Moringa oleifera: Nutritious green fodder for small ruminants

Moringa oleifera: Nutritious green fodder for small ruminants

सहजन (मोरिंगा ओलीफेरा): भेंड़ व बकरी के लिए पौष्टिक हरा चारा

विकासशील देशों में जुगाली करने वाले छोटे पशु जैसे भेंड़ व बकरी की मांग बढ़ रही है। भारत  में भेड़ और बकरी की आबादी विश्व में तीसरे और दुसरे स्थान पर है। चरागाह भूमि के सिकुड़न और छोटे जुगाली करने वाले पशुओं की आबादी में वृद्धि, गुणवत्ता वाले हरे चारे की सीमित या अनुपलब्धता है जो इन पशुओं की उत्पादकता में बाधा उत्पन्न करने वाला एक प्रमुख कारण है।

इसके अलावा, उपलब्ध चारा पोषक तत्वों में बहुत खराब है, इनमे रेशा की मात्रा सर्वाधिक होती है, जिससे इसका स्वैच्छिक सेवन और इसे पचाने की शक्ति कम हो जाती है जिसके परिणाम स्वरूप उत्पादन और प्रजनन प्रदर्शन में कमी आ जाती है। अनुपलब्धता अवधि के दौरान पशुओं की पोषक मांग को पूरा करने के लिए पेड़ और झाड़ियाँ चारे के रूप में एक आशाजनक वैकल्पिक संसाधन हो सकते हैं।

हरे चारे की पूर्ति और जानवरों के लिए पोषण की मांग को पूरा करने के लिए सहजन के पौधे को चारे के तौर पर एक चमत्कारी पेड़ माना गया है। सहजन के पत्ते उच्च गुणवत्ता वाले प्रोटीन, कैरोटीनॉयड, विटामिन सी और अन्य एंटीऑक्सिडेंट से समृद्ध होते हैं, चारे की गुणवत्ता को बढ़ाते हैं और पाचनशक्ति में सुधार करते हैं जो आगे चलकर छोटे पशुओं के शारीरिक वृद्धि अथवा उत्पादन क्षमता बढ़ाने में सहायक है।

सहजन का पोषण मूल्य

सहजन, लोकप्रिय रूप से ड्रम स्टिक नाम से जाना जाता है, जो भारतीय उपमहाद्वीप में सबसे तेजी से बढ़ने वाला चारा पेड़ है, लेकिन यह मुख्यतः भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफ़गानिस्तान में पाया जाता है।

यह विविध प्रकार के मिट्टी में उगाया जा सकता है और यह बहुत ही सहनशील जो व्यापक तापमान अंतर को सहन करने की क्षमता रखता है। सहजन का औषधीय महत्व भी है क्योंकि यह मनुष्यों में रक्तचाप और मधुमेह को नियंत्रित करने में कारगर साबित हुआ है।

  • सहजन में मैक्रोन्यूट्रिएंट्स जैसे पोटेशियम, मैग्नीशियम, फॉस्फोरस और कैल्शियम अधिक मात्रा में पाया जाता है।
  • सहजन विभिन्न आवश्यक अमीनो एसिड के साथ अन्य पारंपरिक फीड जैसे मूंगफली का खल, सीसम खल, सूरजमुखी खल, नारियल खल, कपास खल आदि की तुलना में प्रोटीन से भरपूर होता है ।
  • सहजन में कुल 16-19 एमिनो एसिड पाया जाते है जिसमें थ्रेओनीन, टाइरोसिन, मेथिओनिन, वेलिन, फिनाइलएलनिन, आइसोल्यूसीन, ल्यूसीन, हिसटीडीन, लाइसिन और ट्रिप्टोफैन जैसे 10 आवश्यक अमीनो एसिड शामिल हैं।
  • मेथिओनिन की मात्रा भी सहजन में अल्फा अल्फा चारे की तुलना में अधिक होता है।
  • बीटा कैरोटीन, विटामिन सी और आयरन की भी अच्छी मात्रा होती है ।
  • इसमें टैनिन (1-23 ग्राम / किग्रा) की नगण्य मात्रा होती है और इसमें गंधक युक्त अमीनो एसिड उच्च मात्रा में होता है।
  • पत्तियों में ओमेगा 3 फैटी एसिड से भरपूर लिपिड (8-9%) होते हैं और यह रोगाणुरोधी और एंटीऑक्सीडेंट गुण से परिपूर्ण होता है।
  • सहजन की पत्तियों में 17.9 से 26.8% प्रोटीन होता है, जिसमें लगभग 47% बाईपास प्रोटीन होता है।
  • सहजन में शुष्क पदार्थ और राख की मात्रा भी अधिक होती है, जबकि नैपियर चारे की तुलना में इसमें जैविक पदार्थ और एसिड डिटर्जेंट फाइबर कम होती है।

सहजन चारा कटाई के उपरान्त प्रसंस्करण

सहजन की कटाई टहनियों से करे

पत्तो व् टहनियों को सुखा कर कुचल ले या पहले कुट्टी मशीन के माध्यम से (1 इंच) के टुकड़ो में काट ले और फिर धुप में 7-8 घंटा सुखाये

मक्का और नमक के साथ मिलाये (80:19:1 अनुपात में)

पेलेट बनाये  (80:20 अनुपात में)

प्लास्टिक की थैलियों में संग्रहित कर रखे

पेलेट का अचल आयु  >6 महीने

 

