ककड़ी वंश सब्जियों का पाउडरी मिल्ड्यु रोग एवम्‌ उसका प्रबंधन

ककड़ी वंश सब्जियों का पाउडरी मिल्ड्यु रोग एवम्‌ उसका प्रबंधन

Management of Powdery mildew disease of cucurbit family vegetables

ककड़ी वंश सब्जियों का एक महत्वपूर्ण समूह है जो कुकुरबिटेसी परिवार से संबंधित है, जो पूरे भारत और दुनिया के अन्य उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर उगाया जाता है। भारत में मुख्य रूप से खाद्य फसलों के रूप में उगाई जाने वाली फसलों में ककड़ी वंश सब्जियों की एक समृद्ध विविधता है जो कुल सब्जी उत्पादन का लगभग 5-6% हिस्सा है।

कुकुरबिटेसी परिवार के अंतर्गत लौकी, खरबूजे, स्क्वैश और ककड़ी फसलों के मुख्य समूह हैं, जो अपने पोषण और औषधीय मूल्यों के लिए और फसल विविधता के संभावित स्रोतों के रूप में जाने जाते हैं।

200 से अधिक ज्ञात रोगजनक विभिन्न ककड़ी वंश सब्जियों को संक्रमित करते हैं, जिनमें से पाउडरी मिल्ड्यु एक गंभीर बीमारी है और भारत में उगाई जाने वाली ककड़ी वंश सब्जियों की उपज हानि का कारण बनती है।

पाउडरी मिल्ड्यु रोग के लक्षण:

यह एक कवक रोग है और वायुजनित बाध्य बायोट्रॉफ़्स जैसे स्फेरोथेका फुलिजिनिया और एरिसिफे सीकोरेसीयरम के कारण होता है।

संक्रमण की शुरूआती अवस्था में संक्रमित पत्तियों के दोनों ओर सफेद गोलाकार चूर्ण जैसे धब्बे पड़ जाते हैं। बाद के चरण में सफेद धब्बे बढ़ जाते हैं और पौधे की पूरी पत्ती, डंठल, तना और शाखाएँ सफेद चूर्ण बीजाणुओं से ढक जाती हैं और अंततः पत्तियां झड़ हो जाता है ।

गंभीर मामलों में सफेद धब्बे तने और लताओं तक फैल जाते हैं, धीरे-धीरे पीले हो जाते हैं, फिर मुरझा जाते हैं और पूरा पौधा सूख जाता है और मर जाते हैं।

रोग पौधे की प्रकाश संश्लेषक गतिविधि और जैवरासायनिक असंतुलन को प्रभावित करता है। नतीजतनए फल का आकार कम हो जाता है और उपज भी बाधित हो जाती है।

अनुकूल परिस्थितियों में कारक कवक इतनी तेजी से प्रजनन कर सकता है कि एक सप्ताह से दस दिनों के भीतर एक पूरा खेत सफेद दिखाई दे सकता है।

पाउडरी मिल्ड्यु रोगचक्र:

यह रोग 26-28° सेल्सियस के तापमान पर अधिक विकसित होता है। सूखापन कोनिडिया के उपनिवेशण, स्पोरुलेशन और फैलाव के लिए अनुकूल है । संबंधित आर्द्रता 65-70% संक्रमण और रोग के विकास को सह्योग देती है। गैर मौसमी ककड़ी की लताओं पर कवक हमेशा रहता है।

पाउडरी मिल्ड्यु रोग का नियंत्रण:

एकीकृत हानिकारक कीट प्रबंधन के साथ मिलाकर उचित खेती के तरीकों को लागू करने से इस बीमारी के नुकसान को कम किया जा सकेगा।

कल्चरल नियंत्रण:

1. स्वस्थ फसलों में रोग के संक्रमण को रोकने एवम्‌ इनोकुलम के प्राथमिक स्रोत को कम करने के लिए रोगयुक्त ककड़ी वंश सब्जियों और खरपतवार लताओं को हटा देना चाहिये।

2. पौधे से रोगग्रस्त पत्ते को हटा देना चाहियें और जमीन पर गिरे हुए मलबे को भी साफ कर देना चाहियें।

3. पौधों में वायु परिसंचरण में सुधार के लिए छंटाई की जानी चाहिए ।

4. खेत में पानी सुबह के समय देना चाहिए, ताकि पौधों को दिन में सूखने का मौका मिले। ड्रिप-इरिगेशन क उपयोग पत्ते को सूखा रखने में मदद करेंगा।

5. अच्छी हवादार, जलनिकासी और कम नमी वाली जगहों का उपयोग करना चाहियें ।

6. प्रतिरोधी किस्मों का उपयुक्त चयन करना चाहियें ।

7. उर्वरक का प्रयोग मृदा परीक्षण रिपोर्ट के आधार पर किया जाना चाहिए । उर्वरक विशेष रूप से नाइट्रोजन के अधिक प्रयोग से बचना चाहिए ।

रासायनिक नियंत्रण:

1. रोग के लक्षण नजर आने पर प्रति एकड़ जमीन में 10 किलोग्राम गंधक के चूर्ण का छिड़काव करें।

2. खड़ी फसल में प्रतिलीटर पानी में 2 मिलीलीटर कार्बेन्डाज़िम मिलाकर छिड़काव करें।

3. प्रति लीटर पानी में 2 ग्राम मैंकोज़ेब मिलाकर भी छिड़काव करने से भी इस रोग पर नियंत्रण प्राप्त किया जा सकता है ।

4. आवश्यकता होने पर 10 से 15 दिनों के अंतराल रसायन का दोबारा छिड़काव करें ।


Authors

अमृता दास1, दीबा कामिल1, अंजली कुमारी1, अमलेंदु घोष1, श्याम सुन्सुदर द2 एवम्रीता भाटिय3

1पादप रोग विज्ञान संभाग, भारतीय कृषि अनुसं नु धान संस्थान, नई दिल्ली-110012

2सब्जी विज्ञान संभाग, भा कृ अनु– नु भारतीय कृषि अनुसं नु धान संस्थान, नई दिल्ली-110012

3पुष्पुप एवं भूदृभू श्य निर्माण संभाग, भा॰ कृ॰ अनु॰ प॰- नु भारतीय कृषि अनुसं नु धान संस्थान, नई दिल्ली-110012

संवादी लेखक, ई मेल: amritapatho@gmail.com

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rjwhiteclubs@gmail.com
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