Summer Deep Plowing: Agricultural Activity with Many Benfits
जैविक कारक जैसे कि पादप रोग, निमेटोड, कीट-पतंगे एवं खरपतवार कृषि उत्पादन में बाधक है, जिनके कारण सभी प्रकार की फसलों को व्यापक हानी होती है । अत: लाभदायक फसल उत्पादन के लिए इनका नियंत्रण करना अत्यंत आवश्यक है । मृदा जनित पादप रोगों के रोगजनक जैसे कि फ्यूजेरियम, मैक्रोफोमिना फेजोलिना इत्यादि मोनो-क्रॉपिंग (लगातार खेत में एक ही फसल लेना जैसे कि खरीफ सीजन में बाजरा तथा रबी सीजन में गेहूँ की फसल उगाना) सिस्टम में आसानी से अपनी संख्या बढाते रहते हैं ।
एक बार जब ये रोगज़नक़ मिट्टी के पारिस्थितिकी तंत्र में स्थापित हो जाते हैं तो इनको नियंत्रण करना बेहद मुश्किल हो जाता है, क्योंकि मृदा में बीजाणु निष्क्रिय अवस्था में कई वर्षों तक जीवित रह सकते है । इसी प्रकार निमेटोड एवं कीट-पतंगे मृदा में रहकर अपना जीवन यापन करते हैं तथा अपनी संख्या को भी बढ़ाते रहते हैं ।
खरपतवारों के बीज तथा जड़ मृदा में लम्बे अरसे तक जीवित रहते हैं तथा अनुकूल वातावरण मिलने पर अंकुरित हो कर फसल को नुकसान पहुंचाते हैं । इन सभी हानिकारक जैविक कारकों का नियंत्रण करने के लिए विभिन्न प्रकार के रासायनिक साधन उपलब्ध हैं; लेकिन एक तो रसायनों के द्वारा इनका पूर्ण नियंत्रण काफी मुश्किल काम है और दूसरा इसके लिए भारी मात्रा में रासायनिक पदार्थ तथा उर्जा की आवश्यकता होती है, जो अंततः पर्यावरण को प्रदूषित करते हैं और मृदा पारिस्थितिकी तंत्र में असंतुलन पैदा करते हैं ।
रासायनिक नियंत्रण प्रक्रिया में प्रयाप्त मात्रा में पानी का उपयोग होता हैं, जिसकी उपलब्धता शुष्क क्षेत्रों में सिमित होती है । दूसरी ओर अधिकांश कृषि उत्पाद जैसे की फल, सब्जियाँ सीधे उपभोग किए जाते है, इसलिए अत्यधिक रसायनों का उपयोग उपभोक्ताओं के लिए खतरनाक साबित हो रहा है ।
रबी फसलों की कटाई के उपरान्त मशीनों के उपयोग के कारण खेत असमतल हो जाते हैं । खेत खरपतवारों, कठोर सतह एवं हानिकारक कीट-व्याधियों से संक्रमित रहते है । ऐसी परिस्थितियों में इनके नियंत्रण के लिए पर्यावरण के अनुकूल, किफायती एवं प्रभावी तकनीक है “ग्रीष्मकालीन गहरी जुताई” ।
गर्मी के महीनों के दौरान दिन का तापमान बहुत अधिक होता है साथ ही इस समय अधिकांश खेत खाली रहते हैं । अत: शुष्क क्षेत्रों में हानिकारक जैविक कारकों (पादप रोग, निमेटोड, कीट-पतंगे, खरपतवार) के नियंत्रण के लिए ग्रीष्मकालीन गहरी जुताई कम खर्चे में सबसे सफल तकनीक है ।
इस तकनीक का उपयोग करने से हानिकारक जैविक कारकों के नियंत्रण के साथ-साथ मृदा की जल धारण क्षमता में भी वृद्धि होती है, जो कि शुष्क क्षेत्रों की एक परम आवश्कता है । ग्रीष्मकालीन गहरी जुताई, वर्षा के अधिकांश जल को मृदा के अन्दर अवशोषित करने में अहम भूमिका निभाती है, जिसके फलस्वरूप बरसात के दिनों में खेत नमी संरक्षण के लिए तैयार हो जाते हैं ।
ग्रीष्मकालीन के दौरान मृदा गर्म हो जाती है, लेकिन घातक तापमान की सीमा केवल मिट्टी की ऊपरी परतों तक ही सिमित रहती है । जबकि रोगजनक जीव (फफूंद, जीवाणु, निमेटोड, कीट, कीटों के अंडे, खरपतवारों की जड़ तथा बीज इत्यादि) मृदा में निचे आराम दायक परतों में छुपे रहते है ।
