नागफनी: शुष्क एवं  अर्द्धशुष्क क्षेत्रों में हरे चारे का विकल्प

नागफनी: शुष्क एवं  अर्द्धशुष्क क्षेत्रों में हरे चारे का विकल्प

Opuntia an alternate green fodder for arid and semiarid areas

पशुपालन व्यवसाय में पशुओं के श्रण पोषण में हरे चारे का महत्वपूर्ण स्थान है। परन्तु घटते जोत आकार के कारण पशु पालकों को अपने पशुओं को वर्ष पर्यन्त हरा चारा उपलब्ध कराना एक बड़ी चुनौती है।  ऐसी परीस्थिति में कांटा रहित नागफनी ‘अपुन्सिया’ (Opuntia) का उपयोंग पशुओं केे खाने में हरे चारे के रूप मेंं कि‍या  जा सकता है।

खासकर देश के शुष्क व अर्धशुष्क क्षेत्रों में, नागफनी का उत्पादन एवं पशु चारे उपयोग करके, हरे चारे की कमी एवं अभाव के दिनों में, पशुओं को समुचित पौष्टिक हरा चारा उपलब्ध कराया जा सकता है।

नागफनी के लिऐ खेत का चयन

नागफनी को उस स्थान, प्रक्षेत्र या खेत में उगाना चाहिऐ जहाँ आमतौर से अनाज या चारा फसलों को उगाना सम्भव न हो। इसे या तो मेड़ों के किनारे बाड़ के रूप में उगाना चाहिए या कंकडीली पथरीली जगहों पर उगाना चाहिऐ।

उपरोक्त क्षेत्रों के चयन से जहाँ एक ओर बाड़ से खेत को छुट्टा पशुओं से सुरक्षा मिलेगी वहीं दूसरी ओर नागफनी उगाने के लिऐ अतिरिक्त भूमी की आवश्यकता नहीं होगी।

कॉंटा रहि‍त नागफनी का खेत

नागफनी का खेत

मेड़ों के किनारे बाड़ के रूप में नागफनी

मेड़ों के किनारे बाड़ के रूप में नागफनी

नागफनी की बुवाई का समय व विधि

आमतौर से नागफनी की बुवाई वर्षा ऋतु के प्रारम्भ में की जाती है। इस मौसम में जड़ों का विकास जल्दी व अधिक मात्रा में होता हैं। नागफनी की बुवाई (रोपाई) क्लेडोड (तने से निकला चैडा भाग) के द्वारा करते है ।

तने से क्लेडोड को तोड कर 1 मीटर की दूरी पर मेंड के किनारे 10.15 सेमी. का गढढा खोदकर जमीन में सीधे गाड देते है। तदोपरान्त कम नमी होने की दशा में सिंचाई करना उपयुक्त होगा।

एक वर्ष में क्लेडोड का उत्पादन

क्लेडोड का उत्पादन विभिन्न कारकों जैसे रोपाई का घनत्व, वर्षा की मात्रा, मृदा की बनावट तथा खाद एवं उरवरक की मात्रा के अनुसार लगभग 30 से 100 टन प्रति हेक्टेअर प्रति वर्ष होता है।

नागफनी का रासायनिक संघटन व पोषण मान

नागफनी में शुष्क पदार्थ की मात्रा काफी कम, लगभग 6 से 8 प्रतिशत के आस-पास होता हैं। जबकि राख तथा आग्जलेट की मात्रा सामान्य चारों की तुलना में काफी अधिक होती है।

तालि‍का- नागफनी का रासायनिक संघटन

घटक

मात्रा (प्रतिशत)

शुष्क पदार्थ

7.50

क्रूड प्रोटीन

6.08

कार्वोहाईडेट

65.00

रेशा (एन.डी.एफ.)

25.60

रेशा (ऐ.डी.एफ.)

17.43

राख

26.00

आग्जलेट

9.00

उपरोक्त तत्थों से ज्ञात होता है कि नागफनी में शुष्क पदार्थ एवं प्रोटीन की मात्रा कम होती है तथा राख व आग्जेलिक अम्ल अघिक मात्रा में पाये जाते हैं । अतः किसानों को पशुओं को नागफनी खिलाते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए।

  1. नागफनी के क्लेडोडस को 2.3 सेमी. चोडी कुट्टी करके ही खिलाना चाहिए। कुट्टी करने से जहाँ एक ओर खाने में आसानी होती है वहीं दूसरी ओर पशुओं में नागफनी की ग्रहयता भी बढ़ जाती है।
  2. चूँकि नागफनी में पानी की मात्रा 90 प्रतिशत से अधिक होती है। इसलिए इसका प्रयोग पशुओं की खिलाई में करते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि शुष्क भार आधार पर नागफनी की मात्रा 20 से 25 प्रतिशत से अधिक नहीं होनी चाहिए। अर्थात प्रत्येक वयस्क पशु के चारे की कुल आवश्यकता का केवल एक चैथाई भाग ही नागफनी से देना चाहिये । इससे अधिक मात्रा खिलाने पर पशु गीला गोवर करने लगता है। साथ ही उसकेे शरीर का भार भी कम हो जाता है।
  3. ताजे कटे नागफनी में शुष्क पदार्थ की मात्रा काफी कम, लगभग 7 प्रतिशत तक होती हैं। अतः पशुओं को हरे चारे के रूप में नागफनी खिलाते समय उनके आहार में सूखा चारा जैसे- पुआल की कुटटी, गेहूँ का भूसा इत्यादि अवश्य देना चाहिये। नागफनी को सूखे चारे के साथ खिलाने से पशु गीला गोवर करना बंद कर देता है। तथा उसका स्वास्थ भी अच्छा रहता है।
  4. चूंकि नागफनी में कच्चे प्रोटीन की मात्रा 60 ग्रा. प्रति कि.ग्रा. शुष्क भार होता है। इसलिए इसका प्रयोग पशुओं की खिलाई में करते समय पशुओं को उचित मात्रा में कच्चा प्रोटीन देना चाहिए। जैैसे सरसों, मूंगफली या बिनौले की खली की 1 से 1.5 कि.ग्रा. मात्रा प्रति वयस्क पशु के हिसाब से देना चाहिए।
  5. वैसे तो नागफनी के राख में खनिज लवण प्रचुर मात्रा में पाऐ जाते हैं। परन्तु इसमें आग्जेलिक अम्ल की 6.12 प्रतिशत मात्रा पायी जाती है। जो कि सीधे तौर से पशुओं को कोई हानि नहीं पहुंचाते हैं। यदि अधिक मात्रा में नागफनी खिलाया जाता हैं तो उपरोक्त पदार्थ कैल्सियम का अवषोषण प्रभावित करते है। जिससे पशु के शरीर में कैल्सियम की कमी आ जाती है। अतः नागफनी खिलाते समय पशुओं को खनिज लवण की पूरक के रूप में 40 से 50 ग्राम मात्रा प्रति व्यस्क पशु के हिसाब से अवश्य देना चाहिऐ।

 


Authors:

कृष्ण कुंवर सिंह, मदन मोहन दास, एस. बि. मैती, पुष्पेंद्र कोली एवं असीम कुमार मिश्र

भा. कृ. अ. प. – भारतीय चरागाह एवं चारा अनुसंधान संस्थान, झाँसी, उत्तर प्रदेश

Email: kolipushpendra@gmail.com

 

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