Methods of organic farming of potatoes.

Methods of organic farming of potatoes.

आलू की जैविक खेती की वि‍धि‍ 

आलू अपने अंदर बिभिन्न प्रकार का विटामिन्स, मिनिरल्स एवं एंटी ओक्सिडेंट को समाये हुए एक संपूर्ण आहार है| आलू की फसल हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश, पंजाब और बिहार आदि राज्यों की आर्थिक व्यवस्था में महत्वपूर्ण स्थान रखती है, क्योंकि यहां की जलवायु आलू उत्पादन के लिए अनुकूल है।

आलू की अनुमोदित किस्में

कुफरी-चंद्रमुखी, कुफरी-ज्योत, कुफरी-अशोका, कुफरी-पुखराज, कुफरी-लालिमा, कुफरी-अरुण, कुफरी-चिप्सोना, राजेंद्र आलू आदि प्रमुख किस्में है|

आलू की फसल के लि‍ए भूमि 

आलू की फसल के लिए अच्छे निकास वाली, उपजाऊ दोमट मिट्टी सबसे उत्तम है। यद्यपि अच्छे प्रबंध द्वारा इसे विभिन्न प्रकार की भूमियों में भी उगाया जा सकता है। इस फसल के लिए मिट्टी का पी एच मान 6-7.5 तक उपर्युक्त होता है|

एक गहरी जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से और 2-3 जुताईयां देसी हल से करनी चाहिए ताकि आलू की फसल के लिए अच्छे खेत बन सके। खेत में पर्याप्त नमी होनी चाहिए। खेत समतल होना चाहिए ताकि जल निकासी सही हो सके।

आलू की फसल में खाद एवं उर्बरक

आलू की फसल के लिए 20-25 टन सड़ी हुई गोबर कि खाद का प्रयोग करें| 10 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर कि दर से ट्राईकोडर्मा गोबर कि खाद में मिला कर खेत में प्रयोग करें| खड़ी  फसल में मिट्टी चढाने के समय वर्मी कम्पोस्ट डालने से फसल एवं उपज अच्छी प्राप्त होती है|

बीज की तैयारी

बिजाई के लिए अच्छे बीज की निम्नलिखित विशेषताएं होनी चाहिए –

  • बीज शुद्ध प्रजाति का होना चाहिए।
  • बीज स्वस्थ, रोग रहित, विषाणु, सूत्रकृमि तथा बैक्टीरिया से मुक्त होना चाहिए।
  • बीज अंकुरण की सही अवस्था में होना चाहिए।

आलू के आकार के अनुसार इसे समूचे तथा छोटे टुकड़ों में काटकर बोया जा सकता है। यदि आलू का आकार बड़ा हो तो इस प्रकार काटें कि प्रत्येक टुकड़े में कम से कम दो आंखे हों और प्रत्येक टुकड़े का भार लगभग 30 ग्राम से कम न हो। कटे हुए टुकड़ों को ट्राईकोडर्मा 5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज कि दर से उपचारित करने से अच्छी फसल व उपज प्राप्त होती है।

बिजाई का समय

  • पतझड़ वाली फसल-  मध्य सितंबर – मध्य अक्तूबर
  • बसंत वाली फसल- जनवरी – फरवरी
  • मध्य पर्वतीय क्षेत्र (800-1600 मी.)- मध्य जनवरी
  • ऊंचे पर्वतीय क्षेत्र (1600-2400 मी.)- मार्च- अप्रैल
  • बहुत ऊंचे पर्वतीय क्षेत्र (2400 मी. से अधिक)- अप्रैल-मई शुरू

परन्तु भारत के मैदानी भागों में आलू रबी कि मुख्य फसल है। 15 अक्टूबर से 15 नवम्बर आलू लगाने का उपर्युक्त समय होता है।

बीज की मात्रा तथा बिजाई का तरीका

आलू को 50-60 सें. मी. की दूरी में नालियों/खलियों में ढलान की विपरीत दिशा में बोना चाहिए तथा बिजाई के तुरन्त बाद मेढे बनानी चाहिए।

आलू से आलू का अंतर 15-20 सें. मी. होना चाहिए। यदि आलु बीज का भार 30 ग्राम से कम न हो तो 20-25 क्विंटल/हैक्टेयर बीज पर्याप्त होगा।

