिए आवस्यक हैं। इस रोग की रोकथाम के लिए मैंकोजेब (०.२५%), कन्टाफ (०.९%) का छिदवाव भी प्रभावी होता हैं।

4 आँवले का सूटी मोल्ड

लक्षण

सूटी मोल्ड पत्ते, टहनियाँ और फूल की सतह पर काली कवक विकास की मख़मली कवरिंग बनता हैं। ये केवल सतह तक ही सीमित हैं और पत्तियों में नहीं घुसता हैं। अक्सर रस चूसने वाले कीट इस रोग को फैलाते हैं जैसे तिला, सफ़ेद मख्खी आदि। उनके दवारा छोड़े जाने से यह कवक आसानी से आकर्षित होकर ऊपरी परत पर फैलने लगती हैं और ग्रसित सतह काले रंग में परिवर्तित हो जाती हैं। 

कारण जीव: काप्नोडियम प्रजाति

नियंत्रण

स्टार्च @ 2% का छिड़काव या लैम्ब्डा कयहलोथ्रिन @ 0.05% का छिड़काव इस रोग को रोकने में मददग़ार हैं और संक्रमण अधिक हैं, तो स्टार्च में वेटएबल सल्फर @ 0.2% मिला के छिडकाव करें।  

5 आँवले का लाइकेन

लक्षण

लाइकेन बड़े हो गए पेड़ के तने की सतह पर पाए जाते हैं। यह पेड़ के मुख्य तने और शाखाओं पर अलग अलग आकार के सफेद, गुलाबी, सतही पैच के रूप में देखें जाता हैं।

कारण जीव: सट्रीगुला एलिगेंस।

नियंत्रण

जूट की बोरी के साथ रगड़ना और कास्टिक सोडा (1%) के प्रयोग द्वारा स्तंभ और शाखाओं पर चिपके लाइकेन को छिड़काव द्वारा नियंत्रण किया जा सकताछिड़काव द्वारा नियंत्रण किया जा सकता हैं।

6 आँवले का ब्लू मोल्ड

लक्षण

यह फल की सतह पर भूरे रंग के धब्बे बनता हैं। इस रोग की प्रगति पर फल का रंग बैंगनी-भूरे, पीले और अंत में नीले रंग का हो जाता हैं। संक्रमित फल की सतह पर पीले रंग के तरल सी दिखने वाली बूंदों का रिसाव होता हैं।

नियंत्रण

फलों का से सावधानी भंडारण करें। संचयन और भंडारण के दौरान फलों की सतह पर किसी भी प्रकार की चोट से ब्लू मोल्ड का खतरा बढ़ जाता हैं। भंडारण में स्वच्छता की स्थिति को बनाए रखा जाना चाहिए। बोरेक्स या सोडियम क्लोराइड (1%) के साथ फल का उपचार नीले मोल्ड संक्रमण की जांच करता हैं।

7 आँवले का श्यामवर्ण

लक्षण

इस रोग के लक्षण हरे अधपके फलों पर जलयुक्त दबे हुए धब्बों के रूप में शुरू होते हैं। बाद में धब्बों के बीच का भाग काला हो जाता हैं। इन धब्बों के नीचे का गूदा मुलायम, बाद में पूरा फल ही सवंमित हो जाता हैं। छोटे अनियमित आकार के जलासिक्त धब्बे पत्तियों पर भी देखे जा सकते हैं। जो बाद में भूरे रंग के हो जाते हैं।

कारण जीव: कोलेटोट्रिईकम ग्लोस्पोरिओइड्स

नियंत्रण

बाग की स्वच्छता का ध्यान रखें। संक्रमित फलों को नष्ट रखें और भण्डारण से पहले कार्बनडाज़िम (०.१%) का छिड़काव करें।

8 आँवले का गीली सड़न

 लक्षण

रोग सामान्य रूप से नवंबर और दिसंबर में दिखाई देता हैं। फल का आकार भी विकृत हो जाता भूरे और काले रंग के धब्बे सक्रमण के २-३ दिनों में पैदा हो जाते हैं। संक्रमित फल गहरे भूरे रंग के हो जाते हैं। कवक दोनों अपरिपक्व और परिपक्व फलों में संक्रमण का कारण बनता हैं, लेकिन परिपक्व फल अधिक अतिसंवेदनशील होते हैं।

कारण जीव: फोमोप्सिस फाईलैन्थि

नियंत्रण

फलों को चोट से बचाये। नवंबर माह के दौरान डाइथेन एम -45 या बाविस्टिन (0.1%) के साथ फल का उपचार करें।

9 आँवले का काले गीली सड़न

लक्षण

काली गीली सड़न तोड़े हुए और संग्रहित फलों में दिखाई देती हैं। इन फलों के उप्पर सफ़ेद रंग की कवक की परत दिखाई देती  हैं। सड़े हुए फलों के उप्पर काले रंग को बीजाणु की परत चूर्ण की तरह दिखाई देती  हैं पहले से चोटिल फलों में संकमण की ज्यादा संभावना होती हैं।

कारण जीव: सेन्सेफ्लास्ट्रम रेसमोसम

नियंत्रण

तुड़ाई के दौरान, फलों​​ को चोट से बचाये। संक्रमित फलों को नष्ट करे। फसल तुड़ान से पहले डाइथेन एम -45 (0.2%) या कार्बनडाज़िम (0.1%) का छिड़काव करें।

