खरगोश पालन के तरीके एवं फायदे

खरगोश पालन के तरीके एवं फायदे

Rabbit farming methods and benefits

खरगोश पालन में ग्रामीण गरीबों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति में सुधार और कम लागत वाले पशु प्रोटीन के संदर्भ में खाद्य सुरक्षा प्रदान करने की व्यापक क्षमता है। देश की कुल खरगोश की आबादी लगभग 406000 है। 28 राज्यों और 7 केंद्र शासित प्रदेशों में से 27 राज्यों और 5 केंद्र शासित प्रदेशों में खरगोशों की आबादी है।

खरगोश अत्यधिक विपुल है। एक मादा खरगोश, अपनी संतानों के माध्यम से प्रति वर्ष 80 किलोग्राम तक मांस का उत्पादन कर सकती है।

भारत में मांस का उत्पादन 5000 और 19000 टन / वर्ष के बीच होने की सूचना है। अंगोरा ऊन उत्पादन प्रति वर्ष 25 से 30 टन है, जो अनुमानित वैश्विक उत्पादन का 1% है।

खरगोश पालन का सामान्य प्रबंधन

खरगोश पालन किसानों एवं बेरोजगार युवाओं के लिए एक कम लागत, कम समय में बड़े मुनाफे का धंधा है । इसमें पोल्ट्री व्यवसाय से काफी कम खर्च और जोखिम है। एक खरगोश दिनभर में लगभग एक मुट्ठी फीड, एक मुट्ठी चारा और दो-तीन कटोरी पानी पीता है।

चार महीने में खरगोश का वजन दो किलो से भी ज्यादा हो जाता है और फिर साढ़े तीन सौ से पांच सौ रुपए तक में बिक जाता है।

खरगोश पालन के लिए सरकार पचीस-तीस प्रतिशत सब्सिडी भी देती है। पशु पालन सम्बन्धी किसी भी व्यवसाय में पालक का मुनाफा पल रहे पशु-पक्षी के भोजन के खर्च पर निर्भर करता है। मुर्गियों के विक्रय से प्राप्त कुल धन में से अस्सी प्रतिशत लागत उनके भोजन पर आ जाती है। पर खरगोश के भोजन पर आधा से भी कम खर्च आता है।

मुर्गियों की तरह खरगोशों की बिक्री में गिरावट भी नहीं आती है। चारे की व्यवस्था बहुत आसानी से हो जाती है। अब तो अच्छी बढ़ोतरी के लिए कुछ कंपनिया खरगोश के लिए विशिष्ट खाद्यान्न भी बनाने लगी हैं।

खरगोश का मीट भारी मात्रा में विदेशों को निर्यात हो रहा है। इसके निर्यात में भारत अभी विश्व में तीसवें स्थान पर है हालाकि अभी तेजी से खरगोश पालन व्यवसाय भारत के सभी राज्यों में फ़ैल रहा है। भारतीय क़ानून के तहत भारतीय खरगोश को पकड़ना, मारना व रखना मना है लेकिन 1960 अधिनियम के तहत विदेशी खरगोश को पालने व रखने की अनुमति है।

खरगोश को पिंजड़े में पाला जा सकता है, जो मामूली खर्च से तैयार हो जाता है। खरगोशों को मौसमी परिस्थितियों जैसे तेज गर्मी, बरसात और कुत्तों, बिल्लियों से बचाने के लिए शेड आवश्‍यक होता है। शेड चार फिट चौड़ा, दस फिट लम्बा और डेढ़ फिट ऊंचा होना चाहिए। अब पार्टीशन देकर दो-बाइ-दो के दस बराबर बॉक्स बना लिए जाते हैं।

शेड को ज़मीन से दो फिट ऊंचाई पर रखते हैं, जिससे खरगोश के अपशिष्ट सीधे ज़मीन पर गिरें। खरगोश को आसानी से उपलब्‍ध हरी पत्तियां, घास, गेंहू का चोकर, बचा भोजन आदि खिलाया जा सकता है। ब्रॉयलर खरगोशों में वृद्धि दर अत्‍यधिक उच्च होती है।

