भेड़ व बकरियों में पी.पी.आर. रोग

भेड़ व बकरियों में पी.पी.आर. रोग

PPR Disease in Sheep and Goats 

भेड़ व बकरियां ज्यादातर समाज के कमजोर एवं गरीब वर्ग द्वारा पाली जाती है इसलिए पी.पी.आर. रोग बीमारी मुख्यतः छोटे व मध्यम वर्गीय पशुपालकों को ज्यादा प्रभावित करती है, जिसका आजीविका का मुख्य स्रोत भेड़ व बकरी पालन है। यह रोग एक विषाणु (मोरबिलि विषाणु ) जनित रोग है। इस रोग में मृत्युदर बहुत अधिक होती है। यह रोग भेड़ व बकरियों में फैलता है।

भेड़ की तुलना में बकरी में पी.पी.आर. रोग अधिक होता है। यह रोग सभी उम्र व लिंग की भेड़ बकरियों को प्रभावित करता है लेकिन मेमनों में मृत्युदर बहुत अधिक होती है। यह रोग पशुओं में बहुत तेजी से फैलता है और इस रोग से पशु की मृत्यु बहुत तेजी से होती है, इसलिए इसे प्लेग के नाम से भी जानते हैं।

इस रोग में अधिक मृत्युदर होने की वजह से यह बीमारी पशुपालकों को आर्थिक दृष्टि से बहुत हानि पहुंचाती है और पशुपालक आर्थिक रूप से बहुत कमजोर हो जाता है।

पी.पी.आर. रोग के लक्षण-

  • इस रोग में पशु को तेज बुखार आता है,जो चार से पांच दिनों तक रहता है।
  • पशु खाना – पीना व चलना – फिरना बंद कर देता है।
  • त्वचा रूखी हो जाती है।
  • रोगी पशु के मुंह,होंठ व जीभ पर छाले हो जाते हैं जिसकी वजह से पशु के मुंह से लार गिरती है।
  • रोगी पशु के मुंह व होंठ में सूजन आ जाती है जिससे पशु को सांस लेने में तकलीफ होती है।
  • इस रोग में पशु के मुंह में छाले हो जाते हैं।
  • आंखों से पानी आता है तथा लगातार दस्त लगते हैं, जिससे पशु के शरीर में पानी की कमी हो जाती है।
  • पशु की नाक से लगातार स्राव होता है जो शुरू में पानी जैसा होता है तथा बाद में गाढ़ा हो जाता है।
  • ग्याभिन पशु को गर्भपात भी हो सकता है।
  • दस्त एव निमोनिया के लक्षण उत्पन्न हो जाते हैं।
  • उचित ईलाज न करवाने पर पशु की एक सप्ताह के भीतर मृत्यु हो सकती है।

पी.पी.आर. रोग से बचाव के उपाय-

  1. इस रोग से बचाव के लिए अपने पशुओं को स्वच्छ वातावरण में रखें व उचित पोषण दें एवं सही देखभाल करें।
  2. इस रोग से बचाव के लिए टीके अवश्य लगवाने चाहिए।
  3. दो माह की उम्र के पश्चात यह टीके लगवाएं जा सकते हैं। फिर बूस्टर डोज दो सप्ताह बाद अवश्य लगवायें । एक बार इस रोग का टीका लगवाने के बाद तीन साल तक इस रोग से बचाव होता है यानी तीन साल बाद ही टीके की आवश्यकता होती है।
  4. इस रोग में बीमार पशु को तुरन्त स्वस्थ पशु से अलग कर देना चाहिए । यह रोग बीमार से स्वस्थ पशु में फैलता है।
  5. पशु की साफ – सफाई का पूरा ध्यान रखना चाहिए ताकि विषाणु का फैलाव स्वस्थ पशु में ना हो सके।
  6. बाड़े में रोगी पशु के दस्त को अच्छी तरह से साफ करना चाहिए।
  7. नजदीकी पशु चिकित्सक से परामर्श लेकर रोगी पशु को उचित औषधी देनी चाहिए।

Authors

डॉ. विनय कुमार एव डॉ. सुशील कुमार मीणा

पशु विज्ञान केंद्र रतनगढ़ (चूरु)

राजस्थान पशु चिकित्सा और पशु विज्ञान विश्वविद्यालय बीकानेर

Email: vinaymeel786@gmail.com

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