आलू में खरपतवारों की रोकथाम

आलुओं की फसल को जब खरपतवारों के साथ बढ़ना पड़ता है तो उपज में बहुत अधिक कमी आ जाती है। अत: यह आवश्यक है कि फसल को प्रारंभिक अवस्था में खरपतवारों से मुक्त रखा जाए। निराई-गुड़ाई उचित रूप से एवं कम खर्च से तभी हो सकती है यदि फसल की बिजाई पंक्तियों में की हो।

पहली निराई-गुड़ाई फसल की 75 प्रतिशत अंकुरण पर करनी चाहिए और यह अवस्था बिजाई के लगभग 30 दिनों के बाद आती है। जब पौधे 15-20 सें. मी. लम्बे हो जाएं तो दूसरी निराई-गुड़ाई करके मिट्टी चढ़ा देनी चाहिए।

आलू की फसल में जल प्रबंधन

आलू की फसल में सिंचाई की संख्या एवं समय, मिट्टी की बनावट, मौसम, फसल की वृद्धि की अवस्था तथा उगाई गई किस्म पर निर्भर करती है। फिर भी कुछ क्रांतिक अवस्थाओं में जैसे कि भूमि के अंदर तने से भूस्तारी तथा आलुओं के बनते तथा बढ़ते समय सिंचाई करना बहुत आवश्यक होता है। अतः इन अवस्थाओं में पानी की कमी नहीं होनी चाहिए।

हल्की और बार-बार सिंचाई देना अधिक सिंचाई देने की अपेक्षा अच्छा है। मेंढों तक खेतों में पानी भर देना हानिकारक है, जबकि सिंचाई करते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि नालियां पानी से आधी भरें ताकि मेढ़ों में पानी के रिसाव से स्वयं नमी आ जाये जो कि फसल की बढ़ौतरी के लिए सही है। प्रायः बसंत की फसल में 5-7 सें. मी. गहराई की 5-6 सिंचाईयां पर्याप्त होती हैं।

आलू की फसल में पौध संरक्षण

  • बिजाई के लिए स्वस्थ व रोग रहित बीज का प्रयोग करें।
  • प्रमाणित बीज ही प्रयोग में लाएं।
  • रोगग्रस्त खेतों में फसल न लगाएं।
  • प्रतिरोधी किस्मों का इस्तेमाल करें, जैसे कि कुफरी-स्वर्ण, कुफरी-ज्योति आदि।
  • बिजाई के समय बीज के आलुओं को ट्राईकोडर्मा तथा बीजामृत से उपचार करें।
  • खेत में अच्छी तरह गली-सड़ी गोबर की खाद डालें तथाकच्ची खाद का प्रयोग न करें

आलु बीज को उपचारित करने के बाद रोगों का प्रकोप कम होता है फिर भी अगर फसल में रोग दिखाई दे तो जैविक फफूंद नाशी यूवेरिया बेसिना या फफूद (पेईसिलोमाइसिस लीलासीनस) का प्रयोग करें| कीटों के लिए नीम तेल का प्रयोग 5 मिली लीटर प्रति लीटर पानी में मिला कर छिड़काव करना चाहिए|

फसल की खुदाई एवं श्रेणीकरण

जब फसल पूरी तैयार हो जाए तो आलुओं की खुदाई करनी चाहिए। आलुओं के तैयार हो जाने पर उन्हें भूमि के अंदर देर तक नहीं रहने देना चाहिए। खुदाई के समय भूमि न सूखी न अधिक गीली होनी चाहिए। पौधों की शाखाओं का थोड़ा सूखने तथा रगड़ने पर आलू के छिलके का न निकलना फसल तैयार होने के संकेत देते हैं। आलू का निम्नलिखित विधि से श्रेणीकरण किया जा सकता है –

  • ए श्रेणी (बड़ा आकार)- 75 ग्राम से अधिक भार वाले
  • बी श्रेणी (मध्यम आकार)- 50-75 ग्राम भार वाले
  • सी श्रेणी (छोटा आकार)- 50 ग्राम से कम भार वाले

पैदावार

सामान्य किस्में: 20-25 टन/हैक्टेयर

संकर किस्में: 30-35 टन/हैक्टेयर


 Authors

1प्रतीक कुमार मिश्रा, 2पवन जीत और 3अनूप कुमार

1परियोजना सहायक, 2वैज्ञानिक, 3वरिष्ठ शोधकर्ता

आई. सी. ए. आर. पूर्वी क्षेत्र के लिए शोध परिसर, पटना-800, 014

Email: prateek.mis1991@gmail.com

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