सहजन चारा खिलाने का शारीरिक वृद्धि पर प्रभाव

सहजन एक पौष्टिक पौधा है और शारीरिक वृद्धि, सुधार तथा बेहतर प्रदर्शन के लिए इसे छोटे जुगाली करने वाले पशुओं के आहार में शामिल किया जा सकता है। सहजन के पत्तों को खिलाने से पाचन में सुधार और पोषक तत्वों के अवशोषण से पशुओं के शरीर का वजन बढ़ता है।

सहजन चारा से युक्त आहार में पोषक तत्वों की नाइट्रोजन के उपयोग और पाचन शक्ति की उच्चतम दक्षता होती है, जिसके परिणामस्वरूप पशुओं का वजन औसत 20.83 ग्राम / पशु / दिन बढ़ने में सहायक होता है जिसका मुख्य कारण प्रोटीन की बेहतर उपयोगीता है ।

पेलेट युक्त सहजन को 1.5 से 2 किग्रा / बकरी खिलाने के फलस्वरूप एक वर्ष में शरीर का अधिकतम वजन 30 किग्रा तक हो सकता है। सहजन के साथ अल्फा अल्फा के प्रतिस्थापन ने सहजन आहार में उच्च वसा और खनिज लवण के कारण बकरी और भेड़ के बच्चो के शारीरिक विकास पर सकारात्मक प्रभाव दिखाया। इसके अलावा, सूखे सहजन के पत्तों को पारंपरिक दाना मिश्रण के बदले बकरी व् भेंड़ के बच्चो के शरीर विकास पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना खिलाया जा सकता है।

सहजन के पत्तो को कपास के खल के बदले प्रोटीन स्रोत के रूप में 12.5 भाग तक दाना मिश्रण में सुरक्षित रूप से बढ़ती बकरियों के प्रदर्शन में किसी भी प्रतिकूल प्रभाव के बिना बदला जा सकता है । बकरियों में फ़ीड रूपांतरण अनुपात (एफ. सी. आर) सहजन आधारित आहार (8: 1) अन्य स्रोतों (11: 1) की तुलना में ज्यादा अच्छा है ।

सहजन चारा खिलाने का दूध उत्पादन और घटक पर प्रभाव

सहजन की पत्तियों या सहजन आधारित आहार का बकरियों की दूध उत्पादन पर अनुकूल प्रभाव पड़ता है। दूध देने वाली बकरियों में सहजन आहार तिल आहार की जगह उच्च प्रोटीन स्रोत की वजह से ले सकता है।

सहजन के पत्तों को पशु आहार में 15% तक मिलाकर तथा तिल आहार को 75% तक बदल कर देने से अधिक आहार का सेवन, पोषक तत्वों की पाचनशक्ति और पेट में अफारा किण्वन बढ़ जाता है और अंततः बकरियों में दूध की बढोतरी (12%) और दूध में फैटी एसिड में भी सुधार होता है।

सहजन खिलाने से कुल ठोस पदार्थ, दूध वसा और दूध की लैक्टोज की मात्रा बढ़ जाती है। इसके अलावा सहजन खिलाने से सैचुरेटेड फैटी एसिड प्रतिशत की मात्रा कम तथा अनसैचुरेटेड फैटी एसिड की मात्रा बकरी के दूध में बढ़ जाता है। दाना मिश्रण का सहजन द्वारा प्रतिस्थापन 50% तक करने से दूध उत्पादन 330 ग्राम / दिन, वसा 3.12%, 4.02% लैक्टोज और 8.08% ठोस पदार्थ दूध में बढ़ जाती है।

अल्फ़ा अल्फ़ा की जगह सहजन आहार खिलाना दुधारू भेंड़ व् बकरी के दूध की उत्पादन, घटक और गुणवत्ता बढ़ाने में मददगार है। अल्फ़ा अल्फ़ा के बदले सहजन का आहार 6 सप्ताह लगातार खिलाने से दुग्ध उत्पादन क्षमता बढ़ती है । बकरियों को सहजन आधारित आहार खिलाने से दूध में मेलोंडीएल्डिहाइड की मात्रा भी कम होती है जो दूध को ज्यादा समय तक ख़राब होने से बचाता है।

इसके अलावा एंटीऑक्सिडेंट गतिविधि और विटामिन सी की मात्रा अधिक सहजन का चारा अल्फ़ा अल्फ़ा आहार खिलाने की तुलना में बकरियों के दूध में अधिक पाया गया ।

सहजन का आहार खिलाने से खनिज, विटामिन और आवश्यक अमीनो एसिड का अवशोषण और उपयोग बढ़ता है जिससे दूध की गुणवत्ता और उत्पादकता बेहतर होता है । अन्य चारे की फसल या पारंपरिक दाना मिश्रण खिलाने की तुलना में मोरिंगा युक्त आहार प्रति किग्रा उत्पादन की लागत भी कम है।

इसलिए, सहजन को एक सस्ता, पौष्टिक और वर्ष भर हरा चारा उपलब्ध होने वाला छोटे पशुओं के लिए उत्तम चारा है क्योंकि यह शारीरिक विकास, दूध उत्पादन और पोषक तत्वों की उपयोगिता को बढ़ाता है।


लेखक

शिल्पी केरकेट्टा* एवं स्रोबना सरकार

वैज्ञानिक, आई.सी.ए.आर. – केंद्रीय भेंड़ और ऊन अनुसंधान संस्थान, अविकानगर, राजस्थान

*email:drspkvet@gmail.com

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