जैविक खेती के लिए अपशिष्ट अपधटक एक वरदान
सूक्ष्मजीव सेल्लुलोज खाकर बढ़ते हैं और फिर पोषक तत्व छोड़ते हैं जो जमीन के लिए उपयोगी हैं। ज्यादा रासायनिक उर्वरक डालने से पीएच बढ़ता जाता है और कार्बन तत्व कम होते जाते हैं, बाद में ऐसी जमीन उर्वरक डालने पर भी उत्पादन नहीं दे पाती है।
खेती के लिए जमीन मे जीवाश्म होना आवश्यक है यदि जमीन में जीवाश्वम नहीं होंगे तो लम्बे समय तक वहा फसल उत्पादन नहीं हो सकता। इसलिए खेत में गोबर, फसल अवशेष आदि डालने चाहिए।जिनके अपगठन के द्वारा वेस्ट डीकम्पोजर जमीन में पड़े उर्वरकों के पोषक तत्व को घोलकर पौधे को उपलब्ध करवाते हैं।
कचरा अपघटक या वेस्ट डीकम्पोजर
यह उत्पाद देशी गाय के गोबर से बनाया जाता है। इसमें सूक्ष्म जीवाणु हैं, जो फसल अवशेष, गोबर, जैव कचरे को खाते हैं और तेजी से बढ़ोतरी करते हैं। जिससे जहां ये डाले जाते हैं वहां एक श्रृंखला तैयार हो जाती है, जो कुछ ही दिनों में गोबर और कचरे को सड़ाकर खाद बना देती है।
अपघटक को जब जमीन में डालते हैं, तो यह मिट्टी में मौजूद हानिकारक, बीमारी फैलाने वाले कीटाणुओं की संख्या को नियंत्रित करता है।
वेस्ट डीकम्पोजर की विशेषताएं
- हर मौसम में प्रत्येक फसल हेतु उपयोगी
- लम्बी जीवन अवधि (3 वर्ष)
- बहुत सस्ता
- बनाने में सरल
- अति विश्वनीय
- सभी फसलों हेतु बहुत प्रभावी
बनाने की विधि
एक प्लास्टिक के ड्रम में 200 लीटरपानी में 2 किग्रा गुड़ मिलाते है। इसके बाद एक बोतल (20 ग्राम) वेस्ट डीकम्पोजर को ड्रम में डंडे की सहायता से अच्छी तरह मिलाते है। ड्रम को कागज या गत्ते से ढक देते है। इसे प्रतिदिन दो बार डंडे से हिलाया जाता है। 6-7 दिन बाद जब ऊपरी सतह पर झाग बन जाते है और घोल का रंग मटमैला हो जाता हैतब यह उपयोग योग्य हो जाता है।
इस मातृ घोल से और भी घोल तैयार कर सकते है। इस हेतु 20 लीटर वेस्ट डीकम्पोजर घोल को 200 लीटर पानी में डालकर 2 किग्रा गुड़ मिला देते है।7 दिन में यह तैयार हो जाता है।अर्थात एक बोतल से एक ड्रम और एक ड्रम से 100 ड्रम बना सकते हैं।
वेस्ट डीकम्पोजर के उपयोग
कम्पोस्टिंग
गाय का गोबर, कृषि अवशेष, खरपतवार आदि के कचरे की २० सेमी की एक परत बनाकर उसको वेस्ट डीकम्पोजर से गीला कर देते है। यह विधि दोहराते रहे। हर सात दिन पर ढेर को पलटते रहे। इसमें हमेशा नमी बनी रहनी चाहिए।घरेलू कचरे से भी कई एकड़ जमीन के लिए बेहतरीन खाद भी तैयार कर सकते हैं।
फसल अवशेषों का अपघठन
वर्तमान समय में फसल कटाई के लिए कम्बाईन हार्वेस्टर का उपयोग बढ़ गया है। इससे फसल के अवशेष खेतों में ही रह जाते हैं, जिन्हे किसान बाद में जला देते हैं। इन अवशेषों को जलाने से मिट्टी के सूक्ष्म तत्व नष्ट हो जाते हैं। डिकम्पोजर के माध्यम से इन अवशेषों को सड़ाकर खाद बनाने से किसानों को बहुत फायदा होगा।
वेस्ट डीकम्पोजरको फसल की कटाई के बाद खेत में सिंचाई के साथ और पानी की कमी वाले क्षेत्रो में मानसून के समय डालते है। इससे 40-45 दिन के अंदर अवशेष सड़ जाते है और बाद में उत्तम किस्म का खाद बन जाता है। इस हेतु 200 लीटर घोल को एक एकड़ मृदा में उपयोग करते है।
जैव कीटनाशक व जैव पीड़कनाशक
फसलों में कीटों व रोगो के प्रकोप को दूर करने हेतु वेस्ट डीकम्पोजरके घोल का उपयोग करते है, इसके लिए तैयार घोल के एक भाग को पानी के 40 भाग में मिलाकर पत्तो पर छिड़काव हेतु प्रयोग करते है। इससे मृदा जनित और बीज जनित रोगो का नियन्त्रण होता है।
