लाल मिर्च: तुड़ाई एवं तुड़ाई उपरांत प्रबंधन

लाल मिर्च: तुड़ाई एवं तुड़ाई उपरांत प्रबंधन

Red chilli: Harvest and Post Harvest Handling

भारत मिर्च का विश्व में सबसे बड़ा निर्माता एवं उपभोक्ता है। इसका योगदान वैश्विक उत्पादन का लगभग २५ प्रतिशत है। इसकी खेती भारत के विभिन्न भागों में होती है और यह सालभर उपलब्ध रहता है। इसकी तुड़ाई ज्यादातर दिसंबर से मार्च तक होती है तथा इसकी आपूर्ति फरवरी से अप्रैल तक चरम पर होती है। इसके रोपाई का मुख्य समय खरीफ का मौसम है।

Red chilli planting and harvesting time

 लाल मिर्च की तुड़ाई:

  1. लाल मिर्च की तुड़ाई सवेरे करनी चाहिए.  बारिश या बारिश के पश्चात् तुड़ाई से बचना चाहिए.
  2. तुड़ाई के समय फलों के डंठल को मजबूती से पकड़ कर ऊपर के तरफ खींचना चाहिए. इससे फलों का टूटना बचाया जा सकता है.
  3. अगर सूखे लाल मिर्च के लिए तुड़ाई करनी है तो यह ध्यान रखना चाहिए की फल अधिक परिपक्व न हो.
  4. तुड़ाई विलम्बित नहीं करना चाहिए क्योंकि इससे मिर्च की गुणवत्ता कम हो जाती है.

तुड़ाई उपरांत प्रबंधन:

  • तोड़े हुए फलों को छायादार स्थान पर एकतत्र कर २ से ३ दिनों के लिए रख देना चाहिए जिससे अर्धपक्के फल पक जाए और सभी फलों का एकसमान रंग हो जाये.
  • पकने के लिए २२०C से २५०C तापमान सबसे अच्छा होता है. प्रत्यक्ष धूप से फलों को बचाना चाहिए क्योंकि इससे फलों पर सफ़ेद दाग आ जाते है.   
  • पके हुए फलों को धूप में साफ़ सुथरी जगह जैसे की पॉलिथीन शीट्स या पक्के सतह पर सुखाना चाहिए.
  • फलों को एक पतले परत में फैला देना चाहिए जिससे की उसमें फफूंद न लगे तथा विवर्णता न आये.
  • तुड़ाई उपरान्त मिर्च में ६५%-८०% आर्दता होती है. फलों को धूप में सुखाना चाहिए और सूखने के बाद फलों में नमी की मात्रा ८% से १०% होनी चाहिए. धूप में सूखाने की पद्धति से ५-१५ दिन लग सकते है. १०० kg ताज़े फलों से २५-३५ kg सूखे फल तैयार हो जाते है.
  • फलों को सड़कों के किनारे खुले वातावरण में सूखाने से इनमें मिट्टी और धूल जम जाती है तथा जानवरों, चिड़ियों एवं कीड़ों द्वारा भी नुक्सान होता है. ऐसा करने से ७०%-८०% उत्पादन की हानि हो जाती है.
  • अगर मिर्च का भण्डारण लम्बे समय तक करना है तो कोल्ड स्टोरेज की सुविधा का प्रयोग करना चाहिए क्योंकि बिना शीतगृह के मिर्च के रंग और तीखेपन की क्षति होती है.
  • अगर फलों का रखरखाव ठीक तरीके से नहीं किया गया तो कई फल टूट जाते है, फलों से बीज बाहर आ जाता है और इससे किसान भाइयों को अपने उपज का सही मोल नहीं मिलेगा.

श्रेणीकरण:

भारत में मिर्च का श्रेणीकरण किसानों द्वारा मंडी में लाने से पहले किया जाता. यह फलों के रंग और आकार के आधार पर किया जाता है. क्षतिग्रस्त, फीके और अपरिपक्व फलों को छांट कर अलग किया जाता है. व्यापारियों के स्तर पर इनकी छटाई मिर्च के आर्द्रता और उसके डंठल को देख कर की जाती है. अगर फलों में अनुकूलतम नमी न हो और डंठल टूटे हो तो बीज बाहर आ जाते है और फलों का वजन भी कम हो जाता है.

फलों के रंग, आकार, नमी और डंठल छोड़कर, निम्नलिखित विशेषताएं भी श्रेणीकरण में ध्यान रखे जाते है:

  1. बीज और फलों का अनुपात
  2. बीज का आकार और कठोरता
  3. फलों के पेरिकार्प की मोटाई
  4. तीखापन

सूखे लाल मिर्च के पाउडर के लिए फलों का लाल रंग, उसका तीखपन, मोटे बीज कोष तथा कम बीज अभिलिष्ट है.

लाल मिर्च में मूल्यवर्धन प्रसंस्करण:

(A) लाल मिर्च का पाउडर:

  1. मिर्च का पाउडर जो की गहरे लाल रंग का हो और जिसमें ज्यादा तीखापन न हो, उसके लिए चमकदार, मोटे, लम्बे और सूखे मिर्च का चयन करें.
  2. चयनित मिर्च को घूप में सूखा लें जब तक की वे अच्छी तरह सूख कर कुरकरे न हो जाए.
  3. मिर्च के डंठल तोड़ कर उन्हें अलग कर ले.
  4. मिर्च का पाउडर बनाते समय एक किलो मिर्च में एक चम्मच तेल डाल लें. यह परिरक्षक की तरह काम करेगा.
  5. तैयार की हुई मिर्च के पाउडर को भली भांति बंद किये हुए पॉलिथीन बैग या हवाबंद डिब्बे में पैक कर लें.
  6. इन हवाबंद डिब्बों में हींग के छोटे टुकड़े या थोड़ा नमक ऊपर से डाल लें ताकि लम्बे समय तक मिर्च के पाउडर का भण्डारण किया जा सके.

(B) लाल मिर्च की चटनी:

  1. लाल मिर्च की चटनी बनाने के लिए तीखी तथा कम तीखी, दोनों ही मिर्च का चयन कर लें.
  2. मिर्च के डंठल हटा कर उन्हें अच्छी तरीके से धोकर सूखा लें.
  3. एक पतीले में पानी उबाल लें. सूखे हुई मिर्च को उबलते गर्म पानी में भिंगो ले और फिर पानी छान कर अलग कर लें.
  4. इन मिर्चों को फिर अच्छे से पीस लें.
  5. दूसरे पतीले में थोड़ा सा तेल डालकर गर्म कर लें. पीसी हुई मिर्च के पेस्ट को तेल में डालकर २-३ मिनट तक चला लें. उसके पश्चात् उसमें लहसुन, लॉन्ग, सिरका, नमक, भुना हुआ जीरा का पाउडर और चीनी स्वाद अनुसार उसमें डाल दें.
  6. चटनी तैयार होने पर उसे हवाबंद डिब्बे में डाल कर रखें.

Authors:

अर्पिता श्रीवास्तव , वैज्ञानिक,

 भारतीय कृषि अनुसंधान केंद्र, पूसा, नई दिल्ली-110012

Email: asrivastava45@gmail.com


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