ग्रीष्मकालीन गहरी जुताई मिट्टी को काटते, पलटते इन हानिकारक जैविक कारकों को उपरी सतहों में ले आती है तथा अत्यधिक तापमान के सम्पर्क में आने से यह नष्ट होने लगते हैं । खरपतवारों की जड़े नमी खोने के कारण सूखने लगती है, बीज अत्यधिक गहराइयों में नीचे दब जाते हैं, जिससे इनका अंकुरण नही हो पाता है । यह निमेटोड के नियंत्रण के लिए भी अत्यधिक प्रभावी, अनुशंसित तकनीक है ।
ग्रीष्मकालीन गहरी जुताई फसल अवशेषों के सड़ने, हानिकारक रसायनों के अवशेषों के क्षरण, मृदा में वायु संचार तथा मृदा की जल धारण क्षमता में वृद्धि करती है तथा मृदा क्षरण को रोकने का कार्य भी बखूबी से निभाती है ।
ग्रीष्मकालीन गहरी जुताई के लिए सक्षम हल
सब सोयलर
खेतों की बार-बार एक ही गहराइयों तक जुताई करने तथा खेतों में भारी मशीनरी (ट्रेक्टर, कम्बाइन मशीन, थ्रेशर, ट्रेक्टर-ट्रोली इत्यादि) के आवा-गमन से एक निश्चित गहराई पर शक्त परत का निर्माण हो जाता है । इस परत की नीचे पानी व हवा का आवा-गमन रुक जाता है, जिससे खेत में जल-भरण जैसी समस्या आने लगती है और इसका असर सीधा फसल उत्पादन पर होता है ।
ऐसे में इस शक्त परत को तोड़ने की जरूरत होती है जीस के लिए सब सोयलर हल अत्यधिक उपयुक्त हल है । सब सोयलर हल 2.5 सेंटीमीटर मोटा तथा 18 सेंटीमीटर चोड़ा होता है जो कि एक मजबूत फ्रेम में लगा होता है । सब सोयलर हल 80 सेंटीमीटर की गहराइयों तक जुताई करने में सक्षम होता है ।
सब सोयलर हल से जुताई करने के लिए करीब 50 एच. पी. (अश्व शक्ति) के ट्रेक्टर की जरूरत होती है । अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए 3-4 वर्ष में एक बार सब सोयलर हल से जुताई कर लेना चाहिए ।
मोल्ड बोर्ड
प्राथमिक जुताई में यह हल मिट्टी को काटकर एवं पलटने एवं ढेलें तोड़ने में सक्षम है । खेत में खड़े खरपतवारों को उखाड़ कर मिट्टी में नीचे दबा देता है, जिससे खरपतवार सड़-गल जाते हैं और खेत खरपतवार मुक्त हो जाता है ।
इसके अतिरिक्त हरी खाद, गोबर की खाद इत्यादि को भी मृदा में मिलाने के लिए यह हल अत्यधिक कारगर है । ट्रेक्टर चालित इस हल से 30 सेंटीमीटर तक गहरी जुताई की जा सकती है ।
तवेदार हल
ऐसे खेत जहाँ भारी काली मिट्टी हल को चिपकती हो, कंकर-पत्थर तथा अधिक खरपतवार हो, वहां मोल्ड बोर्ड हल की तुलना में तवेदार हल अधिक उपयोगी सिद्ध होते हैं । इस हल में घुमने वाले तवे लगे होते हैं, जिनका सामान्य व्यास 60-70 सेंटीमीटर होता है । तवेदार हल बियरिंग पर घूमते हैं तथा जुताई की गहराइ को हाइड्रोलिक प्रणाली से नियंत्रित करते हैं ।
कल्टीवेटर
जहाँ मृदा हल्की हो वहां कल्टीवेटर से भी ग्रीष्मकालीन जुताई की जा सकती है । चूँकि कल्टीवेटर को सब सोयलर हल या तवेदार हल या मोल्ड बोर्ड हल की तुलना में कम पावर के ट्रेक्टर से भी खींचा जा सकता अत: कम डीजल व खर्चे में जुताई सम्भव हैं । कल्टीवेटर में 7 से लेकर 13 तक स्प्रिंग-टाइन लगे होते हैं ।
कल्टीवेटर का उपयोग हल्की मृदाओं में ग्रीष्मकालीन गहरी जुताई के अतिरिक्त खेत में खाद मिलाने, विस्तृत पंक्ति की फसलों में निराई-गुड़ाई करने तथा भारी मृदाओं में अन्य हलों से जुताई करने के पश्चात खेत को तैयार करने के उपयोग में लेना चाहिए ।
डिस्क हैरो
इस हल का उपयोग मिट्टी को काटकर पलटने तथा खरपतवार नियंत्रण के लिए करना चाहिए । इसके अतिरिक्त यह हल हल्की जुताई के लिए भी उपयुक्त है अत: इसे द्वितीय भू-परिष्करण बहुउद्देश्यीय हल भी कहा जा सकता है ।
Authors
राज पाल मीना, कर्णम वेंकटेश एवं अंकिता झा
भा.कृ.अनु.प.-भारतीय गेहूँ एवं जौ अनुसन्धान संस्थान, करनाल
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