वेस्ट डिकम्पोजर की प्रयोग विधि
बीज उपचार द्वारा
एक बोतल वेस्ट डीकम्पोजरमें उपस्थित सामग्री को 30 ग्राम गु़ड़ के साथ अच्छी तरह मिलाएं। यह मिश्रण 20 किलो बीजों को उपचारित करने हेतु पर्याप्त है। बीजों को उपचारित करने के बाद 30 मिनट छायादार स्थान पर सुखा लें।आधे घंटे बाद बीज बुआई के लिए तैयार हो जाता है।
पत्तो पर छिड़काव-
फसल में कीट व रोगो को नियंत्रित करने हेतु तैयार किये हुए वेस्ट डीकम्पोजरके एक भाग को पानी के 40 भाग में मिलाकर पत्तो पर छिड़काव हेतु प्रयोग करते है।
सिंचाई द्वारा-
वेस्ट डीकम्पोजर को सिंचाई के साथ भी प्रयोग कर सकते है। 200 लीटर कल्चर घोल को एक एकड़ जमीन में टपक सिंचाई के द्वारा दिया जा सकता है।
वेस्ट डीकम्पोजर का प्रभाव
स्वच्छ वातावरण-
इसके द्वारा आस-पास के कचरे, घरेलू अपशिष्ट, फसल अवशेषों एवं गोबर को अपघटित करके गुणवत्तापूर्ण, गंधरहित एवं स्वस्थ सूखी खाद प्राप्त कर सकते है जिसका उपयोग किचन गार्डनिंग में कर सकते है। इस तरह वेस्ट डीकम्पोजर स्वच्छ भारत में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकता है।
कीट व रोग प्रबंधन-
वेस्ट डीकम्पोजरके द्वारा विभिन्न प्रकार की फफूंद, जीवाणु और विषाणु जनितरोगों को नियंत्रित किया जा सकता है। इसके प्रयोग से कन्दीय सब्जियों में होने वाले राइजोम स्त्रवण रोग; आलू, टमाटर, मिर्च, मूंगफलीवकपास के जड़ सड़न रोग; मेथी, रिजका,निम्बू के उकठा रोग को नियंत्रित कर सकते है।
फसल की उपज व गुणवत्ता-
वेस्ट डीकम्पोजरके प्रयोग से इसमें उपस्थित सूक्ष्मजीवों के द्वारा मृदा में पड़े पोषक तत्त्व पौधों हेतु प्राप्य अवस्था में आ जाते है, अत: किसानो की रासायनिक खादों जैसे यूरिया, डी.ए.पी., एम.ओ.पी. आदि पर निर्भरता कम हो जाती है।
इसके निरंतर उपयोग से रासायनिक उर्वरको की 60% मात्रा कम लेनी पड़ती है। इसके उपयोग से फसल की उपज तो बढ़ती ही है साथ ही साथ गुणवत्ता, चमक आदि में भी सुधार होता है।
लागत कम-
यह रासायनिक खादों और पीड़क नाशियों की तुलना में बहुत सस्ता होता है। इसके निरंतर उपयोग करने से रासायनिक खादों पर निर्भरता बहुत कम हो जाती है अर्थात रसायनो पर होने वाली 60% लागत कम हो जाती है। यह जैव उर्वरक के साथ ही कीट व फंफूदनाशी के रूप में भी उपयोगी सिद्ध हुआ है।
मृदा के रासायनिक, भौतिक और जैविक गुण-
वेस्ट डीकम्पोजर से मृदा के भौतिक, रासायनिक, एवं जैविक गुणों में सुधार होता है। मिट्टी की सरंचना व बनावट में परिवर्तन होता है जो पौधों के विकास में सहायक होती है। इसके उपयोग से सूक्ष्म जीवों और केंचुओ की संख्या में भी वृद्धि होती है।
लवणीय मृदा में पौधों की वृद्धि-
यह एंटीबायोटिक्स का उत्पादन करता है जिससे पौधे अपने समक्ष आने वाले रोगो का विरोध करने में सक्षम हो जाते है और आसानी से वृद्धि करते रहते है।
नील गाय की रोकथाम -
इसके फसलों पर छिड़काव से नील गाय भी कम नुकसान पहुँचाता है।
Authors:
सुमित्रा देवी बम्बोरिया1, जितेंद्र सिंह बम्बोरिया2 एवं शांति देवी बम्बोरिया3
1कृषि विज्ञान केंद्र, मौलासर, नागौर-341506 (राजस्थान)
2महाराणा प्रताप कृषि एवं तकनीकी विश्वविधालय, उदयपुर-313001 (राजस्थान)
3भाकृअनुप- भारतीय मक्का अनुसन्धान संस्थान,लुधियाना-141004 (पंजाब)
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