खरगोश फार्म को यूनिट्स में बांटने के बाद एक यूनिट में सात मादा और तीन नर खरगोश रखे जाते हैं। दस यूनिट से फार्मिंग शुरू करने के लिए लगभग 4 से 4.5 लाख रुपए खर्च आते हैं। इसमें टिन शेड लगभग एक से डेढ़ लाख रुपए में, पिंजरे एक से सवा लाख रुपए में, चारा और इन यूनिट्स पर लगभग दो लाख रुपए खर्च आ जाते हैं।

दस यूनिट खरगोश से पैंतालीस दिनों में तैयार बच्‍चों को बेचकर लगभग दो लाख तक की कमाई हो जाती है। इन्‍हें फार्म ब्रीडिंग, मीट और ऊन के लिए बेचा जाता है। साल भर में दस यूनिट से कम से दस लाख रुपए तक की कमाई हो जाती है।

खरगोश से उपलब्ध उपयोगी उत्पाद

देश-विदेश में अंगोरा खरगोश की ऊन की मांग एकाएक बढ़ गई है। अंगोरा खरगोश पालन में देश-विदेश में नाम कमाने वाले मंडी, कुल्लू और कांगड़ा जिलों में एक बार फिर इस व्यवसाय के दिन बहुर गए हैं।

अंगोरा ऊन का भाव आजकल 1600 रुपये से लेकर 2000 रुपये किलो तक है। देश विदेश में अंगोरा ऊन का धागा, अंगोरा मफलर, अंगोरा टोपी और अंगोरा शॉल की बाजार में भारी मांग है। मंडी, कुल्लू, कांगड़ा में करीब दो हजार किसान अंगोरा खरगोश पालन से जुड़े हैं।

इसके ऊन और मीट से पांच-छह सप्ताह के भीतर लागत की दोगुनी कमाई हो जाती है। खरगोश का मीट वसा की दृष्टि से स्वास्थ्य के लिए बेहद लाभकारी होता है। खरगोश के मीट में तुलनात्मक रूप से ज्यादा प्रोटीन, वसा और कैलोरी कम होती है।

साथ ही इसका मीट आसानी से सुपाच्य होता है। इसमें कैल्शियम और फॉस्फोरस अधिक होता है। इसमें तांबा, जस्ता और लौह तत्व शामिल होते हैं। सभी उम्र के लोग इसका सेवन कर सकते हैं। दिल के मरीजों के लिए यह अत्यंत लाभप्रद माना जाता है।

खरगोश के मांस की पोषक तत्त्व की मात्रा

व्यावसायिक वध की उम्र और वजन में खरगोश मांस के लिए प्रोटीन (21.0 %), पानी (72.5%), कुल खनिज (1.2%) और लिपिड (5.0 %) मुख्य रूप से वर्णित हैं। खरगोश के मांस की सोडियम की मात्रा बहुत कम (49 मिलीग्राम / 100 ग्राम) है, जबकि फास्फोरस का स्तर उच्च (277 मिलीग्राम / 100 ग्राम) है। लौह (1.4 मिलीग्राम / 100 ग्राम), तांबा या सेलेनियम सामग्री पर्याप्त रूप से स्थापित नहीं हैं।

हमारे ज्ञान के लिए, कई अन्य ट्रेस तत्वों की सामग्री का मूल्यांकन कभी नहीं किया गया है। उपलब्ध आंकड़ों से प्रतीत होता है कि खरगोश का मांस मुर्गियों में देखे गए लोगों के करीब विटामिन में एक प्रोफ़ाइल दिखाता है, लेकिन इन टिप्पणियों की पुष्टि करना आवश्यक है।

59 मिलीग्राम / 100 ग्राम और 5.9 के अनुपात में ओमेगा 6 / ओमेगा 3 की कोलेस्ट्रॉल की मात्रा स्वास्थ्य की दृष्टि से खरगोश के मांस को आकर्षक बनाती है।


 Authors:

सुषमा कुमारी1, संजय कुमार2, रोहित कुमार जायसवाल1, गार्गी महापात्र
1सहायक प्राध्यापक , पशुधन उत्पाद प्रौद्योगिकी विभाग, बिहार वेटरनरी कॉलेज, पटना-14
2सहायक प्राध्यापक , पशुधन उत्पादन एवं प्रबंधन विभाग, बिहार वेटरनरी कॉलेज, पटना-14
Corresponding author: rohitkmrjswl76@gmail.com

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