ढींगरी (Dhingri) मशरूम उगाने की विधि।

ढींगरी (Dhingri) मशरूम उगाने की विधि।

Cultivation technique of Oyster mushroom 

How to grow Oyster mushroom

भारत में मशरूम का प्रयोग सब्‍जी के रूप में किया जाता है। खुम्‍बी की कई प्रजातियां भारत मे उगाई जाती है। फ्ल्‍यूरोटस की प्रजातियों को सामान्‍यतया: ढींगरी खुम्‍बी कहते हैं।

अन्‍य खुम्बियों की तुलना में सरलता से उगाई जाने वाली ढींगरी खुम्‍बी खाने में स्‍वादिष्‍ट, सुगन्ध्ति, मुलायम तथा पोषक तत्‍वों से भरपूर होती है। इसमे वसा तथा शर्करा कम होने के कारण यह मोटापे, मधुमेह तथा रक्‍तचाप से पीडित व्‍यक्तियों के लिए आर्दश आहार है। 

भारत में खुम्‍बी उत्‍पादकों के दो समुह हैं एक जो केवल मौसम में ही इसकी खेती करते हैं तथा दूसरे जो सारे साल मशस्‍म उगाते हैं।व्‍यवसायिक रूप से तीन प्रकार की खुम्‍बी उगाई जाती है। 

बटन (Button) खुम्‍बी, ढींगरी (Oyster) खुम्‍बी तथा धानपुआल या पैडीस्‍ट्रा (Paddystraw) खुम्‍बी। तीनो प्रकार की खुम्‍बी को किसी भी हवादार कमरे या सेड में आसानी से उगाया जा सकता है।

भारत में ढींगरी खुम्‍बी की खेती मौसम के अनुसार अलग-अलग भागों मे की जाती है।

ढींगरी मशरूम उगाने का सही समय। 
Sowing time of Oyster mushroom

दक्षिण भारत तथा तटवर्ती क्षेत्रों में सर्दी का मौसम विशेष उपयुक्‍त है। उत्‍तर भारत में ढींगरी खुम्‍बी उगाने का उपयुक्‍त समय अक्‍तुबर से मध्‍य अप्रैल के महीने हैं।

ढींगरी खुम्‍बी की फसल के लिए 20 से 28 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान त‍था 80-85% आर्द्रता बहुत उपयुक्‍त होती है।

आजकल ढींगरी की 12 से अधिक प्रजातियॉ भारत के विभिन्‍न भागों में उगायी जाती हैं। इनमें से फ्ल्‍यूरोटस सजोरकाजू, फ्ल्‍यूरोटस फ्लोरिडा, फ्ल्‍यूरोटस ऑस्ट्रिएटस, फ्ल्‍यूरोटस फ्लेबेलेटस तथा फ्ल्‍यूरोटस सिट्रोनोपिलेटस आदि प्रमुख प्रजातियॉ है। 

ढींगरी मशरूम को उगाने की विधि।
Sowing technique of Oyster Mushroom

ढींगरी की फ्ल्‍यूरोटस सुजोरकाजू प्रजाति को धान के पुआल पर उगाने के लिए पुआल को 3-5 सेमी लम्‍बे टुकडो में काट कर स्‍वच्‍छ जल में रात भर के लिए भिगो दें। अगली सुबह अतिरिक्‍त पानी निकाल दें। 

ढींगरी मशरूम की बीजाई या स्‍पानिंग 
spawning of Dhingri mushroom

मशरूम के बीज को स्‍पान कहतें हैं। भूसे के वजन के 5-7% के बराबर ढींगरी का बीज या स्‍पान लेकर उसे गीले भूसे में मिला दें। यदि तापमान कम हो तो बीज की मात्रा 25 % तक बढा दें। बीजाई या तो परतों में करें या फिर भूसे मे एकसार मिला दें।

बीज मिले भूसे को छिद्रयुक्‍त 45 X 30 आकार की पालिथिन की थैलियों में दो तिहाई भरकर थैली का मुहॅ बांध दें। थैलियों का आकार आवश्‍यकतानुसार छोटा या बडा भी प्रयोग किया जा सकता है। 

चाकोर खण्‍डों में उगाने के लिए उपयुक्‍त आकार के सांचे या लकडी की पेटी का प्रयोग करें। सांचे या पेटी में पॉलिथीन की छिद्रयुक्‍त सीट बिछा दें। अब सॉचे में उपरोक्‍त बताये अनुसार तैयार किया बीजयुक्‍त भूसा भर दें या फिर भूसा भरकर परतों में बीजाई कर दें। भूसे को हल्‍के हाथ से दबा दें तथा पॉलिथीन के खंड को सॉचे से बाहर निकाल दें।

बीजाई के बाद मशरूम की देखभाल 
Post spawning care of Oyster

कवक जाल का बनना: 

बीजाई के पश्‍चात पेटी अथवा थैलियों को खुम्‍बी कक्ष में टांडो पर रख दें तथा इन पर पुराने अखबार बिछाकर पानी से भिगो दें। कमरे मे पर्याप्‍त नमी बनाने के लिए कमरे के फर्स व दीवारों पर भी पानी छिडकें। इस समय कमरे का तापमान 22 से 26 डिग्री सेंन्‍टीग्रेड तथा नमी 80 से 85 प्रतिशत के बीच होनी चाहिए।

अगले 10 से 12 दिनों में खुम्‍बी का कवक जाल सारे भूसे में फैल जाएगा। इस अवस्‍था में भूसा परस्‍पर चिपक कर मजबूत हो जाता है तथा इधर उधर लेजाने पर टूटता नही। अब पालिथीन काट कर या खोलकर अलग करदें । पालिथीन रहित बेलनाकार या चाकोर खण्‍डो को टांड पर अगल बगल लगभग एक फुट की दूरी पर रख दें। दिन में दो बार पानी छिडक कर नमी 85 से 90 % बनाए रखें। 

खुम्‍बी फलनकाय का बनना तथा उनकी तुडवाई: 

उपयुक्‍त तापमान (24 से 26 C) पर अगले लगभग 10-12 दिन बाद भूसे पर छोटी-छोटी खुम्‍बियां दिखाई देने लगती हैं जो अगले चार पॉच दिनों में पूरी बढ जाती हैं। 

जब खुम्‍बी के फलनकाय के किनारे भीतर की ओर मुडने लगे तब खुम्‍बी को तेज चाकू से काटकर या डंठल को मरोडकर निकाल लें। 8-10 दिनों के अन्‍तराल पर खुम्‍बीयों की 2-3 फसल आती हैं जिनसे लगभग 95 % उपज प्राप्‍त हो जाती है। 

ढींगरी की पैदावार तथा भंडारण 
Production and storage of Oyster

सामान्‍यत: 1.5 किलोग्राम सूखे पुआल या 6 किलोग्राम गीले भूसे से लगभग एक किलोग्राम ताजी खुम्‍बी आसानी से प्राप्‍त होती है। उत्‍तम फार्मप्रबंधन तथा रोगों से बचाव करके अधिक उपज भी प्राप्‍त की जा सकती है। 

खुम्‍बी को ताजा ही प्रयोग करना श्रेष्‍ठ होता है परन्‍तू फ्रिज में 5 डिग्री ताप पर 4-5 दिनों के लिए इनका भंडारण भी किया जा सकता है। धुप में यांत्रिक शुष्‍कक में सुखाकर वायूरूद्ध डिब्‍बो में भरकर भी रख सकते हैं। 


 Compiled by: Rakeshwar Verma

Source: IARI information bulletin

Email: Rakeshwar@gmail.com

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