10 आँवले का फोमा फल सड़न रोग

लक्षण

सड़न छोटे गुलाबी भूरे धब्बों से शुरू होती हैं तथा फलों पर बाद में आँख के आकर का बड़ा धब्बा बनाती हैं। धब्बों के निचे की फल की कोशिकाएं सड़ना शुरू हो गई होती हैं। फल पूरी तरह से १५ दिनों के भीतर सड़ जाते हैं।

कारण जीव: फोमा पुटमीनुम

नियंत्रण

फलों ​​ को चोट से बचाये खास कर तुड़ाई के समय तथा ग्रसित फलों को नष्ट करें। फसल तुड़ान से पहले डाइथेन एम-45 (0.2%) या कार्बनडाज़िम (0.1%) का छिड़काव करें।

11 आँवले का निग्रोस्पोरा फल सड़न रोग

लक्षण

हलके भूरे रंग की कवक को फलों के उप्पर देखा जा सकता हैं। यह कवक भूरे रंग के परिगलित घाव फलों के उप्पर पैदा करती  हैं।

कारण जीव: निग्रोस्पोरा सफैरिका

नियंत्रण

तुड़ाई के दौरान, फलों ​​ को चोट से बचाना अनिवार्य हैं अन्यथा इसमें सड़न जल्द उत्पन हो जाती हैं एवं संक्रमित फलों को नष्ट करे। फसल तुड़ान से पूर्व फफुंदनाशको जैसे डाइथेन एम-45 (0.2%) या कार्बनडाज़िम (0.1%) का छिड़काव करें। जिससे रोग तुड़ाई उपरांत ज्यादा नहीं फैले।

12 आँवले का पेस्टालोसिआ फल सड़न रोग

लक्षण

फलों के उप्पर अनिमित और भूरे रंग के धब्बे होना इस बीमारी के मुख्य लक्षण  हैं। समय के साथ ये  धब्बे गहरे भूरे और  काले रंग के हो जाते  हैं। फल का आंतरिक भाग भी सूखे हुए भूरे भाग में परिवर्तित हो जाता हैं।

कारण जीव: पेस्टालोसिआ क्रुएन्ता

नियंत्रण

तुड़ाई के दौरान, फलों ​​में चोट न लगे इस बात पर गौर करने की आवश्यकता हैं। संक्रमित फलों को नष्ट करे तथा फसल पर कार्बेन्डाजिम (०.१%) का छिड़काव तुड़ाई से पूर्व करना चाहिए। फलों का संग्रहण साफ सुथरे पात्रो में करना चाहिए। भंडारण में स्वच्छता की स्थिति को बनाए रखा जाना चाहिए।

13 आँवले का इंटरनल नेक्रोसिस

लक्षण

शुरू में फल की फलेश काले भूरे रंग की दिखाई देती  हैं। जो बाद में कोरकी और गम्मी पॉकेट्स में परिवर्तित हो जाती हैं।

कारण: इंटरनल नेक्रोसिस

नियंत्रण –

सितंबर-अक्टूबर के दौरान जिंक सल्फेट (0.4%)+कॉपर सल्फेट (0.4%) और बोरेक्स (0.4%) का संयुक्त छिड़काव करना चाहिए। बाद में 0.5-0.6% बोरेक्स का छिड़काव करना चाहिए। प्रतिरोधी किस्मे जैसे की चकैया, एनए-6 और एनए-7 को लगाया जाना चाहिए। जो इस कारक के प्रति अवरोधक पाई गई हैं।


Authors:

Poonam Kumari1 and Lokesh kumar2

1Ph.D Scholar (Plant Pathology ), Sri Karan Narendra Agriculture University, Jobner, Jaipur ( Raj.)

2Ph.D Scholar ( Extention Education), Rajasthan College of Agriculture, MPUAT, university ,udaipur

email – pc3037782@gmail.com

Related Posts

तुलसीतुलसी
हिमाचल प्रदेश में कुछ महत्वपूर्ण औषधीय पौधों...
Current status and list of some important medicinal plants in...
Read more
लसोड़ा की फसललसोड़ा की फसल
Medicinal and nutraceutical attributes of Lasoda crop
लसोड़ा की फसल के औषधीय और पोषक गुण The Indian cherry...
Read more
ChiraytaChirayta
Ten Major Medicinal Plants of Temperate Region
शीतोष्ण जलवायु में पाए जाने वाले दस प्रमुख औषधीय पोधें  भारतवर्ष...
Read more
Medicinal plants for common diseases
सामान्य बीमारियों के लिए प्रमुख औषधीय पौधे प्राचीन काल से ही...
Read more
Cultivation of Coriander
धनिया की खेती  धनिया का वानस्पतिक नाम कोरिएन्ड्रम सेटाइवम है। यह...
Read more
Major pest and diseases management of Isobgol
ईसबगोल के प्रमुख कीट एवं रोग प्रबन्धन ईसबगोल एक महत्वपूर्ण नगदी...
Read more
rjwhiteclubs@gmail.com
rjwhiteclubs@gmail.com